वित्तीय स्थिति पर श्वेत पत्र आएगा कि नहीं? सरकार जानकारी एकत्र कर रही है . . .

अपना एमपी गज्जब है… 89

(अरुण दीक्षित)

एक ओर एमपी के सीएम विधानसभा चुनाव जीतने के लिए सरकार का खजाना दोनों हाथ लुटा रहे हैं। वही दूसरी ओर राज्य के वित्त मंत्री को यह भी नही मालूम है कि आज की तारीख में उनकी सरकार पर कितना कर्ज है! ऐसा नहीं है कि उनसे अचानक इस बारे में सवाल पूछा गया! और वे उत्तर नही दे पाए! उनसे बाकायदा लिखित प्रश्न पूछा गया था। उसका उत्तर देने के लिए उनके पास पर्याप्त समय भी था। लेकिन फिर भी वे यह बताने की स्थिति में नहीं हैं कि सरकार पर कितना कर्ज है और सरकार अपनी वित्तीय स्थिति पर श्वेत पत्र लाएगी कि नहीं!

ऐसा नहीं है कि राज्य के वित्त मंत्री अपने खजाने की हालत से वाकिफ नहीं हैं। उन्होंने सवा चार महीने पहले ही राज्य का बजट विधानसभा में पेश किया था। तब उन्होंने करीब 3 लाख 14 हजार 25 करोड़ का बजट पेश करते हुए आना पायी का हिसाब दिया था। साथ ही यह भी बताया था कि पैसा कहां से आएगा और कहां जाएगा! उनके बजट दस्तावेजों में कर्ज का भी उल्लेख था।

लेकिन बहुत ही कम अवधि में वह सब कुछ भूल गए। 1 मार्च 2023 को जिस विधानसभा में उन्होंने अपना बजट भाषण पढ़ा था उसी विधानसभा में 11 जुलाई 2023 को सरकार की वित्तीय स्थिति पर वे जानकारी एकत्र करवा रहे हैं।

दरअसल कांग्रेस के वरिष्ठ विधायक और पूर्व मंत्री सज्जन वर्मा ने वित्तमंत्री से एक बड़ा लिखित सवाल पूछा था। पांच खंडों में बंटे इस सवाल में वर्मा ने राज्य की वित्तीय स्थिति के हर पहलू पर जानकारी चाही थी। साथ ही यह भी पूछा कि क्या सरकार प्रदेश की वित्तीय स्थिति पर श्वेत पत्र जारी करेगी।

वर्मा का सवाल था – 31 मार्च 2023 की स्थिति में राज्य पर कुल कितना कर्ज है। 1 अप्रैल 23 से 15 जून 23 तक उसने कितना कर्ज और लिया है। आगे कितना कर्ज और लेना प्रस्तावित है।

31 मार्च 2023 तक राज्य सरकार पर कर्ज के अलावा उसके निगम मंडलों और विद्युत कंपनियों आदि पर कितना कर्ज है। इन सबका मिलाकर कुल कितना कर्ज सरकार पर है।

आज की स्थिति में सरकार को कर्ज पर सालाना कितना ब्याज देना पड़ रहा है। साथ ही राज्य का हर व्यक्ति कितनी राशि का कर्जदार है।

उन्होंने यह भी पूछा क्या यह कर्ज विकास कार्यों के लिए लिया गया था। यदि हां तो उक्त कर्ज की राशि में से कितनी राशि गैर विकास कार्यों पर खर्च की गई है।

कांग्रेस विधायक ने यह भी जानना चाहा कि क्या राज्य की वित्तीय स्थिति बहुत खराब हो रही है। यदि हां तो क्या राज्य सरकार श्वेत पत्र जारी करके प्रदेश की जनता को राज्य की वित्तीय स्थिति के बारे में बताएगी। यदि हां तो कब तक और नहीं तो क्यों नहीं?

