शिवपुरी में महाराज का माफी मांगना! भला क्यों?

(शकील अख़्तर)

जिन लोगों ने शिवपुरी में महाराज को मंच पर हाथ जोड़े सिर झुकाए खड़े देखा उनका कहना है कि महाराज बस रोने ही वाले थे। तो क्या यह कांग्रेस से गद्दारी करने का पश्चाताप है? या इन विधानसभा चुनावों में अपने लोगों की हार का डर?…लोगों की नाराजगी क्यों है इसे इन्दौर के मेयर रहे और भाजपा के वरिष्ठ नेता कृष्ण मुरारी माधव ने बताया है। कार्यकर्ताओं की एक सभा में उन्होंने कहा कि सारे टिकट सिंधिया के साथ आए लोग ले जाएंगे तो हमारे निष्ठावान कार्यकर्ता कहां जाएंगे?

महाराज मंच पर हाथ जोड़कर सिर झुकाए खड़े हैं। जनता से माफी मांग रहेहैं। कह रहे हैं मुझे क्षमा कर दो। यह लोकतंत्र की ताकत है। जनता को इसीलोकतंत्र को बचाना है। यही खतरे में है। कोई कांग्रेस या विपक्ष नहीं। जनता की इसी शक्ति, उसका डर और चुनाव जिताने हराने की ताकत पर ही आजतलवार लटक गई है।

मोदी जी कहते हैं सत्तर साल में क्या हुआ? तो यह हुआ कि आज सिंधिया घरानेके वंशज महाराज”  ज्योतिरादित्य सिंधिया जनता से माफी मांग रहे हैं। यहलोकतंत्र इन सत्तर सालों में बना है और आज जब इसकी सभी संवैधानिकसंस्थाओं की साख दांव पर लग गई है तब भी जनता जो सबसे बड़ी संस्था हैउसका डर महाराज से भी माफी मंगवा लेता है।

महाराज के माफी मांगने को थोड़ा ऐसे समझिए कि इस परिवार ने कभी जनसम्पर्कभी नहीं किया। जनदर्शन के लिए निकलते थे। विजयाराजे सिंधिया, जिन्हेंभाजपा राजमाता कहती थी से लेकर माधवराव सिंधिया, वसुन्धरा राजे, यशोधराराजे जनता से खूब मिले जुले मगर हाथ जोड़कर, सिर झुकाकर क्षमा याचना कभीनहीं की। वे अपने ड्राइवर को भी खड़ा कर देते थे तो जीत जाता था। तो अब यह क्या हो गया? महाराज की ऐसी दयनीय स्थिति कैसे हो गई? जिन लोगों नेशिवपुरी में महाराज को मंच पर हाथ जोड़े सिर झुकाए खड़े देखा उनका कहनाहै कि महाराज बस रोने ही वाले थे। तो क्या यह कांग्रेस से गद्दारी करनेका पश्चाताप है?

या इन विधानसभा चुनावों में अपने लोगों की हार का डर?कुछ लोग बता रहे हैं कि यह 2024 में गुना शिवपुरी से फिर से लोकसभा लड़नेकी पेंतरेबाजी है। तो कुछ इसे बेटे महाआर्यमन सिंधिया के लिए जमीन तैयारकरने की कवायद बता रहे हैं। जो भी हो मध्य प्रदेश के लोग खास तौर से ग्वालियर इलाके के लोग इसका खूब मजा ले रहे हैं। खासतौर पर बीजेपी केनेता। जिन्हें भाजपा में आने के बाद कुछ समय तक ज्योतिरादित्य ने कुछनहीं समझा था। ज्योतिरादित्य समझ रहे थे कि जिस तरह वे कांग्रेस मेंमहाराज का स्टेटस मेंटन करते थे भाजपा में भी वही रहेगा। मगर यहां आने केबाद उन्हें मालूम पड़ा कि मध्य प्रदेश में ही कई नेताओं का महत्व औरपार्टी में राजनीतिक स्थिति उनसे कहीं ज्यादा है।

कांग्रेस में वे राहुल, प्रियंका और सोनिया के भी साथ बैठते थे। जैसा किराहुल ने उनके धोखा देने पर कहा था कि वे अकेले ऐसे नेता थे जो उनके घरकभी भी आ सकते थे। मगर यहां उनका दर्जा बहुत नीचे हो गया। खुद ग्वालियरमें ही भाजपा से जुड़े पुराने लोग यह सवाल उठाने लगे कि अगर सारे टिकटइन्हीं के आदमियों को मिल जाएंगे तो हमारा क्या होगा?

