राम वन गए और राम ‘बन’ गए

(हेमेन्द्र क्षीरसागर)

मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम हमेशा से ही जनजन के प्यारे थे। लेकिन शायद नियति को कुछ और ही मंजूर था। जिस वजह से राम की सौतेली माता राजा दशरथ की दूसरी पत्नी महारानी केकई की दासी मंथरा ने उनको उकसाया। मंथरा ने रानी कैकई के मन में यह भ्रम पैदा किया कि राजा दशरथ उनके पुत्र भरत को ननिहाल भेज कर श्री राम को राजा बनाने के प्रयत्न कर रहे हैं। तब मंथरा ने कहा कि वह राम की जगह अपने पुत्र भरत को अयोध्या का राजा बनाए। तुम्हारे पास अभी भी समय है तुम चाहो तो राम की स्थान पर अपने पुत्र भरत को अयोध्या का राजा बना सकती हो। तब रानी कैकेई मंथरा के कुविचारों से भ्रमित होकर राजा दशरथ से अपने दोनो वर मांगती है। जिसमें वह पहले वरदान में यह मांगती है कि राम को 14 वर्ष का वनवास दिया जाए। जिसमें राम 14 बरस तक वन में रहेगा और राज्य की किसी भी वस्तु का उपयोग नहीं कर सकेगा। दूसरे वचन में रानी कैकई राजा दशरथ से अपने पुत्र भरत को अयोध्या का राजा बनाने की मांग करती है।

व्यथा, रानी कैकई के यह दोनों वचन सुनकर राजा दशरथ को सदमा लगता है और वह बेजुबान हो जाते है। जब राजा दशरथ के इस स्थिति का पता श्री राम को चलता है तो वह अपने पिता के पास जाकर उनके इस रवैया का कारण पूछते हैं। उस समय राजा दशरथ रानी कैकई के भवन में ही होते हैं। बहुत देर तक जब राजा दशरथ कुछ बोल नहीं पाते तब रानी कैकई ही श्री राम को अपने दोनों वचनों के बारे में बताती है। रानी कैकई के दोनों वचन सुनकर श्रीराम सहर्ष उनके दोनो वचनों को स्वीकार करते है। अगले ही दिन जब राम के वनवास की खबर नगर में फैलती है तो पूरे नगर में बगावत जैसे स्वर फूटने लगते है। देवी सीता अपने पति श्रीराम के साथ वनवास पर जाने का निश्चय करती  है। जब लक्ष्मण जी को यह सूचना मिलती है तो वह राजा दशरथ पर क्रोधित होते है लेकिन श्रीराम के समझाने पर वह शांत हो जाते है। लक्ष्मण अपने भैया राम से बहुत स्नेह करते थे इसलिए वे भी श्रीराम के साथ वनवास पर चले जाते है।

रूदन, अयोध्या नगरी के लोग अपने श्रीराम के वनवास पर उनके साथ जाने की इच्छा प्रकट करते है लेकिन श्रीराम उन्हें नदी के किनारे पर छोड़कर आर्य सुमंत के साथ अधेरे में ही चले जाते है । वन पहुंचने के बाद श्रीराम सबसे पहले अपने मित्र निषादराज के पास पहुंचते है एक दिन उनके पास बिताकर वह लक्ष्मण और सीता के साथ 14 वर्ष के वनवास पर निकल जाते है। इधर श्रीराम के वनवास जाने के कुछ की दिनों के बाद उनके पिता राजा दशरथ अपने पुत्र राम के वियोग में अपने प्राण त्यागकर स्वर्ग सिधार जाते है। 

अनुनय भरतजी माता कैकई, साधु-संत और अनेक अयोध्यावासी भगवान राम को अयोध्या वापस लौटने के लिए मनाने वन पहुंचते हैं। उन्हें दूर से आता देखकर लक्ष्मण के मन में कई कुविचार आते हैं। वह रामजी को अपने विचारों से अवगत कराते हैं, तो श्रीराम कहते हैं कि मेरा भरत ऐसा नहीं है। राम अयोध्या वासियों, माताओं, गुरुजनों का अभिवादन करते हैं। माता कैकई कहती है, हे राम नारी होने के कारण भावुकता में बहकर जो त्रुटि की है। उसके कारण अत्यंत लज्जित हूं। मुझे दंडित करो। राम कहते हैं, हे मां समय पड़ने पर माता, पुत्र को दंडित करती है, लेकिन इस त्रिकाल में कभी पुत्र कभी माता को दंडित नहीं करता। कैकई ने कहा कि तुम मुझे अभी भी वह सम्मान दे रहे हो। तुम्हारा मन कितना निर्मल है। मेरी बात मान लो लौट चलो, मैं तुम्हें उस अनुबंध से भी मुक्त करती हूं। अयोध्या लौट चलो।

वात्सल्य, माता कैकई की बातों को सुनकर श्रीराम ने कहा माते, आपका आदेश शिरोधार्य है, लेकिन पिता के वचन का क्या होगा। पिता तो अब नहीं हैं। क्या यह सूर्यवंश की परंपरा पर कलंक न होगा? हे माता मैं आपके कहने पर लौटकर पिता का अपराधी बन जाऊंगा। पिता भरत को राज्य दे चुके हैं। अब राज्य मेरे अधिकार में नहीं है। क्या आप चाहती हैं, कि ऐसा अपराध हो। रुंधे गले से भरतजी, राम को गुरुकुल के दिनों की याद दिलाते हैं, कि किस तरह आप बड़प्पन दिखाते हुए खेल में मुझे जिताने के लिए खुद हार जाते थे। उसी प्रकार आज मैं हारा हुआ हूं। बुद्धि नहीं है, आज भी आप मुझे जिता दो। राजा बनकर मैं हार जाऊंगा। आप राजा बनकर मुझे जिता दो।

बंधुत्व, रामजी.. प्रिय भरत, अपनी मां का कभी अपमान मत करना। एक घटना के पीछे अनेक कारण होते हैं। मां तो निमित्त मात्र है। क्या इस घटना के पीछे हमारे कर्मों का उदय नहीं है? जिसको गुरुकुल की सही शिक्षा प्राप्त नहीं हुई हो। वही माता कैकई को अपराधी मानेगा। जीवन में आगे भी बहुत कुछ होने वाला है। मेरा प्रस्थान भविष्य के लिए आवश्यक है। यह समय आने पर सभी को समझ आएगा। कुल मिलाकर अपनी मर्यादा और त्याग का अद्भुत आदर्श प्रस्तुत कर राम वन गए और राम बनगए। यथेष्ठ कैकेई जी के कारण रघुकुल की आन बची। यदि कैकेई श्री राम को वनवास न भेजती तो रघुकुल का सौभाग्य वापस न लौटता। कैकेई ने कुल के हित में कितना बड़ा कार्य किया और सारे अपयश तथा अपमान को झेला। इसलिए श्री राम माता कैकेयी को सर्वाधिक प्रेम करते थे। स्तुत्य, वनवास में राम ने परीक्षा- ही- परीक्षा दी और सबमें वे सफल हुए। श्री राम ने अपने वनवास काल में समाज के दलितों, पिछड़े वर्ग को ही गले लगाया और शक्तिशाली रावण को भी हराया। इस तरह वे यश का अर्जन किया। अत: निर्विवाद रूप से श्रीराम का रामराज्यकाल से उनका वनवासकाल ही श्रेष्ठतम है।

(साई फीचर्स)