आखिर गयाजी में ही क्यों किया जाता है पिंडदान? जानें कब और किसने की शुरुआत!

भारत में किसे कहा जाता है धर्म नगरी, यहां पिण्डदान का महत्व क्यों है सबसे ज्यादा!
आप देख, सुन और पढ़ रहे हैं समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया की साई न्यूज के धर्म प्रभाग में विभिन्न जानकारियों के संबंद्ध में . . .
वैसे तो बारह महीनों में भगवान और अपने पूर्वजों का न केवल सिमरन करना चाहिए, वरन उनके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करने रहना चाहिए। सनातन धर्म में पितृपक्ष एक महत्वपूर्ण समय होता है, जिसमें हम अपने पूर्वजों को याद करते हैं और उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए उनके प्रति कृतज्ञता हैं। पिंडदान इस दौरान किया जाने वाला एक प्रमुख संस्कार है। माना जाता है कि पिंडदान करने से पितृदोष दूर होता है और पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि पिंडदान विशेष रूप से गया जी में क्यों किया जाता है?
पितृ पक्ष में अगर आप भगवान विष्णु जी की अराधना करते हैं और अगर आप विष्णु जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय विष्णु देवा अथवा हरिओम तत सत लिखना न भूलिए।
आईए जानते हैं गयाजी क्यों है पिंडदान के लिए खास?
बिहार राज्य में स्थित एक पवित्र शहर का नाम है गया, जिसे हिंदू धर्म में विशेष महत्व दिया जाता है। यह माना जाता है कि गया में पिंडदान करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति शीघ्र होती है। इसके पीछे कई धार्मिक मान्यताएं भी हैं,
विष्णु पुराण की एक कथा के अनुसार, भगवान विष्णु ने गया को पितृदोष निवारण का प्रमुख स्थान बनाया था। उन्होंने वरदान दिया था कि जो भी भक्त यहां पिंडदान करेगा, उसके पितरों को मोक्ष मिल जाएगा।
इसके अलावा मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम की कथा को भी जान लीजिए, त्रेता युग में, भगवान राम ने अपने पिता राजा दशरथ के लिए गया में पिंडदान किया था। इससे गया का धार्मिक महत्व और बढ़ गया।
अब जानिए गया जी के भौगोलिक महत्व के बारे में, गया में फल्गु नदी बहती है, जिसे पवित्र नदी माना जाता है। माना जाता है कि इस नदी में पिंडदान करने से पितरों को शीघ्र शांति मिलती है।
इस आलेख को वीडियो में देखने के लिए क्लिक कीजिए . . .

https://www.youtube.com/watch?v=y5pLys5p4us
शास्त्रीय आधार भी महत्वपूर्ण है गयाजी के संबंध में, विभिन्न पुराणों और धर्मग्रंथों में गया में पिंडदान के महत्व का उल्लेख मिलता है।
बिहार का गया जिला, जिसे लोग बड़े आदर से गयाजी कहते हैं। गया क्षेत्र को धार्मिक नगरी के रूप में भी जाना जाता है। गया जी के हर क्षेत्र, हर कोने पर मंदिर हैं, उनमें स्थापित प्रतिमाएं प्राचीन काल की बताई जाती हैं। हालाँकि, सभी की मान्यताएँ अलग अलग हैं। ऐसा माना जाता है कि भगवान श्री राम, माता सीता और लक्ष्मणजी तीनों गया जी आए थे और यहां पिंडदान किया था। तभी से यहां पिंडदान का महत्व शुरू हो गया। गयाजी में पिंडदान करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। अब देश विदेश से लोग यहां पिंडदान करने और अपने पूर्वजों की मुक्ति के लिए प्रार्थना करने आते हैं।
आइए जानते हैं कब और किसने की थी गयाजी में पिंडदान की शुरुआत,
पिंडदान के इतिहास के बारे में निश्चित रूप से कुछ कहना मुश्किल है, क्योंकि यह एक बहुत ही प्राचीन संस्कार है। हालांकि, कुछ धार्मिक ग्रंथों और मान्यताओं के आधार पर हम कुछ अनुमान लगा सकते हैं कि इसका आरंभ कब हुआ था।
वेदकालीन संदर्भों में अगर देखें तो, वेदों में पितरों के लिए श्रद्धा और तर्पण का उल्लेख मिलता है, जो पिंडदान के प्राचीन रूप हो सकते हैं।
प्राचीन ग्रंथों में उल्लेख के आधार पर कहा जा सकता है कि चूंकि पुराणों, स्मृतियों और अन्य धार्मिक ग्रंथों में पिंडदान के विस्तृत विधान दिए गए हैं इसलिए यह परंपरा आदि अनादिकाल से चली आ रही है।
भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष के 15 दिनों को पितृपक्ष कहा जाता है। गरुड़ पुराण के अनुसार, पितृ ऋण को उतारने हेतु गयाजी से इसकी शुरुआत भगवान राम ने की थी। ऐसा कहा जाता है कि भगवान राम, भगवान सीता और भगवान लक्ष्मण ने यहां आकर अपने पिता राजा दशरथ को पिंडदान समर्पित किया था। यह भी कहा जाता है कि पितृ पक्ष के दौरान इस स्थान पर पिंडदान करने से पूर्वज स्वर्ग जा सकते हैं। धार्मिक मान्यता है कि भगवान श्रीहरि यहां पितृ देवता के रूप में विराजमान हैं। इसलिए उन्हें पितृ तीर्थ भी कहा जाता है। गया के महत्व के कारण हर साल लाखों लोग अपने पूर्वजों का पिंड दान करने के लिए यहां आते हैं।
अब जानिए पिंडदान के महत्व के बारे में,
पिंडदान केवल एक धार्मिक अनुष्ठान ही नहीं है, बल्कि इसके कई सामाजिक और मनोवैज्ञानिक महत्व भी माना गया है।
अव्वल तो हम इसके जरिए पितरों का सम्मान करते हैं, पिंडदान के माध्यम से हम अपने पूर्वजों का सम्मान करते हैं और उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हैं।
पिंडदान करने से हम आध्यात्मिक रूप से विकसित होते हैं और मोक्ष की प्राप्ति के मार्ग पर आगे बढ़ते हैं। पिंडदान के दौरान परिवार और समाज के लोग एक साथ आते हैं, जिससे सामाजिक बंधन मजबूत होते हैं। इससे मनोवैज्ञानिक लाभ भी होता है, पिंडदान करने से मन शांत होता है और दुःख कम होता है।
आईए जानते हैं, पिंडदान का विधि के संदर्भ में
कहा जाता है कि पिंडदान एक जटिल अनुष्ठान है, जिसे विद्वान ब्राम्हणों के मार्गदर्शन में किया जाना चाहिए। सामान्यतया, पिंडदान के लिए निम्नलिखित सामग्री की आवश्यकता होती है इसमें,
तिल के बीज, जौ, चावल, कुश, जल, दूध, दही, घी, शहद, फल, मिठाई आदि शामिल हैं।
कहा जाता है कि गयाजी में पिंडदान से 108 कुलों का उद्धार हो जाता है। पितृ पक्ष के दौरान देश के कोने कोने से यहां तक कि विदेश से तीर्थयात्री पिंडदान और तर्पण करने के लिए गयाजी आते हैं। मान्यता है कि गया जी में पिंडदान करने से 108 कुलों और 7 पीढ़ियों का उद्धार हो जाता है और सीधे मोक्ष की प्राप्ति होती है। इससे उन्हें स्वर्ग में जगह मिलती है।
गया में पिंडदान के बाद करें इन कामों को जरूर करिए, धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जो लोग पितृ पक्ष में अपने पूर्वजों के लिए तर्पण करने जाते हैं, उनके लिए कुछ नियम होते हैं जिनका उन्हें वहां से लौटते समय पालन करना होता है। ऐसा कहा जाता है कि जब कोई व्यक्ति घर आता है तो उसे श्रीहरि की पूजा करनी चाहिए और सत्यनारायण कथा पढ़नी या सुननी चाहिए। साथ ही भगवान विष्णु के नाम पर गरीब ब्राम्हणों और उनके परिवारों को भोजन कराना चाहिए। इसके बाद ही श्राद्ध पूर्ण माना जाता है और इसके लाभकारी परिणाम सामने आते हैं। पितृ दोष से भी मुक्ति मिलती है।
गया में पिंडदान का विशेष महत्व है, क्योंकि यह एक पवित्र स्थान है और यहां पिंडदान करने से पितरों को शीघ्र मोक्ष मिलता है। हालांकि, पिंडदान केवल गया में ही नहीं, बल्कि अन्य पवित्र नदियों और स्थानों पर भी किया जा सकता है। पिंडदान एक ऐसा संस्कार है, जो हमें अपने पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने और आध्यात्मिक रूप से विकसित होने का अवसर देता है।
पितृ पक्ष में अगर आप भगवान विष्णु जी की अराधना करते हैं और अगर आप विष्णु जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय विष्णु देवा अथवा हरिओम तत सत लिखना न भूलिए।
यहां बताए गए उपाय, लाभ, सलाह और कथन आदि सिर्फ मान्यता और जानकारियों पर आधारित हैं। यहां यह बताना जरूरी है कि किसी भी मान्यता या जानकारी की समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया के द्वारा पुष्टि नहीं की जाती है। यहां दी गई जानकारी में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों, ज्योतिषियों, पंचांग, प्रवचनों, मान्यताओं, धर्मग्रंथों, दंतकथाओं, किंवदंतियों आदि से संग्रहित की गई हैं। आपसे अनुरोध है कि इस वीडियो या आलेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया पूरी तरह से अंधविश्वास के खिलाफ है। किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें।
अगर आपको समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया में खबरें आदि पसंद आ रही हो तो आप इसे लाईक, शेयर व सब्सक्राईब अवश्य करें। हम नई जानकारी लेकर फिर हाजिर होंगे तब तक के लिए इजाजत दीजिए, जय हिंद, . . .
(साई फीचर्स)