आधी आबादी के बिना पूरी आबादी का विकास अधूरा

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष आलेख

(पुष्पा खरे)

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस महिलाओं को सामाजिक, आर्थिक, एवं राजनीतिक रूप से सशक्त बनाने हेतु संयुक्त राष्ट्र की एक अभिनव पहल है। जिसे अधिकारिक रूप से 8 मार्च 1975 से आरंभ किया गया। भारत में भी प्रतिवर्ष 8 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है। जिसमें महिलाओं से संबंधित विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन कर महिलाओं को जागरूक बनाया जा रहा है जिससे महिलाएं समस्त क्षेत्रों में समुचित विकास कर समाज में एक सम्मानित दर्जा प्राप्त कर सके। महिलाओं की स्थिति आरंभ से ही पुरुषों की तुलना में सशक्त नहीं थी। समाज में भेदभाव का सामना करना पड़ता था। जिसकी शुरुआत घर से ही होती है, महिलाओं को स्त्री पुरुष समानता, शिक्षा का अभाव, बाल विवाह, पर्दा प्रथा आदि बुराइयों का सामना करना पड़ता है। आज भी महिलाओं की सामाजिक स्थिति पुरुषों की तुलना में कम है। उन्हें सामाजिक सहभागिता का अधिकार अभी भी कमतर है। इनमें निर्णय लेने की स्वतंत्रता बढ़ानी होगी। समाज में पुरुषों की बराबरी बाकी है। समाज में महिलाएं असुरक्षा महसूस करती है।

महिलाओं की आर्थिक स्थिति भी कुछ अच्छी नहीं है। महिलाएं आर्थिक रूप से सशक्त नहीं है। वह आर्थिक रूप से पुरुषों के ऊपर निर्भर है। उनके पास आय का कोई स्रोत नाकाबिल ही है। राजनीति के क्षेत्र में भी महिलाओं की सहभागिता ना के बराबर दिखाई पढ़ती है। उनकी राजनीतिक भागीदारी बढ़ानी होगी। इस प्रकार महिलाओं को समस्त क्षेत्र में सशक्त बनाकर देश में देश के विकास में उनका योगदान ना के बराबर था। अतः महिला दिवस उसके से महिलाओं से संबंधित विभिन्न योजनाएं एवं कार्यक्रमों का आयोजन कर महिलाओं को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करता है। ताकि महिलाएं देश के विकास में अपना योगदान दे सकें। महिलाएं पुरुषों की तुलना में दहाई हैं। किंतु विकास के मामले में उनकी सहभागिता तिहाई है।

इस तरह एक महिला सामाज में मजबूत बनती है, तो वह एक शिक्षित एवं समझदार महिला के रूप में ना केवल अपने परिवार एवं बच्चों का अच्छे से ध्यान रखती है अपितु समाज में भी अपना अहम योगदान देती है। एक महिला शिक्षित होती है तो पूरा परिवार शिक्षित होता है। महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनया जाता है तो महिलाएं आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होती है, उनकी पुरुषों पर निर्भरता कम होती है। वे अपने निर्णय लेने में स्वतंत्र होती है एवं देश के विकास में अपना समुचित योगदान दे सकती हैं। वहीं महिलाएं राजनीतिक क्षेत्र में आती है तो राजनीति में व्याप्त बुराइयां जैसे भ्रष्टाचार, लालफीताशाही आदि को कम का एक अनुकूल वातावरण प्रदान कर सकती हैं। प्रशासनिक क्षेत्र में भी महिलाएं सिविल सेवा के माध्यम से अपना समुचित योगदान दे रही हैं। फलीभूत देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बखूबी कहा था, ना कम में ना ज्यादा में ज्यादा में वह विकास में बराबर की भागीदारी है।

अंततः महिलाओं को सशक्त बनाने हेतु सर्वप्रथम सामाजिक मानसिकता में बदलाव लाना होगा। महिलाओं को सम्मान, लैंगिक समानता एवं शोषण से मुक्ति प्रदान करना होगा। समाज में उन्हें एक सुरक्षित वातावरण प्रदान कर उनके प्रति अपराधों में कमी लाना होगा। तभी महिला दिवस मनाना सार्थक सिद्ध होगा। महिलाएं समस्त क्षेत्रों में अपनी उपलब्धता सुनिश्चित कर सकेंगी। समाज, देश के विकास में अपना समुचित योगदान दे सकेंगी क्योंकि आधी आबादी के बिना पूरी आबादी का विकास अधूरा है।

(साई फीचर्स)