विविधतापूर्ण संसार में सर्वांगीण विकास के लिए मातृभाषाओं का जतन अतिआवश्यक

(अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस विशेष – 21 फरवरी 2023)

(डॉ. प्रितम भी. गेडाम)

दुनिया में “मातृभाषा” शब्द जिसे हम माँ का दर्जा देकर व्यक्त होने की शक्ति कहते है, इस एक शब्द में ही एक विशेष क्षेत्र का संसार बसा है। इसमे संस्कृति, ज्ञान, पहचान, शिक्षा, परंपरा, रीति-रिवाज, कलाकौशल, पहनावा, त्योहार, व्यवहार, कार्यपद्धति, व्यवसाय, जीवनशैली जैसे जीवनभर के विविधतापूर्ण चरणों का समावेश होता है, जो पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरण होते रहते है। उदहारण के लिए आदिवासी भाषाएं एक क्षेत्र के वनस्पतियों, जीवों और औषधीय पौधों के बारे में ज्ञान का खजाना हैं। हालाँकि, जब किसी भाषा का पतन होता है, तो वह ज्ञान प्रणाली पूरी तरह से समाप्त होकर विविधतापूर्ण चरणों का एक विशेष ज्ञानरूपी संसार का अंत हो जाता है। प्रत्येक व्यक्ति के लिए अपनी मातृभाषा का ज्ञान गर्व का विषय है एवं मातृभाषा के जतन व प्रसार के लिए सभी ने सर्वदा प्रयासरत होना ही चाहिए।

“मातृभाषा” यह उस भाषा को संदर्भित करता है, जो बच्चे को जन्म के बाद सुनने को मिलती है जिसे एक बच्चा जन्म से सीखता है, यह हमारी भावनाओं और विचारों को एक निश्चित आकार देने में मदद करती है। अन्य महत्वपूर्ण सोच कौशल, दूसरी भाषा सीखने और साक्षरता कौशल में सुधार के लिए मातृभाषा में सीखना महत्वपूर्ण है। व्यापक विकास के लिए मातृभाषा में बोलना-सीखना बहुत आवश्यक है, यह अपनेपन की भावना प्रदान कर अपनी जड़ों को समझने में मदद करती है। यह संस्कृति से जोड़ कर उन्नत संज्ञानात्मक विकास सुनिश्चित करती है, और विभिन्न भाषाओं की सीखने की प्रक्रिया में सहायता है। भाषाई सांस्कृतिक विविधता और बहुभाषावाद को बढ़ावा देने के लिए हर साल 21 फरवरी को “अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस” मनाया जाता है। इस वर्ष की थीम “बहुभाषी शिक्षा – शिक्षा को बदलने की आवश्यकता” यह है। यूनेस्को मातृभाषा या पहली भाषा के आधार पर बहुभाषी शिक्षा को प्रोत्साहित और बढ़ावा देता है। मातृभाषा द्वारा घर और स्कूल के बीच के अंतर को कम करके परिचित भाषा में स्कूल के माहौल को बनाकर छात्र बेहतर सीखते हैं।

अनुसंधान से पता चलता है कि मातृभाषा में शिक्षा समावेश और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण कारक है, और यह सीखने के परिणामों और शैक्षणिक प्रदर्शन में भी सुधार करती है। मातृभाषा पर आधारित बहुभाषा शिक्षा सभी शिक्षार्थियों को समाज में पूर्ण रूप से भाग लेने के लिए सशक्त बनाती है। यह आपसी समझ और एक दूसरे के प्रति सम्मान को बढ़ावा देती है और सांस्कृतिक और पारंपरिक विरासत की संपत्ति को संरक्षित करने में मदद करती है जो दुनिया भर की हर भाषा में निहित है। अनेक देशो के अधिकांश छात्रों को उनकी मातृभाषा के अलावा अन्य भाषा में पढ़ाकर छात्रों के सीखने की उनकी क्षमता से समझौता किया जाता है। अनुमान है कि दुनिया की 40% आबादी की उस भाषा में शिक्षा तक पहुंच नहीं है जिसे वे बोलते या समझते हैं। लुप्त हो रही या लुप्त होने की कगार पर खड़ी अनेक भाषाओं को पुनर्जीवित करना बहुत जरुरी है। हर 15 दिन में एक भाषा अपने साथ पूरी सांस्कृतिक और बौद्धिक विरासत लेकर गायब हो जाती है। दुनिया में बोली जाने वाली अनुमानित 7000 भाषाओं में से कम से कम 43% लुप्तप्राय हैं। इस सदी के अंत तक 1,500 ज्ञात भाषाएँ खत्म हो जाएगी। आधुनिकता, वर्तमान उच्च शिक्षा और गतिशीलता कुछ छोटी भाषाओं को हाशिए पर डालकर कमजोर कर देती है।

