जानिए प्रतिपदा पर श्राद्ध कर्म का महूर्त एवं विधि विधान . . .

प्रतिपदा अर्थात पहले दिन किस तरह से किया जाए श्राद्ध कर्म!
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हिंदू धर्म में पितृ पक्ष का विशेष महत्व होता है। पितृ पक्ष 18 सितंबर से 2 अक्तूबर 2024 तक रहेंगे। पितृपक्ष का पहला दिन जिसे प्रतिपदा तिथि भी कहते हैं, बुधवार 18 सितंबर 2024 को है। इसे परवा या पड़वा श्राद्ध भी कहा जाता है। शास्त्रों के अनुसार, श्राद्धों या तर्पण अनुष्ठान को संपन्न करने के लिए कुतुप, रौहिण आदि मुहूर्त शुभ माने गए हैं। कहा जाता है कि अपरान्ह काल समाप्त होने तक श्राद्ध संबंधी अनुष्ठान संपन्न कर लेने चाहिए। श्राद्ध के अंत में तर्पण किया जाता है। जानें प्रतिपदा श्राद्ध का महत्व व दान, तर्पण व श्राद्ध के शुभ मुहूर्त
प्रतिपदा तिथि कब से कब तक प्रतिपदा तिथि 18 सितंबर 2024 को सुबह 8 बजकर 04 मिनट पर प्रारंभ होगी और 19 सितंबर 2024 को सुबह 4 बजकर 19 मिनट पर समाप्त होगी।
पितृ पक्ष में अगर आप भगवान विष्णु जी की अराधना करते हैं और अगर आप विष्णु जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय विष्णु देवा लिखना न भूलिए।
प्रतिपदा श्राद्ध के शुभ मुहूर्त 18 सितंबर 2024 को श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान के लिए कुतुप मुहूर्त सुबह 11 बजकर 50 मिनट से दोपहर 12 बजकर 39 मिनट तक रहेगा। रौहिण मुहूर्त दोपहर 12 बजकर 39 मिनट से दोपहर 1 बजकर 27 मिनट तक रहेगी। अपरान्ह काल दोपहर 1 बजकर 27 मिनट तक दोपहर 3 बजकर 54 मिनट तक रहेगा।
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अब प्रतिपदा श्राद्ध का महत्व जानते हैं,
प्रतिपदा श्राद्ध परिवार के उन पूर्वजों या पितरों के लिए किया जाता है, जिनकी मृत्यु प्रतिपदा तिथि को हुई होती है, अर्थात जिस दिन आपके किसी पूर्वज ने देह त्यागी हो उस दिन हिन्दू कैलेण्डर के हिसाब से कौन सी तिथि थी। मान्यता है कि इस श्राद्ध को करने से जीवन में सुख समृद्धि आती है। पितरों को तृत्ति मिलने की भी मान्यता है। दिवंगत आत्माओं की शांति के लिए इस दिन तर्पण, पिंडदान अनुष्ठान किया जाता है। पितृपक्ष की प्रतिपदा तिथि को नाना नानी का श्राद्ध भी किया जा सकता है। अगर मातृ पक्ष में श्राद्ध के लिए कोई व्यक्ति नहीं है, तो इस तिथि पर नाना नानी का श्राद्ध करना अत्यंत शुभ माना गया है।
जानकार ज्योतिषाचार्य विद्वानों का मत है कि पितृ पक्ष का प्रारंभ भाद्रपद पूर्णिमा से नहीं होता है। इस साल आश्विन कृष्ण प्रतिपदा तिथि 18 सितंबर को सुबह 8ः41 बजे के बाद से शुरू हो रही है, तो पितृ पक्ष भी कल से ही शुरू है। पितृ पक्ष में किए जाने वाले तर्पण, पिंडदान, श्राद्ध आदि कर्म भी बुधवार से ही होंगे।
हिंदू धर्म में पितृ पक्ष का विशेष महत्व होता है। पितृ पक्ष 18 सितंबर से 2 अक्तूबर 2024 तक रहेंगे। पितृपक्ष का पहला दिन या प्रतिपदा तिथि 18 सितंबर 2024, बुधवार को है। इसे पड़वा श्राद्ध भी कहा जाता है। शास्त्रों के अनुसार, श्राद्धों या तर्पण अनुष्ठान को संपन्न करने के लिए कुतुप, रौहिण आदि मुहूर्त शुभ माने गए हैं। कहा जाता है कि अपराह्न काल समाप्त होने तक श्राद्ध संबंधी अनुष्ठान संपन्न कर लेने चाहिए। श्राद्ध के अंत में तर्पण किया जाता है।
