डोनाल्ड ट्रंप की राजनीतिक कूटनीति

(शशांक राय)

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की भारत कूटनीतिक कारणों से नहीं, बल्कि उससे इतर दूसरे कारणों से चर्चा का विषय बनी है। अभी तक ऐसा लग रहा है कि यह अकेली यात्रा है। यानी वे किसी बहुपक्षीय वार्ता में शामिल होने भारत नहीं आ रहे हैं और न एक साथ कई देशों की यात्रा कर रहे हैं। यह स्टैंडअलोन यानी अकेले भारत की यात्रा है। कम से कम अभी तक ऐसा लग रहा है। यह संभव है कि भारत आते हुए या भारत से लौटते हुए ट्रंप अफगानिस्तान में रूक जाएं। ध्यान रहे अफगानिस्तान में तालिबान के साथ अमेरिका एक समझौता करने जा रहा है। 29 फरवरी को इस समझौते पर दस्तखत होंगे। असल में अमेरिका वहां से अपनी फौज हटाना चाह रहा है। इसलिए वह तालिबान से एक संधि कर रहा है।

अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने 29 फरवरी को समझौते पर दस्तखत की जानकारी दी है। ध्यान रहे पहले भी दोनों देश संधि के बेहद करीब पहुंच गए थे पर एक आतंकवादी हमले की वजह से ट्रंप ने समझौता टाल दिया था। इस बार शायद इसे नहीं टाला जाए। दूसरे, अफगानिस्तान में इस समय राजनीतिक सत्ता को लेकर भी टकराव चल रहा है। पांच महीने पहले हुए चुनाव में राष्ट्रपति अशरफ गनी और अब्दुल्ला अब्दुल्ला दोनों जीत का दावा कर रहे हैं। भारत ने अशरफ गनी की जीत को मान्यता दी है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनको जीत पर बधाई भी दे दी है। इस तरह भारत ने अपना स्टैंड साफ कर दिया है। इन दोनों कारणों से माना जा रहा है कि ट्रंप अफगानिस्तान में थोड़ी देर के लिए रूक सकते हैं।

अगर राष्ट्रपति ट्रंप काबुल में रूकते हैं तो वह भी उनकी राजनीतिक कूटनीति का हिस्सा होगा। ध्यान रहे अमेरिका में साल के अंत में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव को ध्यान में रख कर ट्रंप चाहते हैं कि अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी का फैसला हो। इसी चुनावी या राजनीतिक कूटनीति का विस्तार उनकी भारत यात्रा भी है। वे अमेरिका में रहने वाले भारतीय समुदाय के लोगों को ध्यान में रख कर यह यात्रा कर रहे हैं। गौरतलब है कि उनके राष्ट्रपति बनने के बाद से ही भारत की ओर से प्रयास किया जा रहा था कि वे भारत का दौरा करें। पर उन्होंने चुनावी साल का इंतजार किया। अमेरिका में पहले प्रवासियों का वोट बंटता रहा है। मोटे तौर पर बहुसंख्यक प्रवासियों का वोट डेमोक्रेटिक पार्टी के साथ होता है। पर नरेंद्र मोदी के साथ दोस्ती दिखा कर ट्रंप इस वोट को अपने साथ करना चाहते हैं। काफी हद तक उन्हें इसमें कामयाबी मिली है। पिछली बार प्रवासी भारतीयों के वोट का बड़ा हिस्सा रिपब्लिकन पार्टी के साथ गया था, जिससे ट्रंप को कामयाबी मिली थी।

इस बार वे पूरी तरह से ध्रुवीकरण चाहते हैं। इसके लिए ही पांच महीने पहले अमेरिका के ह्यूस्टन में नरेंद्र मोदी के स्वागत में हाउडी मोदी कार्यक्रम का आयोजन हुआ था। वह आयोजन अमेरिका में रहने वाले भारतीय समूहों ने किया था पर उसके पीछे रिपब्लिकन पार्टी की योजना थी। उसी तरह का कार्यक्रम अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गृह राज्य गुजरात में हो रहा है। नमस्ते ट्रंप नाम से हो रहे इस कार्यक्रम का आयोजन एक नागरिक अभिनंदन समिति कर रही है, जो रहस्यमय स्रोत से सौ करोड़ रुपए जुटा कर खर्च कर रही है। एक लंबा रोड शो और एक लाख से ज्यादा लोगों की मौजूदगी में होने वाला नमस्ते ट्रंप कार्यक्रम अमेरिका में प्रवासी भारतीयों को ट्रंप के पीछे एकजुट करेगा।

यह अलग बात है कि ट्रंप की नीतियों से सबसे ज्यादा मुश्किल भारतीय प्रवासियों को हो रही है। वीजा से लेकर रोजगार तक का संकट भारतीयों के सामने खड़ा हुआ है। ट्रंप की संरक्षणवादी नीतियों की वजह से भारतीय कंपनियां कई किस्म की मुश्किलें झेल रही हैं। इसके बावजूद मोदी की वजह से और कुछ इस्लामोफोबिया की वजह से प्रवासी भारतीय समुदाय लगभग पूरी तरह से ट्रंप के पक्ष में गोलबंद होगा। यानी जो राजनीति भारत में हुई है उसका दोहराव अमेरिका में होने की पूरी संभावना है।

ट्रंप की भारत यात्रा में कूटनीति बहुत कम है और राजनीति बहुत ज्यादा है। वे एक तरफ तो नरेंद्र मोदी से दोस्ती दिखा रहे हैं, उन्हें अपना बहुत अच्छा दोस्त बता रहे हैं और दूसरी ओर यह भी कह रहे हैं कि कारोबार के मामले में भारत का बरताव अमेरिका के साथ अच्छा नहीं रहा है। उनका प्रशासन यह भी कह रहा है कि ट्रंप भारत में नरेंद्र मोदी के साथ बातचीत के दौरान संशोधित नागरिकता कानून और कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाने के फैसले पर भी बात कर सकते हैं। वे धार्मिक स्वतंत्रता का मुद्दा उठा सकते हैं। असल में यह भी उनकी घरेलू राजनीति का ही हिस्सा है। उन्हें सिर्फ प्रवासी भारतीय वोट नहीं लुभाने हैं, बल्कि पारंपरिक रूप से रिपब्लिकन वोट बैंक को भी एकजुट करना है। वे धार्मिक स्वतंत्रता का मुद्दा उठा सकते हैं ताकि अमेरिका के उदारवादी लोगों को खुश किया जा और व्यापार संधि टाल कर संरक्षणवादी दक्षिणपंथी मतदाताओं को भी खुश करेंगे। इस तरह वे अपनी यात्रा से एक साथ कई मकसद पूरे कर रहे हैं।

तभी कहा जा सकता है कि अगर वे अमेरिका में एक बार फिर चुनाव जीतते हैं तो उसमें उनकी राजनीतिक कूटनीति का बड़ा हाथ होगा। उनकी जीत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए भी अच्छी रहेगी। इससे प्रवासी समुदाय में उनकी लोकप्रियता का डंका बजेगा। दुनिया के दूसरे देश भी इस किस्म की राजनीतिक कूटनीति करना शुरू कर सकते हैं। ट्रंप अगर कामयाब होते हैं तो इससे भारत के अंदर भी मोदी की स्थिति मजबूत होगी। ट्रंप की जीत को मोदी की जीत बता कर प्रचारित किया जाएगा।

(साई फीचर्स)