7,000 विश्व भाषाओं में से 90% का उपयोग 1 लाख से कम लोगों द्वारा किया जाता है। 10 लाख से अधिक लोग 150-200 भाषाओं में बात करते हैं। वास्तव में, दुनिया में मातृभाषा (पहली भाषा) के रूप में सबसे लोकप्रिय भाषा मंदारिन चीनी है, 2022 में 929 मिलियन लोग हैं जो इस भाषा को बोलते हैं, दूसरे स्थान पर स्पेनिश है, और तीसरे स्थान पर अंग्रेजी है उसके बाद हिंदी और फिर बंगाली है। एशिया में विश्व की 2,200 भाषाएँ हैं, जबकि यूरोप में 260 हैं। यूनेस्को का कहना है कि 2,500 भाषाओं के विलुप्त होने का खतरा है। भारत में 121 ऐसी भाषाएँ हैं जो 10,000 या उससे अधिक लोगों द्वारा बोली जाती हैं। 2011 की जनगणना के विश्लेषण के अनुसार, भारत में 22 अनुसूचित भाषाएँ हैं, और देश की 96.71 प्रतिशत आबादी की इनमें से एक मातृभाषा है। संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल 22 भाषाओं में असमिया, बंगाली, गुजराती, हिंदी, कन्नड़, कश्मीरी, कोंकणी, मलयालम, मणिपुरी, मराठी, नेपाली, उड़िया, पंजाबी, संस्कृत, सिंधी, तमिल, तेलुगु, उर्दू, बोडो, संथाली, मैथिली और डोगरी यह है। 2011 के जनगणना अनुसार, देश के 52.8 करोड़ लोगों द्वारा हिंदी सबसे अधिक बोली जाने वाली मातृभाषा है, जो जनसंख्या का 43.6 प्रतिशत है। उसके बाद, 9.7 करोड़ लोग या 8 प्रतिशत आबादी बंगाली बोलती है, जिससे यह देश की दूसरी सबसे लोकप्रिय मातृभाषा बन गई है। भारत ने 1961 के बाद से 220 भाषाओं को खो दिया है। अगले 50 वर्षों में और 150 भाषाएँ लुप्त हो सकती हैं, उदाहरण के तौर पर पीपुल्स लिंग्विस्टिक सर्वे ऑफ इंडिया द्वारा किए गए एक शोध के अनुसार, सिक्किम में खत्म होने के कगार पर माझी भाषा है। वर्तमान में सिर्फ चार लोग हैं जो माझी बोलते हैं और वे सभी एक ही परिवार के हैं।

आज के आधुनिकता के समय में हम खुद अपनी मातृभाषा में बात करने को शर्माते है और अन्य भाषा में बात करने पर गर्व महसूस करते है। यदि कोई व्यक्ति अपनी मातृभाषा में बात करे तो उसे निम्नस्तर गिना जाता है, ये हमारा कौनसा विकास है जो हमें अपने ही संस्कृति से दूर ले जा रहा है। हमारी मातृभाषा, ज्ञान संस्कार के विरोधक हम खुद है अगर हम अपनी बोलीभाषा को बढ़ावा नहीं देते है तो। आज हमारे भारत देश की राष्ट्रीय भाषा “हिंदी” विश्वस्तर पर सबसे ज्यादा बोली जानेवाली भाषाओ में से एक के रूप में तेजी से बढ़ रही है। बंगाली, पंजाबी, उर्दू और तमिल भी अनेक देशों में आधिकारिक भाषा के रूप में जानी जाती है। बड़ी संख्या में विदेशी लोग भारतीय भाषाओं का ज्ञान आत्मसात कर रहे है, विश्वस्तर पर विदेशी विद्यापीठों, शिक्षासंस्थानों, डिजिटल तकनीक और ऑनलाइन व्यवहार में भारतीय भाषाओं को सम्मिलित किया जा रहा है। सरकार भी अब उच्च व व्यावसायिक शिक्षा को क्षेत्रीय भाषा में पढ़ाने पर जोर देने के लिए प्रयासरत है। हमारे देश की क्षेत्रीय भाषा की फिल्में दुनियाभर में नया इतिहास रच रही है। चाहे कितनी भी भाषा सीख ले, परन्तु अपनी मातृभाषा में बात, व्यवहार करना और उसे अगली पीढ़ी तक सही ढंग से सहेजकर हस्तांतरित करना सबकी नैतिक जिम्मेदारी है, आधुनिकता के लिए अपनी पीढ़ी दर पीढ़ी की पहचान ना भूलें। मातृभाषा पर हमेशा गर्व रहें, शर्म नहीं।

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(साई फीचर्स)