भेड़ बकरियों के मानिंद कराहते यात्री

 

(शरद खरे)

आज़ादी के बाद एक समय था जब प्रदेश में सीपीटीएस के नाम से यात्री बसें दौड़ा करती थीं। वयोवृद्ध हो चुके लोग आज भी यात्री बसों को सीपीटीएस की बस के नाम से ही पुकारते हैं। दरअसल, उस समय सीपी एण्ड बरार की परिवहन सेवाओं को सेंट्रल प्रोवेन्सेस ट्रांसपोर्ट सर्विस के नाम से जाना जाता था।

इसके बाद संयुक्त मध्य प्रदेश (छत्तीसगढ़ के अलग होने के पूर्व) में यात्रियों को लाने ले जाने में सड़क परिवहन निगम का एकाधिकार रहा है। सड़क परिवहन निगम था, इस पर सरकारी नियंत्रण हुआ करता था इसलिये यात्रियों के हितों की अनदेखी कम ही हो पाती थी।

सड़क परिवहन निगम का अस्तित्व जब से समाप्त हुआ है उसके बाद से प्रदेश में परिवहन के क्षेत्र में जमकर अराजकता पसर गयी है। किस यात्री बस के पास परमिट है, किसका फिटनेस या बीमा कब तक का है, यह बात शायद ही कोई जानता हो। पूर्व में यात्री बस में सामने के कांच पर ही उसके परमिट फिटनेस आदि की तिथि अंकित हुआ करती थी।

ये सारी व्यवस्थाएं परिवहन विभाग के द्वारा ही देखी और पालन करवायी जाती थीं। लगभग दो दशकों से क्षेत्रीय परिवहन अधिकारियों को इतनी फुर्सत भी नहीं मिल पा रही है कि वे सड़कों पर उतरकर जमीनी हकीकतों से रूबरू हो पायें। अब तो सरकारी कार्यालयों में बैठकर ही देश दुनिया को देखने का रिवाज़ चल पड़ा है।

याद पड़ता है कि एक बार जब बल्लारशाह से जबलपुर जाने वाली परिवहन विभाग की बस में 93 सीट भरकर लायी गयीं और बस स्टैण्ड का निरीक्षण कर रहे तत्कालीन संभागीय प्रबंधक दिनेश कुमार श्रीवास्तव एवं डिपो प्रबंधक के.के.श्रीवास्तव ने इसे देखा तो उन्होंने तत्काल ही परिचालक को निलंबित करने की अनुशंसा संभागीय प्रबंधक जबलपुर को कर दी थी।

आज के समय में सड़कों पर दौड़ रहीं बेतहाशा यात्री बसों में यह खोज पाना मुश्किल है कि कौन सी बस के पास वैध परमिट है, किस बस को परिवहन विभाग के द्वारा रिश्वत की बिनाह पर सांसे उधार दी गयी हैं। कहने को यदा कदा परिवहन विभाग के द्वारा सड़कों पर खड़े होकर वाहन चैकिंग का स्वांग रचा जाता है पर उसके बाद . . .!

होली, दीपावली के साथ ही साथ मेले ठेलों में भी बसों में रेलमपेल देखते ही बनती है। स्लीपर बस में एक-एक स्लीपर पर सात-आठ यात्रियों को बैठाया जाता है। इसके अलावा यात्रियों से मन माफिक किराया भी वसूला जाता है। प्रशासन अगर अभी से इसकी तैयारी कर ले तो आने वाले समय में यात्रियों को होने वाली असुविधा को दूर किया जा सकता है।

संवेदनशील जिला कलेक्टर प्रवीण सिंह एवं जिला पुलिस अधीक्षक कुमार प्रतीक से जनापेक्षा है कि सड़कों पर जानवरों की तरह सवारियां भरकर कुलाचें भर रहीं यात्री बसों की सतत चैकिंग हो, इस तरह की व्यवस्था सुनिश्चित करायी जाये। जिले में प्रत्येक पुलिस थाने से होकर यात्री बस गुजरती है। पुलिस चाहे तो इनके कागजात चैक कर सकती है, उसे इसका अधिकार भी है पर पता नहीं क्यों परिवहन विभाग और पुलिस विशेषकर यातायात पुलिस के द्वारा अपनी जवाबदेहियों से पीछा क्यों छुड़ाया जा रहा है। इसके चलते अंततोगत्वा मरण तो आम जनता की ही हो रही है।