(हरि शंकर व्यास)
मैं चाहूंगा कि आज मेरा लिखा गलत साबित हो। क्योंकि यदि सही हुआ तो दस-पंद्रह साल में भारत के जिले-जिले, शहर-शहर में एक हिंदुस्तान, एक पाकिस्तान वाला जिन्नाई सपना साकार मिलेगा। हिंदू बनाम मुस्लिम की ऐतिहासिक ग्रंथि, फॉल्टलाइन जल्दी खुलेगी और भारत गृह युद्ध में घायल ऐसा होगा कि उसके आगे सीरिया मामूली लगेगा। इसका बीज हिंदुओं के घरों में आज नरेंद्र मोदी की हिंदू औरगंजेब के रूप में पूजा है। मोदी के अलावा हिंदू दूसरे किसी पर सोच नहीं रहा है। दूसरा संकेत गुरूग्राम में मुस्लिम परिवार की हिंदू लाठियों से पिटाई का है। उस पर पढ़े-लिखे हिंदू में सुना यह रिएक्शन है कि ये इसी लायक हैं। उसी मुस्लिम परिवार से अब खबर है कि वह मुस्लिम इलाके में शिफ्ट होगा। सो सोचें हिंदू इलाके में मुस्लिम का रहना सुरक्षित नहीं और मुस्लिम इलाके में हिंदू का रहना जोखिमपूर्ण तब हिंदू औरंगजेब वाले संभावी जनादेश से भारत माता का आगे क्या होगा?
तभी 2019 का लोकसभा चुनाव हिंदू इतिहास का वह मोड़ है, जब हिंदू फैसला देगा कि मुसलमानों से निपटना है तो हिंदू औरंगजेब उर्फ मोदी की पुनःतख्तपोशी जरूरी है। जाहिर है इसका एपीसेंटर उत्तर प्रदेश है। हां, आज नोट करें यूपी में भाजपा को 50 प्रतिशत से पार वोट मिलने वाले हैं। इसलिए क्योंकि औसत हिंदू परिवार में नरेंद्र मोदी को धर्म पताका वाहक हिंदू औरंगजेब माना जा रहा है। भूल जाएं कि योगी या मोदी की सभाओं में भीड़ वैसी नहीं है, जैसी 2014 में थी या चुनाव जात समीकरणों पर है। अपने को अंतरधारा यह दिख रही है कि यूपी में पूरा चुनाव मुसलमान के खिलाफ है। मुस्लिम बस्तियों के खिलाफ है। हिंदू बनाम मुस्लिम लड़ाई है। तभी अजित सिंह भी हारेंगे तो राहुल गांधी भी हारेंगे। अखिलेश भले आजमगढ़ में मुस्लिम-यादव-दलित के साठ प्रतिशत वोटों के जोड़ की सुरक्षा से बच जाएं अन्यथा सपा के छह-सात सांसद जीतें तो बड़ी बात। 23 मई के बाद मायावती, प्रियंका, राहुल, अखिलेश सब यूपी में ढूंढे नहीं मिलेंगे।
सचमुच मुझे तीन दिन से यूपी से जो फीडबैक मिली है उसने अकल्पनीय सिनेरियो बनाया है। कई दिनों से यूपी घूम रहे शंभुनाथ शुक्ला ने कल सुबह मुझे वह कहा, जिसकी मुझे अलग-अलग जरियों से फीडबैक थी और जिसका अर्से से खटका था (पुलवामा के बाद भी मैंने यूपी में भाजपा के पचास पार जाने का जुमला दिया था)। उसी पर फिर मैंने मार्च के प्रारंभ में जिन्ना के सपने के जिले-जिले, शहर-शहर एक हिंदुस्तान, एक पाकिस्तान वाली सीरिज लिखी थी।
