इस साल दीप पर्व पर पांच दिनी उत्सव के महूर्त, पूजन आदि के बारे में जानिए . . .

जानिए कब होगी दीपावली पर लक्ष्मी पूजन 31 अक्टूबर या एक नवंबर को!
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दीप पर्व, दीपावली, दीपों का त्यौहार, लक्ष्मी पूजन आदि न जाने कितने नामों से जाना जाता है कार्तिक मास में पड़ने वाले इस त्यौहार को। दीपावली का इंतजार सनातन धर्म के लोगों को साल भर रहता है। देखा जाए तो दीपावली पर घरों की साफ सफाई, रंग रोगन आदि कराया जाता है। उबटन से स्नान कर नए नए कपड़े पहने जाते हैं और सभी और साफ सफाई का विशेष ध्यान रखा जाता है। इस दौरान दीप जलाना, रंगोली बनाना, माता लक्ष्मी की पूजा करना, मिठाई बांटना, अच्छे अच्छे पकवान बनाना और नई नई वस्तुएं खरीदने का महत्व रहता है।
अगर आप भगवान विष्णु जी एवं माता लक्ष्मी जी की अराधना करते हैं और अगर आप विष्णु जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय विष्णु देवा, जय माता लक्ष्मी एवं हरिओम तत सत लिखना न भूलिए।
हिन्दुओं के प्रमुख त्योहार दीपावली का उत्सव 5 दिनों तक चलता है। दक्षिण भारत और उत्तर भारत में इस त्योहार को अलग अलग दिन और तरीके से मनाया जाता है। दक्षिण भारत में दीपावली के 1 दिन पहले यानी नरक चतुर्दशी का विशेष महत्व है। इस दिन मनाया जाने वाला उत्सव दक्षिण भारत के दिवाली उत्सव का सबसे प्रमुख दिन होता है जबकि उत्तर भारत में यह त्योहार 5 दिन का होता है, जो धनतेरस से शुरू होकर नरक चतुर्दशी, मुख्य पर्व दीपावली, गोवर्धन पूजा से होते हुए भाई दूज पर समाप्त होता है।
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आईए दीपावली पर पांच दिनों के पर्व के बारे में आपको बताते हैं।
इस अवसर पर पहले दिन को धनतेरस कहा जाता है। दीपावली महोत्सव की शुरुआत धनतेरस से होती है। इसे धन त्रयोदशी भी कहते हैं। धनतेरस के दिन मृत्यु के देवता यमराज, धन के देवता कुबेर और आयुर्वेदाचार्य महाराज धन्वंतरि की पूजा का महत्व है। इसी दिन समुद्र मंथन में भगवान धन्वंतरि अमृत कलश के साथ प्रकट हुए थे और उनके साथ आभूषण व बहुमूल्य रत्न भी समुद्र मंथन से प्राप्त हुए थे। तभी से इस दिन का नाम धनतेरस पड़ा और इस दिन बर्तन, धातु व आभूषण खरीदने की परंपरा शुरू हुई।
आईए अब जानते हैं कि कब है धनतेरस,
धनतेरस कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मनाई जाती है। इस साल धनतेरस 29 अक्टूबर मंगलवार को मनाई जाएगी। इस दिन सोने चांदी के आभूषण और नए बर्तन खरीदने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। धनतेरस का पर्व भगवान धनवंतरी की जयंती के रूप में मनाया जाता है। इस दिन धन के देवता भगवान कुबेर जी के साथ ही धन की देवी मां लक्ष्मी और गणेशजी की पूजा की जाती है। धनतेरस के शुभ अवसर पर घर में नई झाड़ू और धनिया लाने से मां लक्ष्मी प्रसन्न होकर पूरे साल धन समृद्धि बढ़ाती हैं और कृपा बरसाती हैं।
इसके बाद जानते हैं दूसरे दिन के बारे में,
