अगर आप पितृ पक्ष में श्रृद्धापूर्वक करेंगे पितरों का स्मरण तो प्रसन्न होकर आपके पूर्वज . . .

पितृ पक्ष का आरंभ कब से! 17 या 18 सितंबर से . . .
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पितृ पक्ष, हिन्दू धर्म का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जिसमें पूर्वजों का स्मरण और उनका श्राद्ध किया जाता है। यह पर्व आश्विन मास के कृष्ण पक्ष में मनाया जाता है, जो आमतौर पर सितंबर से अक्टूबर के महीनों में पड़ता है। पितृ पक्ष का महत्व यह है कि यह हमारे पूर्वजों के प्रति सम्मान और कृतज्ञता व्यक्त करने का अवसर प्रदान करता है। हम आज आपको पितृ पक्ष की तिथियों के बारे में भी बताने जा रहे हैं।
पितृ पक्ष में अगर आप भगवान विष्णु जी की अराधना करते हैं और अगर आप विष्णु जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय विष्णु देवा लिखना न भूलिए।ए।
इस तरह की मान्यता है कि पितृ पक्ष का धार्मिक महत्व अत्यधिक है। हिन्दू मान्यता के अनुसार, हमारे पूर्वजों की आत्माएं इस पर्व के दौरान पृथ्वी पर आती हैं और अपने वंशजों द्वारा किए गए श्राद्ध से तृप्त होती हैं। श्राद्ध करने से पूर्वजों की आत्माओं को शांति मिलती है और उन्हें मुक्ति प्राप्त होती है। इसके अलावा, पितृ पक्ष में श्राद्ध करने से वंशजों के जीवन में सुख समृद्धि आती है और उन्हें अनेक लाभ प्राप्त होते हैं।
पितृ पक्ष के दौरान, हिन्दू लोग कई धार्मिक कार्य करते हैं, जिनमें शामिल बहुत सारी बातें शामिल हैं।
इसमें श्राद्ध सबसे महत्वपूर्ण कार्य है, जिसमें पूर्वजों की आत्माओं का तर्पण किया जाता है। श्राद्ध में पंडित द्वारा मंत्रोच्चारण किया जाता है और पूर्वजों के नाम का हवन किया जाता है। श्राद्ध में पितरों को भोजन, जल और दक्षिणा अर्पित की जाती है। तर्पण में जल का प्रयोग किया जाता है, जिससे पूर्वजों की आत्माओं को तृप्त किया जाता है। तर्पण करने के लिए जल में कुछ सामग्री मिलाई जाती है, जैसे तिल, कुश, दूध आदि।
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साथ ही पितृ पूजा में पूर्वजों की प्रतिमाओं या चित्रों की पूजा की जाती है। पूजा में पुष्प, अक्षत, गंध आदि अर्पित किए जाते हैं। पितृ पक्ष के दौरान पंडित की सेवा करना भी महत्वपूर्ण माना जाता है। पंडित को दक्षिणा दी जाती है और उनका आदर किया जाता है। पितृ पक्ष में दान करना भी पुण्य का कार्य माना जाता है। अन्न, वस्त्र, धन आदि का दान किया जा सकता है।
पितृ पक्ष के दौरान जिन बातों का ध्यान रखा जाना चाहिए, उनमें प्रमुख हैं। पितृ पक्ष के दौरान शोक नहीं मनाना चाहिए। इस समय मांसाहारी भोजन नहीं करना चाहिए। पूर्वजों के नाम का हवन करना चाहिए। पंडित की सेवा करना चाहिए। दान करना चाहिए। पितृ पक्ष के दौरान अपने पूर्वजों के बारे में सोचना चाहिए और उनके प्रति सम्मान और कृतज्ञता व्यक्त करनी चाहिए।
पितृ पक्ष का सामाजिक महत्व भी अत्यधिक है। यह पर्व परिवार के सदस्यों को एक साथ लाता है और उन्हें अपने पूर्वजों के बारे में बात करने का अवसर प्रदान करता है। पितृ पक्ष के दौरान परिवार के सदस्य एक दूसरे के साथ समय बिताते हैं और अपने पूर्वजों के संस्कारों को याद करते हैं।
पितृ पक्ष हिन्दू धर्म का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जिसमें पूर्वजों का स्मरण और श्राद्ध किया जाता है। यह पर्व हमारे पूर्वजों के प्रति सम्मान और कृतज्ञता व्यक्त करने का अवसर प्रदान करता है। पितृ पक्ष में किए जाने वाले धार्मिक कार्यों से पूर्वजों की आत्माओं को शांति मिलती है और उन्हें मुक्ति प्राप्त होती है। इसके अलावा, पितृ पक्ष में श्राद्ध करने से वंशजों के जीवन में सुख समृद्धि आती है और उन्हें अनेक लाभ प्राप्त होते हैं। पितृ पक्ष का सामाजिक महत्व भी अत्यधिक है, क्योंकि यह पर्व परिवार के सदस्यों को एक साथ लाता है और उन्हें अपने पूर्वजों के बारे में बात करने का अवसर प्रदान करता है।
