बूढ़े बैल के भरोसे बंजर खेती साधने की जुगत…

अपना एमपी गज्जब है..35

(अरुण दीक्षित)

कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा 12 दिन मध्यप्रदेश में रहकर गुजर गई। यात्रा के दौरान उड़ा गर्दो गुबार अब वापस जमीन पर जम गया है। इसके साथ ही प्रदेश में कांग्रेस को एक बार संजीवनी देने की कोशिश शुरू हो गई है। खबर आई है कि मध्यप्रदेश कांग्रेस कमेटी का पुनर्गठन होगा। संगठन में बड़ा फेरबदल होगा। नए और युवा चेहरे सामने लाए जाएंगे!

इस खबर के साथ ही मेरा ध्यान मध्यप्रदेश की कांग्रेस कमेटी पर गया। याद आया कि 2018 में जब अचानक अरुण यादव को हटा कर कमल नाथ को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया था तब कांग्रेस की नई समिति बनी थी। चूंकि तब पार्टी का मुख्य उद्देश्य चुनाव जीतना था इसलिए सरकारी जमीन पर बांटे जाने वाले पट्टों की तरह प्रदेश कांग्रेस के पद बांटे गए थे। आज यह बताने की हालत में कोई नही है कि पीसीसी में कुल कितने पदाधिकारी और सदस्य हैं। और कितने ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ चले गए हैं।

यह सब जानते हैं कि तब कमल नाथ की सदारत में इतिहास बना था। कांग्रेस ने 15 साल बाद बीजेपी को विधानसभा चुनाव हराया! 75 साल के कमल नाथ के नेतृत्व में जो सरकार बनी उसमें ज्यादातर युवा चेहरे शामिल किए गए। करीब 15 महीने बाद ही दुबारा एक और इतिहास बना! कांग्रेस के विधायक ज्योतिरादित्य सिंधिया की अगुवाई में बगावत करके बीजेपी में चले गए। मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे कमल नाथ को इस बगावत की भनक भी तब लगी जब उनकी पार्टी के विधायक बेंगलुरु के रिजॉर्ट में पहुंच गए। उसके बाद क्या हुआ सब जानते हैं। कांग्रेस आज भी आरोप लगाती है कि बीजेपी ने उसके विधायक खरीद लिए थे। उन्हें गद्दार भी कहती है। कही सुनी बातों से अलग यह भी सच है कि एमपी में पहली बार ऐसा हुआ था। बड़े उत्साह से एमपी आए कमल नाथ अचानक “वर्तमान” से “भूत” हो गए थे!

मार्च 2020 से लेकर आज तक कांग्रेस बीजेपी के बीच इसी मुद्दे पर तकरार होती रहती है। मजे की बात यह है कि कांग्रेस के कई विधायक बाद में भी बीजेपी में गए। कमल नाथ उन्हें रोक नही पाए। कांग्रेस की आपसी सिर फुटौव्वल जारी रही और जारी है।

जहां तक पीसीसी की बात है, पिछले करीब 5 सालों में प्रदेश कार्यसमिति की एक भी विस्तारित बैठक नही हुई है। कोई यह बताने की स्थिति में भी नही है कि पीसीसी में कुल कितने पदाधिकारी व सदस्य हैं। खुद कमल नाथ अपने पदाधिकारियों की संख्या नही बता पाएंगे।

अब सवाल यह है कि जब पांच साल पहले चुनाव के मद्देनजर शादी की सुपाड़ी की तरह पद बांटे थे तो अब पुनर्गठन में क्या करेंगे। क्योंकि यह भी चुनावी साल है। 11 महीने बाद फिर नई सरकार चुनी जायेगी। मुख्यमंत्री की खोई कुर्सी पाने को लालायित कमल नाथ पुनर्गठन के नाम पर नया क्या करेंगे?या क्या कर पाएंगे,या बड़ा सवाल है। हालांकि 2018 में प्रदेश प्रभारी दीपक बाबरिया के सिर ठीकरा फोड़ा गया था। अब जयप्रकाश अग्रवाल की भूमिका देखी जायेगी।

प्रदेश में कांग्रेसियों की गुटबंदी शाश्वत है। बिना गुटों की कांग्रेस की कल्पना ही नही की जा सकती है। कांग्रेसियों की कूटनीति से परेशान होकर अध्यक्ष पद छोड़ने वाले राहुल भी असलियत जानते हैं। उन्हें मालूम है कि बिना गुट के कांग्रेस सीधी खड़ी नही हो सकती। उन्हें यह भी मालूम है कि एमपी में कांग्रेस की सरकार क्यों गिरी थी। असल वजह क्या थी और कौन था असली सूत्रधार! शायद यही वजह रही होगी कि उन्होंने अपनी भारत जोड़ो यात्रा के दौरान मंच पर कमल नाथ और दिग्विजय सिंह को गले मिलवाया था।

