जानिए दीपावली के 11दिन बाद क्यों मनाया जाता है देवउठनी एकादशी का त्यौहार . . .
आप देख, सुन और पढ़ रहे हैं समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया की साई न्यूज के धर्म प्रभाग में विभिन्न जानकारियों के संबंद्ध में . . .
सनातन धर्म में एकादशी तिथि बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाती है। कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष में आने वाली एकादशी तिथि को प्रबोधिनी एकादशी और देवुत्थान एकादशी के नाम से भी जानते हैं। इस दिन भगवान विष्णु चार माह के लंबे समय के बाद योग निद्रा से जागते हैं, उसके साथ ही चातुर्मास का समापन होगा। श्रीहरि विष्णु सृष्टि के संचालन का दायित्व फिर से संभाल लेते हैं। इस दिन से ही विवाह, सगाई, मुंडन, गृह प्रवेश जैसे मांगलिक कार्य भी शुरू हो जाते हैं। इसके अलावा यह तिथि भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए सबसे उत्तम मानी जाती है। यह तिथि कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पड़ती है। इस दिन भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा और व्रत का विधान है।
अगर आप भगवान विष्णु जी एवं माता लक्ष्मी जी की अराधना करते हैं और अगर आप विष्णु जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय विष्णु देवा, जय माता लक्ष्मी एवं हरिओम तत सत लिखना न भूलिए।
देवउठनी एकादशी तिथि जानिए
जानकार विद्वानों के अनुसार वैदिक पंचांग के अनुसार, इस साल कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि की शुरुआत 11 नवंबर 2024 की शाम 6 बजकर 46 मिनट पर शुरू होगी। वही तिथि का समापन 12 नवंबर 2024 को शाम 4 बजकर 4 मिनट पर होगा। उदया तिथि के अनुसार, देवउठनी एकादशी का व्रत मंगलवार 12 नवंबर को रखा जाना उचित माना जा रहा है।
अब जानिए तुलसी विवाह द्वादशी तिथि कब है!
कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि की शुरुआत 12 नवंबर को शाम 4 बजकर 4 मिनट से हो रही है। इसका समापन 13 नवंबर 2024 को दोपहर एक बजकर 1 मिनिट पर होगा।
इस आलेख को वीडियो को साई न्यूज में देखने के लिए क्लिक कीजिए . . .
https://www.youtube.com/watch?v=4Z3Gxv_UhiE
तुलसी विवाह द्वादशी मुहूर्त जानिए
तुलसी विवाह के शुभ महूर्तों के बारे में जानकार विद्वानों का कहना है कि लाभ उन्नति मुहूर्त सुबह 6 बजकर 47 मिनट से, अमृत सर्वाेत्तम मुहूर्त दृसुबह 8 बजकर 6 मिनट से 9 बजकर 26 मिनट तक एवं शुभ उत्तम सुबह 10 बजकर 46 मिनट से दोपहर 12 बजकर 5 मिनट तक रहेगा।
देवउठनी एकादशी पारण मुहूर्त जानिए
कार्तिक माह की एकादशी तिथि का व्रत यानी देवउठनी एकादशी व्रत पारण के शुभ मुहूर्त की शुरुआत 13 नवंबर को सुबह 6 बजकर 42 मिनट से लेकर 8 बजकर 51 मिनट तक रहेगा। इस दौरान भक्तों को पारण करने के लिए कुल 1 घंटा और 1 मिनट का समय मिलेगा।
देवउठनी एकादशी पूजा विधि जानिए,
देवउठनी एकादशी का व्रत करने के लिए सुबह जल्दी उठकर स्नान ध्यान करें और भगवान विष्णु के व्रत का संकल्प लें। उसके बाद मंदिर की साफ सफाई करें। उसके बाद भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का ध्यान करें। फिर भगवान को पंचामृत से स्नान कराएं, हल्दी या गोपी चंदन का तिलक लगाएं। उसके बाद भगवान विष्णु को पीले फूलों की माला, मिठाई, फल और तुलसी के पत्ते चढ़ाएं। भगवान विष्णु के ओम नमो भगवते वासुदेवाय या भगवान श्री विष्णु जी का कोई अन्य मंत्र जपें, विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें और आरती गाएं। पूरे दिन व्रत का पालन करने के बाद रात में भगवान का भजन कीर्तन करते हुए जागरण करें। उसके बाद सुबह पूजा पाठ के बाद पारण समय में व्रत तोड़ें।
