जानिए महर्षि वाल्मीकि की नजरों में भगवान राम का कैसा था स्वरूप . . .

संस्कृत में लिखी रामायण के रचियता माना जाता है महर्षि वाल्मीकि को . . .
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महर्षि वाल्मीकि जी को संस्कृत में लिखी गई रामायण का रचियता माना गया है। उन्हें आदिकवि के नाम से भी जाना जाता है। महर्षि वाल्मीकि ने जिस रामायण की रचना की वो वाल्मीकि रामायण के नाम से जानी जाती है। उन्होंने पहले महाकाव्य की रचना की जिसे रामायण के नाम से जानते हैं। आज भी महर्षि वाल्मीकि के द्वारा रची गई रामायण का बहुत ज्यादा महत्व है।
ऐसा माना जाता है कि अपने वनवास के समय भगवान श्री राम वाल्मीकि के आश्रम भी गए थे। महर्षि वाल्मीकि जी को भगवान राम के जीवन मे घटित घटनाओं की जानकारी थी। कहा जाता है कि ऋषि वाल्मीकि को तीनों कालों अर्थात सतयुग, त्रेता और द्वापर युग का ज्ञान था। महाभारत काल मे भी वाल्मीकि जी का उल्लेख मिलता है।
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महर्षि वाल्मीकि का जन्म अश्विन माह की पूर्णिमा तिथि को हुआ था। वाल्मीकि जयंती को प्रकट दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन लोग सभा करते हैं और शोभा यात्रा निकालते हैं। उनके मंदिर को सजाया जाता है और उत्साह के साथ वाल्मीकि जयंती मनाते हैं। अश्विन माह की पूर्णिमा तिथि के मुताबिक इस साल प्रकट दिवस यानी वाल्मीकि जयंती 17 अक्तूबर 2024 को मनाई जा रही है। वाल्मीकि जंयती के शुभ अवसर पर जानिए वाल्मिकी जी के अनुसार प्रभु श्री राम कैसे दिखते होंगे।
मुख, आंखे और बाल के बारे में जानिए, ऋषि वाल्मीकि जी कहते है कि भगवान राम का चेहरा चंद्रमा की तरह चमकदार और सुंदर है। उनकी आंखों की तुलना कमल से की गई। आंखों के कोणों के ताम्र रंग को ताम्राक्ष और लोहिताश के रूप में व्यक्त किया है। ऋषि वाल्मीकि के अनुसार भगवान श्री राम के बाल लंबे और घने थे।
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नाक और कान के संबंध में क्या कहा है महर्षि वाल्मीकि ने, महर्षि वाल्मीकि के अनुसार, भगवान राम की नाक उनके चेहरे की तरह लंबी और सुडौल थी। उन्होंने भगवान राम को महानासिका वाला बताया है। महानासिका से तात्पर्य उन्नत और दीर्घ नासिका से है। वहीं प्रभु श्री राम के कानों के लिए उन्होंने टीकारों ने चतुर्दश समद्वन्द और दशवृहत जैसे शब्दों का प्रयोग किया है। जिसका अर्थ है कानों का सम और बड़ा होना। वाल्मीकि ने उनके कानों के लिए शुभ कुंडलों का प्रयोग भी किया है।
हाथ और चरण के संबंध में महर्षि वाल्मीकि के अनुसार, प्रभु के हाथ के अंगूठे में चारों वेदों की प्राप्ति सूचक रेखा थी, जिसके चलते उन्हें चतुष्फलक कहा गया है। राम के चरणों के लिए चतुर्दश समद्वन्द्व और दशपदम विश्लेषण का प्रयोग हुआ है यानी श्रीराम के चरण सम और कमल के समान बताए गए हैं।
जानिए कैसे गुजरा महर्षि वाल्मीकि का बचपन,
ग्रंथों के अनुसार महर्षि वाल्मीकि का मूल नाम रत्नाकर था। इनके जन्म को लेकर कई मत है, एक मत के अनुसार ये ब्रम्हाजी के मानस पुत्र प्रचेता की संतान थे। वहीं जानकारों के अनुसार वाल्मीकि जी को महर्षि कश्यप चर्षणी की संतान माना जाता है। इन्होंने ब्राम्हण कुल में जन्म लिया था लेकिन एक भीलनी ने बचपन में इनका अपहरण कर लिया और भील समाज में इनका लालन पालन हुआ। भील लोग जंगल के रास्ते से गुजरने वालों को लूट लिया करते थे। रत्नाकर ने भी इसी परिवार के साथ डकैती का काम करना शुरू कर दिया।
