अल्ट्रासाउंड या सोनोग्राफी में हाई फ्रीक्वेंसी की ध्वनि तरंगें इस्तेमाल की जाती है और शरीर के अंदर के अंगों की तस्वीरें ली जाती है। इसमें ध्वनि तरंगों या गूंज का इस्तेमाल होता है ना कि रेडिएशन का, इसलिए ये स्कैन शरीर को नुकसान नहीं पहुँचाता है। शरीर के अंदरूनी अंगों और ऊतकों से जुड़ी समस्या को देखने के लिए ये टेस्ट किया जाता है। इस टेस्ट में बिना चीरा लगाए ही शरीर के अंदर के अंगों को देख पाना डॉक्टर के लिए संभव होता है। अल्ट्रासाउंड स्कैन का सबसे ज्यादा उपयोग प्रेग्नेंसी के लिए होता है। इसके अलावा जरुरत पड़ने पर इस स्कैन से शरीर के इन अंगों को भी देखा जाता है –
आँखें, मूत्राशय, पित्ताशय, लीवर, किडनी, अग्न्याशय, प्लीहा, थाइरॉइड, अंडाशय, अंडकोष, गर्भाशय, ब्लड वेसल्स। बायोप्सी जैसी प्रक्रियाओं में भी डॉक्टर को गाइड करने में अल्ट्रासाउंड सहायक होती है।
अल्ट्रासाउंड स्कैन की प्रक्रिया – शरीर के अंदर की गतिविधियों की तस्वीर लेने के लिए ध्वनि तरंगों का इस्तेमाल किया जाता है और ट्रांसड्यूसर एक ऐसा उपकरण होता है जो हाई फ्रीक्वेंसी की ध्वनि तरंगें छोड़ता है। ये तरंगें हमारे कानों द्वारा नहीं सुनी जाती। जैसे ही ये ध्वनि तरंगें शरीर के अंदर अंगों और ऊतकों की स्थिति जांचने के लिए गति करती है, उससे गूंज उत्पन्न होती है जिसकी मदद से तरंगों की गतिविधि को रिकॉर्ड कर लिया जाता है। ये सारी जानकारी तुरंत कंप्यूटर पर भेजी जाती है जो इससे सम्बंधित तस्वीरें स्क्रीन पर दिखाता है।
मुख्य रूप से अल्ट्रासाउंड स्कैन 3 प्रकार के होते हैं :
बाहरी अल्ट्रासाउंड स्कैन : इसमें प्रोब त्वचा के ऊपर घूमता है।
आंतरिक अल्ट्रासाउंड स्कैन : इसमें प्रोब शरीर के अंदर डाला जाता है।
एंडोस्कोपिक अल्ट्रासाउंड स्कैन : इसमें प्रोब को एक लम्बी लचीली ट्यूब के सिरे से जोड़ा जाता है और उसे शरीर के अंदर भेजा जाता है।
अल्ट्रासाउंड करवाने से पहले : अल्ट्रासाउंड किस अंग का होने वाला है, इसके आधार पर डॉक्टर द्वारा बताई गयी कुछ तैयारियां करनी जरुरी होती है जैसे – अल्ट्रासाउंड करवाने के पहले करीब 1 लीटर तक पानी पीना और अगर स्कैन डाइजेस्टिव सिस्टम का होना हो जिसमें लीवर और गॉल ब्लेडर भी शामिल हो तो अल्ट्रासाउंड स्कैन से कुछ घंटे पहले तक कुछ भी खाने से बचना चाहिए।
अल्ट्रासाउंड के दौरान क्या होता है : आमतौर पर अल्ट्रासाउंड स्कैन में 15 से 45 मिनट का समय लगता है लेकिन कई बार इसमें लगने वाला समय ज्यादा भी हो सकता है। इस स्कैन के दौरान व्यक्ति को मेज पर पीठ के बल लिटाया जाता है और स्कैन किये जाने वाले हिस्से को छोड़कर बाकी शरीर को ढ़क दिया जाता है। इसके बाद सोनोग्राफर द्वारा स्कैन किये जाने वाले हिस्से पर एक जैल लगाया जाता है और स्कैनर को हाथ से पकड़कर उस हिस्से पर घुमाया जाता है जिससे उस अंग की आंतरिक तस्वीरें कंप्यूटर पर प्राप्त हो जाती हैं।
अल्ट्रासाउंड करवाने के बाद जैल को उस हिस्से से हटा दिया जाता है और अगर स्कैन के दौरान कोई शामक दवा नहीं दी गयी हो तो खानपान सामान्य रखा जा सकता है।
अल्ट्रासाउंड के बाद : अल्ट्रासाउंड स्कैन के बाद ली गयी तस्वीरों के आधार पर रिपोर्ट बनायी जाती है जिसे देखकर डॉक्टर शरीर के उस हिस्से से जुड़ी असामान्यताओं को देखता है और अगर सम्बंधित अंग में कोई असामान्य गतिविधि दिखाई देती है तो उसके इलाज से जुड़ी जानकारी आपसे साझा करते हैं ताकि समय रहते ऐसी समस्या को आसानी से दूर किया जा सके।
टेक्नोलॉजी में तेजी से होने वाले सुधार के चलते अब अल्ट्रासाउंड मशीनें छोटी और पोर्टेबल हो गयी है जिसके कारण ये स्कैन करना और भी सरल हो गया है।
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