जग खेलें रंगों की होली . . .

सुख से रैन बसर हो जाए
हर कोई इतना चाहे
तुम प्रीतम यादों में आओ
मैं तो बस इतना चाहूं….

मेरे रंग मेरे हो अबीर
तुम मेरे मन के हो कबीर
जग खेलें रंगों की होली
मैं तो बस तुमको चाहूं….

रात भी सो जाती है शायद
जागते हैं मेरे नैना
यादों की पिचकारी भर – भर
कटती हैं मेरी रैना
फागुन आग लगाए मन में
आ जाओ इतना चाहूं…..

गांव – गली पीपल भीगे है
मेरी अंखियां रंग बरसे
अबकी होली सूनी – सूनी
तेरे दरस को अंखियां तरसे
आ जाओ तुम बनके बहार
मैं तो बस इतना चाहूं….

तुम प्रीतम यादों में आओ
मैं तो बस इतना चाहूं……

✍🏻 आशीष मोहन
9406706752