भाजपा के पहले प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के भांजे अनूप मिश्रा कईबार के विधायक और लोकसभा सदस्य रह चुके हैं। उनकी राजनीतिक सफलताएं अपनीहैं। वाजपेयी जी की वजह से नहीं हैं। मगर अब उनकी समस्याएं वाजपेयी जी कीवजह से हैं। ग्वालियर वाजपेयी जी की जन्मस्थली उनकी शिक्षा दीक्षा काकेन्द्र रहा है। 18 साल से वहां राज्य में और 9 साल से केन्द्र में भाजपाकी सरकार है। मगर वाजपेयी की स्मृति में वहां कुछ भी नहीं बनाया गया।अनूप मिश्रा और वे ही नहीं दूसरे पुराने नेता भी जब वहां वाजपेयी की बातकरते हैं तो उन्हें अलग थलग डाल दिया जाता है।

अनूप मिश्रा ने इस बार वाजपेयी की पंक्तियां न टायर्ड न रिटायर्ड  कहकर अभी से अपना विधानसभा क्षेत्र दक्षिण ग्वालियर तय करके ताल ठोक दी है।उनका कहना है कि पार्टी टिकट दे तो अच्छा है नहीं तो जनता कार्यकर्ताओंकी इच्छा है चुनाव तो लड़ेंगे। इसी तरह वहां माधव राव सिंधिंया के खिलाफचुनाव लड़ने वाले जयभान सिंह पवैया भी नाराज हैं।

लोगों की नाराजगी क्यों है इसे इन्दौर के मेयर रहे और भाजपा के वरिष्ठनेता कृष्ण मुरारी माधव ने बताया है। कार्यकर्ताओं की एक सभा मेंउन्होंने कहा कि सारे टिकट सिंधिया के साथ आए लोग ले जाएंगे तो हमारेनिष्ठावान कार्यकर्ता कहां जाएंगे?

मध्य प्रदेश में भाजपा की हालत तो जो बुरी है वह है मगर सिंधिया की हालतसबसे खराब है। अगर भाजपा हार गई तो सारा ठीकरा सिंधिया के सिर ही फूटेगा।इसी डर से सिंधिया शिवपुरी में माफी मांग रहे थे। खुद राजनीतिक अस्तित्वबचाए रखने के लिए जरूरी है कि उनके सभी लोगों को टिकट मिले और वे जीतें।और यह काम अकेले उन्हीं को करना है।

मध्य प्रदेश में कमलनाथ और दिग्विजय सिंह की जोड़ी बहुत अच्छा काम कर रहीहै। कमलनाथ के मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बन जाने के बाद दिग्विजय नेभी उनका समर्थन कर दिया है। इससे मध्य प्रदेश में कांग्रेस में गुटबाजीखत्म हो गई है। मध्यप्रदेश में 2003 से लगातार भाजपा जीतती चली आ रही है।15 साल बाद 2018 में कांग्रेस जरूर जीती थी। और वह इसलिए कि उससे पहलेनर्मदा यात्रा निकालकर दिग्विजय सिंह ने माहौल अनुकूल बना दिया था। नहींतो उस समय भी गुटबाजी कम नहीं थी। ज्योतिरादित्य कांग्रेस में किस तरहरहते थे इसकी एक मिसाल बताते हैं। राजनीति में नेता तो कई होते हैं, मगरकार्यकर्ता तो वही होते हैं। अपनी पार्टी के हर नेता के आने पर जाते हैं।मगर ज्योतिरादित्य से जुड़े कार्यकर्ता जब किसी और नेता के कार्यक्रम मेंपहुंच जाते थे उनसे जवाब तलब हो जाता था। अंग्रेजी में जिसे कहते हैंपजेसिव (पूरा नियंत्रण रखना) वह थे। एक बार पार्टी के अपने चुनाव थे।राहुल गांधी ने शुरू करवाए थे। यूथ कांग्रेस और एनएसयूआई के। तो इनमेंउन्होंने एक वरिष्ठ विधायक से कहा किसी का समर्थन करने को। उनका अपना खासरिश्तेदार चुनाव लड़ रहा था। उन्होंने कहा कि रिश्तेदारी का मामला है औरयह तो आंतरिक चुनाव हैं। सब लड़ने को स्वतंत्र हैं। बस नाराज हो गए।माधवराव के समय से चले आ रहे संबंध खत्म कर दिए।

तो उनके कांग्रेस से जाने के बाद कांग्रेस में काफी राहत का माहौल है।मगर भाजपा में सारे समीकरण हिल गए हैं। ग्वालियर चंबल संभाग में तो हरविधानसभा क्षेत्र में उनका उम्मीदवार है ही राज्य के दूसरे इलाकों में भीवे कई जगह अपने वफादारों को चुनाव लड़वाना चाहते हैं।

भाजपा के मध्य प्रदेश में पहले मुख्यमंत्री रहे कैलाश जोशी के पुत्र औरमंत्री रहे दीपक जोशी तो इसी वजह से कांग्रेस में गए। उनके चुनाव क्षेत्रदेवास जिले के हाट पिपलिया से कांग्रेस के जो विधायक थे वे अब सिंधिया केसाथ दल बदल करके भाजपा में आ गए हैं। सिंधिया उन्हें टिकट दिलाने पर अड़ेहुए थे। इस पर तीन बार के विधायक और हमीदिया कालेज भोपाल के छात्रसंत्रअध्यक्ष रहे दीपक जोशी ने भाजपा छोड़ दी। याद रहे चाहे अनूप मिश्रा होंया दीपक जोशी ये अपनी छात्र राजनीति और खुद के बनाई जमीन से निकलकर आने वाले नेता हैं।

(साई फीचर्स)