इस उत्सव के दूसरे दिन को नरक चतुर्दशी, रूप चौदस और काली चौदस कहते हैं। इसी दिन नरकासुर का वध कर भगवान श्रीकृष्ण ने 16 हजार एक सौ कन्याओं को नरकासुर के बंदीगृह से मुक्त कर उन्हें सम्मान प्रदान किया था। इस उपलक्ष्य में दीपमालाओं की बारात सजाई जाती है। इस दिन को लेकर मान्यता है कि इस दिन सूर्याेदय से पूर्व उबटन एवं स्नान करने से समस्त पाप समाप्त हो जाते हैं और पुण्य की प्राप्ति होती है। वहीं इस दिन से एक ओर मान्यता जुड़ी हुई है जिसके अनुसार इस दिन उबटन करने से रूप व सौंदर्य में वृद्धि होती है। इसे छोटी दीपावली भी कहा जाता है।
आईए जानते हैं कि छोटी दीपावली या नरक चतुर्दशी कब है,
कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष चतुर्दशी तिथि को छोटी दिवाली मनाई जाती है। छोटी दिवाली इस बार 30 अक्टूबर को मनाई जाएगी। इसे नरक चतुर्दशी भी कहते हैं। इस दिन पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इसे रूप चौदस और छोटी दीवाली भी कहते हैं। इस दिन दक्षिण दिशा में यम देवता के नाम का दीपक भी जलाया जाता है।
अब जानिए तीसरे दिन के बारे में,
इस पर्व के तीसरे दिन को दीपावली कहते हैं। इसे बड़ी दीपवली भी कहा जाता है। यही मुख्य पर्व होता है। दीपावली का पर्व विशेष रूप से माता लक्ष्मी के पूजन का पर्व होता है। कार्तिक माह की अमावस्या को ही समुद्र मंथन से मां लक्ष्मी प्रकट हुई थीं जिन्हें धन, वैभव, ऐश्वर्य और सुख समृद्धि की देवी माना जाता है। अतः इस दिन मां लक्ष्मी के स्वागत के लिए दीप जलाए जाते हैं ताकि अमावस्या की रात के अंधकार में दीपों से वातावरण रोशन हो जाए।
वहीं, दूसरी मान्यता के अनुसार इस दिन मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्री रामचन्द्र जी, माता सीता और भाई लक्ष्मण के साथ 14 वर्षों का वनवास समाप्त कर घर लौटे थे। भगवान श्रीराम के स्वागत हेतु अयोध्यावासियों ने घर घर दीप जलाए थे और नगर भर को आभायुक्त कर दिया था। तभी से दीपावली के दिन दीप जलाने की परंपरा है। 5 दिवसीय इस पर्व का प्रमुख दिन लक्ष्मी पूजन अथवा दीपावली होता है।
जानकार विद्वानों के अनुसार इस दिन रात्रि को धन की देवी लक्ष्मी माता का पूजन विधि पूर्वक करना चाहिए एवं घर के प्रत्येक स्थान को स्वच्छ करके वहां दीपक लगाना चाहिए जिससे घर में लक्ष्मी का वास एवं दरिद्रता का नाश होता है। इस दिन देवी लक्ष्मी, भगवान गणेश तथा द्रव्य, आभूषण आदि का पूजन करके 13 अथवा 26 दीपकों के मध्य 1 तेल का दीपक रखकर उसकी चारों बातियों को प्रज्वलित करना चाहिए एवं दीपमालिका का पूजन करके उन दीपों को घर में प्रत्येक स्थान पर रखें एवं 4 बातियों वाला दीपक रात भर जलता रहे, ऐसा प्रयास करना चाहिए।
जानिए कब होगी लक्ष्मी पूजा,
जानकार विद्वानों के अनुसार कार्तिक मास की अमावस्या तिथि 31 अक्टूबर को दोपहर 3 बजकर 52 मिनट से आरंभ और 1 नवंबर को शाम 6 बजकर 16 मिनट पर समाप्त हो रही है। ऐसे में 1 नवंबर 2024 को दीपावली का पर्व मनाया जाना शास्त्र सम्मत होगा।
अब जानिए दीपावली के पूजन का समय
जानकार विद्वानों के अनुसार द्रिक पंचांग के अनुसार, दीपावली 1 नवंबर को मनाया जाएगा। इस दिन शाम 5 बजकर 36 मिनट से शाम 6 बजकर 16 मिनट तक शुभ मुहूर्त बताया जा रहा है।
इस दिन प्रदोष काल, शाम 5 बजकर 36 मिनट से रात 8 बजकर 11 मिनट तक एवं वृषभ काल, शाम 6 बजकर 20 मिनट से रात 8 बजकर 15 मिनट तक रहेगा।
वहीं कुछ जानकार विद्वान 31 अक्टूबर को दीपावली और लक्ष्मी पूजन की बात भी बता रहे हैं। इसे लेकर भ्रम की स्थिति निर्मित हो रही है। इसलिए विद्वान जानकारों से इस संबंध में राय लेकर ही त्यौहार मनाएं।
