जानिए साल का सबसे बड़ा दिन ‘ग्रीष्म संक्रांति‘ कब है इस साल . . .
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क्या आपने कभी सोचा है कि साल में एक दिन ऐसा आता है जब सूरज सबसे देर तक हमारे साथ रहता है, और रात सबसे छोटी होती है? जी हाँ, हम बात कर रहे हैं साल के सबसे बड़े दिन की, जिसे वैज्ञानिक भाषा में ग्रीष्म संक्रांति के नाम से जाना जाता है।
यह खगोलीय घटना उत्तरी गोलार्ध में आमतौर पर 20 या 21 जून को होती है। इस दिन, पृथ्वी का उत्तरी गोलार्ध सूर्य की ओर सबसे अधिक झुका होता है, जिसके कारण सूर्य की किरणें कर्क रेखा पर सीधी पड़ती हैं। इसका परिणाम यह होता है कि दिन की अवधि अधिकतम हो जाती है और रात सबसे छोटी हो जाती है। दक्षिणी गोलार्ध में, ठीक इसके विपरीत होता है, जहाँ इस दिन शीतकालीन संक्रांति होती है और रात सबसे लंबी होती है।
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अगर आप जगत को रोशन करने वाले भगवान भास्कर, भगवान विष्णु जी देवाधिदेव महादेव ब्रम्हाण्ड के राजा भगवान शिव एवं भगवान श्री कृष्ण जी की अराधना करते हैं और अगर आप विष्णु जी एवं भगवान कृष्ण जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय सूर्य देवा, जय विष्णु देवा, ओम नमः शिवाय, जय श्री कृष्ण, हरिओम तत सत, ओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः लिखना न भूलिए।
साल का सबसे बड़ा दिन 21 जून होता है, जिसे ग्रीष्म संक्रांति भी कहा जाता है। इस दिन उत्तरी गोलार्ध में सबसे लंबा दिन और सबसे छोटी रात होती है।
21 जून को दिन बड़ा होने के पीछे वैज्ञानिक कारण यह है कि इस दिन सूर्य की किरणें उत्तरी गोलार्ध पर अधिक समय तक पड़ती हैं। पृथ्वी 23 दशमलव 5 डिग्री के कोण पर झुकी हुई है, और 21 जून को उत्तरी गोलार्ध सूर्य की ओर अधिक झुका हुआ होता है। इसके कारण, उत्तरी गोलार्ध में सूर्य की किरणें अधिक समय तक पड़ती हैं, जिससे दिन लंबा हो जाता है। यह दिन न केवल खगोलीय रूप से महत्वपूर्ण है, बल्कि कई संस्कृतियों और धर्मों में भी इसका विशेष महत्व है।
हर साल 21 जून को उत्तरी गोलार्ध में साल का सबसे लंबा दिन माना जाता है। इस दिन को ग्रीष्म संक्रांति के नाम से भी जाना जाता है। यह सिर्फ एक खगोलीय घटना नहीं है, बल्कि दुनिया भर की कई संस्कृतियों और धर्मों में इसका गहरा महत्व है। आइए जानते हैं कि 21 जून को दिन सबसे बड़ा क्यों होता है और इसके पीछे वैज्ञानिक व धार्मिक कारण क्या हैं।
इस दिन का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व जानिए,
सदियों से, ग्रीष्म संक्रांति को दुनिया भर की विभिन्न संस्कृतियों और धर्मों में एक विशेष दिन के रूप में मनाया जाता रहा है। यह दिन अक्सर नई शुरुआत, उर्वरता और सूर्य के सम्मान से जुड़ा होता है।
प्राचीन सभ्यताओं के महत्व को जानिए, मिस्र, माया और स्टोनहेंज जैसी प्राचीन सभ्यताओं ने इस दिन को विशेष महत्व दिया। स्टोनहेंज, इंग्लैंड में एक रहस्यमय पत्थर संरचना, इस दिन सूर्याेदय के साथ पूरी तरह से संरेखित होती है, जो प्राचीन लोगों द्वारा इस खगोलीय घटना के प्रति उनके गहरे ज्ञान और सम्मान को दर्शाता है।