लब्बोलुआब हिंदू घरों में नरेंद्र मोदी की बतौर हिंदू औरंगजेब आज पूजा है। हकीकत है कि जैसे भारतीय उपमहाद्वीप का मुसलमान औरंगजेब को नंबर एक धर्मवाहक, रक्षक राजा मानता है वहीं धारणा, वैसी ही इमेज हिंदू के घर-घर में आज नरेंद्र मोदी की बनी है। आप किसी मुसलमान से कितनी ही बहस कर लें, वह औरंगजेब के अत्याचारों, आंतक, उसके ध्वंस, उसकी सांप्रदायिकता, उसकी बरबादी की बात नहीं सुनेगा। वैसा ही भाव, वैसी ही जिद्द हिंदू घरों में नरेंद्र मोदी को ले कर बनी है। मुसलमान औरगंजेब की जिन कथित खूबियों की दुहाई देता है मतलब धर्मपरायण, कंजूस, ईमानदार और चौबीसों घंटे मेहनत का हवाला देते हुए औरंगजेब आलमगीर गुण गाते हुए उसे सबसे बड़ा, सबसे सफल मुगल बादशाह बताता है वैसे ही गुण, वैसा ही मनोभाव हिंदुओं में नरेंद्र मोदी के प्रति बन गया है।
और इतिहास की हकीकत वाली इस बात को भी नोट रखें कि मध्यकाल और आजादी से पहले की हिंदू बनाम मुस्लिम राजनीति में उत्तर भारत और खास कर यूपी याकि गंगा-यमुना दोआब में ही औरंगजेबी जिहाद और भारत विभाजन के बीज पड़े थे। ठीक वैसा ही कुछ, इतिहास की पुनरावृत्ति उत्तर प्रदेश में आज अमित शाह की पानीपत की तीसरी लड़ाई के अखाड़े में बनती लग रही है। इसमें एक तरफ हाथी पर बैठा हिंदू औरंगजेब नरेंद्र मोदी है तो दूसरी और मुसलमान हैं।
हां, सिर्फ हिंदू बनाम मुस्लिम। 2017 के विधानसभा चुनाव से भी अधिक सघन मौन आंधी। इसलिए क्योंकि बतौर धर्म रक्षक हिंदू मन, मनोविज्ञान में नरेंद्र मोदी बतौर धर्मरक्षक, हिंदू रक्षक माना है। जैसे औरंगजेब मुसलमानों का रोल मॉडल रहा वैसे हिंदुओं के लिए मुसलमानों को दबाए रखने, पाकिस्तानों को ठोकने का महाप्रतापी, धर्मपरायण हिंदू राजा नरेंद्र मोदी को माना जा रहा है।
यह मनोभाव इतना गहरा और सघन है कि नौजवान यादव और गैर-जाटव दलित भी उन तमाम सीटों पर भाजपा को वोट देगा, जहां एलायंस ने मुस्लिम उम्मीदवार खड़ा किया है या जहां यादव-दलित वोट बराबर की लड़ाई वाली संख्या में हैं। मायावती, अखिलेश, राहुल-प्रियंका का बलंडर है, अपने हाथों खुद अपनी आत्महत्या है, जो इन्होंने जात समीकरण पर चुनावी रणनीति बनाई और आपस में एकदृदूसरे के वोट काटने की एप्रोच अपनाई। इन्होंने इस जमीनी हकीकत को नहीं पकड़ा कि जब हिंदुओं की चाहना एक व्यक्ति की औरंगजेबी पूजा (कुछ भी हो मोदी ही रक्षक) है तो हिंदुओं की सामूहिक चेतना को प्रभावित कर सकने वाली समग्र हिंदू एप्रोच में चुनाव इन्हे लड़ना था। अखिलेश का अभी तक एक भी ब्राह्मण को टिकट नही देना या प्रवक्ताओं, स्टार कैंपेनर लिस्ट में बसपा-सपा की पूरी तरह फारवर्ड उपेक्षा, अति पिछड़ों की अनदेखी और केवल मुस्लिम-जाटव-यादव समीकरण का हल्ला वह आत्मघाती गलती है, जिससे अपने आप मुसलमान की तरफ देखते हुए औसत हिंदू यहीं सोच रहा है कि ये क्या बचाएंगें हमें मुसलमान से!