अब जानिए चौथे दिन के बारे में,
चौथे दिन अन्नकूट या गोवर्धन पूजा होती है। कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को गोवर्धन पूजा एवं अन्नकूट उत्सव मनाना जाता है। इसे पड़वा या प्रतिपदा भी कहते हैं। खासकर इस दिन घर के पालतू बैल, गाय, बकरी आदि को अच्छे से स्नान कराकर उन्हें सजाया जाता है। फिर इस दिन घर के आंगन में गोबर से गोवर्धन बनाए जाते हैं और उनका पूजन कर पकवानों का भोग अर्पित किया जाता है। इस दिन को लेकर मान्यता है कि त्रेतायुग में जब इन्द्रदेव ने गोकुलवासियों से नाराज होकर मूसलधार बारिश शुरू कर दी थी, तब भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी छोटी अंगुली पर गोवर्धन पर्वत उठाकर गांववासियों को गोवर्धन की छांव में सुरक्षित किया। तभी से इस दिन गोवर्धन पूजन की परंपरा भी चली आ रही है।
जानिए कब है गोवर्धन पूजा
गोवर्धन पूजा दीपावली के अगले दिन होती है। इसे अन्नकूट पर्व के नाम से भी जाना जाता है। गोवर्द्धन पूजा इस साल 2 नवंबर की जाएगी। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार द्वापर युग में भगवान कृष्ण ने गोवर्द्धन पर्वत को अपनी एक उंगली पर उठाकर सभी मथुरावासियों को भीषण वर्षा से रक्षा की थी। तब से इस पर्व को गोवर्धन पूजा के रूप में हर साल मनाते हैं। इस दिन भगवान कृष्ण की पूजा की जाती है और अन्नकूट का भोग लगाया जाता है।
अब जानिए इस पर्व के पांचवे दिन के बारे में,
इस दिन को भाई दूज और यम द्वितीया कहते हैं। इस दिन ब्रम्हाण्ड का लेखा जोखा रखने वाले भगवान चित्रगुप्त का पूजन उनकी काया से उत्पन्न हुए कायस्थ समुदाय के लोग करते हैं। भाई दूज, पांच दिवसीय दीपावली महापर्व का अंतिम दिन होता है। भाई दूज का पर्व भाई बहन के रिश्ते को प्रगाढ़ बनाने और भाई की लंबी उम्र के लिए मनाया जाता है। रक्षाबंधन के दिन भाई अपनी बहन को अपने घर बुलाता है जबकि भाई दूज पर बहन अपने भाई को अपने घर बुलाकर उसे तिलक कर भोजन कराती है और उसकी लंबी उम्र की कामना करती है।
इस दिन को लेकर मान्यता है कि यमराज अपनी बहन यमुनाजी से मिलने के लिए उनके घर आए थे और यमुनाजी ने उन्हें प्रेमपूर्वक भोजन कराया एवं यह वचन लिया कि इस दिन हर साल वे अपनी बहन के घर भोजन के लिए पधारेंगे। साथ ही जो बहन इस दिन अपने भाई को आमंत्रित कर तिलक करके भोजन कराएगी, उसके भाई की उम्र लंबी होगी। तभी से भाई दूज पर यह परंपरा बन गई।
जानिए कब है भाई दूज,
दीपावली के महाउत्सव का आखिरी दिन होता है भाईदूज, कार्तिक मास के शक्ल पक्ष की द्वितीया को भाई दूज का पर्व मनाया जाता है। इस साल भाई दूज 3 नवंबर को मनाई जाएगी। इसे यम द्वितीया भी कहते हैं। इस दिन यमराज की यमुना ने अपने भाई को सबसे पहले तिलक किया था। तभी से हर साल इस शुभ मौके पर बहनें अपने भाइयों को टीका करती हैं और उनकी दीर्घायु की कामनी करती हैं। इस तरह दीपों के पर्व दीपावली का पांच दिवसीय महाउत्सव संपन्न होता है।
अगर आप भगवान विष्णु जी एवं माता लक्ष्मी जी की अराधना करते हैं और अगर आप विष्णु जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय विष्णु देवा, जय माता लक्ष्मी एवं हरिओम तत सत लिखना न भूलिए।
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(साई फीचर्स)