बढ़ती आबादी सीमित संसाधनों पर असीमित दबाव बढ़ा रही

(विश्व जनसंख्या दिवस विशेष – 11 जुलाई 2023)

(डॉ. प्रितम भि. गेडाम)

मनुष्य को समाज में जीवन उपयोगी घटक और बेहतर विकास के लिए आवश्यक संसाधन बेहद जरुरी हैं जो मनुष्य के विकास के साथ देश और मानवजाति के विकास को भी गति प्रदान करते हैं। आधारभूत जरूरत में शुद्ध ऑक्सीजन, पानी, भोजन की आवश्यकता होती हैं, उसके बाद जीवन यापन के लिए कपड़ा, मकान, स्वास्थ्य सुविधा, शिक्षा, नौकरी, व्यवसाय और फिर उसके बाद विलासिता के संसाधन होते हैं। प्रत्येक मनुष्य को खुद का विकास करने का संवैधानिक अधिकार हैं, सभी के लिए कानून समान हैं। हर एक को विकसित होने के लिए समान मौके मिलने ही चाहिए। विश्व में वही देश विकसित हुए हैं, जो सीमित संसाधनों में सीमित आबादी को बेहतर से बेहतर सुविधा दे पाएं, क्योंकि उन पर असीमित आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए दबाव नहीं हैं। दुनिया में बहुत से छोटे-छोटे देश हमसे कई गुना विकसित है, वहां शुद्ध हवा पानी भोजन के साथ-साथ रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य की बेहतर सुविधाएं मौजूद हैं। हमारे देश के लाखों विद्यार्थी हर साल ऐसे देशों में उच्च शिक्षा के लिए जाते हैं, वहां बड़े वेतन का रोजगार प्राप्त कर बेहतर जीवन यापन करते हैं।

हमारे देश की आबादी विश्व में सबसे ज्यादा हैं, और जितनी ज्यादा आबादी उतनी ज्यादा जरूरतें। जब ये जरुरतें योग्य पद्धति से पूर्ण नहीं होती हैं तो वे जरूरतें नई समस्याओं को जन्म देते हैं। प्राकृतिक संसाधनों के अत्यधिक दोहन से ग्लोबल वार्मिंग, प्राकृतिक आपदाएं बढ़ रही हैं, अर्थात सीमित साधनों पर असीमित आवश्यकताओं की पूर्ति का दबाव बेहतर प्रणाली को भी बिगाड़ देते हैं। इस कारण सामान्य मनुष्य का जीवन जन्म से ही संघर्षमय हो जाता हैं और यह संघर्ष जीवन के अंत तक चलता रहता हैं। बढ़ती आबादी से शुद्ध हवा पानी भोजन की समस्या तेजी से बढ़ती हैं उसके बाद बेहतर शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधा, रोजगार या व्यवसाय के लिए संघर्ष होता हैं जिसके कारण समाज में गरीबी, भुखमरी, बीमारियां, अशिक्षा, बालश्रम, बेरोजगारी, नशाखोरी, भ्रष्टाचार, अपराध, गलिच्छ जीवनमान, मलिन बस्तियाँ, प्रदूषण, गन्दगी जैसी समस्याओं का जन्म होता हैं। आर्थिक विषमता तेजी से बढ़ती है। मिलावटखोरी, महंगाई, धोखाधड़ी जैसी समस्या चरम पर होती हैं, क्योंकि सब अपने फायदे के लिए जो बन पड़े करने को तैयार रहते हैं। इससे लोगों के विचारधारा में नकारात्मकता सतत बढ़ती हैं जो दॄष्ट प्रवृत्ति को जन्म देती हैं।

अधिक जनसंख्या के कारण होने वाली समस्याओं के समाधान और इन समस्याओं के बारे में जनता को शिक्षित करने के लिए प्रतिवर्ष 11 जुलाई को विश्व जनसंख्या दिवसमनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र के वर्ल्डोमीटर के नवीनतम डेटा अनुसार, 4 जुलाई, 2023 तक भारत की वर्तमान जनसंख्या 1,420,644,759 है और विश्व की आबादी 8,04,23,45,910 पार हो चुकी है। आज भारत देश की जनसंख्या विश्व की कुल जनसंख्या के 17.7% के बराबर है, जबकि क्षेत्रफल 2.4 हैं। कंट्री मीटर के अनुसार, 2023 में भारत की जनसंख्या में प्रतिदिन 49,179 व्यक्तियों की वृद्धि हो रही। यूएनएफपीए की विश्व जनसंख्या रिपोर्ट 2023 के अनुसार, भारत दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश बना है। रिपोर्ट के मुताबिक, भारत की कुल आबादी का 68 फीसदी हिस्सा 15 से 64 साल की उम्र के बीच है, जिसे किसी भी देश की कामकाजी आबादी माना जाता है।

