मन को कैसे मिलेगीं शांति

(हेमेन्द्र क्षीरसागर)

कालांतर में एक राजा बहुत धनवान था। उसकी सेवा में बहुत सारे नौकर लगे रहते थे, लेकिन वह हमेशा ही अशांत रहता था। वह बहुत कोशिश करता था कि उसका मन शांत हो जाए, लेकिन इसमें उसे कभी सफलता नहीं मिल रही थी।

एक दिन राजा जंगल में घूम रहा था। उसे जंगल में एक कुटिया दिखाई दी। राजा उस कुटिया में पहुंचा तो वहां एक संत मिले संत ध्यान में बैठे हुए थे। राजा भी चुपचाप संत के सामने बैठ गया। जब संत ध्यान से उठे तो उन्होंने राजा को देखा। राजा ने संत को प्रणाम किया और अपनी समस्या बताई। उसने संत से कहा कि, कोई ऐसा रास्ता बताइए, जिसमें मेरी सभी समस्याएं समाप्त हो जाए। संत ने कहा कि, आप ध्यान करेंगे तो मन को शांति मिलेगी।

संत की बात मानकर राजा ने वहीं बैठ कर ध्यान करना शुरू कर दिया। आंखें बंद की, लेकिन उसके दिमाग में विचार रूक नहीं रहे थे। वह ध्यान नहीं कर सका और उसने आंखें खोल लीं। राजा बोला कि महात्मा जी में ध्यान नहीं कर पा रहा हूं। संत बोले कि कोई बात नहीं। अभी आप मेरे साथ बहार मेरी छोटी सी बगिया में चलें। थोड़ा वहां घूम लेते हैं। बगियां में घूमते समय राजा के हाथ में एक कांटा चुभ गया। खून बहने लगा तो सन तुरंत ही राजा को लेकर अपनी कुटिया में पहुंचे और लेप लगाया।

संत ने कहा, राजन एक छोटे से कांटे की वजह से आपको इतनी तकलीफ हो रही है तो सोचिए, आपके मन में लालच, क्रोध, जलन, झूठ, घमंड जैसी बुराइयों के कांटे हुए हैं तो मन को शांति कैसे मिलेगीं। आपको सबसे पहले इन बुराइयों से बचना होगा। तभी आपका मन शांत हो पाएगा। राजा को संत की बातें समझ में आ गई और इसके बाद उसने धीरे-धीरे बुराइयों को दूर करने की कोशिश शुरू कर दी। सत्यार्थ बुराइयों का अंत ही सच्चाई और शांति का साध्य है। जो हम सबके लिए प्रेरणादायी हैं।

(साई फीचर्स)