अगर कौए ने आपका दिया अन्न ग्रहण कर लिया तो मान लीजिए पितर हो गए प्रसन्न . . .
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हिन्दू पंचांग में बारह महीने होते हैं एवं हर महीने में दो पक्ष अर्थात कृष्ण और शुक्ल पक्ष होता है। इस तरह साल भर में 24 पक्ष होते हैं। प्रत्येक तीन वर्ष में इसमें एक मास और जोड़ दिया जाता है, जिसे अधिकमास भी कहा जाता है। इसमें से एक होता है पितर पक्ष, पितर पक्ष यानी पितरों को याद करने का समय भाद्र शुक्ल पूर्णिमा को ऋषि तर्पण से आरंभ होकर यह आश्विन कृष्ण अमावस्या तक होता है जिसे महालया भी कहते हैं उस दिन तक पितर पक्ष चलता है। इस दौरान पितरों की पूजा की जाती है और उनके नाम से तर्पण, श्राद्ध, पिंडदान और ब्राम्हण भोजन करवाया जाता है। पितर पूजा में कई बातें रहस्यमयी होती हैं और लोगों के मन में सवाल उत्पन्न करती हैं कि आखिर ऐसा क्यों होता है।
पितृ पक्ष में अगर आप भगवान विष्णु जी की अराधना करते हैं और अगर आप विष्णु जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय विष्णु देवा अथवा हरिओम तत सत लिखना न भूलिए।
दरअसल पितर मृत्युलोक और देवलोक के मध्य लोक में निवास करते हैं जो चंद्रमा के ऊपर बताया जाता है। इसके लिए दूसरी वजह यह भी है कि दोपहर से पहले तक सूर्य की रोशनी पूर्व दिशा से आती है जो देवलोक की दिशा मानी गई है। दोपहर में सूर्य मध्य में होता है जिससे पितरों को सूर्य के माध्यम से उनका अंश प्राप्त हो जाता है। तीसरी मान्यता यह है कि, दोपहर से सूर्य अस्त की ओर बढ़ना आरंभ कर देता है और इसकी किरणें निस्तेज होकर पश्चिम की ओर हो जाती है। जिससे पितरगण अपने निमित्त दिए गए पिंड, पूजन और भोजन को ग्रहण कर लेते हैं।
जानकार विद्वानों के अनुसार पितरपक्ष में पितरों का आगमन दक्षिण दिशा से होता है। शास्त्रों के अनुसार, दक्षिण दिशा में चंद्रमा के ऊपर की कक्षा में पितरलोक की स्थिति है। इस दिशा को यम की भी दिशा माना गया है। इसलिए दक्षिण दिशा में पितरों का अनुष्ठान किया जाता है। रामायण में उल्लेख मिलता है कि जब राजा दशरथ की मृत्यु हुई थी तो भगवान राम ने स्वपन में उनको दक्षिण दिशा की तरफ जाते हुए देखा था। रावण की मृत्य से पहले त्रिजटा ने स्वप्न में रावण को गधे पर बैठकर दक्षिण दिशा की ओर जाते हुए देखा था।
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शास्त्रों में श्राद्ध का नियम है कि दोपहर के समय पितरों के नाम से श्राद्ध और ब्राम्हण भोजन करवाया जाता है। जबकि शास्त्रों में सुबह और शाम का समय देव कार्य के लिए बताया गया है। इसलिए कहते हैं कि दोपहर में भगवान की पूजा नहीं करनी चाहिए। दिन का मध्य पितरों का समय होता है।
सनातन धर्म के अनुसार, किसी वस्तु के गोलाकार रूप को पिंड कहा जाता है। शरीर को भी पिंड माना जा सकता है। धरती भी गोले है इसलिए यह भी एक पिंड रूप है। हिंदू धर्म में निराकार की पूजा की बजाय साकार स्वरूप की पूजा को महत्व दिया गया है क्योंकि इससे साधना करना आसान होता है। इसलिए पितरों को भी पिंड रूप मानकर यानी पंच तत्वों में व्यप्त मानकर उन्हें पिंडदान दिया जाता है।
पिंडदान के समय मृतक की आत्मा को अर्पित करने के लिए चावल को पकाकर उसके ऊपर तिल, शहद, घी, दूध को मिलाकर एक गोला बनाया जाता है जिसे पाक पिंडदान कहते हैं। दूसरा जौ के आटे का पिंड बनाकर दान किया जाता है। पिंड का संबंध चंद्रमा से माना जाता है। पिंड चंद्रमा के माध्यम से पितरों को प्राप्त होता है।
वहीं, ज्योतिषीय मत यह भी है कि पिंड को तैयार करने में जिन चीजों का प्रयोग होता है उससे नवग्रहों का संबंध है। इसके दान से ग्रहों का अशुभ प्रभाव दूर होता है। इसलिए पिंडदान से दान करने वाले को लाभ मिलता है।
पितरों की पूजा में सफेद रंग का इस्तेमाल इसलिए किया जाता है क्योंकि सफेद रंग सात्विकता का प्रतीक है। आत्मा का कोई रंग नहीं है। जीवन के उस पार की दुनिया रंग विहीन पारदर्शी है इसलिए पितरों की पूजा में सफेद रंग का प्रयोग होता है। दूसरी वजह यह है कि सफेद रंग चंद्रमा से संबंध रखता है जो पितरों को उनका अंश पहुंचाते हैं।
पुराणों के अनुसार, व्यक्ति की मृत्यु हिन्दु पंचांग के अनुसार जिस तिथि को हुई होती है, उसी तिथि में उसका श्राद्ध करना चाहिए। यदि जिनकी मृत्यु के दिन की सही जानकारी न हो, उनका श्राद्ध अमावस्या तिथि को करना चाहिए। श्राद्ध मृत्यु वाली तिथि को किया जाता है।
मृत्यु तिथि के दिन पितरों को अपने परिवार द्वारा दिए अन्न जल को ग्रहण करने की आज्ञा है। इसलिए इस दिन पितर कहीं भी किसी लोक में होते हैं वह अपने निमित्त दिए गए अंश को वह जहां जिस लोक में जिस रूप में होते हैं उसी अनुरूप आहार रूप में ग्रहण कर लेते हैं।
इन सब का अलावा श्राद्ध पक्ष में कौए का भी बड़ा ही महत्व है इसलिए श्राद्ध का एक अंश कौए को भी दिया जाता है। कौए के संबंध में पुराणों बहुत ही विचित्र बात बताई गई है, मान्यता है कि कौआ अतिथि आगमन का सूचक एवं पितरों का आश्रम स्थल माना जाता है। श्राद्ध पक्ष में कौआ अगर आपके दिए अन्न को आकर ग्रहण कर ले तो तो माना जाता है कि पितरों की आप पर कृपा हो गई। गरुड़ पुराण में तो कौए को यम का संदेश वाहक कहा गया है।
आइए आपको बताते हैं कौए के बारे में वो जानकारियां जो आपने इससे पहले शायद ही सुनीं हों . . .
