आखिर मंत्री बन ही गए सिंधिया!

(अरुण दीक्षित)
अंततः ज्योतिरादित्य सिंधिया का इंतजार खत्म हो गया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उन्हें अपनी कैबिनेट में ले लिया है। यही नही मोदी ने उनके कद का भी ध्यान रखा है। आज राष्ट्रपति भवन में मंत्रिमंडल के सदस्यों की जो सूची पहुंची उसमें सिंधिया का नाम चौथे नम्बर पर था। उन्हें कौन सा विभाग मिलेगा यह तो खुद नरेंद्र मोदी तय करेंगे। लेकिन फिलहाल सिंधिया को कोसने वाले कांग्रेसियों को नया मुद्दा खोजना पड़ेगा।


उल्लेखनीय है कि पिछले साल दस मार्च को सिंधिया ने कांग्रेस छोड़ी थी। उनका आरोप था कि कांग्रेस में उनकी उपेक्षा की जा रही थी। विधानसभा चुनाव में कांग्रेस चुनाव अभियान समिति के मुखिया रहे सिंधिया इतने नाराज हुए कि वे अपने व कुछ अन्य कांग्रेस विधायकों को लेकर भाजपा में चले गए। नतीजन कांग्रेस की सरकार गिर गयी।
वैसे ऐसा करने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया परिवार के पहले सदस्य नही हैं। इससे पहले उनकी दादी विजयाराजे सिंधिया ने 1967 में मध्यप्रदेश में पण्डित द्वारका प्रसाद मिश्र की सरकार गिरवाई थी। उस समय भी बात सम्मान की हुई थी। मिश्र से नाराज विजयाराजे सिंधिया ने तब प्रदेश में संविद सरकार का गठन कराया था। गोविंद नारायण सिंह उस सरकार के मुखिया बनाये गए थे। यह अलग बात है कि वह सरकार ज्यादा दिन चल नही पायी थी।
अब ज्योतिरादित्य अपनी दादी द्वारा स्थापित पार्टी में हैं। देर से ही सही उन्हें उचित स्थान मिल गया है। देखना यह है मोदी की नजर में सिंधिया कब तक “चढ़े” रहते हैं। क्योंकि आज के फेरबदल में उन्होंने जिस तरह अपने पुराने साथियों को सरकार से बाहर किया है,उसने सभी को चौंका दिया है।
50 साल के ज्योतिरादित्य को अब एक कुशल नट की तरह सीधी रस्सी पर संतुलन बनाना होगा। एक ओर उन्हें भाजपा के दायरे में रहना होगा तो दूसरी तरफ अपने समर्थकों का हितसाधन भी करना होगा। क्योंकि अगर सिंधिया अपने समर्थकों का ख्याल नही रख पाए तो भाजपा में उनकी स्थिति प्रकाश जावड़ेकर और रविशंकर प्रसाद जैसी होने में देर नही लगेगी। अब उन्हें अपनी “वर्थ” प्रूव करनी होगी।
एक तथ्य यह भी है कि भाजपा घेराबंदी के कारण ही कांग्रेस में सिंधिया की कमजोर हुये थे। 2019 का चुनाव वे भाजपा की घेराबंदी के चलते ही हारे। यह हार इसलिये भी दुखद थी क्योंकि एक जमाने में उनके सहायक रहे व्यक्ति ने ही उन्हें बड़े अंतर से लोकसभा चुनाव हराया था। इस हार से ही कांग्रेस में उनका “मान” कम हुआ। इसी “मान” के लिए वे अपमान करने वाली भाजपा की चौखट तक पहुंचे। यह भी संयोग ही है कि अपमान करने वालों ने ही उन्हें फिर से सम्मानित किया है।
जहां तक मध्यप्रदेश की बात है,सिंधिया की हैसियत में फिलहाल कोई फर्क पड़ने वाला नही हैं। उनकी बजह से मुख्यमंत्री बने शिवराज सिंह चौहान उन्हें पूरा सम्मान देते हैं। संगठन में भी उनके साथ आये लोगों को उचित स्थान मिल गया है।
देखना यह होगा कि आगे आने वाले दिनों में वे असम के हेमंत विस्बा शर्मा जैसा सम्मान पा सकेंगे या नहीं। हालांकि अभी असम जैसी स्थिति मध्यप्रदेश में नही है। लेकिन कल क्या हो किसने जाना। वैसे भी राजनीति में कभी भी कुछ भी हो सकता है।
फिलहाल सिंधिया को मोदी कैबिनेट में जगह मिल जाने से प्रदेश में उनके समर्थक बहुत खुश हैं। कांग्रेस के उनके पुराने साथियों की पीड़ा बढ़ गयी है।
अब देखना यह है कि उन्हें कौन सा विभाग मिलता है!साथ ही भाजपा में रहते हुए अपने “कुनबे” का हितसाधन वे कैसे कर पाएंगे।
(साई फीचर्स)