अव्यवस्थाओं का मकड़जाल!

 

 

(शरद खरे)

शायद ही कोई ऐसा दिन होता हो जब सिवनी में सड़क दुर्धटना में घायल या मरने वालों की खबरें अथवा सरकारी विभागों में भ्रष्टाचार की खबरें अखबारों की सुर्खियां न बटोरती हों, इसके बाद भी व्यवस्थाएं हैं कि सुधरने का नाम ही नहीं ले रहीं हैं। इसके पीछे अवश्य कहीं न कहीं प्रशासनिक उदासीनता को ही प्रमुख रूप से दोषी माना जा सकता है।

सिवनी में फोरलेन पर ट्रामा केयर यूनिट की संस्थापना नहीं हो पायी। जिला चिकित्सालय में ट्रामा केयर यूनिट आरंभ नहीं हो पायी है। लगभग एक दशक से अस्तित्व में आया एनटीपीसी का वितरण केंद्र राष्ट्र को समर्पित नहीं हो पाया। और न जाने कितनी बातें हैं जिनका अगर सिलसिलेवार उल्लेख किया जाये तो स्थान कम पड़ जायेगा।

जिले में ट्रामा केयर यूनिट नहीं बनने से दुर्घटना में घायलों को फौरी तौर पर चिकित्सकीय मदद नहीं मिल पाती है। सिवनी का जिला चिकित्सालय सहित अन्य समस्त अस्पताल मरीजों को रिफर करने के अड्डे बन चुके हैं। जिला चिकित्सालय की कैमीकल्स की बजाय सिर्फ और सिर्फ पानी से धुलायी हो रही है।

मध्यान्ह भोजन व्यवस्था दम तोड़ती प्रतीत हो रही है। जिन स्व सहायता समूहों पर लापरवाही के आरोप सिद्ध पाये गये वे सीना तानकर मध्यान्ह भोजन परोस रहे हैं। सरकारी कार्यालयों में देर रात तक जाम टकराये जाते हैं, इसके बाद भी किसी तरह की कार्यवाही न हो पाना आखिर किस ओर इशारा कर रहा है?

विधान सभा चुनावों के पहले सत्ता के मद में चूर भारतीय जनता पार्टी के संगठन को जिले की परवाह नहीं थी, तो विपक्ष में बैठी काँग्रेस के लिये स्थानीय सांसद नरेंद्र मोदी हैं तो विधायक शिवराज सिंह चौहान। इसी तरह भाजपाईयों के लिये स्थानीय सांसद राहुल गाँधी तो विधायक कमल नाथ हैं। विपक्षी दल स्थानीय सांसद-विधायक से परहेज कर अपना निशाने पर प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री को ही रखते हैं। अब प्रदेश में काँग्रेस के सत्ता में आने के बाद यह नजारा उलट गया है, या यूँ कहें कि पात्रों को आपस में बदल दिया गया है।

नवीन जलावर्धन योजना हो या मॉडल रोड हर मामले में नागरिक त्रस्त हो चुके हैं। जिला कलेक्टर भले ही समय सीमा का हवाला देकर अधिकारियों की मश्कें कसना चाह रहे हों पर अधिकारी लापरवाही छोड़ नहीं रहे हैं। यह सब कुछ इसलिये हो रहा है क्योंकि लगभग एक दशक से सिर्फ और सिर्फ निर्देश दिये जाते रहे हैं, कभी भी कार्यवाही नहीं हुई है। कार्यवाही होती तो वह नज़ीर बनती और अधिकारियों में भय होता कि अगर वे गलत करेंगे तो नाप दिये जायेंगे।

लगभग दो ढाई दशकों से सिवनी जिले का विकास अवरूद्ध ही प्रतीत हो रहा है। ढाई दशक पहले पैदा हुई पीढ़ी आज जवान हो चुकी है। उमर दराज और प्रौढ़ हो रही पीढ़ी को सोचना ही होगा कि सिवनी के विकास के मार्ग कैसे प्रशस्त हों। आज हमें हमारी चिंता छोड़कर इस बारे में सोचना ही होगा कि हम किस सिवनी को आने वाली पीढ़ी के हाथों में सौंपने की तैयारी कर रहे हैं? क्या इस तरह सुराज आयेगा और आने वाली पीढ़ी सुकून महसूस करेगी?