जानिए गया और ब्रम्हकपाली कहां हैं एवं इन स्थानों पर किए गए पिण्डदान एवं श्राद्ध का महत्व

ब्रम्हकपाल, गयाजी में पिण्डदान के उपरांत श्राद्ध करना चाहिए अथवा नहीं!
आप देख, सुन और पढ़ रहे हैं समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया की साई न्यूज के धर्म प्रभाग में विभिन्न जानकारियों के संबंद्ध में . . .
हिंदू धर्म में पितृपक्ष एक महत्वपूर्ण महीना होता है, जिसमें हम अपने पूर्वजों को याद करते हैं और उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। पिंडदान इस दौरान किया जाने वाला एक प्रमुख संस्कार है। यह माना जाता है कि पिंडदान करने से पितृदोष दूर होता है और पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। ब्रम्हकपाल जिसे ब्रम्हकपाली भी कहा जाता है एवं गया जी जैसे तीर्थों में पिंडदान का विशेष महत्व है। अक्सर यह प्रश्न उठता है कि इन स्थानों पर पिंडदान करने के बाद क्या फिर श्राद्ध करने की आवश्यकता होती है?
पितरों की तृप्ति और उनकी प्रसन्नता के लिए आश्विन मास के पूरे कृष्णपक्ष में श्राद्ध किया जाता है। अब अक्सर लोग यह प्रश्न पूछते हैं कि गयाजी में श्राद्ध करने के बाद पितरों का वार्षिक श्राद्ध या पितृपक्ष में उनका श्राद्ध करना चाहिए या नहीं। अनेक विद्वान यह कह देते हैं कि एक बार गयाजी में श्राद्ध कर दिया तो फिर वार्षिक या पितृपक्ष में श्राद्ध करने की आवश्यकता नहीं होती। अनेक लोग यह प्रश्न भी पूछते हैं कि गयाजी में श्राद्ध करने के बाद बदरीनाथ स्थित ब्रम्हकपाल में श्राद्ध करना चाहिए या नहीं।
आईए सबसे पहले जानते हैं पिंडदान और श्राद्ध के बारे में . . .
सबसे पहले जानिए पिंडदान के संबंध में, यह एक संस्कार है जिसमें तिल के बने पिंडों को जल में प्रवाहित किया जाता है। यह माना जाता है कि ये पिंड पितरों को प्राप्त होते हैं और उन्हें शांति मिलती है।
पितृ पक्ष में अगर आप भगवान विष्णु जी की अराधना करते हैं और अगर आप विष्णु जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय विष्णु देवा अथवा हरिओम तत सत लिखना न भूलिए।
वहीं, श्राद्ध एक श्राद्धकर्म है जिसमें पितरों के लिए भोजन पकाया जाता है और ब्राम्हणों को भोजन कराया जाता है। यह माना जाता है कि श्राद्ध करने से पितरों को तृप्ति मिलती है।
अब जानिए ब्रम्हकपाल, गयाजी और अन्य तीर्थों के महत्व के संबंध में,
ब्रम्हकपाल कहां पर स्थित है एवं उसका क्या महत्व है! ब्रम्हकपाल को एक पवित्र घाट माना जाता है। कहा जाता है कि इस घाट पर पूजा करने से पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती है और घर में सुख शांति आती है। यही कारण है, जब हर वर्ष बद्रीनाथ के दर्शन करने के लिए श्रद्धालु आते हैं, तो ब्रम्हा कपाल के दर्शन करना नहीं भूलते। यहां पर आकर वो विधि विधान से पूजा करते हैं, ताकि उनके पितरों को शांति मिल सके और उनके जीवन में सुख शांति बनी रहे। यह स्थान बद्रीनाथ के निकट स्थित है और माना जाता है कि यहां पिंडदान करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
इस आलेख को वीडियो में देखने के लिए क्लिक कीजिए . . .

