आखिर कहां सुरक्षित रखा हुआ है भगवान श्री गणेश जी का कटा हुआ सिर?

क्या आपको पता है कि भगवान श्री गणेश जी का कटा हुआ मस्तक कहां गया?

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देवाधिदेव महादेव भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र भगवान श्री गणेश का मस्तक कटने और उनके शरीर में मस्तक के स्थान पर हाथी का सिर लगाए जाने की कथाएं तो आपने सुनी होंगी किन्तु आप शायद यह नहीं जानते होंगे कि भगवान श्री गणेश के जिस सिर को काट दिया गया था वह कहां गया? उसका क्या हुआ? आज हम आपको इसी बारे में बताने जा रहे हैं।

अगर आप बुद्धि के दाता भगवान गणेश की अराधना करते हैं और अगर आप एकदंत भगवान गणेश के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय गणेश देवा लिखना न भूलिए।

गणेश पुराण के अनुसार पार्वतीजी के पुण्यक व्रत के प्रभाव से जब परमात्मा श्रीकृष्ण ही उनके यहां पुत्र रूप में अवतरित हुए तो समस्त देवता गौरीनन्दन गणेश का दर्शन करने के लिए कैलाश पर पधारे। शनिदेव भी अपने इष्ट के दर्शन के लिए आए। जब पार्वतीजी ने शनिदेव को बालक के दर्शन के लिए कहा तो शनिदेव ने अपनी दृष्टि नीचे झुका ली क्योंकि उनकी पत्नी ने ही उन्हें शाप दिया था तुम जिसकी ओर दृष्टिपात करोगे, वही नष्ट हो जायगा।

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इसलिए शनिदेव मन-ही-मन सोच रहे थे कि मैं पार्वतीनन्दन को देखूं या न देखूं। यदि मैं इस दुर्लभ बालक की ओर देखूंगा तो निश्चय ही इसका अनिष्ट हो जायगा। लेकिन जगन्माता पार्वती की आज्ञा कैसे टाली जाए। इसलिए उन्होंने अपने वाम नेत्र के कोने से ही पार्वतीनन्दन की ओर देखा। शनिदेव की शापग्रस्त दृष्टि पड़ते ही भगवान शिव और पार्वतीजी के लाड़ले पुत्र का मस्तक धड़ से अलग हो गया और वहां से अदृश्य होकर गोलोक में अपने अभीष्ट परमात्मा श्रीकृष्ण में लीन हो गया।

इसी तरह भगवान गणेश जी की एक कथा बहुत ही रोचक है। एक बार भगवान शिव ने क्रोधवश गणेशजी का सिर उस समय धड़ से अलग कर दिया था, जब उन्होंने मां पार्वती को मिलने से रोका था। तब माता पार्वती बहुत दुखी हुई थीं। जब उन्होंने शिवजी से गणेशजी को जीवित करने की विनती की। शिवजी ने ब्रम्हा जी से एक हाथी का सिर लाने को कहा और उसे गणेशजी के धड़ से जोड़ दिया।

जानकार विद्वानों का कहना है कि पौराणिक कथा के अनुसार गणेशजी का कटा हुआ सर शिवजी ने एक गुफा में रख दिया था। कई मान्यताओं के अनुसार, यह गुफा उत्तराखंड के पिथौरागढ़ में स्थित है। इस गुफा में आज भी गणेशजी के कटे हुए सर की विशेष पूजा होती है। ये गुफा पहाड़ के करीब 90 फीट अंदर बनी हुई है। यह गुफा उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल के प्रसिद्ध नगर अल्मोड़ा से शेराघाट होते हुए 160 किलोमीटर की दूरी तय कर पहाड़ी वादियों के बीच बसे सीमान्त कस्बे गंगोलीहाट में स्थित है।

पाताल भुवनेश्वर गुफा उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में गंगोलीहाट से 14 किलो मीटर दूर स्थित है। यह गुफा भगवान शिव और गणेश की कई पौराणिक कथाओं को समेटे हुए है। समुद्र तल से 1,350 मीटर की ऊंचाई पर स्थित पाताल भुवनेश्वर गुफा मुख्य द्वार से 160 मीटर लंबी और 90 मीटर गहरी है।

