करवा अपने पति को यमराज से लेकर आईं थीं छुड़ाकर, उसी तरह विवाहिता अपने पति के लिए . . .

पति की संकट रहित, एश्वर्य से परिपूर्ण लंबी आयु के लिए रखती हैं महिलाएं करवा चौथ का व्रत
आप देख, सुन और पढ़ रहे हैं समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया की साई न्यूज के धर्म प्रभाग में विभिन्न जानकारियों के संबंद्ध में . . .
सुहागिन स्त्रियां अपने पति के एश्वर्य, धन धान्य से परिपूर्ण, संकटों से मुक्त लंबी आयु के लिए साल में एक बार करवा चौथ का व्रत रखतीं हैं। हिंदू सनातन पद्धति में करवा चौथ सुहागिनों का महत्वपूर्ण त्योहार माना गया है। इस पर्व पर महिलाएं हाथों में मेहंदी रचाकर, चूड़ी पहन व सोलह श्रृंगार कर अपने पति की पूजा कर व्रत का पारायण करती हैं। सुहागिन या पतिव्रता स्त्रियों के लिए करवा चौथ बहुत ही महत्वपूर्ण व्रत है। यह व्रत कार्तिक कृष्ण की चंद्रोदय व्यापिनी चतुर्थी को किया जाता है। यदि दो दिन की चंद्रोदय व्यापिनी हो या दोनों ही दिन, न हो तो मातृविद्धा प्रशस्यते के अनुसार पूर्वविद्धा लेना चाहिए। यह व्रत अलग अलग क्षेत्रों में वहां की प्रचलित मान्यताओं के अनुरूप रखा जाता है, लेकिन इन मान्यताओं में थोड़ा बहुत अंतर होता है। सार तो सभी का एक होता है पति के लिए दीर्घायु की कामना करना।
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आईए जानते हैं इस साल करवा चौथ की पूजा का मुहूर्त
चतुर्थी तिथि प्रारम्भ होगी 20 अक्टूबर 2024 को सुबह 6 बजकर 46 मिनिट पर, एवं चतुर्थी तिथि समाप्त होगी 21 अक्टूबर 2024 को सुबह 4 बजकर 16 मिनिट पर, करवा चौथ व्रत समय सुबह 6 बजकर 25 मिनिट से शाम 7 बजकर 54 मिनिट तक अर्थात इसकी कुल अवधि होगी 13 घण्टे 29 मिनट, इसके अलावा करवा चौथ पूजा मुहूर्त शाम 5 बजकर 46 मिनिट से शाम 7 बजकर 2 मिनिट तक एवं इसकी अवधि रहेगी 1 घण्टा 16 मिनट। करवा चौथ के दिन चन्द्रोदय का समय शाम 7 बजकर 54 मिनिट होगा।
अब करवा चौथ व्रत की विधि जानिए,
सबसे पहले करवा चौथ की आवश्यक संपूर्ण पूजन सामग्री को एकत्र करें। व्रत के दिन प्रातः स्नानादि करने के पश्चात यह संकल्प मम सुखसौभाग्य पुत्रपौत्रादि सुस्थिर श्री प्राप्तये करक चतुर्थी व्रतमहं करिष्ये बोलकर करवा चौथ व्रत का आरंभ करें। करवा चौथ व्रत के दिन पूरे दिन निर्जला रहें। दीवार पर गेरू से फलक बनाकर पिसे चावलों के घोल से करवा चित्रित करें। इसे वर कहते हैं। चित्रित करने की कला को करवा धरना कहा जाता है। आठ पूरियों की अठावरी जिसे अठवाईं भी कहा जाता है बनाएं, हलुआ बनाएं, पक्के पकवान बनाएं। पीली मिट्टी से गौरी बनाएं और उनकी गोद में गणेशजी बनाकर बिठाएं। गौरी को लकड़ी के आसन पर बिठाएं। चौक बनाकर आसन को उस पर रखें। गौरी को चुनरी ओढ़ाएं। बिंदी आदि सुहाग सामग्री से गौरी का श्रृंगार करें।
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जल से भरा हुआ लोटा रखें। इसके बाद वायना, भेंट देने के लिए मिट्टी का टोंटीदार करवा लें। करवा में गेहूं और ढक्कन में शक्कर का बूरा भर दें। उसके ऊपर दक्षिणा रखें। रोली से करवा पर स्वस्तिक बनाएं। गौरी गणेश और चित्रित करवा की परंपरानुसार पूजा करें। पति की दीर्घायु की कामना करें। इसके साथ् ही मंत्र बोलें, नमः शिवायै शर्वाण्यै सौभाग्यं संतति शुभाम। प्रयच्छ भक्तियुक्तानां नारीणां हरवल्लभे।