https://www.youtube.com/watch?v=_kHeMWrqNyE
कहते हैं कि गया में श्राद्ध करने के उपरांत अंतिम श्राद्ध उत्तरखंड के बदरीकाश्रम क्षेत्र के ब्रम्ह कपाल में किया जाता है। गया के बाद सबसे महत्वपूर्ण स्थान है। कहते हैं जिन पितरों को गया में मुक्ति नहीं मिलती या अन्य किसी और स्थान पर मुक्ति नहीं मिलती उनका यहां पर श्राद्ध करने से मुक्ति मिल जाती है। यह स्थान बद्रीनाथ धाम के पास अलकनंदा नदी के तट पर स्थित है।
पांडवों ने भी अपने परिजनों की आत्म शांति के लिए यहां पर पिंडदान किया था। श्रीमद् भागवत महापुराण अनुसार युद्ध अपने बंधु बांधवों की हत्या करने पर पांडवों को गोत्र हत्या का पाप लगा था। गोत्र हत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए स्वर्गारोहिणी यात्रा पर जाते हुए पांडवों ने ब्रम्हकपाल में ही अपने पितरों को तर्पण किया था। पुराणों के अनुसार यह स्थान महान तपस्वियों और पवित्र आत्माओं का है। श्रीमदभागवत पुराण अनुसार यहां सूक्ष्म रूप में महान आत्माएं निवासरत हैं।
ऐसी धारणा भी है कि ब्रम्ह कपाल में किया जाने वाला पिंडदान आखिरी माना जाता है। इसके बाद उक्त पूर्वज के निमित्त किसी भी तरह का पिंडदान या श्राद्ध कर्म नहीं किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि भगवान ब्रम्हा, ब्रम्हा कपाल के रूप में निवास करते हैं। किसी काल में ब्रम्हा के पांच सिर थे उसमें से एक सिर कटकर यहीं गिरा था। अलकनंदा नदी के तट पर ब्रम्हाजी के सिर के आकार की शिला आज भी विद्यमान है।
हर वर्ष पितृपक्ष में भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से लेकर आश्विन कृष्ण अमावस्या तक पितृपक्ष के दौरान यहां भीड़ रहती है। ब्रम्हकपाल को पितरों की मोक्ष प्राप्ति का सर्वाेच्च तीर्थ (महातीर्थ) कहा गया है। पुराणों में उल्लेख है कि ब्रम्हकपाल में पिंडदान करने के बाद फिर कहीं पिंडदान की जरूरत नहीं रह जाती।
स्कंद पुराण अनुसार पिंडदान के लिए गया, पुष्कर, हरिद्वार, प्रयागराज व काशी भी श्रेयस्कर हैं, लेकिन भू वैकुंठ बदरीनाथ धाम स्थित ब्रम्हकपाल में किया गया पिंडदान इन सबसे आठ गुणा ज्यादा फलदायी है। ब्रम्ह कपाल पर ही शिव को ब्रम्ह हत्या के पाप से मुक्ति मिली थी, क्योंकि उन्होंने ही ब्रम्हा का पांचवां सिर काट दिया था।
पुराणों अनुसार ब्रम्हज्ञान, गयाश्राद्ध, गोशाला में मृत्यु तथा कुरुक्षेत्र में निवास, ये चारों मुक्ति के साधन हैं, गया में श्राद्ध करने से ब्रम्हहत्या, सुरापान, स्वर्ण की चोरी, गुरुपत्नीगमन और उक्त संसर्ग-जनित सभी महापातक नष्ट हो जाते हैं।
अब जानते हैं कि गयाजी कहां पर स्थित है एवं उसका क्या महत्व है!
