जानिए कैसे बने देवी माता के शक्तिपीठ, इन शक्तिपीठों की पूरी कहानी . . .

देवी पुराण में है 51 शक्तिपीठ, तो तन्त्र चूड़ामणि में बताए गए हैं 52 शक्तिपीठ . . .
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जगत जननी माता दुर्गा के नौ स्वरूपों के बारे में हर कोई जानता है और नवरात्रि में मां के इन्हीं स्वरूपों की आराधना की जाती है। हिंदू धर्म में वैसे तो माता के मंदिर में रोज ही भक्त पहुंचते हैं पर नवदुर्गा पूजन के समय मां के मंदिरों में भी भक्तों का तांता लगता है और उनमें भी मां के शक्तिपीठों का महत्व अलग ही माना जाता है।
अगर आप जगत जननी माता दुर्गा की अराधना करते हैं और अगर आप माता दुर्गा जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय भवानी, जय दुर्गा अथवा जय काली माता लिखना न भूलिए।
पवित्र शक्ति पीठ पूरे भारत के अलग-अलग स्थानों पर स्थापित हैं। देवी पुराण में 51 शक्तिपीठों का वर्णन है तो देवी भागवत में 108 और देवी गीता में 72 शक्तिपीठों का वर्णन मिलता है, वहीं तन्त्र चूड़ामणि में 52 शक्तिपीठ बताए गए हैं। देवी पुराण के मुताबिक 51 शक्तिपीठ में से कुछ विदेश में भी स्थापित हैं। भारत में 42, पाकिस्तान, श्री लंका, तिब्बत में एक एक, बांग्लादेश में 4, तथा नेपाल में 2 शक्तिपीठ हैं।
अब जानिए शक्तिपीठ की पौराणिक कथा
मां के 51 शक्तिपीठों की एक पौराणिक कथा के अनुसार राजा प्रजापति दक्ष की पुत्री के रूप में माता दुर्गा ने सती के रूप में जन्म लिया था और भगवान शिव से उनका विवाह हुआ था। एक बार मुनियों के एक समूह ने यज्ञ आयोजित किया। यज्ञ में सभी देवताओं को बुलाया गया था। जब राजा दक्ष आए तो सभी लोग खड़े हो गए लेकिन भगवान शिव खड़े नहीं हुए। भगवान शिव दक्ष के दामाद थे।
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यह देख कर राजा दक्ष बेहद क्रोधित हुए। अपने इस अपमान का बदला लेने के लिए सती के पिता राजा प्रजापति दक्ष ने भी एक यज्ञ का आयोजन किया। उस यज्ञ में ब्रम्हा, विष्णु, इंद्र और अन्य देवी देवताओं को आमंत्रित किया, लेकिन उन्होंने जान बूझकर अपने दामाद भगवान शिव को इस यज्ञ का निमंत्रण नहीं भेजा।
भगवान शिव इस यज्ञ में शामिल नहीं हुए और जब नारद जी से सती को पता चला कि उनके पिता के यहां यज्ञ हो रहा है लेकिन उन्हें निमंत्रित नहीं किया गया है। यह जानकर वे क्रोधित हो उठीं। नारद ने उन्हें सलाह दी कि पिता के यहां जाने के लिए बुलावे की जरूरत नहीं होती है। जब सती अपने पिता के घर जाने लगीं तब भगवान शिव ने उन्हें समझाया लेकिन वह नहीं मानी तो प्रभु ने स्वयं जाने से इंकार कर दिया।
देवाधिदेव महादेव भगवान शंकर जी के रोकने पर भी जिद कर सती यज्ञ में शामिल होने चली गईं। यज्ञ स्थल पर सती ने अपने पिता दक्ष से शंकर जी को आमंत्रित न करने का कारण पूछा और पिता से उग्र विरोध प्रकट किया। इस पर दक्ष, भगवान शंकर के बारे में सती के सामने ही अपमानजनक बातें करने लगे। इस अपमान से पीड़ित सती ने यज्ञ कुंड में कूदकर अपनी प्राणाहुति दे दी।
भगवान शंकर को जब यह पता चला तो क्रोध से उनका तीसरा नेत्र खुल गया। ब्रम्हाण्ड में प्रलय व हाहाकार मच गया। शिव जी के आदेश पर वीरभद्र ने दक्ष का सिर काट दिया और अन्य देवताओं को शिव निंदा सुनने की भी सजा दी। भगवान शंकर ने यज्ञकुंड से सती के पार्थिव शरीर को निकाल कंधे पर उठा लिया और दुःखी होकर सारे भूमंडल में घूमने लगे।