करवा पर 13 बिंदी रखें और गेहूं या चावल के 13 दाने हाथ में लेकर करवा चौथ की कथा कहें या सुनें। कथा सुनने के बाद करवा पर हाथ घुमाकर अपनी सासुजी के पैर छूकर आशीर्वाद लें और करवा उन्हें दे दें। तेरह दाने गेहूं के और पानी का लोटा या टोंटीदार करवा अलग रख लें। रात्रि में चन्द्रमा निकलने के बाद छलनी की ओट से उसे देखें और चन्द्रमा को अर्घ्य दें। इसके बाद पति से आशीर्वाद लें। उन्हें भोजन कराएं और स्वयं भी भोजन कर लें। पूजन के पश्चात आस पड़ोस की महिलाओं को करवा चौथ की बधाई देकर पर्व को संपन्न करें।
सायं बेला पर पुरोहित से कथा सुनें, दान दक्षिणा दें। तत्पश्चात रात्रि में जब पूर्ण चंद्रोदय हो जाए तब चंद्रमा को छलनी से देखकर अर्घ्य दें, आरती उतारें और अपने पति का दर्शन करते हुए पूजा करें। इससे पति की उम्र लंबी होती है। तत्पश्चात पति के हाथ से पानी पीकर व्रत तोड़ें।
अब जानिए करवा चौथ के व्रत की कथा,
करवा चौथ की कहानी है कि, देवी करवा अपने पति के साथ तुंगभद्रा नदी के पास रहती थीं। एक दिन करवा के पति नदी में स्नान करने गए तो एक मगरमच्छ ने उनका पैर पकड़ लिया और नदी में अंदर की ओर खींचने लगा। मृत्यु करीब देखकर करवा के पति करवा को पुकारने लगे। करवा दौड़कर नदी के पास पहुंचीं और पति को मृत्यु के मुंह में ले जाते मगर को देखा। करवा ने तुरंत एक कच्चा धागा लेकर मगरमच्छ को एक पेड़ से बांध दिया। करवा के सतीत्व के कारण मगरमच्छा कच्चे धागे में ऐसा बंधा की टस से मस नहीं हो पा रहा था। करवा के पति और मगरमच्छ दोनों के प्राण संकट में फंसे थे।
करवा ने यमराज को पुकारा और अपने पति को जीवन दान देने और मगरमच्छ को मृत्युदंड देने के लिए कहा। यमराज ने कहा वे ऐसा नहीं कर सकते क्योंकि अभी मगरमच्छ की आयु शेष है और करवा से कहा कि उसके पति की आयु पूरी हो चुकी है। क्रोधित होकर करवा ने यमराज से कहा, अगर आपने ऐसा नहीं किया तो वे यमराज को ही शाप दे देंगी। सती के शाप से भयभीत होकर यमराज ने तुरंत मगरमच्छ को यमलोक भेज दिया और करवा के पति को जीवनदान दिया। इसलिए करवा चौथ के व्रत में सुहागन स्त्रियां करवा माता से प्रार्थना करती हैं कि हे करवा माता जैसे आपने अपने पति को मृत्यु के मुंह से वापस निकाल लिया वैसे ही मेरे सुहाग की भी रक्षा करना।
जानकार विद्वानों का कहना है कि वैसे देखा जाए तो करवा चौथ शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है, करवा का अर्थ होता है मिट्टी का बरतन और चौथ यानि चतुर्थी। इस त्योहार पर मिट्टी के बरतन यानी करवे का विशेष महत्व माना गया है। सभी विवाहित स्त्रियां साल भर इस त्योहार का इंतजार करती हैं और इसकी सभी विधियों को बड़े श्रद्धा भाव से पूरा करती हैं। करवा चौथ का त्योहार पति पत्नी के मजबूत रिश्ते, प्यार और विश्वास का प्रतीक है।
करवा चौथ का इतिहास जानिए,