प्रदेश में कांग्रेस के इलाके के हिसाब से धड़े हैं। इन सभी धड़ों के बीच समन्वय बन ही नही पा रहा है। राहुल की यात्रा के दौरान खुद कमल नाथ और अन्य बड़े नेताओं ने एक सवाल पर अलग अलग जवाब दिए। अभी भी यही हाल है। राजा पटेरिया का मुद्दा इसका ताजा उदाहरण है। कमल नाथ ने वीडियो सामने आने के तत्काल बाद अपने ही वरिष्ठ नेता की निंदा कर डाली। हालांकि पटेरिया ने सफाई भी दे दी थी लेकिन उनसे जवाब तलब कर लिया गया। जेल में बन्द पूर्व मंत्री से तीन दिन में सफाई मांगी गई। बीजेपी से ज्यादा कांग्रेस हमलावर हो गई। लेकिन कुछ नेताओं ने राजा पटेरिया का साथ दिया। विधानसभा में विपक्ष के नेता डाक्टर गोविंद सिंह ने खुल राजा का बचाव किया। उन्होंने कहा कि पटेरिया के साथ गलत हुआ है। पार्टी को उनका साथ देना चाहिए। उन्होंने उसी सांस में अपने शब्द ठीक कर लिए थे तो फिर पार्टी ने उनसे ऐसा व्यवहार क्यों किया?

एक बड़ा वर्ग गोविंद सिंह से सहमत है। लेकिन कमल नाथ के सामने आवाज उठाने से बच रहा है।

कमल नाथ की एक बड़ी समस्या यह है कि उनके पास अपनी मजबूत टीम है नहीं। प्रदेश के जो दमदार कांग्रेसी हैं, वे उन पर भरोसा नहीं करते। आरोप यह भी है कि वे कॉरपोरेट स्टाइल में कांग्रेस को चला रहे हैं। यही सबसे बड़ी समस्या है।

एक बड़े नेता तो साफ कह चुके हैं कि..चूंकि कमल नाथ पैसे वाले हैं इसलिए उन्हें प्रदेश की कमान दी गई है। उनकी उम्र को लेकर भी चर्चा होती रहती है। एक बड़े नेता बड़े चाव से अपने गांव का किस्सा सुनाते हैं। वे कहते हैं – बूढ़े बैलों से बंजर खेती नही सुधरती। बंजर तोड़ने के लिए जवान बैल लगते हैं। साथ ही यह भी कहते हैं कि अब जमाना मशीनों का है। फिर भी पुराना ट्रैक्टर काम नही करेगा। ज्यादा पावर का नया ट्रेक्टर ही काम समेट पाएगा। फिर जिनसे मुकाबला है उनकी ताकत को तो देखो! .

पौरुष की सेना के हाथियों की तरह बिखरे कांग्रेसी नेताओं को गोलबंद कर पाना नाकों चने चबाने जैसा है। लेकिन यही कांग्रेस की खूबी भी रही है। अशोक गहलोत और सचिन पायलट इसके ज्वलंत उदाहरण हैं।

ऐसे में कमल नाथ अपनी नई टीम कैसे बनाएंगे? माना जा रहा है कि जयप्रकाश वह सब नही करेंगे जो दीपक बाबरिया करते थे! लेकिन क्या कमल नाथ प्रदेश के सभी कांग्रेसी नेताओं को साथ लेकर चल पाएंगे?युवा नेताओं का सही इस्तेमाल होगा?

सवाल दिग्विजय की भूमिका का भी है। राहुल के सारथी बने दिग्विजय ने 75 साल की उम्र में जो स्टेमिना दिखाया है वह कहीं कमल नाथ पर ही भारी न पड़ जाए! फिलहाल पुनर्गठन की सुगबुगाहट के साथ ही एमपी में कांग्रेस की बासी कड़ी खदबदाने लगी है। चर्चाओं का दौर चल पड़ा है। देखते हैं आगे क्या होगा! राहुल की यात्रा के दौरान एक कथावाचक के सामने अपनी थकान का जिक्र करने वाले कितनी लंबी डग भरेंगे?यह वक्त बताएगा!

पर कुछ भी हो अपना एमपी गज्जब है… है कि नहीं…

 

(साई फीचर्स)