(राष्ट्रीय युवा दिवस विशेष – 12 जनवरी 2023)
(डॉ. प्रितम भि. गेडाम)
प्रत्येक देश की दशा-दिशा वहां के युवा शक्ति पर निर्भर करती है। आज के बच्चें कल देश के शिल्पकार कहलायेंगे। बचपन से युवावस्था तक के काल में शिक्षा, संस्कार, पालन–पोषण, स्वास्थ्य सुविधा, अवसर, आस-पड़ोस, संगत, व्यवहार, वातावरण का सीधा असर व्यक्ति के जीवन पर होता है, उनका पूरा भविष्य इन्ही बातों पर निर्भर करता है। जिसके जीवन में बचपन से ही योग्य मार्गदर्शन, अच्छे संस्कार, शिक्षा, पर्याप्त पोषण, बेहतर अवसर, और दुर्गुणों से दुरी होती है, वही युवा सुजान नागरिक बनकर देश के विकास में अनमोल भूमिका निभाते है। जिस देश में युवा शक्ति को उत्कृष्ट शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार की असीम संभावनाएं है विश्व में वही देश विकसित होते है और जिस देश में गरीबी, आर्थिक असमानताएं, महंगाई, बेरोजगारी, बेहतर शिक्षा व स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव, भ्रष्टाचार, भेदभाव, बढ़ता आपराधिक ग्राफ जैसी समस्याएं है, जो समाज को विघटित कर देश के विकास में बाधायें उत्पन्न करते है।
181 देशों में युवाओं की स्थिति को मापने वाले वैश्विक युवा विकास सूचकांक में भारत देश 122 वें नंबर पर है। भारत 2021 के गैलप लॉ एंड ऑर्डर इंडेक्स में 121 देशों में 80 स्कोर के साथ 60वें स्थान पर है, जबकि 82 अंकों के साथ पाकिस्तान, न्यूजीलैंड सूची में एक साथ 48 वें स्थान पर है। विश्व आर्थिक मंच के अनुसार, देश में प्रत्येक चार प्रबंधन पेशेवरों में से केवल एक, पांच इंजीनियरों में से एक और 10 स्नातकों में से एक उमेदवार ही रोजगार योग्य कुशल है। सीएमआईई अनुसार, दिसंबर 2022 में भारत में बेरोजगारी दर 16 महीने के उच्च स्तर 8.3 प्रतिशत पर पहुंच गई थी।
बढ़ती अपराध वृत्ति :- एनसीआरबी के आंकड़ों अनुसार दिल्ली में 2021 में पकड़े गए 3287 आपराधिक किशोरों में से 1387 शिक्षा के मामले में दसवीं पास भी नहीं थे। 2538 अपने माता-पिता के साथ और 535 अभिभावकों के साथ रह रहे थे, उनमें से 214 बेघर थे। 2021 में, दिल्ली में किशोरों के खिलाफ आपराधिक मामलों में 44% की वृद्धि हुई। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, नाबालिगों के खिलाफ लगभग 60% अपराध 16 और 18 वर्ष की आयु के युवाओं द्वारा किए जाते हैं। यह भारतीय दंड संहिता के तहत नाबालिगों के खिलाफ दर्ज 43,506 अपराधों में से 28,830 के लिए जिम्मेदार है। किशोरों द्वारा बलात्कार के मामलों में 60% की वृद्धि के रूप में आंकड़े भयावह हैं। आईटी एक्ट के तहत गिरफ्तार किए गए 324 लोगों में से 215 ये 18-30 साल की उम्र के थे, साइबर अपराध में 53.5% की वृद्धि हुई। 2021 के दौरान दर्ज बच्चों के खिलाफ अपराध के 1.49 लाख से अधिक मामले यह 2020 (1.28 लाख मामलों) की तुलना में 16.2% की तीव्र वृद्धि को दर्शाता है।