सज्जन वर्मा के इस पांच खंड के सवाल का जवाब वित्तमंत्री ने सिर्फ 6 शब्दों में दिया है। उन्होंने लिखित उत्तर में कहा है – जानकारी एकत्रित की जा रही है।

हालांकि विधानसभा में राज्य सरकारों द्वारा दिया जाने वाला यह एक सामान्य उत्तर है। ऐसे उत्तर में यह माना जाता है कि सरकार उत्तर देना ही नही चाहती है। यह अलग बात है कि ऐसे उत्तर सरकार के साथ साथ वित्तमंत्री को भी कटघरे में खड़ा करते हैं। उसकी स्थिति को हास्यास्पद भी बनाते हैं। अब इसी प्रश्न को देख लीजिए! संभव है कि वित्तमंत्री को उनके अफसरों ने यह न बताया हो कि सरकार पर अब तक कितना कर्ज चढ़ चुका है। वे भी कैसे बताएं क्योंकि सरकार औसतन हर महीने कर्ज ले रही है। लेकिन वे यह तो बता सकते थे कि वित्तीय स्थिति पर सरकार श्वेत पत्र जारी करेगी या नहीं।

अब वित्तमंत्री खुद यह जानकारी एकत्र करा रहे हैं कि वे श्वेत पत्र जारी करेंगे कि नहीं। तो फिर यह कैसे बता देते कि श्वेत पत्र कब तक जारी होगा और यदि नही होगा तो क्यों नही होगा! इसलिए इसकी भी जानकारी एकत्र करा रहे हैं। लिखित उत्तर के हिसाब से अनुमान लगाया जा सकता है कि मध्यप्रदेश के वित्त विभाग के कर्मचारी फिलहाल “एकत्रीकरण” की मुहिम में जुटे हैं। यह मुहिम कब तक चलेगी शायद उन्हें भी नही मालूम होगा।

चलिए वित्तमंत्री को जानकारी एकत्र करने देते हैं। तब तक हमें जो पता है वह हम आपको बता देते हैं। वर्ष 23 – 24 के लिए वित्तमंत्री ने गत एक मार्च को 3 लाख 14 हजार 25 करोड़ का बजट पेश किया था। जिस समय उन्होंने बजट पेश किया था तब राज्य पर करीब इतना ही कर्ज था। अपने बजट में उन्होंने मुख्यमंत्री की बहु चर्चित लाड़ली बहना योजना का भी उल्लेख किया था। बजट पेश होने के बाद सरकार कई बार बाजार से कर्ज उठा चुकी है।

इसके अलावा लाड़ली बहना तथा अन्य लोक लुभावन योजनाओं के लिए सरकार के अन्य विभागों के बजट में भी कटौती की जा चुकी है। करीब 18 हजार करोड़ रुपए की कटौती अन्य विभागों के बजट से की गई है। यह जानकारी भी जानकारी एकत्र कर रहे लोगों से ही मिली है।

मुख्यमंत्री ने 10 जुलाई को ही अपनी सवा करोड़ लाडली बहनों के खातों में एक एक हजार रुपए डाले है। उनके मुताबिक जल्दी ही यह राशि बढ़ाकर तीन हजार रुपए प्रति माह की जाएगी। मोटे अनुमान के मुताबिक अभी हर महीने करीब 1250 करोड़ रुपया बहनों के खाते में जा रहा है। कम से कम तीन महीने तो नियम से यह राशि बांटी जाएगी। उसके आगे की राम जाने! मुख्यमंत्री यह भी कह चुके हैं कि अगर बहनों के लिए उन्हें और पैसे की जरूरत पड़ी तो वे और कर्ज लेंगे।

ऐसे में बेचारे वित्त मंत्री भला सही जानकारी कहां से लाएं। क्योंकि पता नही मुख्यमंत्री कब और कितना कर्ज ले लें। इसलिए सब कुछ एकत्र करा रहे हैं। खुद की हां और न भी इसी एकत्रीकरण में शामिल है।

जब खाता बही रखने वाले विभाग का यह हाल है तो अन्य विभागों का अंदाज सहज ही लगाया जा सकता है। वे तो हमेशा “एकत्रीकरण” में ही लगे रहते हैं।

अब आप कोई सवाल मत पूछ लेना! हम तो इसीलिए कहते हैं कि अपना एमपी गज्जब है। बताइए है कि नहीं?

(साई फीचर्स)