नियमों का पालन करते हुए दुर्गा सप्तशती का पाठ करना माना गया है बहुत शुभ . . .

जगत जननी माता दुर्गा को प्रसन्न करने इस तरह आरंभ करें दुर्गा सप्तशती का पाठ . . .
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सनातन धर्म के शास्त्रों में दुर्गा सप्तशती के पाठ को नियमों का पालन करते हुए बहुत ही सावधानी से करने की सलाह दी जाती है। जानकार विद्वान बताते हैं कि अगर दुर्गा सप्तशती का पाठ नियमों का पालन करते हुए पूरे विधि विधान से किया जाए तो मनचाहे फल अवश्य मिलते हैं। नवरात्री के नौ दिनों में दुर्गा सप्तशती का पाठ करना अत्यंत शुभ माना गया है। अगर आप दुर्गा सप्तशती का पाठ करते हुए नियमों का पालन नहीं करते तो आपको इसके भयानक परिणाम भी प्राप्त हो सकते हैंः
अगर आप जगत जननी माता दुर्गा की अराधना करते हैं और अगर आप माता दुर्गा जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय भवानी, जय दुर्गा अथवा जय काली माता लिखना न भूलिए।
जानकार विद्वानों के मतानुसार माता दुर्गा के सप्तशती पाठ को शुरु करने से पहले आपको किसी पवित्र स्थान से मिट्टी लाकर एक वेदी बनाईए और उसमें जौ और गेहूं बो दीजिए, आपके द्वारा किया गया माता का पाठ कितना फलदायक या कितना सार्थक साबित हुआ इसका अंदाजा इन जौ और गेंहुओं के अंकुरित होने के अनुसार लगाया जाता है। अर्थात गेंहूं और जौ यदि शीघ्रता से अंकुरित हों तो इससे यह संकेत मिलता है कि हमारा दुर्गा पाठ सही दिशा में जा रहा है और इससे हमें अच्छे फल प्राप्त होंगे।
इसके उपरांत वेदी के ऊपर कलश की स्थापना पंचोपचार विधि से करनी चाहिए। तदोपरांत कलश के ऊपर मूर्ति की प्रतिष्ठा पंचोपचार विधि से करनी चाहिए। माता का पूजन करते समय आपको सात्विक भोजन करना चाहिए। इस दौरान आपको मांस मदिरा जैसी चीजों से बिलकुल दूर रहना चाहिए। व्रत के आरंभ में स्वस्ति वाचक शांति पाठ करने के बाद हाथ की अंजुली में जल भरकर दुर्गा पाठ शुरु करने का संकल्प लेना चाहिए।
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इसके बाद भगवान गणेश की पूजा के साथ साथ लोकपाल, नवग्रह एवं वरुण का पूजन विधि पूर्वक करना चाहिए। इसके उपरांत माता दुर्गा का षोडशोपचार पूजन करें। अब पूरी श्रद्धा के साथ माता दुर्गा सप्तशती का पाठ करें।
अब जानिए माता के दुर्गा सप्तशती के पाठ की विधि,
भारत के धर्म शास्त्रों में दुर्गा सप्तशती का पाठ करने की कई विधियों का जिक्र मिलता है जिनमें से दो विधियां सबसे ज्यादा प्रचलित हैं।
जानकार विद्वान बताते हैं कि इसकी प्रथम विधि के अनुसार, दुर्गा सप्तशती की इस पाठ विधि में नौ ब्राम्हण साधारण विधि के द्वारा पाठ आरंभ करते हैं। अर्थात इस विधि में केवल पाठ किया जाता है, पाठ के समाप्त होने पर हवन आदि नहीं किया जाता। इस विधि में एक ब्राम्हण द्वारा दुर्गा सप्तशती का आधा पाठ किया जाता है। इस आधे पाठ को करने से ही संपूर्ण पाठ की पूर्णता मानी जाती है। जबकि इसमें एक अन्य ब्राम्हण द्वारा षडंग रुद्राष्टाध्यायी का पाठ विधि पूर्वक किया जाता है।
जानकार विद्वान यह भी बताते हैं कि इसकी दूसरी विधि के अनुसार दुर्गा सप्तशती का पाठ करने की दूसरी विधि अत्यंत सरल है। इस विधि में एक दिन एक पाठ (पहला अध्याय), दूसरे दिन दूसरा और तीसरा अध्याय, तीसरे दिन चौथा अध्याय, चौथे दिन पंचम, षष्ठम, सप्तम और अष्टम अध्याय, पांचवें दिन नवम और दशम अध्याय, छठे दिन एकादश अध्याय, सातवें दिन द्वादश और त्रयोदश अध्याय करने से सप्तशती की एक आवृती पूरी हो जाती है। इस विधि से दुर्गा सप्तशती का पाठ करने पर आठवें दिन हवन और नवमें दिन पूर्ण आहुति की जाती है।
वहीं, यह भी बताया जाता है कि अगर आप बिना रुके दुर्गा सप्तशती का पाठ कर सकते हैं तो त्रिकाल संध्या के रुप में पाठ को आप तीन हिस्सों में विभाजित करके इसका पाठ कर सकते हैं।
दुर्गा सप्तशती पाठ में जिन बातों का रखें ध्यान रखने की बात कही जाती है उस संबंध में कहा जाता है कि दुर्गा सप्तशती के पाठ करने के कुछ नियम हैं जिनका पालन करके आप विशेष फलों की प्राप्ति कर सकते हैं। इन नियमों में जो बातें शामिल हैं उनमें,
किसी भी शुभ फल के लिए की जा रही पूजा गणेश जी की पूजा से होती है इसलिए दूर्गा सप्तशती के पाठ से पहले भई आपको गणेश पूजन करना चाहिए।
दुर्गा सप्तशती के पाठ में अर्गला, कवच और कीलक के स्तोत्र से पूर्व शापोद्धार करना आवश्यक है। शापोद्धार के बिना आपको दुर्गा सप्तशती का सही प्रतिफल नहीं मिलता क्योंकि दुर्गा सप्तशती का हर मंत्र ब्रम्हा, विश्वामित्र और वशिष्ठ द्वारा शापित है।
श्रीदुर्गा सप्तशती के पाठ से पूर्व और बाद में नर्वाण मंत्र ओं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाये विच्चे का पाठ करना बहुत ज़रुरी माना गया है। इस मंत्र में, माता सरस्वती, ऊंकार, माता लक्ष्मी और माता काली के बीजमंत्र है निहित हैं।
अगर आप सप्तशती का पाठ संस्कृत में नहीं कर पा रहे हैं तो इसे आप हिंदी में सरलता से पढ़ सकते हैं। हिंदी में इसका पाठ करते हुए इसका अर्थ भी आप आसानी से समझ सकते हैं।
अगर आप जगत जननी माता दुर्गा की अराधना करते हैं और अगर आप माता दुर्गा जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय भवानी, जय दुर्गा अथवा जय काली माता लिखना न भूलिए।
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(साई फीचर्स)