तेल का देखो खेल, दाम धड़ाम, जेब पर नहीं लगाम

(ऋतुपर्ण दवे)

अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दामों जबरदस्त कमीं आने के बावजूद भारतीयों को कोई फायदा नहीं मिल रहा है. ऐसा क्यों है इसे समझना होगा कि तेल का असल खेल है क्या? जानकार हाल की गिरावट को पिछले 30 साल की सबसे बड़ी गिरावट बता रहे हैं साथ ही क्रूड ऑयल में और भी गिरावट की संभावना से इंकार नहीं कर रहे हैं. इसी महीने दूसरे हफ्ते में क्रूड ऑयल के दाम में जो बहुत बड़ी गिरावट आई उसे 17 जनवरी, 1991 को गल्फ वॉर शुरू होने के बाद की सबसे बड़ी गिरावट कहा जा रहा है.

दरअसल विश्व में कच्चे तेल का सबसे बड़ा खरीदार चीन है. जग जाहिर है कि कोरोना वायरस संक्रमण की वजह से चीन और तमाम दूसरे बड़े देश बुरी तरह से प्रभावित हैं. यह भी सच है कि अकेला चीन हर रोज औसतन 1 करोड़ 40 लाख बैरल तेल खपत करता है. लेकिन कोरोना की चपेट में आने की वजह से ऐसा हो नहीं हो पा रहा है. तमाम औद्योगिक प्रतिष्ठान और कल-कारखाने या तो बन्द हैं या पूरी क्षमता से नहीं चल पा रहे हैं. इसके चलते क्रूड ऑयल बुरी तरह प्रभावित हो गया है. दुनिया भर में 150 से ज्यादा देश करोना की चपेट में हैं. कई जगह हालात इमरजेंसी जैसे हैं. अमेरिका ने तो अपने यहाँ पहले ही इमरजेंसी घोषित कर रखी है. जाहिर है सड़कों पर गाड़ियां नहीं चल रही हैं. हवाई उड़ानें रद्द होती जा रही हैं. कुल मिलाकर तेल की माँग बेहद कम हो गई है. इन हालातों में पेट्रोलियम निर्यातक देशों का संगठन. ओपेक और तमाम दूसरे तेल उत्पादक देश चाहते थे कि   तेल का उत्पादन ही कम कर दिया जाए लेकिन रूस नहीं माना. नतीजा सामने है कि कच्चे तेल के सबसे बड़े उत्पादक सऊदी अरब ने कीमतों में कमीं कर दी. इसकी भी बड़ी वजह है चाहे सऊदी अरब हो, रूस या तेल उत्पादन करने वाले अन्य दूसरे बड़े देश सभी इस बाजार में कब्जा और वर्चस्व की होड़ की में हैं.  अमेरिका ने तो शेल ऑयल फील्ड से पिछले दशक में तेल उत्पादन बढ़ाकर दोगुना कर दिया. जिस तेजी से अमेरिका तेल उत्पादन की दिशा में बढ़ा रहा है, उससे सऊदी और रूस जैसे बड़े देशों के मार्केट पर खतरा मंडरा रहा है. बस यही वजह है कि रूस ने तेल उत्पादन में कटौती की बात नहीं मानी. नतीजन क्रूड ऑयल के दाम धड़ाम से आ गिरे. लेकिन हकीकत यह है कि इसका आम भारतीयों को कोई फायदा मिलता नहीं दिखता.

