गुरु पूर्णिमा का ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व जानिए विस्तार से . . .
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गुरू पूर्णिमा पर्व को भारत देश में परंपरागत उल्लास, उत्साह, उमंग एवं श्रृद्धा के साथ मनाया जाता है। इन दिन शिष्यों के द्वारा अपने गुरूओं को प्रणाम कर उनके प्रति कृतघ्नता प्रकट की जाती है। आईए जानते हैं गुरु पूर्णिमा का ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व जानिए विस्तार से . . .
अगर आप जगत को रोशन करने वाले भगवान भास्कर, भगवान विष्णु जी देवाधिदेव महादेव ब्रम्हाण्ड के राजा भगवान शिव एवं भगवान श्री कृष्ण जी की अराधना करते हैं और अगर आप विष्णु जी एवं भगवान कृष्ण जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय सूर्य देवा, जय विष्णु देवा, ओम नमः शिवाय, जय श्री कृष्ण, हरिओम तत सत, ओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः लिखना न भूलिए।
सबसे पहले जानते हैं महर्षि वेदव्यास का जन्मदिवस के बारे में,
गुरु पूर्णिमा को महर्षि वेदव्यास की जयंती के रूप में मनाया जाता है। वेदव्यास को गुरुओं के गुरु माना जाता है। इन्होंने ही चारों वेदों का वर्गीकरण किया, 18 पुराणों की रचना की और महाभारत जैसे महाकाव्य की रचना की। इसके अतिरिक्त, श्रीमद्भगवद्गीता भी महाभारत के भीष्म पर्व में उन्हीं की रचना का भाग है। इस कारण यह दिन व्यास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है।
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अब जानिए महात्मा गौतम बुद्ध और गुरु पूर्णिमा के संबंध को,
गुरु पूर्णिमा बौद्ध परंपरा में भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। मान्यता है कि भगवान बुद्ध ने बोधगया में ज्ञान प्राप्ति के बाद अपना प्रथम उपदेश सारनाथ में इसी दिन दिया था। यही दिन उनके द्वारा धम्मचक्र प्रवर्तन अर्थात धर्म के प्रचार की शुरुआत का दिन माना जाता है।
महर्षि पतंजलि और योग परंपरा जानिए,
योग परंपरा में गुरु पूर्णिमा का संबंध महर्षि पतंजलि और आदि गुरु भगवान शंकर से भी जोड़ा जाता है। योगियों और साधकों के लिए यह दिन आत्मावलोकन, संयम और गुरु की कृपा से साधना में प्रगति का प्रतीक है।
गुरु की महिमा: शास्त्रों में क्या उल्लेख है यह जानिए,
भारतीय शास्त्रों और उपनिषदों में गुरु की महिमा अत्यधिक विस्तार से वर्णित है। गुरुरब्रम्हा गुररविष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः। गुरु साक्षात् परब्रम्ह तस्मै श्रीगुरवे नमः – यह श्लोक गुरु को ईश्वर के समकक्ष मानता है। गुरु ही वह शक्ति है जो शिष्य को आत्मज्ञान की ओर ले जाती है।
मुण्डकोपनिषद में भी कहा गया है –
तद्विज्ञानार्थं स गुरुमेवाभिगच्छेत समित्पाणिः श्रौतियं ब्रम्हनिष्ठम।
अर्थात् ज्ञान प्राप्ति के लिए श्रद्धा से युक्त होकर ब्रम्हनिष्ठ गुरु के पास जाना चाहिए।
गुरु – शिष्य परंपराः भारत की सांस्कृतिक नींव है,
भारत में गुरु – शिष्य परंपरा को आध्यात्मिक और नैतिक विकास की रीढ़ माना गया है। इस परंपरा में ज्ञान केवल पुस्तकों से नहीं, बल्कि आचरण, जीवन – शैली और अनुभव से प्राप्त होता है।