बढ़ती नशाखोरी :- हर खुशी-गम, त्यौहार, समारोह, कार्यक्रम में लोगों नशा करने का बहाना चाहिए। आये दिन अखबारों और न्यूज़ चैनल द्वारा मादक पदार्थों के तस्करी, नकली शराब से मौत की खबरें मिलती है। संयुक्त राष्ट्र के एक शीर्ष अधिकारी अनुसार, भारत में नशीली दवाओं और मादक द्रव्यों के सेवन में शामिल लगभग 13.1 प्रतिशत लोग 20 साल से कम उम्र के हैं। वर्ल्ड ड्रग रिपोर्ट 2022 का अनुमान है कि दुनिया भर में लगभग 284 मिलियन लोग ड्रग्स का उपयोग करते हैं, रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया है कि भारत दुनिया के सबसे बड़े अफीम बाजारों में से एक है। भारत में, युवा इस खतरे से सबसे अधिक प्रभावित हैं। अधिकांश नशेड़ी 15 से 35 वर्ष की आयु वर्ग के हैं और कई बेरोजगार हैं। देश में बढ़ते अपराध के लिए नशा सबसे ज्यादा जिम्मेदार है।
स्वास्थ्य समस्याएं और मानसिक विकार :- राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 अनुसार, पांच साल से कम उम्र के 35.5% बच्चे नाटे हैं और 32.1% कम वजन के हैं, यह संख्या चिंताजनक हैं; खाद्य पदार्थों में मिलावट और मानवी प्रदुषण भी भयावह बढ़ रहा हैं। जनगणना 2011 के आंकड़ों के अनुसार, भारत में बाल श्रमिकों की संख्या 10.1 मिलियन है। यूनिसेफ की एक नई रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 15 से 24 वर्ष के बच्चों में, सात में से एक (14 प्रतिशत) अक्सर उदास महसूस करता है या काम में उत्साह नहीं दिखाते, भारत में युवा मानसिक तनाव के लिए सहायता लेने में हिचकिचाते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन अनुसार, कम से कम 20% युवाओं को किसी न किसी प्रकार की मानसिक बीमारी जैसे अवसाद, मनोदशा में गड़बड़ी, मादक द्रव्यों के सेवन, आत्मघाती व्यवहार या खाने के विकार का अनुभव होने की संभावना है। इंडियन जर्नल ऑफ साइकियाट्री ने 2019 में कहा था कि भारत में कम से कम 50 मिलियन बच्चे मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों से प्रभावित हैं।
इंटरनेट का दुरुपयोग और लत :- कम्युनिटी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म लोकल सर्किल्स द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट में, 40 प्रतिशत भारतीय माता-पिता ने स्वीकार किया है कि उनके 9 से 17 साल के बच्चे वीडियो, गेमिंग और सोशल मीडिया के आदी हैं। सैकड़ों बच्चों ने इंटरनेट और ऑनलाइन गेमिंग की लत के कारण अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली। आज दुनिया में लगभग 5 में से 4 मोबाइल हैंडसेट स्मार्टफोन हैं, फेममास के अनुसार, किशोर वयस्कों की तुलना में सोशल मीडिया पर अधिक समय बिताते हैं, 13 से 18 साल के किशोर औसतन 3 घंटे से अधिक प्रतिदिन। कुछ किशोर हर दिन 9 घंटे तक सोशल मीडिया पर बिताते हैं अर्थात जितना समय वे स्कूल में बिताते हैं, उससे कहीं अधिक। 68% किशोर अपने इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को बिस्तर पर ले जाते हैं, मोबाइल उपकरणों के साथ अधिक सोते हैं, एडिक्शन सेंटर द्वारा किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि सोशल मीडिया पर कम से कम तीन घंटे बिताने वाले 27% बच्चे मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों से पीड़ित हो सकते हैं।
