केजरीवाल के ठानने का वक्त

(हरिशंकर व्यास)

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने अपनी राजनीतिक यात्रा के बिल्कुल शुरुआती दिनों में लक्ष्य बनाया था कि उनको नरेंद्र मोदी का विकल्प बनना है। तभी वे 2014 के लोकसभा चुनाव लड़ने वाराणसी पहुंच गए थे। उन्होंने नरेंद्र मोदी को लोकसभा के उनके पहले चुनाव में चुनौती दी थी। दिलचस्प बात है कि समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस के होते हुए तीन साल पुरानी आम आदमी पार्टी के नेता केजरीवाल तब दूसरे स्थान पर रहे थे। नरेंद्र मोदी उन्हीं को हरा कर पहली बार सांसद बने। तभी से केजरीवाल ने धारणा बना रखी है कि वे नरेंद्र मोदी का विकल्प हैं। मोदी का विकल्प बनने के लिए पहले केजरीवाल ने मोदी जैसी ही राजनीति शुरू की थी। वे भाजपा की नीतियों पर हमला करते थे। साथ ही विपक्षी नेताओं के ऊपर भी हमला करते थे। लेकिन व्यक्तिगत रूप से मोदी को निशाना नहीं बनाते थे। साथ ही मोदी की तरह ही भारत माता की जय के नारे लगाए।  पूरी दिल्ली में तिरंगा लगवाया। स्कूलों में देशभक्ति का कैरिकुलम शुरू कराया। हनुमान मंदिर में जाकर हनुमान चालीसा का पाठ किया। उन्होंने पहले मोदी के जैसे राजनीति करके मोदी की जगह लेने की कोशिश की।

अब उन्होंने वैसी राजनीति बंद कर दी है। उनको समझ में आया है कि ओरिजिनल मोदी के होते किसी को क्लोन की जरूरत नहीं है। सो, उन्होंने मोदी पर हमला शुरू किया है। कई बरस बाद केजरीवाल ने नरेंद्र मोदी की सरकार को इतिहास की सबसे भ्रष्ट सरकार बताया है। मोदी को आजाद भारत के इतिहास का सबसे कम पढ़ा लिखा प्रधानमंत्री कहा है। विधानसभा में कहा है कि भाजपा हार कर सत्ता से बाहर होगी तभी देश से भ्रष्टाचार समाप्त होगा। केंद्रीय एजेंसियों के दुरुपयोग का मुद्दा उठाते हुए कहा कि देश के सारे भ्रष्ट नेता सीबीआई और ईडी के डर से भाजपा में शामिल हो गए हैं। केजरीवाल ने कहा है कि कांग्रेस ने 70 साल में देश को जितना लूटा था उससे ज्यादा नरेंद्र मोदी सरकार ने सात साल में लूट लिया है।

केजरीवाल ने विधायकों की खरीद फरोख्त से लेकर लोकतंत्र पर हमला, संस्थाओं पर कब्जा जैसे तमाम आरोप मोदी पर लगाए हैं।  केजरीवाल ने लोकसभा की सदस्यता समाप्त किए जाने के मसले पर राहुल गांधी का खुल कर समर्थन किया है। अब तक कांग्रेस को कमजोर करके उसकी जगह लेने की राजनीति कर रहे केजरीवाल ने कांग्रेस के प्रति सद्भाव दिखाया है। उनकी पार्टी के नेता संसद सत्र के दौरान कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे की बुलाई बैठकों में शामिल हुए और भाजपा विरोधी प्रदर्शन का हिस्सा बने।

तभी अब यह देखना दिलचस्प होगा कि केजरीवाल की पार्टी संसद सत्र के बाद क्या राजनीति करती है? संसद सत्र के बाद यदि विपक्षी एकता भूल कर आम आदमी पार्टी राज्यों में चुनाव लड़ती है और कांग्रेस के वोट काटती है तो उसका फायदा भाजपा को होगा। तभी केजरीवाल के लिए वक्त अब इस फैसले का है कि नरेंद्र मोदी को हटाना है या मोदी के कांग्रेस को खत्म करने के मिशन में उनका सहयोगी होना है। गुजरात की तरह भाजपा की और छप्पर फाड जीत करवानी है?

संभव है सिसोदिया के जेल जाने के बाद केजरीवाल को मोदी के मोमेंट में अपनी हैसियत के अहसास हुआ हो। मनीष सिसोदिया और सत्येंद्र जैन जैसे अपने दो करीबी सहयोगियों और पूर्व मंत्रियों की गिरफ्तारी से सबक सीखा हो? राहुल गांधी की सदस्यता समाप्त किए जाने के बाद के घटनाक्रम से, उद्धव ठाकरे की पार्टी की दुर्दशा से अंदाजा हुआ होगा कि पहले अपने आपको, पंजाब, दिल्ली में आप पार्टी को भाजपा से बचाना जरूरी है। तभी वे भाजपा पर हमलावर हुए हैं और कांग्रेस के प्रति सद्भाव दिखाने लगे है। निश्चित ही दिल्ली में यदि आप ने कांग्रेस के परोक्ष सहमति से भी रणनीति बनाई तो दोनों के एक और एक ग्यारह के दम पर अरविंद केजरीवाल न केवल हल्ला बनवा सकते है बल्कि पूरे विपक्ष में नरेंद्र मोदी से सीधे भिडने वाला विकल्प भी बन सकते है। पूरे विपक्ष का नंबर एक वाचाल नेता।

(साई फीचर्स)

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