माता वैष्णो देवी की उत्पत्ति, कथा, पूजा आदि सब कुछ जानिए विस्तार से . . .

त्रिकुटा के पर्वत पर विराजी हैं माता वैष्णो देवी, भैरोबाबा के दर्शन बिना नहीं होते दर्शन पूरे!
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जम्मू के करीब त्रिकुटा पर्वत पर विराजी माता वैष्णो देवी सनातन धर्म की सर्वाधिक पूजी जाने वाली देवी हैं। माता वैष्णो देवी मंदिर देश के पवित्र धार्मिक स्थलों में से एक है। यह जम्मू में कटरा से करीब 12 किलो मीटर की दूरी पर त्रिकुटा पर्वत पर स्थित है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार, इस मंदिर को माता रानी और वैष्णवी के नाम से जानते हैं। वैष्णो देवी देश के प्रमुख हिंदू तीर्थ स्थानों में से एक है। मां वैष्णो देवी मंदिर को मां पार्वती या शक्ति का स्वरूप माना गया है। इसे 33 हिंदू देवी देवताओं का घर माना जाता है। मान्यता है कि मां वैष्णो देवी के दर्शन से भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं। माता रानी का आशीर्वाद पाने के लिए भक्त अपनी सामर्थ्य के अनुसार प्रयास करते हैं, पौराणिक कथा के अनुसार, वैष्णो देवी दुर्बल लोगों को शक्ति, अंधों को दृष्टि, जरूरतमंदों को धन और निःसंतान दंपत्तियों को संतान का आशीर्वाद देती हैं।
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आईए जानते हैं कि माता वैष्णो देवी कैसे प्रकट हुईं थीं,
पौराणिक कथा के अनुसार, वैष्णो माता का जन्म दक्षिणी भारत में रत्नाकर महाराज के घर हुआ था। माता के जन्म से पहले उनके माता पिता निसंतान रहे। कहा जाता है कि माता का जन्म होने से एक रात पहले उनके माता ने वचन लिया था कि बालिका जो भी चाहे वे उसके रास्ते में नहीं आएंगी। बचपन में माता का नाम त्रिकुटा था। बाद में उनका जन्म भगवान विष्णु के वंश में हुआ, जिसके कारण उनका नाम वैष्णवी कहलाया।
मान्यता है कि माता वैष्णो देवी ने त्रेता युग में माता पार्वती, सरस्वती और लक्ष्मी के रूप में मानव जाति के कल्याण के लिए एक सुंदर राजकुमारी का अवतार लिया था। उन्होंने त्रिकुटा पर्वत पर तपस्या की थी। बाद में उनका शरीर तीन दिव्य ऊर्जाओं महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती के सूक्ष्म रूप में विलीन हो गया।
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मां वैष्णोदेवी मंदिर की कहानी और महिमा के बारे में माना जाता है कि करीब 700 साल पहले मंदिर का निर्माण पंडित श्रीधर ने किया था। श्रीधर एक ब्राम्हण पुजारी थे। श्रीधर व उनकी पत्नी माता रानी के परम भक्त थे। एक बार श्रीधर को सपने में दिव्य ज्योति के जरिए भंडारा करने का आदेश मिला। लेकिन श्रीधर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। जिसके कारण वह आयोजन की चिंता करने लगे और चिंता में पूरी रात जागे। फिर उन्होंने सब किस्मत पर छोड़ दिया। सुबह होने पर लोग वहां प्रसाद ग्रहण करने के लिए आने लगे। जिसके बाद उन्होंने देखा कि वैष्णो देवी के रूप में एक छोटी कन्या उनकी कुटिया में पधारी और उनके साथ भंडारा तैयार किया।
