रामजादे और उनकी शबरी मईया…

अपना एमपी गज्जब है..62

(अरुण दीक्षित)

बचपन से भगवान के संदर्भ में एक वाक्य सुनते आए हैं – हम भक्तन के..भक्त हमारे! बड़े बूढ़ों ने समझाया भी यही है कि जब सच्चा भक्त भगवान के साथ एकाकार हो जाता है तब प्रभु ने यह बात कही होगी! मैं भगवान को याद तो हमेशा करता हूं लेकिन “भक्त” के दर्जे तक नहीं पहुंच पाया हूं। इस वजह से ऐसा कोई निजी अनुभव नहीं है। लेकिन ईश्वर की सत्ता में परम विश्वास है!

दो दिन पहले जब एमपी की सरकार ने भगवान राम को अपने झूठे बेर खिलाने वाली वनवासिनी शबरी की जयंती मनाई तो उक्त वाक्य अपने आप ख्यालों में आ गया! राज्य और देश की सरकार ने जिस तरह खुद को शबरी माता से जोड़ा और उनके जन्मदिन पर जो भव्य आयोजन, सरकारी खर्च पर किया, उसे देख लगा कि अब भगवान से जुड़े वाक्य का विन्यास थोड़ा बदल गया है! सत्तारूढ़ दल यह मान कर चल रहा है कि हम राम के.. राम हमारे! इसी वजह से राम से जुड़ी हर चीज पर उसका एकाधिकार है।

सरकार ने इसी तर्ज पर शबरी मईया की जयंती बड़ी ही धूमधाम से मनाई। सतना जिले में भव्य आयोजन किया। इसमें केंद्रीय गृह मंत्री भी शरीक हुए! मजे की बात यह रही कि सरकार ने प्रदेश के विंध्य क्षेत्र में रह रहे कोल आदिवासियों को शबरी से जोड़ते हुए “कोल महाकुंभ” का आयोजन भी कर डाला। चुनावी साल में शबरी के जन्मदिन पर कोलों के बीच केंद्रीय गृहमंत्री और मुख्यमंत्री ने आदिवासी उत्थान की गाथा पंचम स्वर में सुनाई! राष्ट्रपति की कुर्सी पर आदिवासी को बैठाने के अहसान के साथ ही कोल समाज के उद्धार की मुनादी भी की। हालांकि महाकुंभ के बाद हुई एक सड़क दुर्घटना में बड़ी संख्या में मौतों की वजह से इस पूरे आयोजन का उत्साह फीका पड़ गया। लेकिन सालों से देश और प्रदेश में राज कर रही बीजेपी द्वारा पहली बार शबरी जयंती मनाए जाने पर सबको आश्चर्य हुआ! इसी वजह से सवाल भी उठे!

मुख्य रूप से सभी को यह उत्सुकता हुई कि मध्यप्रदेश से राम की भक्त शबरी का क्या नाता था। क्या वह मध्यप्रदेश के आदिवासी अंचल में जन्मी थीं या फिर इस क्षेत्र में राम जी को मिली थीं।

दूसरी बात जो मन में आई, वह यह कि आखिर शबरी मईया किस तिथि और वर्ष में जन्मी थीं?

पहले सवाल का उत्तर खोजने के लिए मैंने महर्षि वाल्मीकि की लिखी रामायण और गोस्वामी तुलसीदास द्वारा लिखे गए रामचरित मानस को गहराई से समझने वाले लोगों से बात की। यह तो सब जानते हैं कि वाल्मीकि और तुलसीदास अलग अलग कालखंड में जन्मे थे। दोनों की रचनाओं में भी हजारों साल का अंतर है। यही वजह है कि भगवान राम के जीवन पर आधारित होने के बाद भी दोनों में बहुत अंतर है। बताते हैं कि वाल्मीकि ने राम को देख कर लिखा था। और तुलसी उनके बारे पढ़कर अपना “मानस” लिखा था।

यह एक आम धारणा है कि अयोध्या से 14 साल का वनवास काटने निकले भगवान राम को शबरी गोदावरी से सैकड़ों मील दूर दक्षिण के इलाके में मिली थीं।

महर्षि वाल्मीकि की लिखी रामायण पर शोध कर रहे वरिष्ठ हिंदू विचारक अनिल चावला का मानना है कि शबरी का मध्यप्रदेश से कोई संबंध नहीं था। चावला के मुताबिक राम अयोध्या से निकल कर पश्चिम की ओर चले थे। वे चित्रकूट से होते हुए दंडकारण्य क्षेत्र में पहुंचे थे। यह इलाका आज के नासिक के आसपास था। वाल्मीकि रामायण में जिस पंचवटी का जिक्र है, वह आज भी इसी इलाके में है। कहा जाता है कि पंचवटी से रावण ने सीता का हरण किया था।

राम वहां से सीता की खोज में दक्षिण की ओर गए। गोदावरी के तट से होते हुए जब वे आगे बढ़े तो पंपा सरोवर के किनारे उनकी मुलाकात शबरी से हुई। शबरी ऋषि मतंग की सेविका थी। वह आश्रम में रहकर ऋषियों की सेवा करती थी। राम ने लक्ष्मण के साथ उसका आतित्थ्य स्वीकार किया। उसके परोसे कंदमूल फल खाए।