श्राद्ध पक्ष में कौए का विशेष महत्व इसलिए माना गया है क्योंकि इस दौरान यदि कोई भी व्यक्ति कौए को भोजन कराता है तो यह भोजन कौआ के माध्यम से उनके पितर स्वयं और सीधे ग्रहण करते हैं। शास्त्रों में बताया गया है कि कोई भी क्षमतावान आत्मा कौए के शरीर में विचरण कर सकती है। यहा यम का दूत होता है।
आश्विन महीने में कृष्णपक्ष के 16 दिनों में कौआ हर घर की छत का मेहमान के समान होता है। लोग इनके दर्शन को तरसते हैं। ये 16 दिन श्राद्ध पक्ष के दिन माने जाते हैं। इन दिनों में कौए एवं पीपल को पितर का प्रतीक माना जाता है। इन दिनों कौए को खाना खिलाकर एवं पीपल को पानी पिलाकर पितरों को तृप्त किया जाता है।
हमारे धर्म ग्रंथ की एक कथा के अनुसार इस पक्षी ने देवताओं और राक्षसों के द्वारा समुद्र मंथन से प्राप्त अमृत रस चख लिया था। यही कारण है कि कौए की कभी भी स्वाभाविक मृत्यु नहीं होती है। यह पक्षी कभी किसी बीमारी अथवा अपने वृद्धा अवस्था के कारण मृत्यु को प्राप्त नहीं होता। इसकी मृत्यु आकस्मिक रूप से ही होती है।
यह बहुत ही रोचक है कि जिस दिन कौए की मृत्यु होती है, उस दिन उसका साथी भोजन ग्रहण नहीं करता। आप ने शायद ही कभी इस बात पर ध्यान दिया होगा कि कौआ कभी भी अकेले में भोजन ग्रहण नहीं करता, बल्कि अपने किसी साथी के साथ मिलकर ही भोजन करता है। इसलिए भोजन बांटकर खाने की सीख हर किसी को कौए से लेनी चाहिए।
पुराण में स्पष्ट कहा गया है कि कौए को भविष्य में होने वाली किसी भी घटना का आभास पूर्व ही हो जाता है, इसलिए कौए को यमस्वरूप भी माना जाता है और न्याय के देवता शनिदेव का वाहन भी है।
कौआ का सबसे पहला रूप देवराज इंद्र के पुत्र जयंत ने लिया था। त्रेतायुग में जब भगवान राम ने अवतार लिया और जयंत ने कौए का रूप धारण कर माता सीता के पैर में चोंच मार दी थी। तब श्री राम ने तिनके से जयंत यानी कौए की आंख फोड़ दी थी। इसके बाद जयंत ने भगवान राम से अपने किए की माफी मांगी, तब राम ने वरदान दिया कि पितरों को अर्पित किए जाने वाले भोजन में तुम्हें हिस्सा मिलेगा। तभी से यह परम्परा चली आ रही है कि पितर पक्ष में कौए को भी एक हिस्सा मिलता है।
पितृ पक्ष में अगर आप भगवान विष्णु जी की अराधना करते हैं और अगर आप विष्णु जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय विष्णु देवा अथवा हरिओम तत सत लिखना न भूलिए।
यहां बताए गए उपाय, लाभ, सलाह और कथन आदि सिर्फ मान्यता और जानकारियों पर आधारित हैं। यहां यह बताना जरूरी है कि किसी भी मान्यता या जानकारी की समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया के द्वारा पुष्टि नहीं की जाती है। यहां दी गई जानकारी में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों, ज्योतिषियों, पंचांग, प्रवचनों, मान्यताओं, धर्मग्रंथों, दंतकथाओं, किंवदंतियों आदि से संग्रहित की गई हैं। आपसे अनुरोध है कि इस वीडियो या आलेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया पूरी तरह से अंधविश्वास के खिलाफ है। किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें।
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(साई फीचर्स)