वहीं, दूसरी ओर जानकार विद्वानों के द्वारा पूजन की एक अन्य विधि भी बताई गई है, जो इस प्रकार है,
तुलसी विवाह कराने के लिए सर्वप्रथम एक लकड़ी की चौकी लें। इसके बाद उसपर लाल रंग का साफ आसन बिछाएं। इसके बाद तुलसी के गमले को गेरू से रंग दें। फिर उसके चौकी के ऊपर स्थापित कर दें। वहीं आप एक और चौकी लें। इस पर साफ या नया आसन बिछा लें।
अब इस पर भगवान शालिग्राम को स्थापित कर दें। दोनों चौकियों को एक दूसरे के पास में रखें। दोनों के ऊपर गन्ने से मंडप सजाएं। इसके बाद आप एक साफ कलश में जल भरें और उसमें पांच या फिर सात आम के पत्ते डाल दें। इसे पूजा स्थल पर स्थापित कर दें।
अब शालिग्राम जी और माता तुलसी के सामने दीपक जलाएं। फिर दोनों को रोली या कुमकुम से तिलक करें। इस दौरान तुलसी माता को लाल रंग की चुनरी चढ़ाएं। धीरे धीरे चूड़ी, बिंदी आदि चीजों से श्रृंगार करते जाएं। इसके बाद सावधानी से चौकी सहित शालिग्राम जी को हाथों में लेकर तुलसी की सात परिक्रमा कराएं। फिर दोनों की आरती करें। अंत में सुख सौभाग्य की कामना करते हुए फूल का छिडकाव करें, और सभी में प्रसाद का वितरण कर दें।
देवउठनी एकादशी की कथा जानिए,
जानकार विद्वानों के अनुसार धर्म ग्रंथों में दी गई कथा के अनुसार एक राज्य में एकादशी के दिन प्रजा से लेकर पशु तक कोई भी अन्न नहीं ग्रहण करता था। एक दिन भगवान विष्णु जी ने उस राज्य के राजा की परीक्षा लेने की सोची और सुंदरी भेष बनाकर सड़क किनारे बैठ गए। राजा की भेंट जब सुंदरी से हुई तो उन्होंने उसके यहां बैठने का कारण पूछा। स्त्री ने बताया कि वह बेसहारा है। राजा उसके रूप पर मोहित हो गए और बोले कि तुम रानी बनकर मेरे साथ महल चलो।
सुंदर स्त्री के राजा के सामने शर्त रखी कि ये प्रस्ताव तभी स्वीकार करेगी जब उसे पूरे राज्य का अधिकार दिया जाएगा और वह जो बनाए राजा को खाना होगा। राजा ने शर्त मान ली। अगले दिन एकादशी पर सुंदरी ने बाजारों में बाकी दिनों की तरह अन्न बेचने का आदेश दिया। मांसाहार बनाकर राजा को खाने पर मजबूर करने लगी। राजा ने कहा कि आज एकादशी के व्रत में तो मैं सिर्फ फलाहार ग्रहण करता हूं। रानी ने शर्त याद दिलाते हुए राजा को कहा कि अगर यह तामसिक भोजन नहीं खाया तो मैं बड़े राजकुमार का सिर धड़ से अलग कर दूंगी।
राजा ने अपनी स्थिति बड़ी रानी को बताई। बड़ी महारानी ने राजा से धर्म का पालन करने की बात कही और अपने बेटे का सिर काट देने को मंजूर हो गई। राजा हताश थे और सुंदरी की बात न मानने पर राजकुमार का सिर देने को तैयार हो गए। सुंदरी के रूप में श्रीहरि राजा के धर्म के प्रति समर्पण को देखर अति प्रसन्न हुए और उन्होंने अपने असली रूप में आकर राजा को दर्शन दिए।
विष्णु जी ने राजा को बताया कि तुम मेरी परीक्षा में सफल हुए, कहो क्या वरदान चाहिए। राजा ने इस जीवन के लिए प्रभु का धन्यवाद किया कहा कि अब मेरा उद्धार कीजिए। राजा की प्रार्थना श्रीहरि ने स्वीकार की और वह मृत्यु के बाद बैंकुठ लोक को चला गया।
देवउठनी एकादशी के धार्मिक महत्व को जानिए
धार्मिक मान्यता है कि कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी से भगवान विष्णु चार महीने के योग निद्रा से जागते हैं। इसलिए इस दिन देवउठनी एकादशी का पर्व मनाया जाता है। इस दिन से शुभ और मांगलिक कार्य शुरू होते हैं। इस शुभ तिथि पर साधक व्रत करते हैं और विधिपूर्वक भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा अर्चना करते हैं। साथ ही विशेष चीजों का दान करते हैं। मान्यता है कि इस एकादशी व्रत को करने से जातक को सभी तरह के पापों से छुटकारा मिलता है। साथ ही शुभ फल की प्राप्ति होती है।