मैं बहुत बारीक बात लिख रहा हूं। मेरी इस बात पर गंभीरता से सोचें कि 2014 बनाम 2019 का फर्क यह है कि 2014 जैसी मोदी की हवा भले प्रत्यक्ष न दिखे लेकिन 2019 में उत्तर भारत का (खास कर वहां, जहां मुस्लिम आबादी अच्छी संख्या में है) हर हिंदू मन ही मन नरेंद्र मोदी की मूर्ति बतौर अपने औरंगजेब के बनाए बैठा है। इसे राहुल गांधी, अखिलेश, मायावती आदि कोई समझ नहीं रहे हैं कि 2014 में औसत हिंदू दिल्ली में प्रधानमंत्री पद के लिए दस तरह के नेता, दस प्रयोग सोचने को तैयार था। वह यूपीए से बुरी तरह चिढ़े हुए होने के बावजूद सहज था। जबकि आज वह दिल्ली के तख्त पर मायावती का नाम लेने पर या राहुल गांधी या अखिलेश या एक्सवाईजेड किसी का भी नाम सुनते ही उसे सिरे से तुरंत खारिज करता है। उसके दिमाग में, हिंदू मनोभाव में केवल एक, हिंदू औरंगजेब उर्फ मोदी का चेहरा स्थापित है।
कितनी अहम मगर निर्णायक बात है यह। अपने को जान कर आश्चर्य हुआ कि यूपी में जाने-अनजाने मुसलमान अपना यह विश्वास सार्वजनिक कर रहे है कि एलायंस जीतेगा और नरेंद्र मोदी हारेंगे। मौन, सहमे मुसलमानों का चुनाव के वक्त में ऐसा आत्मविश्वास दिखलाना भी बारीकी के साथ भाजपा के पक्ष में हवा बनवा देना है। मैं चाहूंगा कि मैं गलत साबित हो जाऊं लेकिन ताजा फीडबैक में मुझे लग रहा है कि यूपी में शायद की कोई मुसलमान चुनाव जीत पाए। मतलब मायावती- अखिलेश के प्रचार के बावजूद मुस्लिम उम्मीदवार को जिताने के लिए यादव और दलित वोट नहीं डालने वाले हैं। यादव और गैर-जाटव दलितों के घर में भी नरेंद्र मोदी की बतौर हिंदू औरंगजेब जरूरत इस सोच से बनी दिख रही है कि हमें रहना तो हिंदू बस्ती में, हिंदुओं के बीच है।
सो, हर शहर, हर गांव में मुसलमान और हिंदू अपनी-अपनी बस्तियों, मोहल्लों के खांचों का अखाड़ा लिए हुए हैं। नरेंद्र मोदी, योगी आदित्यनाथ और अमित शाह ने उत्तर प्रदेश को हिंदू बनाम मुस्लिम की फॉल्टलाइन को पुख्ता अंदाज में फिर जैसे उभारा है तो अगले दस-पंद्रह सालों में देश का क्या बनेगा, इस पर आप जितना सोचेंगे उतना इतिहास में भटकेंगे।
हां, इतिहास से निकला यह विचार भी नोट रखें कि भारत में जिस राजा ने धर्मपरायणता के नाम पर राज किया वह उस वंश, उस धर्म का आखिरी शासक हुआ। हां, औरंगजेब भी मुगल वंश के पतन की शुरुआत वाला आखिरी प्रतापी बादशाह था तो अशोक महान ने भी बौद्ध धर्म की जिद्द के चलते अपने वंश, अपने धर्म को गुमनामी की और धकेला। तभी हिंदुओं के संघ वंश के सर्वाधिक महाबली, प्रतापी औरंगजेब उर्फ नरेंद्र मोदी से आगे ऐसा न हो इसकी गारंटी नहीं है। हिंदू औरंगजेब आज जितनी भी संभावनाएं लिए हुए हैं उसका एक निचोड़ निर्विवाद है कि मोदी-शाह-योगी की पानीपत की तीसरी लड़ाई असम में शुरुआत है, जल्द आमंत्रण है हिंदू बनाम मुस्लिम वाले सभ्यताई संघर्ष के गृहयुद्ध का। जो काम पच्चीस-पचास साल बाद होना था, वैश्विक परिवेश में होना था वह दस-पंद्रह सालों में अपने देशी पानीपती परिवेश में ही शायद हो जाए। तब सोचे अपनी अगली पीढ़ी का भविष्य।
(साई फीचर्स)