प्राचीन गुरुकुल प्रणाली जानिए,
वेदिक युग में शिष्य अपने गुरु के आश्रम में निवास कर शिक्षा ग्रहण करते थे। वहाँ जीवन के विविध पहलुओं जैसे – धर्म, राजनीति, आयुर्वेद, खगोलशास्त्र, व्याकरण, धनुर्विद्या आदि की शिक्षा दी जाती थी। शिक्षा केवल किताबी ज्ञान तक सीमित नहीं थी, बल्कि चरित्र निर्माण और अनुशासन को भी विशेष महत्व दिया जाता था।
उदाहरण स्वरूप गुरु – शिष्य जोड़ियों में
श्रीकृष्ण और सांदीपनि मुनि
एकलव्य और द्रोणाचार्य
राम और वशिष्ठ
शंकराचार्य और गोविंद भगवतपाद
इन उदाहरणों से गुरु – शिष्य संबंधों की महानता और उसकी प्रभावशीलता स्पष्ट होती है।
गुरु पूर्णिमा के आयोजन और परंपराएं जानिए
गुरु पूर्णिमा का पर्व भारत सहित नेपाल, तिब्बत, श्रीलंका, थाईलैंड, म्यांमार आदि देशों में विविध रूपों में मनाया जाता है।
गुरु पूर्णिमा के दिन मंदिरों, मठों और आश्रमों में विशेष पूजा, प्रवचन और सत्संग का आयोजन किया जाता है। शिष्य अपने गुरु के चरणों में पुष्प अर्पित करते हैं, चरण वंदना करते हैं और आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
कई श्रद्धालु इस दिन उपवास करते हैं। यह उपवास केवल शारीरिक संयम नहीं बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक शुद्धि का माध्यम माना जाता है।
विद्यालयों, महाविद्यालयों और सांस्कृतिक संस्थाओं में गुरु वंदना, नाटक, कविता पाठ, भाषण आदि के माध्यम से गुरु की महिमा का गुणगान किया जाता है।
बौद्ध अनुयायी इस दिन विशेष पूजा करते हैं और भगवान बुद्ध के उपदेशों को स्मरण करते हैं। भिक्षुओं को वस्त्र और दान देना भी इस दिन की परंपरा है।
गुरु का आधुनिक परिप्रेक्ष्य में महत्व जानिए,
आज के प्रतिस्पर्धी और तकनीकी युग में गुरु का स्वरूप बदला है लेकिन उनका महत्व कम नहीं हुआ। अब गुरु केवल आध्यात्मिक या धार्मिक ही नहीं, बल्कि शिक्षक, मार्गदर्शक, प्रेरक, कोच, ट्रेनर, और यहाँ तक कि अभिभावक के रूप में भी भूमिका निभा रहे हैं।
शिक्षा क्षेत्र में गुरु की भूमिका जानिए,
शिक्षक विद्यार्थियों का मानसिक और बौद्धिक विकास करते हैं। वे विद्यार्थियों को आत्मनिर्भर और संस्कारित नागरिक बनने की दिशा में प्रेरित करते हैं।
करियर और कौशल मार्गदर्शक हैं गुरू,
आज के युग में करियर कोच, लाइफ कोच, मेंटर और ट्रेनर भी गुरु की भूमिका में आते हैं। वे युवाओं को दिशा देने का कार्य करते हैं।
डिजिटल युग के गुरु को भी जान लीजिए,
ऑनलाइन प्लेटफार्म्स जैसे यूट्यूब, कोर्स वेबसाइट्स, सोशल मीडिया आदि पर अनेक विशेषज्ञ ज्ञान बाँट रहे हैं। इनका भी अपना एक गुरु रूप है।
आध्यात्मिक गुरु और मानसिक शांति का संबंध जानिए,
तेजी से बदलते समय में लोग तनाव, चिंता और जीवन की अर्थहीनता से जूझ रहे हैं। ऐसे में आध्यात्मिक गुरु ध्यान, साधना, सेवा और जीवन मूल्य सिखाकर मानसिक शांति प्रदान करते हैं।
समाज निर्माण में गुरु की भूमिका क्या है यह जानिए,
गुरु केवल व्यक्तिगत जीवन को ही नहीं, बल्कि पूरे समाज को दिशा देते हैं। वे विचारों का निर्माण करते हैं, संस्कारों का संचार करते हैं और समाज में नैतिकता, ईमानदारी और अनुशासन का संचार करते हैं। इसके उदहारणों में . . .