जानकार विद्वानों के अनुसार बहुत सी प्राचीन कथाओं के अनुसार करवा चौथ की परंपरा देवताओं के समय से चली आ रही है। माना जाता है कि एक बार देवताओं और दानवों में युद्ध शुरू हो गया और उस युद्ध में देवताओं की हार हो रही थी। ऐसे में देवता ब्रम्हदेव के पास गए और रक्षा की प्रार्थना की। ब्रम्हदेव ने कहा कि इस संकट से बचने के लिए सभी देवताओं की पत्नियों को अपने अपने पतियों के लिए व्रत रखना चाहिए और सच्चे दिल से उनकी विजय के लिए प्रार्थना करनी चाहिए।
ब्रम्हदेव ने यह वचन दिया कि ऐसा करने पर निश्चित ही इस युद्ध में देवताओं की जीत होगी। ब्रम्हदेव के इस सुझाव को सभी देवताओं और उनकी पत्नियों ने खुशी खुशी स्वीकार किया। ब्रम्हदेव के कहे अनुसार कार्तिक माह की चतुर्थी के दिन सभी देवताओं की पत्नियों ने व्रत रखा और अपने पतियों यानी देवताओं की विजय के लिए प्रार्थना की। उनकी यह प्रार्थना स्वीकार हुई और युद्ध में देवताओं की जीत हुई। इस खुश खबरी को सुन कर सभी देव पत्नियों ने अपना व्रत खोला और खाना खाया। उस समय आकाश में चांद भी निकल आया था। माना जाता है कि इसी दिन से करवा चौथ के व्रत के परंपरा शुरू हुई।
करवा चौथ पर मेहंदी का महत्व जानिए,
मेहंदी सौभाग्य की निशानी मानी जाती है। भारत में ऐसी मान्यता है कि जिस लड़की के हाथों की मेहंदी ज्यादा गहरी रचती है, उसे अपने पति तथा ससुराल से अधिक प्रेम मिलता है। लोग ऐसा भी मानते हैं कि गहरी रची मेहंदी आपके पति की लंबी उम्र तथा अच्छा स्वास्थ्य भी दर्शाती है। मेहंदी का व्यवसाय त्योहारों के मौसम में सबसे ज्यादा फलता फूलता है, खासतौर पर करवा चौथ के दौरान। इस समय लगभग सभी बाजारों में आपको भीड़ भाड़ का माहौल मिलेगा। हर गली नुक्कड़ पर आपको मेहंदी आर्टिस्ट महिलाओं के हाथ पांव पर तरह तरह के डिजाइन बनाते मिल जाएंगे।
करवा चौथ पूजन के संबंध में जानिए,
इस व्रत में भगवान शिव शंकर, माता पार्वती, कार्तिकेय, गणेश और चंद्र देवता की पूजा अर्चना करने का विधान है। करवा चौथ की कथा सुनने से विवाहित महिलाओं का सुहाग बना रहता है, उनके घर में सुख, शान्ति, समृद्धि और सन्तान सुख मिलता है। महा भारत में भी करवा चौथ के महात्म्य पर एक कथा का उल्लेख मिलता है।
भगवान श्री कृष्ण ने द्रौपदी को करवा चौथ की यह कथा सुनाते हुए कहा था कि पूर्ण श्रद्धा और विधि पूर्वक इस व्रत को करने से समस्त दुख दूर हो जाते हैं और जीवन में सुख सौभाग्य तथा धन धान्य की प्राप्ति होने लगती है। श्री कृष्ण भगवान की आज्ञा मानकर द्रौपदी ने भी करवा चौथ का व्रत रखा था। इस व्रत के प्रभाव से ही अर्जुन सहित पांचों पांडवों ने महा भारत के युद्ध में कौरवों की सेना को पराजित कर विजय हासिल की।
जानिए करवा का पूजन किस तरह किया जाए,
करवा चौथ के पूजन में धातु के करवे का पूजन श्रेष्ठ माना गया है। यथास्थिति अनुपलब्धता में मिट्टी के करवे से भी पूजन का विधान है। ग्रामीण अंचल में ऐसी मान्यता है कि करवा चौथ के पूजन के दौरान ही सजे धजे करवे की टोंटी से ही जाड़ा निकलता है। करवा चौथ के बाद पहले तो रातों में धीरे धीरे वातावरण में ठंड बढ़ जाती है और दीपावली आते आते दिन में भी ठंड बढ़नी शुरू हो जाती है।