गया जिसे लोग गयाजी के नाम से भी संबोधित करते हैं, बिहार में स्थित एक प्रमुख तीर्थ है। यहां पिंडदान करने का विशेष महत्व है। वैसे तो पिंडदान, तर्पण और श्राद्ध कर्म के लिए भारत में कई जगहें हैं लेकिन फल्गु नदी के तट पर स्थित गया शहर का अपना विशेष महत्व है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, सर्वपितृ अमावस्या के दिन गया में पिंडदान करने से 108 कुल और 7 पीढ़ियों का उद्धार हो जाता है और पितरों की आत्मा को शांति मिलती है। साथ ही पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है इसलिए इस स्थान को मोक्ष स्थली कहा जाता है। पुराणों में बताया गया है कि प्राचीन शहर गया में भगवान विष्णु स्वयं पितृदेव के रूप में निवास करते हैं।
देशभर में श्राद्ध कर्म और पिंडदान के लिए 55 स्थानों को महत्वपूर्ण माना गया है, जिसमें बिहार के गया का स्थान सर्वाेपरि माना गया है। गया में श्राद्ध कर्म, तर्पण विधि और पिंडदान करने के बाद कुछ भी शेष नहीं रह जाता है और यहां से व्यक्ति पितृऋण से मुक्त हो जाता है। गया का महत्व इसी से पता चलता है कि फल्गु नदी के तट पर भगवान राम और माता सीता ने राजा दशरथ की आत्मा की शांति और मोक्ष के लिए यहीं पर श्राद्ध कर्म और पिंडदान किया था। साथ ही महाभारत काल में पांडवों ने भी इसी स्थान पर श्राद्ध कर्म किया था।
वैसे पुण्य सलिला माता गंगा, माता नर्मदा, माता यमुना आदि नदियों के किनारे भी पिंडदान किया जाता है।
अब प्रश्न वही है कि क्या ब्रम्हकपाल, गया आदि में पिंडदान करने के बाद फिर श्राद्ध नहीं करना पड़ता?
विद्वान जानकारों के अनुसार इस प्रश्न का सीधा उत्तर देना थोड़ा मुश्किल है, क्योंकि विभिन्न धार्मिक ग्रंथों और मतों में इस विषय पर अलग अलग मत पाए जाते हैं।
एक मत के अनुसार कुछ लोग मानते हैं कि ब्रम्हकपाल, गया आदि में एक बार पिंडदान करने के बाद पितरों को मोक्ष मिल जाता है और फिर श्राद्ध करने की आवश्यकता नहीं रहती।
दूसरे मत के अनुसार कुछ लोग मानते हैं कि ब्रम्हकपाल, गया आदि में पिंडदान करने से पितरों को तत्काल मोक्ष नहीं मिलता है और श्राद्ध करना आवश्यक है।
तीसरा मत है कि कुछ लोग मानते हैं कि ब्रम्हकपाल, गया आदि में पिंडदान करने से पितरों को मोक्ष मिलने की संभावना बढ़ जाती है, लेकिन श्राद्ध करना अतिरिक्त पुण्य का काम है।
विभिन्न मतों के पीछे के कारण क्या हैं, यह जानते हैं।
इसमें सबसे पहले बात की जाए धार्मिक ग्रंथों की तो विभिन्न धार्मिक ग्रंथों में पिंडदान और श्राद्ध के संबंध में अलग अलग मत पाए जाते हैं।
देश में विभिन्न संप्रदाय हैं और विभिन्न संप्रदायों के अपने अपने मत होते हैं।
इसके अलावा व्यक्तिगत मान्यताएं भी महत्व रखती हैं, व्यक्तिगत रूप से लोग अलग अलग मान्यताएं रखते हैं।
श्रीमद देवी भागवत गीता के 6, 4, 15 के अनुसार गयाजी में श्राद्ध करने की बड़ा महत्व है
जीवतो वाक्यकरणात् क्षयाहे भूरिभोजनात।
गयायां पिण्डदानाच्च त्रिभिर्पुत्रस्य पुत्रता।।
