नए संसद भवन के उद्घाटन को लेकर मचने लगी जमकर रार . . .

(ब्यूरो कार्यालय)

नई दिल्ली (साई)। देश की आजादी से ठीक पहले की शाम हिंदू रीति-रिवाज से क्या-क्या हुआ था? अब यह खंगाला जा रहा है। सरकार ने सेंगोल का राजखोला है, कांग्रेस इसे झूठा दावा बता रही है।

आज सुबह जयराम रमेश ने व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी वाला तंज कसा तो गृह मंत्री अमित शाह ने कह दिया कि भारतीय सभ्यता और संस्कृति से इतनी नफरत क्यों है। सोशल मीडिया पर भी बहस छिड़ी हुई है। ऐसे में अब सरकार ने सबसे बड़े सबूत के तौर पर 25 अगस्त 1947 की TIME मैगजीन में प्रकाशित रिपोर्ट शेयर की है। इसमें जो लिखा है उससे बहुत कुछ साफ हो जाता है।

टाइम का वो आर्टिकल पढ़ने से पहले यह जान लीजिए कि कांग्रेस का विरोध किस बात को लेकर है। जयराम रमेश ने भाजपा पर सेंगोल के बारे में झूठी कहानी फैलाने का आरोप लगाया है। उनका साफ तौर पर कहना है कि माउंटबेटन, राजाजी और पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा इसे भारत में ब्रिटिश सत्ता के हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में मानने का कोई दस्तावेजी सबूत नहीं है। सेंगोल (राजदंड) का इस्तेमाल सैकड़ों साल पहले चोल साम्राज्य के समय होता था।अब पढ़िए टाइम मैगजीन की वो रिपोर्ट, जिसे केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने प्रूफ के तौर पर दिखाया है।

टाइम मैगजीन की ग्राउंड रिपोर्ट

जैसे ही बड़ा ऐतिहासिक दिन करीब आता गया, भारतीयों ने अपने-अपने ईश्वर को धन्यवाद देना शुरू किया और विशेष पूजा प्रार्थना, भजन आदि सुनाई देने लगे… भारत के पहले प्रधानमंत्री बनने से पहले शाम को जवाहरलाल नेहरू धार्मिक अनुष्ठान में व्यस्त रहे। दक्षिण भारत में तंजौर से मुख्य पुजारी श्री अंबलवाण देसिगर स्वामी के दो प्रतिनिधि आए थे। श्री अंबलवाण ने सोचा कि प्राचीन भारतीय राजाओं की तरह, भारत सरकार के पहले भारतीय प्रमुख के रूप में नेहरू को पवित्र हिंदुओं से सत्ता का प्रतीक और अथॉरिटी हासिल करनी चाहिए। पुजारी के प्रतिनिधि के साथ भारत की विशिष्ट बांसुरी की तरह के वाद्य यंत्र नागस्वरम को बजाने वाले भी आए थे। दूसरे संन्यासियों की तरह इन दोनों पुजारियों के बाल बड़े थे और बालों में कंघी नहीं की गई थी… उनके सिर और सीने पर पवित्र राख थी… 14 अगस्त की शाम को वे धीरे-धीरे नेहरू के घर की तरफ बढ़े…।

एक संन्यासी ने नेहरू को सुनहरा राजदंड दिया

पुजारियों के नेहरू के घर पहुंचने के बाद नागरस्वम बजता रहा। इसके बाद उन्होंने पूरे सम्मान के साथ घर में प्रवेश किया। दो युवा उन्हें बड़े पंखे से हवा दे रहे थे। एक संन्यासी ने पांच फीट लंबा सोने का राजदंड लिया हुआ था। इसकी मोटाई 2 इंच थी। उन्होंने तंजौर से लाए पवित्र जल को नेहरू पर छिड़का और उनके माथे पर पवित्र भस्म लगाया। इसके बाद उन्होंने नेहरू को पीतांबर ओढ़ाया और उन्हें गोल्डन राजदंड सौंप दिया। उन्होंने नेहरू को पके हुए चावल भी दिए, जिसे तड़के दक्षिण भारत में भगवान नटराज को अर्पित किया गया था। वहां से प्लेन से दिल्ली लाया गया था।

इसके बाद शाम में नेहरू और दूसरे लोग संविधान सभा के अध्यक्ष राजेंद्र प्रसाद के घर गए। वापस आने पर चार केले के पौधे लगाए गए। यह अस्थायी मंदिर के खंभे के तौर पर लगाया गया। पवित्र अग्नि के ऊपर हरी पत्तियों की छत तैयार की गई और ब्राह्मण पुजारी शामिल हुए। हजारों महिलाओं ने भजन गाए। संविधान तैयार करने वाले और मंत्री बनने जा रहे लोग पुजारी के सामने से गुजरे और उन्होंने पवित्र जल छिड़का। बुजुर्ग महिला ने प्रत्येक पुरुष के माथे पर लाल टीका लगाया। भारत के शासक शाम को धर्मनिरपेक्ष स्वरूप में थे। 11 बजे वे संविधान सभा हॉल में इकट्ठा हुए… नेहरू ने एक प्रेरक भाषण दिया- आधी रात के इस पहर में जब दुनिया सो रही है…।

इस तरह से देखें तो केंद्रीय मंत्री ने जो आर्टिकल शेयर किया है उसके पहले हिस्से में सेंगोल नेहरू को दिए जाने का जिक्र तो है लेकिन स्पष्टता न होने के कारण कांग्रेस प्रश्नचिन्ह लगा रही है।