महात्मा गांधी ने श्रीमदभगवदगीता को अपना गुरु माना और सत्याग्रह का मार्ग चुना।
डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने अपने शिक्षक की प्रेरणा से विज्ञान की दिशा में कार्य किया।
स्वामी विवेकानंद ने रामकृष्ण परमहंस को गुरु मानकर आत्मबोध पाया और राष्ट्र सेवा को जीवन का लक्ष्य बनाया।
गुरु पूर्णिमा पर आत्मचिंतन का अवसर
गुरु पूर्णिमा केवल बाहरी पूजा – अर्चना का अवसर नहीं है, बल्कि यह आत्मनिरीक्षण, आत्मचिंतन और आत्मविकास का पर्व है। इस दिन हमें विचार करना चाहिए –
क्या हम जीवन में किसी सच्चे मार्गदर्शक को खोज पाए हैं?
क्या हमने अपने जीवन में गुरु के प्रति समर्पण भाव रखा है?
क्या हमने गुरु द्वारा दिए गए ज्ञान को आत्मसात किया है?
क्या हम स्वयं दूसरों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन सकते हैं?
गुरु पूर्णिमा पर संदेश जानिए
विद्यार्थियों के लिए संदेश है,
गुरु के प्रति आदर, अनुशासन और जिज्ञासा रखो। ज्ञान को केवल परीक्षा तक सीमित न करो, उसे जीवन का हिस्सा बनाओ।
अभिभावकों के लिए संदेश है,
अपने बच्चों को अच्छे गुरु और शिक्षा के संसाधन उपलब्ध कराएं। उन्हें जीवन के सच्चे मूल्यों से जोड़ें।
समाज के लिए संदेश है,
गुरुजनों का सम्मान करें। शिक्षकों को उचित वेतन, सामाजिक प्रतिष्ठा और सुरक्षा दें। ज्ञान फैलाने वालों को प्रोत्साहित करें।
गुरु पूर्णिमा केवल एक पर्व नहीं, बल्कि एक चेतना है, एक परंपरा है जो हमें बताती है कि जीवन में मार्गदर्शक का क्या महत्व है। यह वह अवसर है जब हम न केवल अपने गुरुओं को स्मरण करते हैं, बल्कि जीवन को सही दिशा देने के लिए स्वयं को भी जागरूक करते हैं।
इस गुरु पूर्णिमा पर हम सभी यह संकल्प लें कि हम अपने जीवन में सच्चे गुरु की खोज करेंगे, उनके दिखाए मार्ग पर चलेंगे और स्वयं को, समाज को और राष्ट्र को उन्नत करने की दिशा में कार्य करेंगे।
गुरु पूर्णिमा एक ऐसा पावन पर्व है जो हमें गुरु – शिष्य परंपरा के महत्व को याद दिलाता है। यह दिन हमें अपने गुरुओं के प्रति श्रद्धा और कृतज्ञता व्यक्त करने का अवसर प्रदान करता है। गुरु ही वह शक्ति हैं जो हमें अज्ञानता से ज्ञान की ओर, असत्य से सत्य की ओर और मृत्यु से अमरता की ओर ले जाते हैं। आइए, इस गुरु पूर्णिमा पर हम सभी अपने गुरुओं का सम्मान करें, उनके दिखाए मार्ग पर चलने का संकल्प लें और उनके आशीर्वाद से अपने जीवन को सफल बनाएं। आप सभी को गुरु पूर्णिमा की बहुत बहुत मंगल कामनाएं, हरि ओम,
अगर आप जगत को रोशन करने वाले भगवान भास्कर, भगवान विष्णु जी देवाधिदेव महादेव ब्रम्हाण्ड के राजा भगवान शिव एवं भगवान श्री कृष्ण जी की अराधना करते हैं और अगर आप विष्णु जी एवं भगवान कृष्ण जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय सूर्य देवा, जय विष्णु देवा, ओम नमः शिवाय, जय श्री कृष्ण, हरिओम तत सत, ओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः लिखना न भूलिए।
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