घर पर भी किया जा सकता है पितरों का तर्पण, जानिए इसकी विधि . . .

पितरों को प्रसन्न करने की पूजा विधि, सामग्री, तैयारियां आदि जानिए विस्तार से . . .
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पितृ पक्ष आरंभ हो चुका है। सभी अपने अपने पितरों को प्रसन्न करने के लिए तरह तरह के प्रयासों में जुट चुके हैं। पितर कैसे प्रसन्न होकर धरती लोक से वापस जाएं, पितर कैसे नाखुश न हो पाएं, पितर कैसे आशीष प्रदान करें आदि सवालों के सबंध में अलग अलग विद्वान जानकारों का मत भिन्न हो सकता है। आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि आखिर पितरों को प्रसन्न कैसे किया जाए, इसके लिए पूजा विधि, पूजन सामग्री, तैयारियों आदि के संबंध में एवं घर पर तर्पण किस तरह किया जा सकता है।
पितृ पक्ष में अगर आप भगवान विष्णु जी की अराधना करते हैं और अगर आप विष्णु जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय विष्णु देवा अथवा हरिओम तत सत लिखना न भूलिए।
अश्विन महीने में कृष्ण पक्ष प्रतिपदा से लेकर के अमावस्या के बीच में 15 तिथियां होती हैं और जिनका स्वर्गवास पूर्णमासी को हुआ है, तो पूर्णमासी से लेकर के अमावस्या के बीच में 16 तिथियां होती हैं। जिन्हें 16 श्राद्ध तिथियां प्रसस्त की गई है। इस बार पित्र पक्ष 18 सितंबर से आरंभ हुआ है और यह 2 अक्टूबर तक रहेगा।
जानकार विद्वानों के मतानुसार जिन लोगों के घरों में किसी का निधन हुआ है और अगर वे लोग अपने पितृ को गया धाम लेकर नहीं गए हैं। ऐसे पितर पितृ पक्ष में अपने अपने घरों में याद करके आते हैं, ऐसे लोगों के लिए जो विधि बताई गई है उस विधि के अनुसार आप अपने घर के सामने एक छोटा सा चबूतरा बना ले, उस चबूतरे को गाय के गोबर से लीप लें, वहां तिल, उड़द की दाल और चावल और पीला फूल चढ़ाकर उस पर पितरों को बैठाएं और घर के जो सयाने अर्थात बड़े बुजुर्ग पुरुष हैं, वो स्नान करके तिल से पितरों का तर्पण करें। जौ से ऋषियों का तर्पण करें और चावल से देवताओं का तर्पण करें, यानी तीन तीन अंजुली कुल नौ अंजुली तर्पण प्रतिदिन करते रहें।
विद्वानों के अनुसार जिस दिन जातक की जो तिथि पड़े उस तिथि को विशेष रूप से तर्पण करें, हवन करें और भोजन बनवा करके पूरा भोजन उस चबूतरा के पास निकाल करके जल घुमा दे और ब्राम्हण भोजन कराएं। अपने हिसाब से जो यथाशक्ति दान पुण्य हो सकता है, वो करें तो पितरों को मिलता है, इससे पितर प्रसन्न होते हैं।
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पितरों का इस तरह से तर्पण करने से वो बहुत प्रसन्न होते हैं और वो घर के सभी को आशीर्वाद देते हैं। जिन घरों में पितृ आते हैं, जिनका तर्पण नहीं होता है, वहां पर अशुभ होता है। वो श्राप भी दे सकते हैं। घर में नकारात्मक ऊर्जा प्रवेश होती है, इसलिए ध्यान रखें कि पितरों का 16 दिन तक तर्पण जरूर करें। जिस तिथि को प्राणी का देहांत हुआ है, उस तिथि को तर्पण करके विशेष रूप से उड़द की दाल का पकवान और चावल दाल पूड़ी सब्जी जो घर में बनाएं और इस सबका भोग लगाएं, तो पितर बहुत प्रसन्न होते हैं। उस घर को आशीर्वाद देते हैं, इस तरह से पितरों की पूजा होती है।
आईए अब बताते हैं कि किस तरह किया जाए तर्पण . . .
