वीआईपी कल्चर के तहत कुछ सत्ताधीशों को बाकी आबादी से आगे रखना और अनुचित विशेषाधिकार देना गलत है। जो भी सत्ता में आता है, इस परिपाटी को जारी रखता है, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि किस पार्टी की सरकार सत्ता में है। विगत दिनों नेपाल के संस्कृति, पर्यटन व नागरिक उड्डयन मंत्री योगेश भट्टाराई को विमान यात्रियों का गुस्सा झेलना पड़ा। मंत्री और उनके सहयोगियों ने नेपालगंज में जान-बूझकर एक बुद्धा एयर फ्लाइट को लेट कराया था। पिछले सप्ताह ठीक इसी तरह काठमांडू जाने वाली फ्लाइट को भद्रापुर में लगभग एक घंटे लेट करा दिया गया, जिससे यात्री बहुत नाराज हुए। एक अन्य घटना में एक एयरमैन को नोटिस थमा दिया गया, दरअसल पायलट को बोला गया था कि वह एयरक्राफ्ट का इंजन बंद कर ले, इंजन की आवाज के कारण प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली के स्वागत में मुश्किल आ रही थी। ऐसी संस्कृति की भर्त्सना होनी चाहिए। यदि हम ऐसी संस्कृति को फलने-फूलने की मंजूरी देंगे, तो आम यात्रियों के साथ भेदभाव बढ़ेगा और सेवाएं कुछ लोगों के स्वार्थ की पूर्ति में लग जाएंगी। घरेलू विमान सेवा में भी वीआईपी कल्चर व्याप्त है।
जबसे कम्युनिस्ट सरकार आई है, तब से ऐसे दर्जनों उदाहरण हैं। सत्ता में बैठे लोग खुद को आम आदमी से बहुत ऊपर समझने लगे हैं। वीआईपी को खुश करने के लिए न केवल विमान के इंजन को बंद किया गया, जब गरमी हुई, तो यात्रियों को उतार भी दिया गया। विमान से उतारे गए यात्रियों ने जैसे हंगामा किया, उससे स्पष्ट है कि आने वाले दिनों में यात्री वीआईपी कल्चर को बर्दाश्त नहीं करेंगे। हम भले ही आगे बढ़ गए हों, एक-दूसरे को प्रगतिशील दृष्टि से देखते हों, लेकिन हमारे देश में वर्षों से सामाजिक-आर्थिक स्तर पर असमानता की संस्कृति व्याप्त है। माओवादियों ने असमान व अन्यायी व्यवस्था को खत्म करने के लिए करीब 12 वर्षों तक संघर्ष किया, लेकिन इसके बावजूद असमानता और पक्षपात समाज में कायम हैं। सत्ता में बैठे लोग सहित सभी नागरिक जितनी जल्दी विशेषाधिकार की सीमा तय करेंगे, उतना अच्छा होगा। (द काठमांडू पोस्ट, नेपाल से साभार)
(साई फीचर्स)

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