भगवान धनवंतरी को याद करके धनतेरस पर आयुर्वेदाचार्य, चिकित्सक सभी करते हैं पूजन अर्चन

धनतेरस पर क्यों जलाए जाते हैं दिए, जानिए धनतेरस की पौराणिक कथा . . .
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पांच दिनों के दीपोत्सव पर्व को लेकर बाजारों में खूब रौनक देखने के लिए मिलती है। इस पांच दिनों के दीपोत्सव की शुरुआत धनतेरस से होती है। हर साल कार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन धनतेरस का पर्व मनाया जाता है। इस साल 29 अक्टूबर को धनतेरस का त्योहार मनाया जाएगा। धनतेरस के दिन सोना, चांदी, बर्तन और झाड़ू जैसी चीजें खरीदना बेहद शुभ माना जाता है। धनतेरस के मौके पर भगवान धन्वंतरि और यमराज की पूजा का विधान होता है। आप सभी हर साल धनतेरस के दिन आगे बढ़ चढ़कर खरीदारी करते होंगे, लेकिन क्या आपको पता है कि धनतेरस के पीछे की कहानी क्या है?
अगर आप भगवान विष्णु जी एवं माता लक्ष्मी जी की अराधना करते हैं और अगर आप विष्णु जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय विष्णु देवा, जय माता लक्ष्मी एवं हरिओम तत सत लिखना न भूलिए।
धर्म शास्त्रों के अनुसार, कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को समुद्र मंथन के दौरान भगवान धन्वंतरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे। इस वजह से इस तिथि को धनतेरस या धनत्रयोदशी तिथि भी कहा जाता है। भगवान धन्वंतरि के अलावा, धनतेरस के दिन दिन माता लक्ष्मी, धन के देवता कुबेर और मृत्यु के देवता यमराज की भी पूजा की जाती है। इस दिन से ही दीपावली का पर्व शुरू हो जाता है।
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जानकार विद्वानों के अनुसार पहली कहानी के अनुसार एक बार मृत्यु के देवता यमराज ने यमदूतों से प्रश्न किया कि क्या कभी मनुष्य के प्राण लेने में तुमको कभी किसी पर दया आती है। यमदूतों ने कहा कि नहीं महाराज, हम तो केवल आपकी दी हुई आज्ञा का पालन करते हैं। फिर यमराज ने कहा कि बेझिझक होकर बताओं कि क्या कभी मनुष्य के प्राण लेने में दया आई है। तब एक यमदूत ने कहा कि एक बार ऐसी घटना हुई है, जिसको देखकर हृदय पसीज गया। एक दिन एक राजा शिकार पर गया था और वह जंगल के रास्ते में भटक गया था और भटकते भटकते दूसरे राजा की सीमा पर चला गया। वहां एक हेमा नाम का शासक था, उसने पड़ोस के राजा का आदर सत्कार किया। उसी दिन राजा की पत्नी ने एक पुत्र को जन्म भी दिया।
राजा की पत्नि के पुत्र होने पर ज्योतिषों ने ग्रह नक्षत्र के आधार पर बताया कि इस बालक की विवाह के चार बाद ही मृत्यु हो जाएगी। तब राजा ने आदेश दिया कि इस बालक को यमुना तट पर एक गुफा में ब्रम्हचारी के रूप में रखा जाए और स्त्रियों की परछाईं भी वहां तक नहीं पहुंचनी चाहिए। लेकिन विधि के विधान को कुछ और ही मंजूर था। संयोगवश उस राजा जिसे हिमा नाम के राजा ने प्रश्रय दिया था उसकी पुत्री यमुना तट पर चली गई और वहां राजा के पुत्र को देखा। दोनों ने गन्धर्व विवाह कर लिया। विवाह के चार दिन बाद ही राजा के पुत्र की मृत्यु हो गई। तब यमदूत ने कहा कि उस नवविवाहिता का करुण विलाप सुनकर हृदय पिघल गया था। सारी बातें सुनकर यमराज ने कहा कि क्या करें, यह तो विधि का विधान है और मर्यादा में रहते हुए यह काम करना पड़ेगा।
इसके उपरांत यमदूतों ने पूछा कि ऐसा कोई उपाय है, जिससे अकाल मृत्यु से बचा जा सके। तब यमराज ने कहा कि धनतेरस के दिन विधि विधान के साथ पूजा अर्चना और दीपदान करने से अकाल मृत्यु नहीं होती। इसी घटना की वजह से धनतेरस के दिन भगवान धन्वंतरि और माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है और दीपदान किया जाता है।
इस प्रथा को यमदीपदान के नाम से जाना जाता है क्योंकि घर की महिलाएँ मिट्टी के दीये जलाती हैं, जो रात भर यम की स्तुति करते हुए जलते रहते हैं। गेहूँ के आटे से बने तेरह दीये जलाए जाते हैं और उन्हें दक्षिण दिशा की ओर मुख करके रखा जाता है।
जैन धर्म में इस दिन को धनतेरस की जगह धन्यतेरस के रूप में मनाया जाता है, जिसका अर्थ है तेरहवीं का शुभ दिन। ऐसा कहा जाता है कि इस दिन भगवान महावीर इस दुनिया में सब कुछ छोड़कर मोक्ष से पहले ध्यान करने की अवस्था में थे, जिससे यह दिन शुभ या धन्य हो गया।
हिंदू धर्म शास्त्रों में वर्णित कथाओं के मुताबिक, समुद्र मंथन के दौरान भगवान धन्वंतरि हाथों में अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे। जिस तिथि को भगवान धन्वंतरि समुद्र से प्रकट हुए, वो कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि थी। भगवान धन्वंतरि समुद्र से हाथों में कलश लेकर प्रकट हुए थे, इसलिए इस मौके पर बर्तन खरीदने की परंपरा चली आ रही है।
भगवान धन्वंतरि को श्रीहरि विष्णु भगवान का अंश भी माना जाता है। भगवान धन्वंतरि ने ही पूरी दुनिया में चिकित्सा विज्ञान का प्रचार प्रसार किया। भगवान धन्वंतरि के प्रकट होने के उपलक्ष्य में ही हर साल धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है और विधि विधान से भगवान धन्वंतरि की पूजा अर्चना की जाती है।
धनतेरस दो शब्दों से मिलकर बना है पहला धन और दूसरा तेरस जिसका अर्थ होता है धन का तेरह गुना। भारतीय संस्कृति में सेहत को ही सबसे बड़ा धन माना गया है। यह कहावत आज भी प्रसिद्ध है कि पहला सुख निरोगी काया, दूजा सुख घर में माया इसलिए दिवाली से पहले धनतरेस को महत्व दिया जाता है।
धनतेरस पर सोना, चांदी, नए बर्तन और गहने खरीदना विशेष रूप से शुभ माना जाता है। लोग इस दिन नए बर्तन खरीदकर मां लक्ष्मी को अर्पित करते हैं, जिससे घर में समृद्धि का वास होता है। इसके अलावा, धनतेरस के दिन घर में नई चीजें लाने से धन आगमन होता है। हरि ओम,
अगर आप भगवान विष्णु जी एवं माता लक्ष्मी जी की अराधना करते हैं और अगर आप विष्णु जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय विष्णु देवा, जय माता लक्ष्मी एवं हरिओम तत सत लिखना न भूलिए।
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(साई फीचर्स)