जानकार विद्वानों का कहना है कि तर्पण करने के लिए अगर नदी तालाब हो तो स्नान करना श्रेष्यसकर होता है, नहीं हो तो किसी कुंए में स्नान कर लें, अगर कुंआं भी नहीं है तो घर पर ही स्नान कर तर्पण करें। वैसे नदी तालाब के पास तर्पण करने से इसका फल एक हजार गुना मिलता है।
अगर नदी तालाब या कुंआ नहीं है या आप नहीं जा सकते हैं तो, तो घर में एक परात रखें। दक्षिण दिशा में फिर कर बैठ जाएं और सामग्री तिल, जौ, चावल, सफेद फूल सामने रख लें और दक्षिण की ओर घूम कर के तिल से तीन बार पितरों का तर्पण करें, फिर पूर्व की ओर घूम करके चावल से देवताओं का तर्पण करें। फिर उत्तर दिशा की ओर घूम कर के जौ लेकर के ऋषियों का तर्पण करें, तीन तीन अंजुली लेकर तर्पण करें। पितरों का जिनका नाम याद है, उनका नाम लेकर उनके गोत्र का नाम और उस जातक का नाम लेकर के तर्पण करें, जिनका नाम नहीं मालूम है बस याद कर करके सबको याद करके तर्पण करें, तो पितृ बहुत प्रसन्न होते हैं, घर में शुभ आशीर्वाद देते हैं।
अब जानिए पितृपक्ष में किनके लिए भोजन निकालना जरूरी है,
विद्वानों के अनुसार पितृपक्ष में पांच ग्रास निकाले जाते हैं। पहला ग्रास ब्राम्हण भोजन कराना पड़ता है, दूसरा गाय को भोजन देना पड़ता है, तीसरा ग्रास श्वान अर्थात कुत्ता को देना पड़ता है, चौथा कौवा को देना पड़ता है। पांचवा जीव जंतु के लिए सड़क के किनारे रख करके जल घुमा करके प्रणाम करें, तो उससे भी पितृ लोग बहुत प्रसन्न होते हैं। पांच ग्रास निकालने के लिए नियम है कि पूजन करने के बाद जब भोजन बन जाता है तो पहले गाय के लिए निकालें, फिर ब्राम्हण को खिलाओ, फिर कुत्ता के लिए, कौवा के लिए, जीव जंतु के लिए निकाल दें। कुछ जगह एक साथ ही गाय के साथ ही सबके लिए भोजन निकाल दिया जाता है।
वैसे सनातन धर्म में पितृ पक्ष का हमेशा से ही खास महत्व रहा है। कहा जाता है कि इस दौरान पितरों की शांति के लिए किए गए उपाय बेहद लाभकारी साबित होते हैं। इसलिए हर कोई पितृ पक्ष में अपने पितरों का श्राद्ध तर्पण जरूर करता है। जिससे उनकी विशेष कृपा प्राप्त की जा सके। कहा जाता है कि जिस किसी पर उसके पूर्वजों की शुभ दृष्टि रहती है उसके जीवन में कभी कोई परेशानी नहीं आती।
अब जानिए पितृ पक्ष श्राद्ध की पूजा विधि के बारे में,
श्राद्ध सूर्याेदय से लेकर दोपहर साढ़े बारह बजे की अवधि के बीच में करना सबसे शुभ माना जाता है। श्राद्ध करने से पहले स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। इसके बाद दक्षिण दिशा की तरफ मुंह करके अपने बाएं पैर को मोड़कर बाएं घुटनों को जमीन पर टिका कर बैठ जाएं। फिर एक तांबे के चौड़े बर्तन में काले तिल, गाय का कच्चा दूध और थोड़ा गंगाजल डालें।
इसके बाद साफ जल को अपने दोनों हाथों में भरकर सीधे हाथ के अंगूठे से छूआते हुए उसी तांबे के बर्तन में गिराएं। ऐसा 11 बार करें। इस प्रक्रिया को तर्पण कहा जाता है। इस बात का विशेष ध्यान रखें कि पितरों के निमित्त अग्नि में गाय के दूध से बनी खीर जरूर चढ़ाएं।
पितरों के लिए भोजन तैयार करें। ध्यान रहे इसमें प्याज लहसुन का इस्तेमाल नहीं करना है। फिर दक्षिण दिशा की तरफ मुख करके कुश, जौ, तिल, चावल और जल लेकर संकल्प लें और फिर एक या तीन ब्राम्हणों को सच्चे मन से भोजन कराएं। श्राद्ध के भोजन का सेवन करने के लिए श्रेष्ठ ब्राम्हण को घर पर बुलाएं। सबसे पहले ब्राम्हण के पैर धोएं। इसके बाद ब्राम्हणों से आशीर्वाद लें। ध्यान रखें कि ब्राम्हण को भोजन कराने से पहले गाय, कुत्ते, कौवे, देवता और चींटी के लिए भोजन जरूर निकालें।