यदि अभी मार्च के दूसरे हफ्तों की कीमतों के आधार पर हिसाब लगाएं तो भारत में प्रति बैरल यानी 159 लीटर कच्चे तेल की कीमत के लिए पहले 3567.45 रुपये खर्च करने पड़ते थे. लेकिन क्रूड ऑयल की कीमतों में जबरदस्त गिरावट आने से लगभग 30 प्रतिशत सस्ता हो गया है और कीमतें 2200 से 2400 रु. प्रति बैरल के बीच रह गईं. जबकि वर्ष 2020 की शुरुआत में कच्चे तेल की कीमत 67 डॉलर प्रति बैरल यानी 30.08 रुपए प्रति लीटर थी जो 12 मार्च को गिरकर 38 डॉलर प्रति बैरल यानी 17.79 रुपए प्रति लीटर रह गई. समझना होगा कि यह पेट्रोल और डीजल 72 रु. और 62 रु. प्रति लीटर कैसे और क्यों मिलता है! एक लीटर पेट्रोल की कीमत 17.79 रु. उस पर तेल कंपनी का चार्ज 13.91 रु., एक्साइज ड्यूटी और रोड सेस 19.98 रु., डीलर कमीशन 3.55 रु., वैट 14.91 रु. इस तरह कुल कीमत हुई 70.14 रुपए. डीजल का भी यही हाल है प्रति लीटर कच्चे तेल की कीमत 17.79 रु, तेल कंपनियों का चार्ज 17.55 रु., एक्साइज ड्यूटी और रोड सेस 15.83 रु., डीलर कमीशन 2.49 रु., वैट 9.23 रु. कुल कीमत हुई 62.89 रु. यह अनुमानित कीमतें अलग-अलग शहरों में ट्रांसपोर्ट व्यय के हिसाब घटती-बढ़ती हैं.

यह दरें 14 मार्च को प्रति लीटर 3 रुपए एक्साइज में इजाफा के पहले की हैं. जाहिर है अप्रत्यक्ष रूप से इसके बाद कीमतें बजाए घटने के और बढ़ गईं तथा लोगों को कीमतों की कमीं का कुछ भी फायदा नहीं मिला. कीमतों को स्थिर रखने के बहाने अर्थव्यवस्था में आई कमजोरी से जूझ रही सरकार को अतिरिक्त धन जुटाने के लिए यह अच्छा जरिया मिल गया जो अंतर्राष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतों में अभूतपूर्व की कमीं के बावजूद लोगों की जेब पर भारी पड़ गया. आंकड़ों के लिहाज से तीन रुपये की बढ़ोतरी के बाद पेट्रोल पर एक्साइज ड्यूटी की दर 22.98 रु. और डीजल पर 18.83 रुपये हो जाएगी। अनुमान है कि अकेले एक्साइज ड्यूटी बढ़ाने से सरकारी खजाने में 39,000 करोड़ रुपये जमा होंगे.

यदि एक्साइज ड्यूटी पर ही नजर डालें तो आंकड़ें बताते हैं साल 2014 में पेट्रोल पर टैक्स 9.48 रुपये प्रति लीटर था और डीजल पर 3.56 रुपये. नवंबर 2014 से जनवरी 2016 तक केंद्र सरकार ने इसमें 9 बार बढ़ोत्तरी की है. जिससे पेट्रोल पर एक्साइज ड्यूटी 11.77रु. और डीजल पर 13.47 रु. प्रति लीटर बढ़ी. इस बढ़ोत्तरी क वजह से सरकार को 2016-17 में 2,42,000 करोड़ रुपये की कमाई हुई   जो 2014-15 में महज 99,000 करोड़ रुपये थी। अक्तूबर 2017 में एक्साइज ड्यूटी को दो रुपये कम कम किया गया लेकिन एक साल बाद ही फिर 1.50 रु. प्रति लीटर का इजाफा किया गया. वहीं जुलाई 2019 में एक बार फिर दो रुपये प्रति लीटर बढ़ा दी गई और अब मार्च 2020 में 3 रु. प्रति लीटर की दर से भारी वृध्दि कर दी गई.