अब जानिए करवा चौथ व्रत पूजन,
चंद्रमा, शिव, पार्वती, स्वामी कार्तिकेय और गौरा की मूर्तियों की पूजा षोडशोपचार विधि से विधिवत करके एक तांबे या मिट्टी के पात्र में चावल, उड़द की दाल, सुहाग की सामग्री, जैसे सिंदूर, चूडियां शीशा, कंघी, रिबन और रुपया रखकर किसी बड़ी सुहागिन स्त्री या अपनी सास के पांव छूकर उन्हें भेंट करनी चाहिए।
करवा चौथ व्रत विधान जानिए,
व्रत रखने वाली स्त्री सुबह नित्यकर्मों से निवृत्त होकर, स्नान एवं संध्या आदि करके, आचमन के बाद संकल्प लेकर यह कहे कि मैं अपने सौभाग्य एवं पुत्र पौत्रादि तथा निश्चल संपत्ति की प्राप्ति के लिए करवा चौथ का व्रत करूंगी। यह व्रत निराहार ही नहीं, अपितु निर्जला के रूप में करना अधिक फलप्रद माना जाता है। इस व्रत में शिव पार्वती, कार्तिकेय और गौरा का पूजन करने का विधान है।
पूजन हेतु मंत्र जानिए,
ओम शिवायै नमः से माता पार्वती का, ओम नमः शिवाय से देवाधिदेव महादेव भगवान शिव का, ओम षण्मुखाय नमः से स्वामी कार्तिकेय का, ओम गणेशाय नमः से भगवान श्री गणेश का तथा ओम सोमाय नमः से चंद्रमा देव का पूजन करें। करवों में लड्डू का नैवेद्य रखकर नैवेद्य अर्पित करें। एक लोटा, एक वस्त्र व एक विशेष करवा दक्षिणा के रूप में अर्पित कर पूजन समापन करें। करवा चौथ व्रत की कथा पढ़ें अथवा सुनें।
चांद को अर्घ्य जरूर दें,
जब चांद निकलता है तो सभी विवाहित स्त्रियां चांद को देखती हैं और सारी रस्में पूरी करती हैं। पूजा करने बाद वे अपना व्रत खोलती हैं और जीवन के हर मोड़ पर अपने पति का साथ देने वादा करती हैं। चंद्रदेव के साथ साथ भगवान शिव, देवी पार्वती और कार्तिकेय की भी पूजा की जाती है। माना जाता है कि अगर इन सभी की पूजा की जाए तो माता पार्वती के आशीर्वाद से जीवन में सभी प्रकार के सुख मिलते हैं।
जानिए किनको नहीं करना चाहिए करवा चौथ का व्रत,
करवा चौथ में शिव शिवा और स्वामी कार्तिकेय का पूजन किया जाता है। इस व्रत को करने का अधिकार मात्र सौभाग्यवती महिलाओं को ही है। विधवा अथवा कुंवारी लड़कियों को यह व्रत नहीं करना चाहिए। कुंवारी लड़कियां भूल से भी यह व्रत न करें अन्यथा वैवाहिक जीवन दूषित हो जाता है, क्योंकि स्त्रियों की ही फलश्रुति शास्त्रों में मिलती है। नव विवाहित युवतियां विवाह के पहले वर्ष में इस व्रत को अधिक धूमधाम से करती हैं। शादी वाले वर्ष कन्या पक्ष से भी ससुराल वालों के लिए फल, मिष्ठान, मठरी, खांड के तेरह करवे और सासू मां की तीयल बायने के रूप में आती है। एक लोटा, एक तौलिया और एक विशेष करवा ससुर को भेंट दिया जाता है।
करवा माता की तरह सावित्री ने भी कच्चे धागे से अपने पति को वट वृक्ष के नीचे लपेट कर रख था। कच्चे धागे में लिपटा प्रेम और विश्वास ऐसा था कि यमराज सावित्री के पति के प्राण अपने साथ लेकर नहीं जा सके। सावित्री के पति के प्राण को यमराज को लौटाना पड़ा और सावित्री को वरदान देना पड़ा कि उनका सुहाग हमेशा बना रहेगा और लंबे समय तक दोनों साथ रहेंगे।
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(साई फीचर्स)