आत्महत्याओं में वृद्धि:- बच्चों से पालकों की अत्यधिक उम्मीदें और उनका बच्चों पर बढ़ता तनाव, बुरी आदतें, जिद, अपेक्षाओं का भंग होना आत्महत्याओं को बढ़ाता है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो रिपोर्ट 2021 अनुसार, पिछले साल भारत में 13,000 से अधिक छात्रों ने आत्महत्या की थी। वास्तव में, 2016 से 2021 तक पांच वर्षों में, भारत में छात्र आत्महत्याओं की संख्या में 27% की वृद्धि हुई है। 30 साल से कम उम्र के युवाओं में 1,500 से अधिक आत्महत्याओं का कारण “परीक्षा में विफलता” था। 2021 में 18 वर्ष से कम आयु के 10,732 व्यक्तियों की मौत आत्महत्या से हुई थी, जो कुल 1,64,033 आत्महत्या के आंकड़े का 6.54% है।
विदेशी शिक्षा पर भरोसा :- ब्यूरो ऑफ इमिग्रेशन के आंकड़ों अनुसार, जनवरी से नवंबर 2022 के बीच 1.8 करोड़ से अधिक भारतीयों ने देश के बाहर यात्रा की, जबकि 2021 में 77.2 लाख लोगों ने। विदेश में शिक्षा की गुणवत्ता को महत्व देने के कारण रेडसीर रणनीति सलाहकार के एक विश्लेषण के अनुसार, भारतीय छात्रों की संख्या में तेजी से वृद्धि हो रही है जो विदेशों में अध्ययन करना चाहते हैं। 2019 में, यह संख्या 800,000 थी और अनुमान है कि 2024 तक यह संख्या बढ़कर 1.8 मिलियन हो जाएगी। विदेश में शिक्षा का पर्याय हमारे देश की शिक्षा में लाना बहुत जरूरी है। देश की शिक्षा नीति की गुणवत्ता को विश्वस्तर पर लाना ही एकमात्र उपाय जो देश के विद्यार्थियों को देश में ही बेहतर शिक्षासुविधा देगी।
देश की बढ़ती आबादी वैसे ही सीमित साधनों पर असीमित दबाव बना रही है। प्राकृतिक आपदाएं, पर्यावरण की समस्या बढ़ रही है जिससे घातक बीमारियां भी लगातार बढ़ रही है। बच्चों के सामने पालक का अनुचित व्यवहार, बड़े बुजुर्गों का अनादर, अभद्र भाषा का प्रयोग, संस्कारहीन बर्ताव, सोशल मीडिया की लत, झूठा दिखावा, नियमों का उल्लंघन, नशाखोरी, मिलावटखोरी, स्वार्थवृत्ति, लालच, परोपकार की कमी, जल्दी शॉर्टकट मार्ग से पैसा कमाने की लालसा, आधुनिकता के अंधे कुए में गोता लगाना युवाशक्ति को कमजोर बना रही है, समाज में समस्याएं बढ़ाने के ये प्रमुख कारण है। 2011 में कुल युवा आबादी 333.4 मिलियन से बढ़कर 2021 में 371.4 मिलियन तक पहुंच गई। इतनी बड़ी युवाशक्ति की आवश्यकताओं की पूर्ति, सेवा-सुविधा, योग्य व्यवस्थापन बहुत जरुरी है, उत्पादक रोजगार सृजन बढ़ाकर और श्रम बाजार नीतियों को अपनाकर सभी के लिए शिक्षा कौशल अनुरूप काम, सामाजिक सुरक्षा, उत्तम स्वास्थ्य देखभाल, पेंशन, नई प्रतिभाओं को बढ़ावा देकर बेहतर मंच उपलब्ध करवाना, सार्वजनिक कार्यक्रमों को प्रोत्साहित करने पर जोर देना समय की मांग है। युवाओं को बेहतर अवसर व सुविधा प्रदान न करना मतलब समाज में समस्याओं का निर्माण करना है। जिस युवा शक्ति के दम पर देश विकसित होगा उसी युवाशक्ति को सुविधाओं से वंचित रखने पर वें युवा गलत मार्ग पर अग्रसर होंगे। उन्हें बेहतर माहौल बनाकर देने की जिम्मेदारी अभिभावक, सरकार, सामाजिक संस्थान और हम सबकी है।
(साई फीचर्स)

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