लोककथाओं के अनुसार, इस गुफा में भगवान शिव विराजमान हैं और भगवान गणेश का कटा हुआ सिर भी इसी गुफा में सुरक्षित है। यहां हर वर्ष हजारों की संख्या में लोग दर्शन करने और देखने आते हैं। मान्यता है कि इस गुफा की खोज राजा ऋतुपर्णा ने की थी, जो सूर्य वंश के राजा थे और त्रेता युग में अयोध्या पर शासन करते थे। राजा ऋतुपर्ण हिरण का पीछा करते-करते इस गुफा तक पहुंच गए थे तब उन्होंने इस गुफा की खोज की थी। उन्हें उस दिन उस गुफा में भगवान शिव सहित 33 करोड़ देवताओं के दर्शन हुए थे। यह स्कंद पुराण के मानस खंड में वर्णित किया गया है कि आदि शंकराचार्य ने 1191 ई। में इस गुफा का दौरा किया था।

जानकार विद्वानों का कहना है कि स्कंद पुराण में इस गुफा का उल्लेख मिलता है। ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव के क्रोध के बाद भगवान गणेश का सिर धड़ से अलग हो गया और इस गुफा में आकर गिर गया। यह भी माना जाता है कि भगवान शिव ने मूल सिर को पाताल भुवनेश्वर गुफा में रखा था।

जानिए किस आकार का है मस्तक और मस्तक पर टपकती है दिव्य बूंद

भगवान गणेश का सिर चट्टान के आकार में है, जिसके ऊपर 108 पंखुड़ियों वाला ब्रम्हकमल बना हुआ है, जिसमें से अमृत की बूंदें भगवान गणेश के सिर पर गिरती हैं। ऐसा माना जाता है कि ब्रम्हकमल की स्थापना यहां भगवान शिव ने की थी। पाताल भुवनेश्वर गुफा में काल भैरव जीभ के भी दर्शन होते हैं। मान्यता है कि काल भैरव के मुंह से गर्भ में प्रवेश कर उसके अंत तक यानी पूंछ तक पहुंच जाएं तो उसको मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। गुफा में भगवान गणेश की शिला रूपी मूर्ति के उपर 108 पंखुड़ियों वाला शबाष्टक दल ब्रम्हकमल शोभायमान है। इस ब्रम्हकमल से भगवान गणेश के मस्तक पर जल की दिव्य बूंद टपकती है। मुख्य बूंद आदि गणेश के मुख पर गिरती दिखाई देती है।

कहा जाता है कि इस गुफा से पता चलता है। कलयुग का अंत कब होगा। इस गुफाओं में चारों युगों के प्रतीक रूप में चार पत्थर मौजूद हैं। इनमें से एक पत्थर जिसे कलियुग का प्रतीक माना जाता है, वह धीरे-धीरे ऊपर उठ रहा है। गुफा के बारे में कहा जाता है कि यहां भगवान शिव और तैंतीस करोड़ देवता मौजूद हैं। ये पत्थर 1000 साल में 1 इंच बढ़ता है। कहा जाता है कि जिस दिन ये पत्थर दीवार से टकरा जायेगा उस दिन कलियुग का अंत हो जाएगा।

साथ ही ये कुछ और प्रमाण जो इस गुफा में मिलते हैं उनमें प्रमुख हैं इसी गुफा में केदारनाथ, बद्रीनाथ और अमरनाथ के दर्शन होते हैं। बद्रीनाथ में बद्री पंचायत की शिलारूप मूर्तियां हैं जिनमें यम-कुबेर, वरुण, लक्ष्मी, गणेश तथा गरूड़ शामिल हैं। यहां पर कामधेनू गाय का थन बना हुआ है जिसमें से अब पानी निकल रहा है। कहा जाता है कि इस गाय के थन से कलयुग होने के कारण पानी निकलना शुरू हो गया है।

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(साई फीचर्स)