(शशांक राय)
भारत की दो दिन की यात्रा के बाद अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अपने देश की कंपनियों के लिए 22 हजार करोड़ रुपए की सैन्य सामग्री का ऑर्डर लेकर लौटे। साथ ही अमेरिका में रहने वाले 30 लाख लोगों के मजबूत प्रवासी भारतीय समुदाय के ज्यादातर मतदाताओं के वोट की गारंटी लेकर भी लौटे हैं। ध्यान रहे पिछले चुनाव में प्रवासी भारतीय समुदाय का समर्थन ट्रंप को नहीं मिला था। चुनाव बाद हुए सर्वेक्षणों में बताया गया कि 70 फीसदी प्रवासी भारतीयों ने उस समय की डेमोक्रेटिक उम्मीदवार हिलेरी क्लिंटन को वोट दिया था। उसके बाद अपने चार साल के शासन में ट्रंप ने ऐसा कुछ नहीं किया है, जिससे प्रवासी भारतीय समुदाय को उनके साथ जुड़ना चाहिए।
राष्ट्रपति बनने के बाद उन्होंने भारतीय कंपनियों पर एच-1बी वीजा में फ्रॉड करने का आरोप लगाया, उनको अमेरिकी नागरिकों को नौकरी देने का दबाव बनाया, पति-पत्नी दोनों के काम करने के नियमों को सख्त बनाते हुएऐ उन्हें नियंत्रित किया, अपनी कंपनियों के लिए संरक्षणवादी रुख अपनाया, भारत को कारोबार में रियायत पाने वाले देशों की सूची से बाहर किया, भारत को बेतहाशा कर लगाने वाला देश बताया और कई बार प्रधानमंत्री मोदी का मजाक उड़ाया। इसके बावजूद भारत की घरेलू राजनीति के कुछ ऐसे सामाजिक और धार्मिक आयाम है, जिससे ट्रंप और मोदी सीधे जुड़े हैं और इसी वजह से ट्रंप की भारत यात्रा उनको प्रवासी भारतीय मतदाताओं के करीब ले जाएगी।
सो, कहा जा सकता है कि राष्ट्रपति ट्रंप आर्थिक रूप से फायदे में रहे। वे अपनी कंपनियों के लिए एक बड़ा ऑर्डर लेकर गए और राजनीतिक रूप से तो उससे भी ज्यादा फायदे में रहे क्योंकि वे एक बड़े वोट की गारंटी लेकर लौटे। पर भारत को उनकी इस यात्रा से क्या मिला? सोचें, पांच महीने पहले जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमेरिका गए और वहां उनके सम्मान में हाउडी मोदी कार्यक्रम का आयोजन किया गया तब भी उसका आयोजन भारतीय लोगों ने किया और 50 हजार भारतीय वहां ताली बजाने के लिए मौजूद थे। वहां का पूरा खर्च भारतीयों ने उठाया और मोदी-ट्रंप के लिए तालियां बजाईं। फिर ट्रंप भारत आए तब भी उनके स्वागत कार्यक्रम का सारा खर्च भारतीयों ने उठाया और सवा लाख भारतीयों ने मोदी व ट्रंप के लिए तालियां बजाईं। तो क्या भारतीयों का काम सिर्फ ताली बजाना है?
ट्रंप की भारत यात्रा का वस्तुनिष्ठ तरीके से विश्लेषण करने पर यहीं पता चलता है कि हम भारतीयों को सिर्फ ताली बजाने का काम मिला है। इसके अलावा उनकी यात्रा से कुछ भी हासिल नहीं हुआ है। कुछ बहुत बड़े कूटनीतिक जानकार या पूर्व राजनयिक बता रहे हैं कि दोनों देशों का संबंध नई ऊंचाइयों पर पहुंचा है या पहुंच जाएगा या यह कि आने वाले दिनों में इस दोस्ती का लाभ भारत को मिलेगा और वह दिखने भी लगेगा। इसका मतलब है कि अभी तो कुछ नहीं ही मिला है। उसके बाद कुछ मिलेगा इसका भरोसा कैसे किया जा सकता है। ट्रंप की बातों पर भरोसा करना अपने पैरों में कुल्हाड़ी मारने जैसा है। अमेरिका के न्यूज चेनल सीएनएन एक पत्रकार ने मोदी और ट्रंप की साझा प्रेस कांफ्रेंस में ही कह दिया कि उनके चेनल की सचाई का रिकार्ड ट्रंप के मुकाबले बहुत बेहतर है। अमेरिका के कई अखबार उनके अनगिनत झूठों की रिकार्ड कई बार प्रकाशित कर चुके हैं।
दूसरे, अगर ट्रंप चुनाव हार गए तो क्या होगा? क्या इस बारे में कुछ सोचा गया है? ध्यान रहे ट्रंप अमेरिका नहीं हैं। वे रिपब्लिकन पार्टी के नेता हैं और राष्ट्रपति हैं। उनकी और उनकी पार्टी की विचारधारा जरूर भारत में सत्तारूढ़ पार्टी और उसके मुखिया से मिलती है पर इसका यह मतलब नहीं है कि यह भारत की और वह अमेरिका की विचारधारा है। संभव है कि ट्रंप इस बार चुनाव हार जाएं या चार साल के बाद जब वे चुनाव नहीं लड़ेंगे तब कोई डेमोक्रेट राष्ट्रपति बने। उस समय भारत को बड़ा कूटनीतिक और आर्थिक नुकसान भी हो सकता है। यह बहुत अपरिपक्व कूटनीति है, जो इस तरह से भारत को ट्रंप के पीछे खड़ा दिखाया जा रहा है वह भी ऐसे समय में जब यूरोपीय देश और यहां तक कि कनाडा भी ट्रंप की नीतियों से जूझ रहा है।
भारत के लिए यह संतोष की बात हो सकती है कि ट्रंप ने इस्लामिक आतंकवाद से लड़ने के लिए एकजुटता की बात कही और ऐसा संकेत दिया कि वे इस लड़ाई में भारता का साथ देंगे। हालांकि वह भी साथ वे पाकिस्तान को लेकर ही देंगे। उनसे पाकिस्तान की सरजमीं से संचालित आतंकवाद के बारे में दो बार पूछा गया। एक बार तो वे सवाल टाल गए पर दूसरी बार बहुत बचते हुए कहा कि पाकिस्तान आतंकवाद को खत्म करने के लिए बहुत मेहनत कर रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान उनके बहुत अच्छे दोस्त हैं। इसका मतलब है कि भारत अपने चिर प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान के विरोध में अमेरिका की किसी तरह की मदद की उम्मीद नहीं कर सकता है। ट्रंप और अमेरिका को पता है कि तालिबान से समझौता और अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद इस इस इलाके में पाकिस्तान का उसके लिए ज्यादा महत्व है। दूसरी ओर इसका सबसे बड़ा खतरा भारत के लिए है। तभी सामरिक कूटनीति में भी भारत को ट्रंप की नीतियों से फायदे की बजाय नुकसान ही होना है। राजनीतिक फायदा हो सकता है कि भारत के सत्तारूढ़ दल को हो पर आर्थिक और सामरिक मोर्चे पर भारत को कोई फायदा नहीं हुआ है।
(साई फीचर्स)