नारद मुनि के कहने पर महर्षि वाल्मीकि ने लिख दिया महाकाव्य, नारद मुनि के कहने पर रत्नाकार ने रामनाम का जाप शुरू कर दिया लेकिन उसके मुंह से मरा मरा ही शब्द निकल रहे थे। नारद मुनि ने कहा कि यही दोहराते रहो इसी में राम छिपे हैं। फिर रत्नाकार ने राम नाम की ऐसी अलख जगाई की उन्हें खुद भी ज्ञात नहीं रहा कि उनके शरीर पर दीमकों ने बांबी बना ली है। इनकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रम्हाजी ने दर्शन दिए और इनके शरीर पर लगे बांबी को देखा तो रत्नाकर को वाल्मीकि नाम दिया।
जानिए कहां से मिली रामायण लिखने की प्रेरण, ब्रम्हाजी ने महर्षि वाल्मीकि को रामायण की रचना करने की प्रेरणा दी। इन्होंने रामायण संस्कृत में लिखी थी जिसे सबसे प्रचीन रामायण माना जाता है। इसमें 24 हजार श्लोक हैं। मूल रूप से महर्षि वाल्मीकि द्वारा लिखित रामायण में सात सर्ग (कांड) हैं। रामायण लगभग 48 लाख 2शब्दों से बनी है, जो महाभारत के पूर्ण पाठ की लंबाई का एक चौथाई या इलियड की लंबाई का लगभग चार गुना है। रामायण कोसल साम्राज्य के अयोध्या शहर के एक राजकुमार राम की कहानी बताती है, जिनकी पत्नी सीता का अपहरण लंका के राक्षस राजा रावण ने किया था। विद्वानों का अनुमान है कि इस पाठ का प्रारंभिक चरण आठवीं से चाथी शताब्दी ईसा पूर्व तक है, और बाद के चरण तीसरी शताब्दी ईस्वी तक फैले हैं, हालांकि रचना की मूल तिथि अज्ञात है। कई पारंपरिक महाकाव्यों की तरह, यह प्रक्षेप और संपादन की प्रक्रिया से गुजरा है,
ब्रिटिश व्यंग्यकार ऑब्रे मेनन कहते हैं कि वाल्मीकि को एक साहित्यिक प्रतिभा के रूप में पहचाना जाता था, और इस प्रकार उन्हें एक अपराधी माना जाता था, संभवतः उनके दार्शनिक संदेहवाद के कारण, भारतीय ज्ञानोदय अवधि के हिस्से के रूप में। वाल्मीकि को राम के समकालीन के रूप में भी उद्धृत किया जाता है। मेनन का दावा है कि वाल्मीकि पूरे इतिहास में खुद को अपनी रचना में लाने वाले पहले लेखक हैं।
एक अन्य मान्यता के अनुसार वरुण के पुत्र और वाल्मीकि नाम वाल्मीकि महर्षि कश्यप और अदिति के नौंवें पुत्र वरुण यानी आदित्य से इनका जन्म हुआ। इनकी माता चर्षणी और भाई भृगु थे। उपनिषद के मुताबिक ये भी अपने भाई भृगु की भांति परम ज्ञानी थे। एक बार ध्यान में बैठे हुए वरुणपुत्र के शरीर को दीमकों ने अपना ढूह यानी बांबी बनाकर ढक लिया था। साधना पूरी करके जब ये बांबी जिसे वाल्मीकि कहते हैं, उससे बाहर निकले तो इनका नाम वाल्मीकि पड़ा।
जानिए रत्नाकर से बने महर्षि वाल्मीकि की कथा के बारे में, धर्म ग्रंथों के मुताबिक, महर्षि वाल्मीकि का नाम पहले रत्नाकर था। ये अपने परिवार के पालनपोषण के लिए लूटपाट करते थे। एक बार उन्हें निर्जन वन में नारद मुनि मिले। जब रत्नाकर ने उन्हें लूटना चाहा, तो उन्होंने रत्नाकर से पूछा कि यह काम तुम किसलिए करते हो? तब रत्नाकर ने जवाब दिया कि अपने परिवार के भरणपोषण के लिए।
नारद ने प्रश्न किया कि इस काम के फलस्वरूप जो पाप तुम्हें होगा, क्या उसका दंड भुगतने में तुम्हारे परिवार वाले तुम्हारा साथ देंगे? नारद मुनि के प्रश्न का जवाब जानने के लिए रत्नाकर अपने घर गए। परिवार वालों से पूछा कि मेरे द्वारा किए गए काम के फलस्वरूप मिलने वाले पाप के दंड में क्या तुम मेरा साथ दोगे? रत्नाकर की बात सुनकर सभी ने मना कर दिया।
