सधे कदमों से कांग्रेस अध्यक्ष पद की ओर बढ़ते दिग्विजय सिंह

सोनिया से मुलाकात न होने पर बुधवार को गहलोत दाखिल नहीं कर पाए नामांकन
(लिमटी खरे)


मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे सुंदर लाल पटवा के द्वारा उस वक्त जब राजा दिग्विजय सिंह मुख्यमंत्री थे, एक अखबार को दिए साक्षात्कार में कहा था कि ‘दिग्विजय सिंह शोध का विषय हैं!‘ उनके द्वारा कही गई बात नब्बे के दशक में मुख्यमंत्री बने दिग्विजय सिंह पर लगभग खरी ही बैठती आई है।
कांग्रेस के अंदरखाने से छन छन कर बाहर आ रही खबरों पर अगर यकीन किया जाए तो पार्टी के अनेक आला नेता चाह रहे हैं कि राहुल गांधी को अध्यक्ष पद स्वीकार कर लेना चाहिए, पर राहुल गांधी अपनी भारत जोड़ो यात्रा छोड़कर लौटने को तैयार नहीं दिख रहे हैं।
इन परिस्थितियों में सोनिया गांधी और राहुल गांधी के पास अब दिग्विजय सिंह से बेहतर विकल्प शायद ही कुछ हो। दिग्विजय सिंह के बारे में कहा जाता है कि वे सोनिया गांधी के प्रति सौ फीसदी वफादार हैं। वे कांग्रेस की विचारधारा के प्रति न केवल समर्पित हैं, वरन अडिग हैं। दिग्विजय सिंह का ट्रेक रिकार्ड अगर देखा जाए तो वे कार्यकर्ताओं के न केवल जीवंत संपर्क में रहते हैं, वरन उनके लिए संघर्ष भी करते हैं। दिग्विजय सिंह बहुत ही सहज, सरल और लोगों को आसानी से उपलब्ध होने वाले हैं।
दिग्विजय सिंह जब मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री हुआ करते थे तब लगभग रोज ही उनसे मुलाकात हुआ करती थी। कभी सुबह चार बजे तो कभी रात दो बजे वे मुख्यमंत्री निवास के लॉन में टहलते हुए कार्यकर्ताओं से भेंट करते दिख जाते थे। वे कभी थकान महसूस नहीं करते थे, और तो और उनके चेहरे पर शायद ही किसी ने क्रोध के भाव देखे हों।
दिग्विजय सिंह की एक खासियत है, वे जिससे एक बार मिल लेते हैं उसे नाम से ही पुकारते हैं। उनकी याददाश्त बहुत ही गजब की है। एक बार मध्य प्रदेश के तत्कालीन वित्त मंत्री कर्नल अजय नारायण मुशरान ने हमसे चर्चा के दौरान कहा था कि दिग्विजय सिंह पता नहीं क्या खाते हैं कि प्रदेश भर के कार्यकर्ताओं के नाम उनकी जुबान पर ही रहते हैं। उनमें संगठनात्मक क्षमता बहुत ही गजब की है।
मध्य प्रदेश में जब 2003 में विधान सभा चुनाव हुए तब चुनाव में पराजय का स्वाद चखने के बाद राजा दिग्विजय सिंह ने दो टूक शब्दों में कह दिया था कि वे दस साल तक अर्थात 2013 तक कोई संवैधानिक पद धारित नहीं करेंगे। उन्होंने अपना वायदा निभाया जबकि उस वक्त दिग्विजय सिंह चाहते तो राज्य सभा के जरिए संसद पहुंचकर कोई भी मलाईदार मंत्रालय आसानी से हासिल कर सकते थे।
दिग्विजय सिंह ने पिछले विधान सभा चुनावों के पहले अपने जीवन की एक लंबी पदयात्रा की थी। वैसे तो वे गोवर्धन पर्वत की यात्रा कई बार कर चुके हैं, पर उन्होंने नर्मदा परिक्रमा की और ग्रामीणों से मेल मुलाकात की। इसका परिणाम 2018 के विधान सभा चुनावों में कांग्रेस को जरूर मिला।
इधर, कांग्रेस अध्यक्ष के लिए शशि थरूर का नाम चल रहा है, पर केरल में ही उनके नाम का विरोध होना अपने आप में एक अहम बात मानी जा सकती है। थरूर ने जबसे कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव में ताल ठोंकने की बात कही है तबसे केरल में राहुल गांधी को अध्यक्ष बनाए जाने की मांग पुरजोर तरीके से उठती नजर आ रही है। गांधी परिवार के करीबी लोगों से व्यक्तिगत संबंध होने के चलते जब वे पार्टी में शामिल हुए वैसे ही उन्हें तिरूवनंतपुरम से लोकसभा का टिकिट दे दिया गया। वे वहां से न केवल जीते वरन तीन बार से इसी सीट से वे सांसद भी हैं। वे अपने क्षेत्र के लोकप्रिय सांसद माने जा सकते हैं पर केरल में ही उनका विरोध आश्चर्य जनक माना जा सकता है।
इधर, बुधवार को राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत दिन भर सोनिया गांधी से मिलने के लिए बेताब रहे। सोनिया गांधी के आवास के सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि अशोक गहलोत के समर्थक विधायकों के द्वारा जिस तरह का कृत्य किया जा रहा है उससे वे नाराज हैं।
सूत्रों की मानें तो अशोक गहलोत को सोनिया गांधी ने दोपहर तीन बजे भेंट का समय दिया था, बाद में यह बदलकर 05 बजे कर दिया गया। इसके बाद पांच के बजाए छः और फिर अंत में रात आठ बजे उनकी मुलाकात सोनिया गांधी से होना तय थी। इसी के चलते अशोक गहलोत बुधवार को अध्यक्ष पद के लिए अपना नामांकन दाखिल नहीं कर पाए।
यहां एक बात और गौरतलब होगी कि ब्रितानी गोरों की दासता से मुक्ति दिलाने में अहम भूमिका निभाने वाली कांग्रेस का अध्यक्ष कौन होगा, यह कहना किसी के लिए बहुत आसान नहीं रह गया है। देश में लोकतंत्र है और कांग्रेस के अंदर एक बार फिर अध्यक्ष का चुनाव कराया जाकर वहां भी लोकतंत्र को स्थापित किया जा रहा है।
(साई फीचर्स)