माचिस का आविष्कार किसने, कब और कैसे किया?

माचिस का आविष्कार मानव के लिए बेहद सुविधाजनक आविष्कार है जिससे बिना मेहनत के आसानी से आग जलाई जा सकती है। आज के समय में माचिस का उपयोग हर घर में होता है लेकिन क्या आप जानते हैं माचिस का आविष्कार कैसे और कब हुआ और कौन है इसका आविष्कारकतो आइये आज आपको माचिस के आविष्कार की पूरी जानकारी देते हैं।

दरअसल आज के समय में जो माचिस इस्तेमाल की जाती है उसे बनाने के लिए पहले एक लकड़ी की तीली ली जाती है और उसके एक-चौथाई भाग को पिघले हुए मोम या गंधक में डुबोकर उस पर लाल फॉस्फोरस का मिश्रण लगाया जाता है लेकिन इस तीली से आग पैदा करने के लिए इसे माचिस की डिब्बी पर लगे रसायन पर रगड़ा जाता है तभी आग पैदा होती है।

लेकिन पहले की माचिस अलग होती थी। माचिस का आविष्कार 31 दिसंबर 1827 को हुआ था और इसके आविष्कारक है जॉन वाकर जो की ब्रिटेन के एक वैज्ञानिक थे। जॉन वाकर ने माचिस का आविष्कार तो किया लेकिन इनके द्वारा बनाई गई माचिस को जलाने में बहुत मेहनत लगती थी और इसे इस्तेमाल करना भी कठिन था इसके अलावा इसे इस्तेमाल करने के कई खतरे भी होते थे।

इस माचिस को बनाने के लिए लकड़ी की तीली पर एंटिमनी सल्फाइडपोटासियम क्लोरेटबबूल का गोंद या स्टार्च लगाया जाता था और इससे आग जलाने के लिए इसे रेगमाल पर रगड़ा जाता था जिससे मसाला जल उठता था। लेकिन ऐसे में इससे चिनगारियाँ छिटकतीं थी और छोटे-छोटे विस्फोट होते थे जो की सुरक्षित नहीं थे। इसके अलावा गंधक के जलने से इसकी गंध भी बहुत तेज और बुरी होती थी।

इस माचिस के खतरों से बचने के लिए इसमें कई सुधार किये गए और सन 1832 में फ्रांस में ऐंटीमनी सल्फाइड की जगह पर फॉस्फोरस का प्रयोग किया गया जिससे इसकी गंध दूर हो गई लेकिन फिर एक और परेशानी सामने आयी की इससे जो धुआं निकलता था वो बहुत विषैला था। इस विषैले धुंए से कारखानों में काम करने वाले कई श्रमिकों में रोग फैलने लगा और कई लोगों की मौत भी हो गई।

इसके बाद 1855 में स्वीडन के ट्यूबकर ने दूसरे रासायनिक पदार्थों के मिश्रण का इस्तेमाल कर एक सुरक्षित माचिस बनाई जिनका आज तक इस्तेमाल किया जा रहा है। भारत में माचिस का निर्माण 1895 से शुरू हुआ लेकिन ये माचिस विदेश से बनकर आती थी फिर 1927 में शिवकाशी में नाडार बंधुओं द्वारा स्वदेशी माचिस का उत्पादन शुरू किया गया जिसका पहला कारखाना अहमदाबाद में खोला गया।

(साई फीचर्स)