भारत अब विश्व स्तर पर सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। जबकि मानव विकास सूचकांक में अनुरूप वृद्धि नहीं हुई है। 2021-22 की मानव विकास रिपोर्ट के अनुसार, भारत 191 देशों में से बांग्लादेश और श्रीलंका के बाद 132वें स्थान पर है। भारतीय आबादी के शीर्ष 10% लोगों के पास 77% से अधिक संपत्ति है। इस तथ्य के बावजूद कि भोजन की लागत अन्य देशों की तुलना में अपेक्षाकृत कम है, फिर भी भारत की 70% से अधिक आबादी 2020 तक स्वास्थ्यवर्धक आहार नहीं खरीद सकती थी। 15-49 आयु वर्ग की सभी महिलाओं में, एनीमिया की व्यापकता 2015-16 (एनएफएचएस-4) में 53% से बढ़कर 2019-21 (एनएफएचएस-5) में 57% हो गई है। वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट 2022 में भारत की रैंक 135 है, इसके अनुसार, कार्यबल में महिलाएं केवल 22% हैं। क्यूएस वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग 2023 के अनुसार, बेंगलुरु में भारतीय विज्ञान संस्थान विश्वस्तर पर 155 वें रैंक के साथ देश में सर्वोच्च रैंक वाला संस्थान है। स्विट्जरलैंड स्थित वायु गुणवत्ता प्रौद्योगिकी कंपनी आईक्यूएयर ने हाल ही में वर्ष 2022 के लिए विश्व वायु गुणवत्ता रिपोर्ट प्रकाशित की है, इसने बताया कि भारत दुनिया के सबसे प्रदूषित देश के मामले में आठवें स्थान पर है। 2022 की विश्व बैंक की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत ने 2020 (पहला महामारी वर्ष) में वैश्विक वृद्धि में 5.6 करोड़ नए “अत्यधिक गरीब” (2017 पीपीपी पर प्रति व्यक्ति प्रति दिन $ 2.15 का व्यय) जोड़ा है। विश्व बैंक डेटाबेस से पता चलता है कि भारतीय दुनिया के सबसे गरीबों में से एक हैं, इसकी प्रति व्यक्ति आय $2,777 वैश्विक औसत $12,263 से काफी कम है। केंद्र सरकार 1 जनवरी, 2023 से पुरे साल एक वर्ष के लिए राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत लगभग 81.35 करोड़ लाभार्थियों को मुफ्त खाद्यान्न प्रदान कर रही है, अर्थात भारत में इतने गरीब जिन्हें मुफ़्त राशन की आवश्यकता है।

ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2022 में, भारत 121 देशों में से 107वें स्थान पर है, 29.1 के स्कोर के साथ, भारत में भूख का स्तर गंभीर है। विश्व प्रसन्नता सूचकांक 2023 में भारत की रैंक दुनिया के सबसे कम खुशहाल देशों में से एक है और 136 में से 126वें स्थान पर है। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, मई में भारत में बेरोजगारी दर 7.7% थी। विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक 2023 रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स द्वारा प्रकाशित इंडेक्स में भारत 36.62 स्कोर के साथ 180 देशों में 161 वें स्थान पर है। 2022 में भारत की रैंक 150 थी। वैश्विक आतंकवाद सूचकांक 2023 में भारत 13वें क्रमांक का देश है जो आतंकवाद से प्रभावित है। ग्लोबल लिवेबिलिटी इंडेक्स 2022 में भारत की रैंक 112 है। असमानता कम करने की प्रतिबद्धता सूचकांक (सीआरआईआई) 2022 में भारत की रैंक 123 है। लोकतंत्र रिपोर्ट 2022 में भारत की रैंक 93 है। क्यूएस सर्वश्रेष्ठ छात्र शहर रैंकिंग 2023 में भारत की रैंक 103 है। ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल द्वारा रिपोर्ट किए गए 2022 भ्रष्टाचार धारणा सूचकांक के अनुसार, भारत 180 देशों में से 85वां सबसे कम भ्रष्ट देश है। वैश्विक पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक 2022 में भारत की रैंक 180 है। अंतर्राष्ट्रीय हथियार हस्तांतरण में रुझान में भारत की रैंक 1 है। हाल ही में जारी 2022 वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक (एमपीआई) रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया के 111 देशों में लगभग 120 करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे हैं। उप-सहारा अफ्रीका (लगभग 579 मिलियन) और दक्षिण एशिया (385 मिलियन) का विकासशील क्षेत्र है जहां गरीबों की संख्या सबसे अधिक है। भारत कौशल रिपोर्ट 2022 के अनुसार, आधे से भी कम भारतीय रोजगार के योग्य हैं और 75 प्रतिशत कंपनियों ने कौशल अंतर की सूचना दी है।

बढ़ती आबादी की जरूरतें पूरी करने में प्रकृति का नाश हो रहा है। जैव विविधता की हानि, जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण, वनों की कटाई, पानी और भोजन की कमी ये सभी हमारी विशाल और लगातार बढ़ती जनसंख्या के कारण और भी बदतर हो गए हैं। देश में बेरोजगारी का आलम तो इस कदर फैला है कि अगर किसी सरकारी विभाग में सफाईकर्मी या चपरासी के लिए भी एक जगह निकले तो हजारों उच्च शिक्षित स्नातक, इंजीनियर, एमबीए, पीएचडी पदवी धारक भी आवेदन लेकर आ जाते हैं। अनेक विभागों में तो सालों साल नई भर्तियां ही नहीं होती, कर्मचारियों की निवृत्ति चलती रहती हैं, तो कई जगह ठेका पद्धति से कर्मचारी लगाए जाते हैं। सौ बात की एक बात कि देश की आबादी बहुत ज्यादा हैं, युवा वर्ग की संख्या अधिक हैं जिन्हें गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधा, रोजगार, व्यवसाय और उच्च जीवनमान बढ़ाने के उचित अवसर मिलने चाहिए, जिससे वे सुजान नागरिक बनकर देश और समाज के विकास में अपना यथोचित योगदान दे सकेंगे। 

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(साई फीचर्स)