संगठन चलाने की अद्भुत क्षमता थी शरद यादव में, पूरी तरह बेदाग ही रहा उनका सियासी जीवन

लिमटी की लालटेन 446

शरद यादव : एक दैदीप्यमान चेहरा खो दिया भारतीय राजनीति ने

(लिमटी खरे)

खाटी समाजवादी नेता शरद यादव का अवसान भारतीय लोकतंत्र के लिए शायद न भरने वाली क्षति ही माना जा सकता है। वे समाजवादी क्षेत्र के संभवतः दूसरा बड़ा चेहरा थे। वे देश के तीन राज्यों से चुनाव लड़े, सात बार वे लोकसभा सदस्य रहे और उसके अतिरिक्त वे राज्यसभा के सदस्य भी रहे। शरद यादव का आरंभिक जीवन जबलपुर में बीता। वे इंजीनियरिंग स्नातक थे। उनके निधन से देश की लोकतांत्रिक राजनीति का एक दैदीप्यमान सितारा आसमान से लुप्त हो गया है।

शरद यादव को करीब से जानने वाले इस बात को बेहतर तरीके से जानते हैं कि वे गांधीवादी समाजवाद की क्रांतिकारी विचारधारा के पोषक रहे हैं। वे कभी अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं किया करते थे। मध्य प्रदेश की संस्कारधानी जबलपुर में इमरजेंसी के पहले उन्हें जेल में बंद कर दिया गया था। इसके बावजूद भी वे जेल में रहकर चुनाव लड़े और भारी बहुमतों से विजयी भी हुए। 1974 में जबलपुर लोकसभा सीट से वे भारी बहुमतों से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में विजयी हुए थे।

शरद यादव भले ही समाजवादी विचारधारा के प्रति समर्पित रहे, किन्तु इसके बावजूद भी उनके मित्र, दोस्तों, परिचितों में हर विचारधारा के लोगों का समावेश था। वे सभी को साथ लेकर चलने में विश्वास रखते थे। कम समय में ही वे युवाओं का लोकप्रिय चेहरा बनकर उभरे और उसके बाद उन्होंने कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखा। वे बहुत ही मृदुभाषी और मिलनसार व्यक्तित्व के स्वामी थे। समाजवादी विचारधारा के होने के बाद भी चौधरी चरण सिंह ने उन्हें अपने सानिध्य में ले लिया था।

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वे बहुत ही स्पष्ट वक्ता थे, किन्तु उन्होंने किसी के प्रति शायद ही कभी कटु शब्दों का प्रयोग किया हो। वे साढ़े चार दशक तक केंद्रीय राजनीति में आधार स्तंभ बने रहे। दिल्ली में पत्रकारिता के दौरान हमारी भेंट कई बार उनसे हुई। एक बार हमने उन्हें सुझाव दिया था कि मध्य प्रदेश के वे लोग जो दिल्ली में रहते हैं, को एक छत के नीचे लाया जाए। इसके बाद उनके द्वारा अपने दिल्ली के सरकारी निवास पर मध्य प्रदेश के लोगों को चाहे वे नेता हों, अधिकारी हों, पत्रकार या व्यवसायी, सभी को भोज पर आमंत्रित किया।

शरद यादव में संगठन को चलाने की क्षमता कूट कूट कर भरी हुई थी। जब भी शरद यादव को याद किया जाएगा तो यह बात भी सामने आएगी कि लोकनायक जयप्रकाश नारायण के प्रिय पात्रों में उनका शुमार हुआ करता था। उनके लगभग पांच दशक के राजनैतिक जीवन में अगर उनके दामन पर दाग खोजने का प्रयास किया जाए तो लोगों को सालों लग जाएंगे किन्तु उनके दामन पर दाग शायद ही मिल पाए। विपक्षी दलों के द्वारा जब भी किसी मामले या मुद्दे में आंदोलन का आव्हान किया जाता था तो शरद यादव का चेहरा ही आगे किया जाता रहा है।

शरद यादव ने कभी भी समझौता वाली सियासत करने में विश्वास नहीं किया। शरद यादव का जीवन बहुत ही सादा था और उसमें ग्रामीण परिवेश की महक आती थी। सियासी बियावान में अनेक नेताओं का नाम लिया जाता है जो कभी न कभी असंतोष का झंडा लिए खड़े दिखाई दिए, किन्तु शरद यादव का नाम आते ही इस तरह की कोई बात सामने नहीं आती है।

हवाला काण्ड की आंच शरद यादव पर आई। उन पर पांच लाख रूपए लेने के आरोप लगे। आरोप लगते ही शरद यादव के द्वारा तत्काल ही लोकसभा से त्यागपत्र दे दिया गया और जब अदालत ने उन्हें बाईज्जत बरी किया तब शरद यादव की ईमानदारी के चर्चे जमकर हुए। शरद यादव का जन्म मध्य प्रदेश के होशंगाबाद (अब नर्मदापुरम) के बाबई (अब माखन नगर) तहसील के अखमऊ गांव के एक किसान परिवार में हुआ था।

शरद यादव की एक विशेषता थी कि वे विपक्ष को जमीनी स्तर पर एकजुट करने की कोशिश अंत तक करते रहे। आने वाले समय में विपक्ष जब भी विरोध के लिए नारेबाजी करेगा तो तस्वीरों में शरद यादव का चेहरा न देखकर लोगों को उनकी कमी बहुत जमकर खलेगी। शरद यादव के निधन से भारतीय सियासत में आई रिक्तता को भरना शायद संभव न हो पाए . . .

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(लेखक समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया के संपादक हैं.)

(साई फीचर्स)