क्रूड ऑयल की अंतर्राष्ट्रीय कीमतों और भारत में बिकने वाले तेल की कीमतों का अन्तर जाने बिना तेल का खेल समझना अधूरा है. वर्ष 2008 में क्रूड ऑयल की अंतर्राष्ट्रीय कीमत 141.38 डॉलर प्रति बैरल थी तब भारत में पेट्रोल की कीमतें 50.62 रुपए और डीजल की 34.86 रुपए प्रति लीटर थी. इसी तरह वर्ष 2009 में कीमतें 77.19 प्रति डॉलर रह गईं तब हमारे यहाँ पेट्रोल 44.72 रु. और डीजल 32.87 रु. प्रति लीटर था. वर्ष 2010 में 87.77 डॉलर प्रति बैरल की कीमतों के दैरान पेट्रोल 55.87 रु. और डीजल 37.75 रु. प्रति लीटर रहा. वर्ष 2011 में प्रति बैरल 111.72 डॉलर की कीमत के दौरान पेट्रोल 66.84 रु. और डीजल 41.12 रु. प्रति लीटर रहा. वर्ष 2012 में 109.39 डॉलर प्रति बैरल की कीमत के दौरान पेट्रोल 73.18 रुपए और डीजल 47.15 प्रति लीटर, वर्ष 2013 में 107.38 प्रति डॉलर की कीमत के दौरान पेट्रोल 76.06 रु. और डीजल 53.78 रुपए रहा. वर्ष 2014 में 106.95 डॉलर प्रति बैरल की कीमत के दौरान पेट्रोल 73.60 रु. और डीजल 58.97 रु., 2014 में 106.95 डॉलर प्रति बैरल के दौरान पेट्रोल 73.60 रु. और डीजल 58.97 रु. प्रति लीटर रहा. वर्ष 2015 में कीमतें घट कर लगभग आधी रह गईं तब भी उस दौरान देश में पेट्रोल और डीजल की कीमतों में कोई खास कमीं नहीँ आई. इस वर्ष क्रूड ऑयल की कीमतें केवल 59.64 डॉलर प्रति बैरल रह गईं थी तब पेट्रोल 66.93 रु. और डीजल 52.28 रु. की कीमत पर बना रहा. 2016 में क्रूड ऑयल और भी नीचे आकर 51.79 डॉलर प्रति बैरल रहा तब भारत में पेट्रोल की कीमत बढ़कर 68.94 और डीजल की कीमत 56.68 रु. प्रति लीटर रहीं. इसी तरह 2017 में क्रूड ऑयल 58.95 डॉलर प्रति बैरल रहा तब पेट्रोल की कीमतों ने उछाल मारा और 71.14 और डीजल 59.02 रु. प्रति पर जा पहुँचा. 2018 में क्रूड ऑयल 66.14 डॉलर प्रति बैरल पर आ गया तो पेट्रोल कीमत उछल कर 74.00 रु. और डीजल की कीमत 64.88 रु. प्रति लीटर पर आ पहुँचीं. जबकि 2019 में क्रूड ऑयल की औसत कीमत 72 डॉलर प्रति बैरल रही जबकि भारत में औसत कीमत जनवरी 2020 के पहले हफ्ते तक पेट्रोल 83 रु. और डीजल 72 रु. तक जा पहुँचा था. इस तरह केवल जनवरी 2020 से पिछले 12 महीनों के आंकड़ों पर नजर डालें तो पेट्रोल के दामों में लगभग 9.27 रु. प्रति लीटर तो डीजल के दामों में 7.15 रु. प्रति लीटर की बढ़ोत्तरी हुई है.

जाहिर है कि यह पेट्रोल और डीजल ही है जो सरकार का खजाना भरने का नायाब औजार है. तभी तो पानी से भी सस्ता प्रति लीटर क्रूड ऑयल भारत में खाने के औसत दर्जे के तेल के बराबर मंहगा हो जाता है और कभी मंदी से जूझने के लिए तो कभी तमाम मुफ्त की सरकारी योजनाओं के लिए भारी भरकम धन मुहैया कराने के लिए सरकार का साधन बनता है. बस तेल का इतना सा लेकिन अंकगणित के लिहाज से यही बड़ा खेल है सरकार की दौलत बढ़ाता है और आमजनों की जेब काटता है.

(साई फीचर्स)

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