राम से मिलने के बाद वह अपने तप के बल पर अन्य ऋषियों की तरह स्वर्ग को गई।

अनिल चावला कहते हैं कि वाल्मीकि रामायण में शबरी की जाति का कोई उल्लेख नहीं हैं। वह ऋषि थी। अपने तप और सेवा के बल पर वह स्वर्ग गई। ऋषि मुनियों की सेवा करने की वजह से उसे किसी जाति विशेष से जोड़ना उचित नहीं है। पम्पा सरोवर के दूसरे छोर पर ही राम की मुलाकात सुग्रीव से हुई थी।

वाल्मीकि रामायण के आधार पर शबरी का संबंध दक्षिण के उसी क्षेत्र से था। मध्यप्रदेश से उसका कोई वास्ता रहा होगा, इसमें संदेह है।

निरंजनी अखाड़े के सचिव महंत रामरतन गिरी भी अनिल चावला से सहमति जताते हैं। उनका स्पष्ट मत है कि शबरी का मूल स्थान दक्षिण में ही था।

अब शबरी के जन्मदिन की बात! इस बारे में कोई प्रामाणिक जानकारी उपलब्ध नहीं है। माना जाता है कि शबरी का जन्म फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष में सातवीं तिथि को हुआ था। हालांकि इस बारे में कोई लिखित प्रमाण कहीं नहीं मिलता है। लेकिन आम धारणा यही है।

मध्यप्रदेश सरकार के शबरी जयंती महोत्सव से पहले कभी किसी पंचांग में भी इसका जिक्र नहीं मिलता है। मैंने अनेक विद्वानों और धर्माचार्यों से इस बारे में बात की। भोपाल के ज्योतिषाचार्य पंडित अरविंद तिवारी के मुताबिक तिथि के हिसाब से शबरी जयंती गत 13 फरबरी को थी। उत्तरप्रदेश के कथावाचक पंडित हृदेशानंद भी फाल्गुन की कृष्ण पक्ष की सप्तमी को शबरी का जन्मदिन मानते हैं। महंत रामरतन गिरी का भी यही मत है!

लेकिन मध्यप्रदेश सरकार ने फाल्गुन शुक्ल पक्ष की पंचमी(24 फरबरी 2023) को शबरी जयंती मनाई! इस मौके पर कोल महाकुंभ का आयोजन भी किया। सरकार ने शबरी को आदिवासी मानते हुए प्रदेश के कोल आदिवासियों से जोड़ा। साथ ही उन्हें यह भी बताया कि आज तक आदिवासियों के हित के काम सिर्फ बीजेपी ने ही किए हैं।

इस संबंध में एक मजेदार तथ्य यह भी है कि देश के किसी भी पंचांग में शबरी जयंती का उल्लेख भले ही न हो लेकिन मध्यप्रदेश के जबलपुर से छपने वाले लाला रामस्वरूप रामनारायण पंचांग ने इस साल शबरी जयंती की तारीख और तिथि छापी है। इस पंचांग की काफी मान्यता है। प्रदेश में कमोवेश हर घर में यह पाया जाता है।

इस पंचांग के मुताबिक इस साल शबरी जयंती 24 फरबरी को थी। उस दिन शुक्ल पक्ष की पंचमी थी। एक रोचक तथ्य यह भी है कि इस पंचांग के 2021 और 2022 के संस्करणों में शबरी जयंती का कोई उल्लेख खोजने पर भी नही मिला।

यह भी एक अजब संयोग ही है कि पंचांग ने पहली बार शबरी जयंती का उल्लेख किया और सरकार ने उसकी लिखी तिथि पर शबरी जयंती समारोह कर डाला! न पहले पंचांग ने लिखा और न ही सरकार के मन में शबरी का ख्याल आया। इस बार उसने राम भक्त शबरी मईया के नाम पर दिल खोल कर खर्च किया। अखबारों को बड़े बड़े विज्ञापन दिए। कुंभ में लोगों को घर से लाने ले जाने की व्यवस्था की! एक बात गौर करने लायक रही! विज्ञापनों में कुंभ से “राजनीतिक पुण्य” कमाने आए केंद्रीय गृह मंत्री और कुंभ के यजमान एमपी के मुख्यमंत्री के फोटो नही छपे। फोटो सिर्फ एक अकेले चलने वाले “हुजूर” के ही छपे!

अब अगर जमाने को देखें तो इस बारे में कोई सवाल उठना ही नही चाहिए। क्योंकि शबरी राम की! राम शबरी के! राम के नाम पर सरकार उनकी! देश में राम राज्य लाना उनका लक्ष्य!

इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए अगर शबरी की जयंती और जन्मस्थान को सुविधानुसार थोड़ा इधर उधर खिसका लिया जाए तो क्या बुराई है? राम हों या शबरी! हैं तो सब रामजादों के ही! उन्हें ऐसा करने से रोकने के लिए राम जी या शबरी मईया तो आने से रहीं! किसी और की क्या मजाल जो रामजादों से यह सवाल करे कि चुनावी साल में ही शबरी मईया की याद क्यों आई!

इसलिए हम भी नही पूछेंगे कि क्या गृहमंत्री की सुविधा के अनुसार शबरी जयंती की तारीख तय की गई? न ही पंचांग के प्रकाशकों से कोई यह पूछेगा कि अब से पहले उन्हें शबरी का ख्याल क्यों नहीं आया!

राम जी की शबरी और उन्हीं के रामजादे! वे चाहे जो करें उनकी मर्जी… हम तो सिर्फ यह कहते हैं -अपना एमपी गज्जब है। बोलिए है कि नहीं…! ! ?

 

(साई फीचर्स)