भोजन कराने के बाद भूमि, वस्त्र, अनाज, तिल, स्वर्ण, घी, गुड, चांदी या फिर नमक का दान जरूर करें। आप चाहें को इनमें से किन्हीं दो या तीन चीजों का दान भी कर सकते हैं। इस बात का ध्यान रखें कि श्राद्ध पूजा में हमेशा सफेद फूलों का ही इस्तेमाल किया जाता है।
अब जानिए पितृ तर्पण विधि के संबंध में,
तर्पण करने के लिए एक परात ले लें। उसमें शुद्ध जल डालें। इसके बाद थोड़े काले तिल और दूध भी इसमें डाल दें। फिर दक्षिण दिशा की तरफ मुख करके बैठ जाएं और परात अपने सामने रख लें और एक अन्य खाली पात्र भी अपने पास में रखें। इसके बाद अपने दोनों हाथों के अंगूठे और तर्जनी उंगली में दूर्वा यानी कुश लेकर अंजलि बना लें। इसका मतलब है कि दोनों हाथों को मिलाकर उसमें जल भर लें। फिर अंजलि में भरा हुआ जल जो खाली पात्र है उसमें डाल लें। कम से कम तीन बार अंजलि से तर्पण करें।
पितृ पक्ष श्राद्ध मंत्रों के बारे में भी जान लीजिए, पितृ पक्ष श्राद्ध मंत्रों का जाप करने से भी पितृ प्रसन्न होते हैं। ये मंत्र हैं,
ओम पितृ देवतायै नमः
ओम पितृ गणाय विद्महे जगत धारिणे धीमहि तन्नो पित्रो प्रचोदयात।
त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम।
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात।।
ओम तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय च धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात।
ओम पितृगणाय विद्महे जगत धारिणी धीमहि तन्नो पितृो प्रचोदयात।
ओम देवताभ्यः पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव चनमः स्वाहायै स्वधायै नित्यमेव नमो नमः
पितृ पक्ष श्राद्ध सामग्री के बारे में जानिए,
पितृ पक्ष श्राद्ध के दौरान जिन सामग्री की आवश्यकता होती है वे, सिंदूर, कपूर, जनेऊ, हल्दी, रक्षा सूत्र, काला तिल, घी, शहद, रोली, सुपारी, जौ, गुड़, दीया, अगरबत्ती, तुलसी और पान के पत्ते, सफेद फूल, उड़द दाल, मूंग और ईख, कुशा, दही, गंगाजल, केला, धुर्वा, गाय का कच्चा दूध आदि चीजें हैं।
पितृ पक्ष में अगर आप भगवान विष्णु जी की अराधना करते हैं और अगर आप विष्णु जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय विष्णु देवा अथवा हरिओम तत सत लिखना न भूलिए।
यहां बताए गए उपाय, लाभ, सलाह और कथन आदि सिर्फ मान्यता और जानकारियों पर आधारित हैं। यहां यह बताना जरूरी है कि किसी भी मान्यता या जानकारी की समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया के द्वारा पुष्टि नहीं की जाती है। यहां दी गई जानकारी में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों, ज्योतिषियों, पंचांग, प्रवचनों, मान्यताओं, धर्मग्रंथों, दंतकथाओं, किंवदंतियों आदि से संग्रहित की गई हैं। आपसे अनुरोध है कि इस वीडियो या आलेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया पूरी तरह से अंधविश्वास के खिलाफ है। किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें।
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(साई फीचर्स)