भारत जोड़ो यात्रा के बाद जननेता बनकर उभरे हैं राहुल गांधी!

यात्रा का लाभ कांग्रेस को मिलना तय, इसके लिए जमीनी स्तर पर बनाना होगा जबर्दस्त जोश . . .
(लिमटी खरे)


कांग्रेस के नेता राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा से वे एक जननेता की छवि लेकर देश के सामने आए हैं। 150 दिनों तक चली राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा ने चार हजार 80 किलोमीटर की दूरी तय की है। इस दौरान यह यात्रा 75 जिलों से होकर गुजरी जो 12 राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेशों के जिले थे। इस यात्रा को भले ही वैसा कव्हरेज मीडिया से नहीं मिल पाया हो जिसकी यह यात्रा हकदार थी, इसके बाद भी इसकी सफलता अपनी कहानी खुद ही बयां करती दिखती है।
देश की राजनैतिक राजधानी दिल्ली के सियासी हल्कों में चल रही चर्चाओं को अगर सच माना जाए तो राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के बाद राहुल गांधी निश्चित तौर पर नरेंद्र मोदी के समकक्ष तो नहीं पर उनके आसपास कहीं जाकर खड़े हो तो गए हैं। राहुल गांधी की इस यात्रा का मूल उद्देश्य उनकी छवि में बदलाव भी हो सकता है। वैसे राहुल गांधी की इस यात्रा में जाने माने नेताओं की यात्राओं विशेषकर मोहनदास करमचंद गांधी के द्वारा ग्रामीण अंचलों में की गई पदयात्राओं का अक्स दिखाई देता है।
जिस तरह महात्मा गांधी सहित अनेक स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के द्वारा 1930 में बर्बर ब्रिटिश शासन का विरोध कर लंबा मार्च निकाला था, उसी तर्ज पर राहुल गांधी के द्वारा इस यात्रा को किया गया है, पर यह यात्रा किसी के विरोध में नहीं थी, यह यात्रा गैर राजनैतिक ही प्रचारित की गई। इस यात्रा से राहुल गांधी का कद पहले की तुलना में बहुत ज्यादा बढ़ा है इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है। इस यात्रा से राहुल गांधी का मानवीय, राजनैतिक, जनता से जुड़ा व्यक्तित्व भी सामने आया है।
अपनी इस यात्रा में राहुल गांधी ने मीडिया से भी परहेज नहीं किया। उनके द्वारा मीडिया संवाद में किसी तरह की कोताही नहीं की। यह अलहदा बात है कि इस यात्रा का कव्हरेज करने वाले पत्रकारों को कोई जिम्मेदार सिरा न मिल पाने से अनेक पत्रकार इसके लाईव कव्हरेज से वंचित रहे पर राहुल गांधी की इस यात्रा ने उन्हें स्थापित कर दिया है, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है।
राहुल गांधी ने इस यात्रा में एक ही बात को मूल मंत्र बनाए रखा कि वर्तमान समय में घृणा और वैमन्सय, अपनी वाद विवाद जैसी परिस्थितियों के बीच वे बंधुत्व, एकता, प्रेम, आपसी सामंजस्य को स्थापित करने का प्रयास कर रहे हैं।
राहुल गांधी ने सभी धर्म के लोगों को आपस में जुड़े रहने के लिए दशकों पुराने नारे ‘हिंदु – मुस्लिम – सिख – ईसाई, आपस में हैं भाई भाई को भी बार बार स्थापित करने का प्रयास किया है। यात्रा में राहुल गांधी ने न केवल महिलाओं का मामला उठाया, वरन युवाओं, पिछड़ी जातियों बेरोजगारी आदि के मामलों को भी पुरजोर तरीकों से उठाया है।
राहुल गांधी की इस यात्रा के बाद विपक्ष भी एक सूत्र में बंधता दिख रहा है। नितिश कुमार जैसे नेता ने यह कहकर सभी को चौंका दिया है कि 2024 में राहुल गांधी को विपक्ष की ओर से प्रधानमंत्री का उम्मीदवार बनाने में उन्हें कोई हर्ज नहीं है।
2014 के बाद कांग्रेस को देश भर में एक के बाद एक झटके लगे हैं, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है। आजादी से 2014 तक का इतिहास रहा है कि कांग्रेस ने अगर एक बार सत्ता गवाई है तो महज पांच सालों के लिए, पर उसके बाद कांग्रेस वापस सत्ता में पहुंची है। यह पहला ही मौका होगा जब लगातार ही 10 सालों तक केंद्र में कांग्रेस सत्ता से दूर ही है। इसलिए कांग्रेस को संजीवनी प्रदान करने के लिए राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा अहम भूमिका निभा सकती है, बशर्ते राहुल गांधी अपने सलाहकारों को सबसे पहले पहचानें!
(लेखक समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया के संपादक हैं.)
(साई फीचर्स)