(शरद खरे)
भरी गर्मी में सिवनी शहर के नागरिक पानी के लिये यहाँ-वहाँ भटकने पर मजबूर हैं। यह आलम तब है जबकि शहर को पानी देने के लिये नब्बे के दशक में आरंभ की गयी भीमगढ़ जलावर्धन योजना अस्तित्व में है और इसकी पूरक अर्थात नवीन जलावर्धन योजना का काम जारी है।
यह आश्चर्य से कम नहीं माना जायेगा कि नवीन जलावर्धन योजना पर पालिका के द्वारा पूरी तरह चुप्पी ही साधकर रखी गयी है। तत्कालीन निर्दलीय एवं वर्तमान भाजपा के विधायक दिनेश राय के द्वारा पिछले साल पालिका को कहा गया था कि मार्च के पहले दिन से नवीन जलावर्धन योजना का पानी सिवनी के नागरिकों को मिल जाना चाहिये। विडंबना ही कही जायेगी कि विधायक दिनेश राय के द्वारा तय की गयी समय सीमा से 433 दिन ज्यादा हो चुके हैं। यह शोध का ही विषय होगा कि एक विधायक को अपनी बात को अमल में लाने के लिये क्या 433 दिन लगाने पड़ सकते हैं!
इसके अलावा जिला कलेक्टर प्रवीण सिंह के द्वारा जलावर्धन योजना का कम से कम आधा दर्जन बार निरीक्षण किया गया था। उनके द्वारा भी इस योजना का पानी लोगों को फरवरी माह के अंतिम दिन मिलना आरंभ करने के निर्देश ठेकेदार को दिये गये थे। यह भी विडंबना ही कही जायेगी कि कलेक्टर जो जिले का प्रशासनिक मुखिया होता है उन्हें भी अपनी तय समय सीमा से 67 दिन बाद भी इस योजना का क्या हुआ, यह बात शायद ही पता हो।
इस मामले में पालिका में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी और विपक्ष में बैठी काँग्रेस के चुने हुए प्रतिनिधियों को जनता की समस्याओं विशेषकर गर्मी में पानी न मिलने पर होने वाली परेशानियों से ज्यादा सरोकार नज़र नहीं आ रहा है। काँग्रेस और भाजपा के नगर एवं जिला संगठनों ने भी अपना मौन इस मामले में नहीं तोड़ा है।
कुल मिलाकर हालात तो इसी ओर इशारा करते दिख रहे हैं कि ठेकेदार का इकबाल सत्ता के गलियारों में जमकर बुलंद है। सरकार चाहे भाजपा की रही हो या अब काँग्रेस की हो, किसी भी सियासी दलों के चुने हुए नुमाईंदों के द्वारा जलावर्धन योजना के ठेकेदार को कटघरे में खड़ा करने का प्रयास दिखावे के लिये ही सही, नहीं किया जा रहा है।
देखा जाये तो नवीन जलावर्धन योजना में सबसे ज्यादा गफलत तत्कालीन मुख्य नगर पालिका अधिकारी किशन सिंह ठाकुर के कार्यकाल में हुई थी। उन्हीं के कार्यकाल में इस योजना को आरंभ भी कराया गया था। मान भी लिया जाये कि अगर सियासी नुमाईंदे और प्रशासिनक अधिकारी जलावर्धन योजना के ठेकेदार से उपकृत हैं तो कम से कम सिवनी शहर के नागरिकों के प्रति अपनी जवाबदेही की खातिर ही सही कम से कम उन आहरण संवितरण अधिकारियों से इस योजना के विलंब, गुणवत्ता, लोगों को हुई परेशानी का जुर्माना वसूलने की कार्यवाही तो की जा सकती है।
संवेदनशील जिला कलेक्टर प्रवीण सिंह से जनापेक्षा है कि वे इस योजना के आगाज़ से लेकर अब तक र्हुइं विसंगतियों, जाँच रिपोर्ट्स, माप पुस्तिका (एमबी), तत्कालीन जिला कलेक्टर गोपाल चंद्र डाड के द्वारा करायी गयी जाँच आदि को बारीकी से अध्ययन कर स्वसंज्ञान से इस तरह की कार्यवाही के मार्ग प्रशस्त करें ताकि यह नज़ीर बन सके जिससे आने वाले समय में अधिकारियों और ठेकेदारों के द्वारा इस तरह की कोताही को करने के पहले सौ मर्तबा सोचा अवश्य जाये!
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