गांव वालों ने इस प्रसाद को ग्रहण किया। इस प्रसाद को ग्रहण करने के बाद लोगों को संतुष्टि मिली लेकिन वहां मौजूद भैरवनाथ को नहीं। उसने अपने जानवरों के लिए और खाने की मांग की। लेकिन वहां वैष्णो देवी के रूप में एक छोटी कन्या ने श्रीधर की ओर से ऐसा करने से इनकार कर दिया। भैरवनाथ ने मांसाहार और मदिरा की मांग की। कन्या रूपी मां ने उसे समझाया कि यह ब्राम्हण के यहां का भोजन है, इसमें मांसाहार नहीं किया जाता। किंतु भैरवनाथ ने जान बूझकर अपनी बात पर अड़ा रहा। जब भैरवनाथ ने उस कन्या को पकड़ना चाहा, तब मां ने उसके कपट को जान लिया। मां वायु रूप में बदलकर त्रिकूटा पर्वत की ओर उड़ चलीं। भैरवनाथ भी उनके पीछे गया।
जिसके बाद भैरवनाथ ये अपमान सह नहीं पाया और उसने दिव्य लड़की को पकड़ने की कोशिश की। लेकिन वह ऐसा करने में विफल रहा। लड़की गायब हो गई। इस घटना से श्रीधर को बहुत दुख हुआ। माना जाता है कि मां की रक्षा के लिए पवन पुत्र हनुमान भी थे। हनुमानजी को प्यास लगने पर माता ने उनके आग्रह पर धनुष से पहाड़ पर बाण चलाकर एक जलधारा निकाली और उस जल में अपने केश धोए। आज यह पवित्र जलधारा बाणगंगा के नाम से जानी जाती है। इसके पवित्र जल को पीने या इसमें स्नान करने से श्रद्धालुओं की सारी थकावट और तकलीफें दूर हो जाती हैं।
इस दौरान माता ने एक गुफा में प्रवेश कर नौ माह तक तपस्या की। भैरवनाथ भी उनके पीछे वहां तक आ गया। तब एक साधु ने भैरवनाथ से कहा कि तू जिसे एक कन्या समझ रहा है, वह आदिशक्ति जगदम्बा है, इसलिए उस महाशक्ति का पीछा छोड़ दे। भैरवनाथ ने साधु की बात नहीं मानी। तब माता गुफा की दूसरी ओर से मार्ग बनाकर बाहर निकल गईं। यह गुफा आज भी अर्द्धकुमारी या आदिकुमारी या गर्भजून के नाम से प्रसिद्ध है।
अर्द्धकुमारी के पहले माता की चरण पादुका भी है। यह वह स्थान है, जहां माता ने भागते-भागते मुड़कर भैरवनाथ को देखा था। गुफा से बाहर निकल कर कन्या ने देवी का रूप धारण किया। माता ने भैरवनाथ को चेताया और वापस जाने को कहा। फिर भी वह नहीं माना। माता गुफा के भीतर चली गईं। तब माता की रक्षा के लिए हनुमानजी गुफा के बाहर थे और उन्होंने भैरवनाथ से युद्ध किया। भैरव ने फिर भी हार नहीं मानी। जब वीर लंगूर निढाल होने लगा, तब माता वैष्णवी ने महाकाली का रूप लेकर भैरवनाथ का संहार कर दिया। भैरवनाथ का सिर कटकर भवन से 8 किलो मीटर दूर त्रिकूट पर्वत की भैरव घाटी में गिरा। उस स्थान को भैंरोनाथ के मंदिर के नाम से जाना जाता है।
जिस स्थान पर मां वैष्णो देवी ने हठी भैरवनाथ का वध किया, वह स्थान पवित्र गुफा अथवा भवन के नाम से प्रसिद्ध है। इसी स्थान पर दाएं माता महाकाली, मध्य में माता महासरस्वती और बाईं ओर माता महालक्ष्मी पिंडी के रूप में गुफा में विराजमान हैं। इन तीनों के सम्मिलत रूप को ही मां वैष्णो देवी का रूप कहा जाता है।
कहा जाता है कि अपने वध के बाद भैरवनाथ को अपनी भूल का पश्चाताप हुआ और उसने मां से क्षमादान की भीख मांगी। माता वैष्णो देवी जानती थीं कि उन पर हमला करने के पीछे भैरव की प्रमुख मंशा मोक्ष प्राप्त करने की थी। उन्होंने न केवल भैरव को पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति प्रदान की, बल्कि उसे वरदान देते हुए कहा कि मेरे दर्शन तब तक पूरे नहीं माने जाएंगे, जब तक कोई भक्त, मेरे बाद तुम्हारे दर्शन नहीं करेगा। उसी मान्यता के अनुसार आज भी भक्त माता वैष्णो देवी के दर्शन करने के बाद करीब पौने तीन किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई करके भैरवनाथ के दर्शन करने जाते हैं।