भगवती सती ने शिवजी को दर्शन दिए और कहा कि जिस जिस स्थान पर उनके शरीर के अंग अलग होकर गिरेंगे, वहां महाशक्तिपीठ का उदय होगा। सती का शव लेकर शिव पृथ्वी पर घूमते हुए तांडव भी करने लगे, जिससे पृथ्वी पर प्रलय की स्थिति उत्पन्न होने लगी। पृथ्वी समेत तीनों लोकों को व्याकुल देखकर भगवान विष्णु अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को खंड खंड कर धरती पर गिराते गए। जब जब शिव नृत्य मुद्रा में पैर पटकते, विष्णु अपने चक्र से माता के शरीर का कोई अंग काटकर उसके टुकड़े पृथ्वी पर गिरा देते।
शास्त्रों के अनुसार इस प्रकार जहां जहां सती के अंग के टुकड़े, उनके वस्त्र या आभूषण गिरे , वहां वहां शक्तिपीठ का उदय हुआ। इस तरह कुल 51 स्थानों में माता के शक्तिपीठों का निर्माण हुआ। अगले जन्म में सती ने राजा हिमालय के घर पार्वती के रूप में जन्म लिया और घोर तपस्या कर शिव को पुनरू पति रूप में प्राप्त किया।
जानकार विद्वानों के अनुसार शास्त्र में इन बातों का उल्लेख है कि जहां सती देवी के शरीर के अंग गिरे, वहां वहां शक्ति पीठ बन गईं। ये अत्यंत पावन तीर्थ कहलाये। ये तीर्थ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर फैले हुए हैं। जयंती देवी शक्ति पीठ भारत के मेघालय राज्य में नॉरटियांग नामक स्थान पर है।
अब जानिए तंत्र चूडामणि अनुसार क्या है कथा,
पुराण ग्रंथों, तंत्र साहित्य एवं तंत्र चूड़ामणि में जिन बावन शक्तिपीठों का वर्णन मिलता है, बावनवाँ शक्तिपीठ अन्य ग्रंथों के आधार पर है। इन बावन शक्तिपीठों के अतिरिक्त अनेका नेक मंदिर देश विदेश में विद्यमान हैं। हिमाचल प्रदेश में नयना देवी का पीठ (बिलासपुर) भी विख्यात है। गुफा में प्रतिमा स्थित है। कहा जाता है कि यह भी शक्तिपीठ है और सती का एक नयन यहाँ गिरा था। इसी प्रकार उत्तराखंड के पर्यटन स्थल मसूरी के पास सुरकंडा देवी का मंदिर (धनौल्टी में) है। यह भी शक्तिपीठ है। कहा जाता है कि यहाँ पर सती का सिर धड़ से अलग होकर गिरा था। माता सती के अंग भूमि पर गिरने का कारण भगवान श्री विष्णु द्वारा सुदर्शन चक्र से सती माता के समस्तांग विछेदित करना था। ऐसी भी मान्यता है कि उत्तर प्रदेश के सहारनपुर के निकट एक अति प्राचीन शक्तिपीठ क्षेत्र मे माता का शीश गिरा था जिस कारण वहाँ देवी को दुर्गमासुर संहारिणी शाकम्भरी कहा गया। यहाँ भैरव भूरादेव के नाम से प्रथम पुजा पाते हैं। यह शाकम्भरी पीठ अत्यंत जाग्रत क्षेत्र है।
अब जानते हैं माता के जाग्रत सिद्ध शक्तिपीठों के बारे में, माता का कोलकता स्थित काली माता मंदिर, हिंगलाज भवानी, शाकम्भरी देवी सहारनपुर, विंध्यवासिनी शक्तिपीठ उत्तर प्रदेश, चामुण्डा देवी हिमाचल प्रदेश, ज्वालामुखी हिमाचल प्रदेश, कामाख्या देवी असम, हरसिद्धि माता उज्जैन, छिन्नमस्तिका पीठ रजरप्पा, पद्माक्षी रेणुका पीठ श्रीबाग( अलिबाग) इसमें शामिल हैं।
अगर आप जगत जननी माता दुर्गा की अराधना करते हैं और अगर आप माता दुर्गा जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय भवानी, जय दुर्गा अथवा जय काली माता लिखना न भूलिए।
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(साई फीचर्स)