अर्थात जीवनपर्यन्त माता पिता की आज्ञा का पालन करने, श्राद्ध में खूब भोजन करवाने और गयातीर्थ में पितरों का पिण्डदान अथवा गया में श्राद्ध करने वाले पुत्र का पुत्रत्व सार्थक है। जो व्यक्ति गया जाने में समर्थ होते हुए भी नहीं जाता है उसके पितर सोचते हैं कि उनका संपूर्ण परिश्रम निरर्थक है। अतः मनुष्य के पूरे प्रयत्न के साथ गया जाकर विधि विधान से पिंडदान करना चाहिए।
पितृपक्ष में तिथि श्राद्ध करने की आवश्यकता नहीं
अब शास्त्र कहते हैं कि कुछ लोगों में यह भ्रम है कि गया में पितरों का श्राद्ध करने के बाद वार्षिक श्राद्ध या पितृपक्ष में तिथि श्राद्ध करने की आवश्यकता नहीं है, जबकि यह पूर्णतया गलत है। गया श्राद्ध तो नित्य श्राद्ध है और इसे एक बार से अधिक बार भी गया जाकर किया जा सकता है। गयाजी में पितरों का श्राद्ध करने के बाद भी घर में वार्षिक क्षय तिथि पर तथा पितृपक्ष में तिथि पर श्राद्ध अवश्य करना चाहिए। इसे छोड़ा नहीं जाता।
पिण्डदान और श्राद्ध के संबंध में महत्वपूर्ण बातें भी जान लीजिए . . .
पिंडदान और श्राद्ध दोनों ही श्रद्धा के साथ करने चाहिए। विद्वानों से परामर्शः किसी भी धार्मिक कार्य को करने से पहले विद्वानों से परामर्श लेना चाहिए। पितरों का स्मरण, सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हमें अपने पितरों को याद रखना चाहिए और उनके लिए प्रार्थना करनी चाहिए। ब्राम्हण भोजन, दान आदि कर्म करते रहना चाहिए
जानकार विद्वानों के अनुसार मुख्य बात यह है कि गयाजी में श्राद्ध करने के बाद ब्रम्ह कपाली में श्राद्ध अवश्य करना चाहिए, किंतु ब्रम्हकपाली में श्राद्ध करने के बाद गयाजी या अन्य जगह श्राद्ध करने की आवश्यकता नहीं है। किंतु पितरों की क्षय तिथि और श्राद्ध पक्ष में पितरों के निमित्त ब्राम्हण भोजन, दान आदि कर्म करते रहना चाहिए, केवल पिडंदान आदि की मनाही है। पिंडदान और श्राद्ध दोनों ही हमारे धर्म और संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। इनका उद्देश्य हमारे पितरों को सम्मान देना और उन्हें शांति प्रदान करना है। हमें इन संस्कारों को श्रद्धा और विश्वास के साथ करना चाहिए।?
पितृ पक्ष में अगर आप भगवान विष्णु जी की अराधना करते हैं और अगर आप विष्णु जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय विष्णु देवा अथवा हरिओम तत सत लिखना न भूलिए।
यहां बताए गए उपाय, लाभ, सलाह और कथन आदि सिर्फ मान्यता और जानकारियों पर आधारित हैं। यहां यह बताना जरूरी है कि किसी भी मान्यता या जानकारी की समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया के द्वारा पुष्टि नहीं की जाती है। यहां दी गई जानकारी में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों, ज्योतिषियों, पंचांग, प्रवचनों, मान्यताओं, धर्मग्रंथों, दंतकथाओं, किंवदंतियों आदि से संग्रहित की गई हैं। आपसे अनुरोध है कि इस वीडियो या आलेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया पूरी तरह से अंधविश्वास के खिलाफ है। किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें।
अगर आपको समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया में खबरें आदि पसंद आ रही हो तो आप इसे लाईक, शेयर व सब्सक्राईब अवश्य करें। हम नई जानकारी लेकर फिर हाजिर होंगे तब तक के लिए इजाजत दीजिए, जय हिंद, . . .
(साई फीचर्स)