ये हैं विघ्न विनाशक भगवान गणेश के आठ अवतार, अब तक के अवतारों के बारे में विस्तार से . . .

जानिए लंबोदर भगवान श्री गणेश को क्यों कहा जाता है अष्ट विनायक . . .
बारिश के माह में भाद्रपद का हिन्दी मास आता है। भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को गणेश चतुर्थी का पर्व मनाया जाता है। इस बार यह शुभ तिथि शनिवार 7 सितंबर 2024 को है। इस तिथि को सिद्धि विनायक व्रत के नाम से भी जाना जाता है। पुराणों के अनुसार, इस दिन प्रथम पूज्य भगवान गणेश का जन्म हुआ था इसलिए देशभर में इस पर्व को बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। गणेश चतुर्थी के अवसर पर भगवान गणेश की प्रतिमा की स्थापना की जाती है और अनंत चतुर्दशी के दिन भगवान श्री गणेश को अगली बार जल्दी आने की बात कहकर बिदा किया जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं भगवान गणेश ने भी समय-समय पर धर्म की रक्षा के लिए आठ अवतार लिए हैं। इन्हीं आठ अवतारों के कारण भगवान श्री गणेश को अष्ट विनायक भी कहा गया है।
ये आठ अवतार ही अष्टविनायक कहलाते हैं। आइए आज जानते हैं अष्ट विनायक भगवान श्री गणेश के आठ अवतारों के बारे में विस्तार से,
कथा जानने से पहले अगर आप बुद्धि के दाता भगवान गणेश की अराधना करते हैं और अगर आप एकदंत भगवान गणेश के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय गणेश लिखना न भूलिए।
सबसे पहले बात करें वक्रतुंड अवतार की। जानकार विद्वानों का मत है कि भगवान गणेश ने वक्रतुंड अवतार मत्सरासुर नामक राक्षस का वध करने के लिए लिया था। मत्सरासुर भगवान शिव का भक्त और उसने भगवान शिव से वरदान पा लिया था कि वह किसी भी योनि के प्राणी से नहीं डरेगा। मत्सरासुर के दो पुत्र थे और दोनों ही बहुत अहंकारी एवं अत्याचारी थे। वरदान पाने के बाद मत्सरासुर ने शुक्राचार्य की आज्ञा से देवताओं को परेशान और प्रताड़ित करना आरंभ कर दिया। इस आतंक से मुक्ति के लिए भगवान गणेश ने वक्रतुंड अवतार लेकर मत्सरासुर को पराजित किया और उसके दोनों पुत्रों का संहार किया।
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अब आपको बताते हैं एकदंत अवतार के बारे में . . . जानकार विद्वानों का कहना है कि एक बार महर्षि च्यवन अपने तपोबल के माध्यम से मद की रचना की थी और वह महर्षि का पुत्र भी कहलाया। मद ने दैत्य गुरु शुक्राचार्य से दीक्षा लेकर देवताओं पर अत्याचार करने लगा। तब सभी देवताओं ने भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र का आव्हान किया, तब भगवान ने एकदंत के रूप में अवतार लिया। एकदंत भगवान ने मदासुर को युद्ध में पराजित कर दिया और देवताओं को अभय का वरदान दिया।
महोदर अवतार की कथा कुछ इस प्रकार है। दैत्य गुरु शुक्राचार्य ने मोहासुर नामक एक राक्षस को अस्त्र-शस्त्र की शिक्षा-दीक्षा देकर देवताओं के विरुद्ध लड़ने के लिए तैयार किया। मोहासुर के अत्याचारों से परेशानी देवी-देवताओं मिलकर भगवान गणेश का आव्हान किया। तब गणेशजी ने महोदर अवतार लिया। महोदर का अर्थ होता है बड़े पेट वाला। महोदर अपने मूषक पर सवार होकर मोहासुर से युद्ध करने पहुंचे। तभी मोहासुर ने बिना युद्ध किए महोदर अवतार को अपना इष्ट बना लिया।
