यहां जान की कीमत मौके के हिसाब से मिलती है . . .

अपना एमपी गज्जब है . . . 61

(अरुण दीक्षित)

यूं तो हर जानदार को मौत का स्वाद चखना ही पड़ता है! इस सच को जानने के बाद भी हर मौत का दुख होता है! फिर आकस्मिक दुर्घटनाओं से आई मौत गहरा सदमा देती है! लेकिन यह सदमा तब और गहरा हो जाता है जब सबके लिए समान भाव रखने की शपथ लेने वाली सरकार एक जैसी घटना में होने वाली मौत का मूल्यांकन चुनावी नजरिए से करती है। उसकी कीमत अलग अलगआंकती है!

शुक्रवार को एमपी के सतना जिले में एक सड़क दुर्घटना में करीब डेढ़ दर्जन लोग मारे गए! करीब चार दर्जन लोग घायल हुए! हादसा बहुत ही भीषण था। हादसे का शिकार हुए लोग सतना में हुई केंद्रीय गृह मंत्री की रैली से लौट रहे थे! घायलों में सरकारी कर्मचारी भी शामिल हैं। ये लोग “कोल महाकुंभ” में लोगों को लेकर गए थे। महाकुंभ – रैली का आयोजन राज्य सरकार ने किया था। मुख्यमंत्री भी इसमें मौजूद रहे थे!

घटना गंभीर थी। इसने “कुंभ” के “सफल” आयोजन पर पानी फेर दिया। सरकार दुखी हो गई। सरकार ने युद्ध स्तर पर बचाव कार्य कराया। खुद मुख्यमंत्री तत्काल घटना स्थल पर पहुंचे। घायलों के हाल चाल पूछे। उनके अच्छे से अच्छे इलाज की व्यवस्था के निर्देश दिए! राहत कार्य की निगरानी भी की!

जैसा कि हमेशा होता है, दुखी और व्यथित सरकार ने तत्काल मारे गए लोगों के परिजनों को दस दस लाख रुपए की राहत देने का ऐलान किया। घायलों के मुफ्त इलाज और साथ में दो दो लाख रुपए देने की भी घोषणा हुई। दुर्घटना पर भोपाल से लेकर दिल्ली तक शोक की लहर दौड़ गई। सबने शोक जताया। यह स्वाभाविक भी था।

लेकिन इस दुर्घटना ने सतना के पड़ोसी जिले सीधी के दर्जनों परिवारों का दो साल पुराना जख्म फिर कुरेद दिया! वैसे तो उस इलाके में आए दिन सड़क दुर्घटनाएं होती ही रहती हैं! लेकिन 16 फरबरी 2021 को सुबह करीब साढ़े सात बजे हुई वह दुर्घटना भयावह थी।

जानकारी के मुताबिक एक निजी कंपनी की बस करीब 60 लोगों को लेकर सीधी से सतना के लिए चली थी। यूं तो हर उम्र के लोग बस में थे। लेकिन बड़ी संख्या उन युवाओं की थी जो नर्सिंग की परीक्षा देने के लिए तड़के अपने घर से सतना के लिए निकले थे।

उस दुर्घटना का इलाका भी छुईया घाटी का ही थी। शुक्रवार की दुर्घटना मोहनिया टनल में हुई। जबकि दो साल पहले हुआ हादसा इसी इलाके में पटना पुल के पास हुआ था। जाम से बचने के लिए ड्राइवर बस को नहर की पटरी पर ले आया। कुछ दूर चल कर बस लबालब भरी नहर में गिरी। 8-9 लोगों को आसपास के लोगों ने बचा लिया। लेकिन 51लोगों की जबरन जल समाधि हो गई।

उस दिन बसंत पंचमी का त्यौहार था। मरने वालों में बड़ी संख्या 12 से 32 साल के लोगों की थी।

सरकार तब भी “व्यथित और दुखी” हुई थी। दो मंत्रियों को मौके पर भेजा गया था। चूंकि घायल तो थे नहीं इसलिए मुख्यमंत्री मौके पर नही गए थे। हां उन्होंने मरने वालों के परिजनों को पांच पांच लाख की आर्थिक मदद देने का ऐलान भोपाल से ही कर दिया।

हालांकि राज्य की राजस्व संहिता में किसी भी तरह के हादसे में जान जाने पर, मृतक के परिजनों को चार लाख रुपए की आर्थिक सहायता दिए जाने का प्रावधान है। पर सरकार ने चार की जगह पांच लाख देने का ऐलान किया था।

वैसे एमपी की सरकार ने बहुत दिन से आम आदमी की जान की कीमत चार लाख रुपए ही तय कर रखी है। सिर्फ वन विभाग ने कुछ महीने पहले अपने नियम बदले हैं। अब जंगल में अगर शेर किसी आदमी को उठा ले जाता है या फिर पागल हाथी कुचल देता है तो उसके परिजनों को सरकारी खजाने से 8 लाख की मदद दी जाती है!

शुक्रवार की दुर्घटना ने अनजाने में ही दो साल पुरानी दुर्घटना की याद दिला दी! बस के भीतर फंस कर नहर में जलसमाधि लेने वाले बच्चों और युवाओं के परिजनों ने शायद दिल पर पत्थर रख कर वक्त से समझौता कर लिया होगा। लेकिन जान जान की कीमत के फर्क ने उनका दर्द बढ़ाया जरूर होगा।

उस दुर्घटना की जांच में क्या निकला ? मारे गए लोगों के परिजन आज किस हाल में हैं? जिनके घरों के चिराग बुझे उनकी जिंदगी कैसी चल रही है? इन सब सवालों का जवाब शायद किसी के पास नही होगा। खास तौर पर सरकार के पास तो कतई नहीं! होना भी नही चाहिए! क्योंकि वह चुनाव का साल नहीं था न !

यह साल चुनाव का साल है! इसी दृष्टि से “कोल महाकुंभ” सरकार ने आयोजित किया था। लोगों को सवारी भेज कर घर से बुलाया था। अतः घायलों के इलाज की पूरी व्यवस्था और परिजनों को दोगुना मुआवजा देना तो बनता ही है! लाखों कोल वोटों का सवाल भी है।

अब सरकार से ये कौन पूछे कि सड़कों पर हर रोज हो रही मौतों की “कीमत” अलग अलग क्यों? वैसे नोट और वोट के करीबी रिश्ते को सब जानते हैं! ऐसे में कौन पूछेगा और कौन बताएगा?

कुछ भी हो पर अपना एमपी है तो गज्जब! कुछ लोग यह भी दुआ करेंगे कि हर मौसम चुनावी हो! सरकार ऐसे ही संवेदनशील बनी रहे ! उसकी “व्यथा और दुख” छलकता रहे!

(साई फीचर्स)