रत्नाकर ने वापस आकर यह बात नारद मुनि को बताई। तब नारद मुनि ने कहा कि जिन लोगों के लिए तुम बुरे काम करते हो यदि वे ही तुम्हारे पाप में भागीदार नहीं बनना चाहते तो फिर क्यों तुम यह पापकर्म करते हो? नारद मुनि की बात सुनकर इनके मन में वैराग्य का भाव आ गया। अपने उद्धार के उपाय पूछने पर नारद मुनि ने इन्हें राम नाम का जाप करने के लिए कहा। रत्नाकर वन में एकांत स्थान पर बैठकर रामराम जपने लगे। कई सालों तक कठोर तप के बाद उनके पूरे शरीर पर चींटियों ने बाँबी बना ली, इसी वजह से इनका वाल्मीकि पड़ा। कालांतर में महर्षि वाल्मीकि ने रामायण महाकाव्य की रचना की।
ब्रम्हाजी के कहने पर की रामायण की रचना क्रोंच पक्षी की हत्या करने वाले एक शिकारी को इन्होंने शाप दिया था तब अचानक इनके मुख से श्लोक की रचना हो गई थी। फिर इनके आश्रम में ब्रम्हा जी ने प्रकट होकर कहा कि मेरी प्रेरणा से ही ऐसी वाणी आपके मुख से निकली है। इसलिए आप श्लोक रूप में ही श्रीराम के संपूर्ण चरित्र का वर्णन करें। इस प्रकार ब्रम्हाजी के कहने पर महर्षि वाल्मीकि ने रामायण महाकाव्य की रचना की।
राम के त्यागने के बाद वाल्मीकि आश्रम में रही थीं माता सीता ये माना जाता है कि जब प्रभु श्री राम ने माता सीता का त्याग कर दिया था। तब माता सीता कई सालों तक महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में ही रही थीं। यहीं पर उन्होंने लव और कुश को जन्म दिया। यहीं पर उन्हें वन देवी के नाम से जाना गया। इसीलिए महर्षि वाल्मीकि का भी उतना ही महत्व है। जितना रामायण में राम, सीता, लक्ष्मण और बाकी किरदारों का है।
जानिए किस तरह निकला पहला श्लोक, वाल्मीकि नित्यक्रिया के लिए गंगा नदी पर जा रहे थे। भारद्वाज नाम का एक शिष्य उनके वस्त्र लेकर जा रहा था। रास्ते में उन्हें तमसा नदी मिली। नदी की ओर देखते हुए वाल्मीकि ने अपने शिष्य से कहा, देखो, यह जल कितना स्वच्छ है, किसी भले आदमी के मन जैसा! आज मैं यहीं स्नान करूँगा। जब वे नदी में उतरने के लिए उपयुक्त स्थान ढूँढ़ रहे थे, तो उन्होंने एक सारस जोड़े को समागम करते देखा। पक्षियों को प्रसन्न देखकर वाल्मीकि को बहुत प्रसन्नता हुई। अचानक बाण लगने से नर पक्षी वहीं मर गया। दुःख से भरकर उसकी साथी पीड़ा से चीख उठी और सदमे से मर गई। यह दयनीय दृश्य देखकर वाल्मीकि का हृदय द्रवित हो गया। उन्होंने इधरउधर देखा कि पक्षी को किसने मारा है। उन्होंने पास में ही एक शिकारी को धनुषबाण लिए देखा। वाल्मीकि को बहुत क्रोध आया। उनके होठ खुले और वे चिल्ला उठे,
मा नवादा प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः।
यत्क्रौञ्चमिथुना देकमवधीः काममोहितम।
मा निषाद प्रतिष्ठा त्वमगमः शाश्वतीः समाः यत।
क्रौंचमिथुनादेकम अवधिः काममोहितम।
इसका अर्थ है कि तुम्हें अनंत काल के लंबे वर्षों तक कोई आराम नहीं मिलेगा, क्योंकि तुमने प्यार में और बिना किसी संदेह के एक पक्षी को मार डाला। वाल्मीकि के क्रोध और शोक से स्वतःस्फूर्त रूप से उभरे इस दोहे को संस्कृत साहित्य का पहला श्लोक माना जाता है। वाल्मीकि ने बाद में इसी छंद में पूरी रामायण की रचना की। वाल्मीकि को आदि कवि (प्रथम कवि) के रूप में सम्मानित किया जाता है; रामायण को प्रथम काव्य (कविता) के रूप में सम्मानित किया जाता है।
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(साई फीचर्स)