इस बीच वैष्णो देवी ने तीन पिंड (सिर) सहित एक चट्टान का आकार ग्रहण किया और सदा के लिए ध्यानमग्न हो गईं। इस बीच पंडित श्रीधर अधीर हो गए। वे त्रिकुटा पर्वत की ओर उसी रास्ते आगे बढ़े, जो उन्होंने सपने में देखा था, अंततः वे गुफा के द्वार पर पहुंचे। उन्होंने कई विधियों से पिंडों की पूजा को अपनी दिनचर्या बना ली। देवी उनकी पूजा से प्रसन्न हुईं। वे उनके सामने प्रकट हुईं और उन्हें आशीर्वाद दिया। तब से श्रीधर और उनके वंशज देवी मां वैष्णो देवी की पूजा करते आ रहे हैं।
श्रीधर ने अपनी माता रानी के दर्शन करने की लालसा जताई। जिसके बाद एक रात वैष्णो माता ने श्रीधर को सपने में दर्शन दिए और उन्हें त्रिकुटा पर्वत पर एक गुफा का रास्ता दिखाया, जिसमें उनका प्राचीन मंदिर है। बाद में ये मंदिर दुनियाभर में माता वैष्णो देवी के नाम से जाना जाने लगा।
जानिए भैरव बाबा के दर्शन जरूरी क्यों हैं!,
धार्मिक मान्यता है कि मां वैष्णो देवी के दरबार में आने वाले श्रद्धालुओं की यात्रा तब तक पूरी नहीं मानी जाती, जब तक भक्त भैरों घाटी जाकर मंदिर में भैरव बाबा के दर्शन न कर लें। भैरौं या भैरौंनाथ एक प्रसिद्ध तांत्रिक हैं। इन्हें कई स्थानों पर अघोरी साधु के रूप में भी वर्णित किया गया है। भैरौंनाथ एक दानव कुल से थे और सतयुग में इनके पिता दुर्जय और पितामह दैत्यराज का वध भी माता वैष्णो देवी ने किया था। उनकी कथा अभी आपको बताई है।
आईए जानते हैं माता वैष्णो देवी के बारे में और जानकारियां,
अर्द्धकुवारी गुफा का रहस्य पौराणिक कथा में वर्णित है कि अर्द्धकुवारी गुफा को गर्भजून भी कहा जाता है। कथा के अनुसार, जब भैरव नाथ माता वैष्णो देवी का पीछा करते हुए त्रिकुटा पर्वत तक पहुंच गया तब माता रानी ने विश्राम के लिए अर्द्धकुवारी गुफा को चुना था। मां ने इस गुफा में नौ महीने तक तपस्या की थी। अर्द्धकुवारी गुफा ने माता रानी की उसी तरह रक्षा की थी जैसे एक भ्रूण अपनी मां के गर्भ में सुरक्षित रहता है। इसके कारण, गुफा को गर्भजून नाम दिया गया। इस वजह से मान्यता है कि जो महिलाएं गुफा में आती हैं उन्हें गर्भावस्था या प्रसव के दौरान कभी भी किसी मुश्किल का अनुभव नहीं होता है।
जानकार विद्वान बताते हैं कि हिंदू महाकाव्य महाभारत में वैष्णो देवी का संदर्भ मिलता है। महाकाव्य का दावा है कि अर्जुन ने कुरुक्षेत्र के महान युद्ध से पहले जीत के लिए माता रानी का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए मां की पूजा की थी।
भगवान राम से संबंध ऐसा माना जाता है कि माता वैष्णो देवी ने रावण पर भगवान राम की विजय के लिए प्रार्थना करने के लिए नवरात्रि मनाया था। यह भी कहा जाता है कि भगवान राम ने उन्हें वादा किया था कि उन्हें माता वैष्णो देवी के रूप में पूजा जाएगा और हर कोई उनकी प्रशंसा करेगा।
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(साई फीचर्स)