आईए अब जानते हैं पितृ पक्ष की तिथियों के संबंध में, पितृ पक्ष बुधवार 18 सितंबर से आरंभ हो रहा है। 18 सितंबर 2024 को प्रतिपदा श्राद्ध रहेगा अश्विन माह कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि 18 सितंबर को सुबह 8 बजकर 4 मिनट से लेकर 19 सितंबर सुबह 4 बजकर 19 मिनिट तक रहेगी।
ब्रहस्पतिवार 19 सितंबर 2024 को द्वितीया श्राद्ध होगा, अश्विन माह की कृष्ण पक्ष द्वितीया तिथि 19 सितंबर को सुबह 4 बजकर 19 मिनट से लेकर 20 सितंबर को प्रातःकाल 12 बजकर 39 मिनिट तक रहेगी।
शुक्रवार 20 सितंबर 2024 को तृतीया श्राद्ध होग, अश्विन माह कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि 20 सितंबर को सुबह 12 बजकर 39 मिनट से लेकर रात 9 बजकर 15 मिनट तक रहेगी।
इसके बाद शनिवार 21 सितंबर 2024 को चतुर्थी श्राद्ध रहेगा, अश्विन माह कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि 20 सितंबर को रात 9 बजकर 15 मिनट से लेकर 21 सितंबर को सायं 6 बजकर 13 मिनट तक रहेगी।
रविवार 22 सितंबर 2024 को पंचमी श्राद्ध रहेगा, अश्विन माह कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि 21 सितंबर को शाम 6 बजकर 13 मिनट से लेकर 22 सितंबर को दोपहर 3 बजकर 34 मिनट तक रहेगी।
सोमवार 23 सितंबर 2024 को षष्ठी श्राद्ध होगा, अश्विन माह कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि 22 सितंबर को दोपहर 3 बजकर 43 मिनट से 23 सितंबर को दोपहर 1 बजकर 50 मिनट तक रहेगी।
मंगलवार 24 सितंबर 2024 को सप्तमी श्राद्ध होगा अश्विन माह कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि 23 सितंबर से दोपहर 1 बजकर 50 मिनट से लेकर 24 सितंबर को दोपहर 12 बजकर 38 मिनट तक रहेगी।
बुधवार 25 सितंबर 2024 को अष्टमी श्राद्ध रहेगा, अश्विन माह कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 24 सितंबर को दोपहर 12 बजकर 38 मिनट से 25 सितंबर को दोपहर 12 बजकर 10 मिनट तक रहेगी।
ब्रहस्पतिवार 26 सितंबर 2024 को नवमी श्राद्ध रहेगा, अश्विन माह कृष्ण पक्ष की नवमी तिथि25 सितंबर को दोपहर 12 बजकर 10 मिनट से 26 सितंबर को दोपहर 12 बजकर 25 मिनट तक रहेगी।
शुक्रवार 27 सितंबर 2024 को दशमी श्राद्ध रहेगा अश्विन माह कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि 26 सितंबर को दोपहर 12 बजकर 25 मिनट से 27 सितंबर दोपहर 1 बजकर 20 मिनट तक रहेगी।
शनिवार 28 सितंबर 2024 को एकादशी श्राद्ध होगा, अश्विन माह कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि 27 सितंबर दोपहर 1 बजकर 20 मिनट से 28 सितंबर को दोपहर 2 बजकर 49 मिनट तक रहेगी।
रविवार 29 सितंबर 2024 को द्वादशी का श्राद्ध रहेगा, अश्विन माह कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि 28 सितंबर को दोपहर 2 बजकर 49 मिनट से 29 सितंबर को शाम 4 बजकर 47 मिनट तक रहेगी।
सोमवार 30 सितंबर 2024 को त्रयोदशी का श्राद्ध रहेगा, अश्विन माह कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि 29 सितंबर को शाम 4 बजकर 47 मिनट से 30 सितंबर को शाम 7 बजकर 6 मिनट तक रहेगी।
मंगलवार 1 अक्टूबर 2024 को चतुर्दशी का श्राद्ध रहेगा, अश्विन माह कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि 30 सितंबर को शाम 7 बजकर 6 मिनट से 1 अक्टूबर को रात 9 बजकर 34 मिनट तक रहेगी।
इसके उपरांत बुधवार 2 अक्टूबर 2024 को अमावस्या का श्राद्ध रहेगा, अश्विन माह की अमावस्या तिथि 1 अक्टूबर को रात 9 बजकर 34 मिनट से 3 अक्टूबर को सुबह 12 बजकर 18 मिनट तक रहेगी।
पितृ पक्ष में अगर आप भगवान विष्णु जी की अराधना करते हैं और अगर आप विष्णु जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय विष्णु देवा लिखना न भूलिए।
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