विद्वान आचार्यों के अनुसार शास्त्रों में हर जगह यही देखने को मिलता है कि मातृ देवो भव, पितृ देवो भव। अतः माता-पिता के समान कोई देवता नहीं है। उनकी संतृप्ति और आशीर्वाद हमें जीवन में हर प्रकार का सुख देता है। अतः इस भ्रान्ति को मन मस्तिष्क में न पालकर इस पितृ पर्व को हर्षाेल्लास पूर्वक मनाना चाहिए। इस, जिनके पिता के मृत्यु की तिथि ज्ञात न हो। उनको श्राद्ध पितृ विसर्जन को करना चाहिए।
आईए अब हम आपको बताते हैं कि किस विधि से पितरों का तर्पण किया जाए,
पितृ पक्ष में प्रत्येक दिन 15 दिनों तक कुशा की जूडी, जल के लोटे के साथ ले जा कर पीपल के नीचे कुशा की जूडी को पितृ मानकर जल से तर्पण करें। तर्पण के बाद घर आकर प्रति दिन ही भोजन के समय एक रोटी गाय को, एक रोटी कुत्ते को और एक रोटी कौओं को जरूर खिलाएं। साथ ही अगर संभव हो सके तो अपनी छत पर किसी चौडे पात्र में जल भरकर पक्षियों के लिए जरूरी रखें और अनाज के दाने भी छत पर डालें। ब्राहृमण भोजन, श्राद्ध, तर्पण तथा अमावस्या पूजन इत्यादि जैसे अपने घर करते आ रहे हैं, वह वैसे ही करें। विद्वानों का कहना है कि श्राद्ध कर्म करने के लिए किसी नदी या सरोवर के तट को सर्वश्रेष्ठ माना गया है।
विद्वान ज्योतिषाचार्यां का कहना है कि हिंदू धर्म में निर्णय सिंधु एक प्रमाणिक पुस्तक है, जिसमें सैकड़ों प्रश्नों के जवाब दिया गया है। उसके अनुसार पितरों के लिए निर्धारित पितृ पक्ष आश्विन कृष्ण प्रतिपदा तिथि से प्रारंभ होता है। भाद्रपद पूर्णिमा से पितृ पक्ष शुरू ही नहीं होता है, तो इसके 17 सितंबर से प्रारंभ होने की बात ही गलत है। आश्विन कृष्ण प्रतिपदा तिथि 18 सितंबर को शुरु हो रही है, इसलिए पितृ पक्ष भी उस दिन से ही शुरू होगा।
आईए अब जानते हैं कि पितृ पक्ष में क्या सावधानियां बरतना जरूरी है,
इस अवधि में दोनों वेला में स्नान करके पितरों को याद करना चाहिए। कुतुप वेला में पितरों को तर्पण दें और इसी वेला में तर्पण का विशेष महत्व भी होता है। तर्पण में कुश और काले तिल का विशेष महत्व है। कुश और काले तिल के साथ तर्पण करना अद्भुत परिणाम देता है। जो कोई भी पितृ पक्ष का पालन करता है उसे इस अवधि में सात्विक भोजन ग्रहण करना चाहिए। पितरों को हल्कि सुगंध वाले सफेद फूल ही अर्पित करें। तीखी सुगंध वाले फूल वर्जिक हैं। इसके अलावा, दक्षिण दिशा की ओर मुख करके पितरों का तर्पण और पिंड दान करें। पितृ पक्ष में हर रोज गीता का पाठ जरूर करें। वहीं, कर्ज लेकर या दबाव में कभी भी श्राद्ध कर्म नहीं करना चाहिए।
पितृ पक्ष में अगर आप भगवान विष्णु जी की अराधना करते हैं और अगर आप विष्णु जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय विष्णु देवा लिखना न भूलिए।
यहां बताए गए उपाय, लाभ, सलाह और कथन आदि सिर्फ मान्यता और जानकारियों पर आधारित हैं। यहां यह बताना जरूरी है कि किसी भी मान्यता या जानकारी की समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया के द्वारा पुष्टि नहीं की जाती है। यहां दी गई जानकारी में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों, ज्योतिषियों, पंचांग, प्रवचनों, मान्यताओं, धर्मग्रंथों, दंतकथाओं, किंवदंतियों आदि से संग्रहित की गई हैं। आपसे अनुरोध है कि इस वीडियो या आलेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया पूरी तरह से अंधविश्वास के खिलाफ है। किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें।
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(साई फीचर्स)