अब जानिए विकट अवतार के बारे में। विकट अवतार की कथा के संबंध में कहा जाता है कि एक बार भगवान विष्णु ने जलंधर के विनाश के लिए उसकी पत्नी वृंदा का सतीत्व भंग कर दिया था। उसके बाद जलंधर का एक पुत्र हुआ कामासुर। कामासुर ने भगवान शिव की कठोर तपस्या की थी, जिससे प्रसन्न होकर महादेव ने त्रिलोक विजय का वरदान दे दिया था। वरदान पाकर कामासुर ने देवताओं पर अत्याचार करना आरंभ कर दिया। कामासुर से परेशान होकर सभी देवताओं ने भगवान गणेश का ध्यान किया और राक्षस से मुक्ति की प्रार्थना की। तब भगवान गणेश ने विकट अवतार लिया। इस अवतार में भगवान गणेश मोर पर विराजित होकर आए और कामासुर को पराजित कर दिया।
इसके उपरांत आपको बताते हैं भगवान श्री गणेश के गजानन अवतार के संबंध में। गजानन अवतार के संबंध में कहा जाता है कि भगवान कुबेर के लोभ से लोभासुर का जन्म हुआ था। लोभासुर दैत्य गुरु शुक्राचार्य की शरण में गया और वहां से शिक्षा ली। शुक्राचार्य के कहने पर लोभासुर ने भगवान शिव से वरदान पाने के लिए कठोर साधना की। साधना से प्रसन्न होकर देवाधिदेव महादेव भगवान शिव ने लोभासुर को निर्भय होने का वरदान दे दिया। वरदान पाकर लोभासुर ने सभी लोकों पर कब्जा जमा लिया। तब सभी ने गणेशजी की प्रार्थना की और भगवान गणेश ने गजानन के रूप में अवतार लिया। इसके बाद शुक्राचार्य की सलाह पर लोभासुर ने बिना युद्द किए पराजय स्वीकार कर ली।
आईए अब जानते हैं लंबोदर अवतार की कथा के संबंध में। एक बार क्रोधासुर नामक राक्षस ने सूर्यदेव की तपस्या की। तपस्या से प्रसन्न होकर सूर्यदेव ने क्रोधासुर को ब्रम्हांड पर विजय पाने का अवतार दे दिया। इसके बाद सभी देवी-देवता क्रोधासुर से भयभीत हो गए और भगवान गणेश का आह्वान किया। देवताओं की प्रार्थना को सुनकर भगवान गणेश ने लंबोदर का अवतार लिया। भगवान लंबोदर ने क्रोधासुर को रोक लिया और समझाया कि ब्रम्हाांड पर कभी भी विजय प्राप्त नहीं कर सकते और ना ही अजेय योद्धा हो सकते। क्रोधासुर ने फिर अपना अभियान रोक दिया और हमेशा के लिए पाताल लोक में चला गया।
अब जानिए विघ्नराज अवतार की कथा के बारे में। एक बार माता पार्वती अपनी सखियों के साथ कैलाश पर्वत पर टहल रहीं थी, तभी बातचीत में हंसी आ गई। उनकी हंसी से एक विशाल पुरुष की उत्पत्ति हुई और उन्होंने उसका नाम मम रख दिया। मम वन में तप करने चला गया, जहां उसकी मुलाकात शंबासुर से हुई। शंबासुर ने मम को कई आसुरी शक्तियां दीं। इसके बाद मम ने गणेशजी को प्रसन्न करके ब्रम्हांड का राज मांग लिया। जब इसके बारे में शुक्राचार्य को जानकारी मिली तब उन्होंने मम को दैत्यराज का पद दे दिया। पद मिलने के बाद मम ने देवताओं को पकड़कर कारागार में डाल दिया। तब देवताओं ने भगवान गणेश का आव्हान किया और उनको अपनी समस्याओं के बारे में अवगत कराया। भगवान गणेश ने विघ्नराज अवतार का अवतार लिया और फिर ममासुर का मान मर्दन करते हुए देवताओं को बंदी गृह से छुड़वाया।
धूम्रवर्ण अवतार की कथा कुछ इस प्रकार है। एक बार ब्रम्हाजी ने सूर्य भगवान को कर्म राज्य का स्वामी बना दिया, इससे उनके अंदर घमंड आ गया। राज करते हुए सूर्य भगवान को छींक आ गई, जिससे एक दैत्य की उत्पत्ति हुई। छींक से उत्पन्न हुए दैत्य का नाम अहम पड़ा। अहम दैत्य गुरु शुक्राचार्य के पास चला गया और वह अहंतासुर बन गया। इसके बाद उसने खुद का राज्य भी बना लिया और भगवान गणेश की पूजा करके वरदान भी प्राप्त कर लिया। वरदान पाकर अहंतासुर देवताओं पर अत्याचार करने लगा, तब सभी ने भगवान गणेश को आव्हान किया। देवताओं के आव्हान पर भगवान गणेश ने धूर्मवर्ण का अवतार लिया। धूर्मवर्ण का रंग धुएं जैसा था और वे काफी विकराल थे। उनके एक हाथ में भीषण पाश थे, जिसमें से भयंकर ज्वालाएं निकल रही थीं। धूर्मवर्ण ने अहंतासुर का अंत किया और देवताओं को राहत दी।
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(साई फीचर्स)