त्यौहार और परंपराओं के बारे में जानिए, दुनिया के कई हिस्सों में इस दिन को विभिन्न त्यौहारों और परंपराओं के साथ मनाया जाता है। स्वीडन में मिडसमर एक बहुत बड़ा उत्सव है, जहाँ लोग प्रकृति का जश्न मनाते हैं, नृत्य करते हैं और फूलों से सजावट करते हैं। इसी तरह, कुछ अन्य संस्कृतियों में अग्नि अनुष्ठान और कटाई से संबंधित उत्सव भी आयोजित किए जाते हैं।
भारत में, यद्यपि इसे विशिष्ट रूप से ष्सबसे बड़े दिनष् के रूप में नहीं मनाया जाता, सूर्य का विशेष महत्व है। योग और ध्यान से जुड़े कई अभ्यास सूर्याेदय के साथ जुड़ते हैं, और कई धार्मिक अनुष्ठानों में सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। यह दिन ज्योतिषीय रूप से भी महत्वपूर्ण माना जाता है।
इस दिन के सबसे छोटे होने का वैज्ञानिक दृष्टिकोण जानिए,
वैज्ञानिक रूप से, ग्रीष्म संक्रांति पृथ्वी के अक्षीय झुकाव का परिणाम है। पृथ्वी अपनी धुरी पर 23।5 डिग्री झुकी हुई है, और यही झुकाव वर्ष भर विभिन्न मौसमों का कारण बनता है। ग्रीष्म संक्रांति वह क्षण है जब उत्तरी ध्रुव सूर्य की ओर अपनी अधिकतम झुकी हुई स्थिति में होता है। यह एक खगोलीय घटना है जो हमें ब्रम्हांड में पृथ्वी की गति और स्थिति की याद दिलाती है।
वैज्ञानिक कारण क्या हो सकते हैं इस दिन को लेकर यह जानिए,
सबसे पहले जानिए पृथ्वी के झुकाव के बारे में, हमारी पृथ्वी अपनी धुरी पर लगभग 23 दशमलव 5 डिग्री झुकी हुई है। यह झुकाव ही मौसमों के बदलने का प्रमुख कारण है।
सूर्य की स्थिति के बारे में जानिए, जब पृथ्वी सूर्य के चारों ओर अपनी कक्षा में घूमती है, तो 21 जून के आसपास उत्तरी गोलार्ध सूर्य की ओर सबसे अधिक झुका होता है। इस स्थिति में, सूर्य की किरणें कर्क रेखा ) पर सीधे पड़ती हैं, जो उत्तरी गोलार्ध में स्थित है।
सबसे लंबा दिन कब और क्यों यह जानिए, चूंकि सूर्य उत्तरी गोलार्ध पर सीधे चमक रहा होता है, इसलिए दिन का प्रकाश अधिक समय तक रहता है और रात छोटी होती है। यही कारण है कि 21 जून को उत्तरी गोलार्ध में दिन सबसे लंबा होता है और दक्षिणी गोलार्ध में दिन सबसे छोटा (शीतकालीन संक्रांति) होता है। आर्कटिक वृत्त के ऊपर तो कुछ स्थानों पर 24 घंटे तक सूर्य दिखाई देता है, जिसे मध्यरात्रि सूर्य कहा जाता है।
यह हमें क्या सिखाता है? यह जानिए,
साल का सबसे बड़ा दिन हमें प्रकृति के अद्भुत चक्र और समय के महत्व की याद दिलाता है। यह दिन हमें यह सोचने का अवसर देता है कि कैसे खगोलीय घटनाएं हमारे जीवन और संस्कृतियों को प्रभावित करती हैं। यह हमें यह भी बताता है कि प्रकृति में हर चीज का एक संतुलन है – जैसे सबसे लंबे दिन के बाद धीरे-धीरे दिन छोटे होने लगते हैं, और रातें लंबी होती जाती हैं, जो हमें शरद ऋतु और अंततः सर्दियों की ओर ले जाती हैं।
तो, अगली बार जब आप साल के सबसे बड़े दिन का अनुभव करें, तो थोड़ा रुककर इस अद्भुत खगोलीय घटना और इसके गहरे अर्थों पर विचार करें। यह सिर्फ एक लंबा दिन नहीं, बल्कि प्रकृति के भव्य नृत्य का एक शानदार प्रदर्शन है!
धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व जानिए,
ग्रीष्म संक्रांति का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व सदियों से चला आ रहा है। दुनिया भर की विभिन्न सभ्यताओं में इस दिन को फसल, उर्वरता, प्रकाश और नई शुरुआत से जोड़ा गया है।
हिंदू धर्म में योग और आध्यात्मिकता भी इससे जुड़ी हुई है। हिंदू धर्म में 21 जून का विशेष महत्व है। इस दिन को योग दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान शिव ने इस दिन आदियोगी (पहले योगी) के रूप में ज्ञान का प्रसार किया था। योग के अभ्यास के लिए यह दिन बहुत ही शुभ माना जाता है, क्योंकि इस दौरान ऊर्जा का स्तर उच्चतम होता है।
स्वदेशी संस्कृतियों का योगदान जानिए, दुनिया भर की कई स्वदेशी संस्कृतियों में ग्रीष्म संक्रांति को फसल, प्रकृति और सामुदायिक उत्सवों के साथ जोड़ा जाता है। यह दिन अक्सर नृत्य, संगीत और दावतों के साथ मनाया जाता है।
जानिए आखिर क्यों साथ छोड़ देती है परछाई इस दिन,
दरअसल, कर्क रेखा पर सूर्य के आने की वजह से यह स्थिति बनती है। कर्क रेखा पर सूर्य एकदम लंबवत यानी सीधा आ जाता है, जिसकी वजह से धरती पर उसका सीधा प्रकाश आता है। इस दिन सामान्य दिनों की तुलना में धरती को सूर्य की ऊर्जा 30 प्रतिशत अधिक मिलती है।
कर्क संक्रांति के बाद बनती है स्थिति जानिए,
सूर्य की किरणें 21 जून को करीब 15 से 16 घंटे तक धरती पर पड़ती हैं। यह स्थित कर्क संक्रांति के बाद बनती है, जब पृथ्वी का अक्षीय झुकाव सूर्य की ओर अधिकतम हो जाती है। कर्क संक्रांति इस साल 16 जुलाई 2025 को बुधवार के दिन होगी, जब सूर्य मिथुन राशि से निकलकर कर्क राशि में प्रवेश करेगा।
बताते चलें कि कर्क संक्रांति के समय पर सूरज की ओर पृथ्वी अपनी धुरी पर 23 डिग्री और 26 मिनट तक झुकी रहती है। धरती के सूर्य की तरफ झुकने की यह अधिकतम सीमा है।
इसके उपरांत फिर छोटे होने लगेंगे दिन, रातें होंगी लंबी,
इस खगोलीय घटना के बाद से यानी 21 जून के बाद से सूर्य दक्षिण की ओर बढ़ने लगेगा। इसे सूर्य का दक्षिणायन होना माना जाता है। इस तारीख के बाद से दिन छोटे होने लगेंगे और रातें लंबी होनी शुरू हो जाएंगी। 21 सितंबर आते-आते दिन और रात एक बराबर हो जाते हैं। हरि ओम,
अगर आप जगत को रोशन करने वाले भगवान भास्कर, भगवान विष्णु जी देवाधिदेव महादेव ब्रम्हाण्ड के राजा भगवान शिव एवं भगवान श्री कृष्ण जी की अराधना करते हैं और अगर आप विष्णु जी एवं भगवान कृष्ण जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय सूर्य देवा, जय विष्णु देवा, ओम नमः शिवाय, जय श्री कृष्ण, हरिओम तत सत, ओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः लिखना न भूलिए।
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आशीष कौशल का नाम महाराष्ट्र के विदर्भ में जाना पहचाना है. पत्रकारिता के क्षेत्र में लगभग 30 वर्षों से ज्यादा समय से सक्रिय आशीष कौशल वर्तमान में समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया के नागपुर ब्यूरो के रूप में कार्यरत हैं .
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