अब जानिए कि एकादशी पर किन सावधानियों को रखना जरूरी होता है। जानकार विद्वानों के अनुसार,
एकादशी के दिन तुलसी माता को जल नहीं चढ़ाना चाहिए,
एकादशी तिथि पर तुलसी माता भगवान विष्णु के लिए निर्जला व्रत रखती है, यदि आप तुलसी माता को जल चढ़ाते हैं तो व्रत टूट जाता है और लक्ष्मी माता नाराज़ हो जाती है इसीलिए एकादशी पर तुलसी में जल नहीं चढ़ाना चाहिए, साथ ही तुलसी के पत्तों को नहीं तोड़ना चाहिए।
इस दिन साफ सफाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए,
यदि आप श्रीहरि की कृपा की पाना चाहते हैं तो एकादशी पर तुलसी के आस पास सफ़ाई का विशेष रूप से ध्यान रखें, भूल कर भी तुलसी के आस पास जूते चप्पल या कूड़ेदान न रखें, इससे लक्ष्मी जी नाराज़ होती है और दूर चली जाती है।
गंदे या जूठे हाथ न तुलसी माता को नहीं लगाना चाहिए,
तुलसी माता को कभी भी गंदे हाथ से या फिर जूठे हाथों से भूलकर नहीं छूना चाहिए, एकादशी तिथि पर स्नान करने के बाद ही तुलसी को स्पर्श करना चाहिए। एकादशी तिथि पर तुलसी मात की पूजा करते समय भूल कर भी काले कपड़ों को नहीं पहनना चाहिए, ऐसा करने से नकारात्मकता बढ़ जाती है।
एक दिन पहले तोड़ लें तुलसी के पत्ते,
एकादशी तिथि पर भगवान विष्णु का भोग तुलसी के बिना अधूरा माना जाता है। ऐसे में विष्णु जी को तुलसी अर्पित करने के लिए एक दिन पहले ही उसे तोड़कर रख लेना चाहिए और भूल कर भी एकादशी के दिन तुलसी नहीं तोड़ना चाहिए, इसके बाद शाम के समय तुलसी के पास घी का दीपक जलाएं और तुलसी मंत्रों का जाप करें, ऐसा करने से भगवान विष्णु की कृपा बनी रहती है। हरि ओम,
अगर आप भगवान विष्णु जी एवं माता लक्ष्मी जी की अराधना करते हैं और अगर आप विष्णु जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय विष्णु देवा, जय माता लक्ष्मी एवं हरिओम तत सत लिखना न भूलिए।
यहां बताए गए उपाय, लाभ, सलाह और कथन आदि सिर्फ मान्यता और जानकारियों पर आधारित हैं। यहां यह बताना जरूरी है कि किसी भी मान्यता या जानकारी की समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया के द्वारा पुष्टि नहीं की जाती है। यहां दी गई जानकारी में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों, ज्योतिषियों, पंचांग, प्रवचनों, मान्यताओं, धर्मग्रंथों, दंत कथाओं, किंवदंतियों आदि से संग्रहित की गई हैं। आपसे अनुरोध है कि इस वीडियो या आलेख को अंतिम सत्य अथवा दावा ना मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया पूरी तरह से अंधविश्वास के खिलाफ है। किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह अवश्य ले लें।
अगर आपको समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया में खबरें आदि पसंद आ रही हो तो आप इसे लाईक, शेयर व सब्सक्राईब अवश्य करें। हम नई जानकारी लेकर फिर हाजिर होंगे तब तक के लिए इजाजत दीजिए, जय हिंद, . . .
(साई फीचर्स)
समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया देश की पहली डिजीटल न्यूज एजेंसी है. इसका शुभारंभ 18 दिसंबर 2008 में किया गया था. समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया में देश विदेश, स्थानीय, व्यापार, स्वास्थ्य आदि की खबरों के साथ ही साथ धार्मिक, राशिफल, मौसम के अपडेट, पंचाग आदि का प्रसारण प्राथमिकता के आधार पर किया जाता है. इसके वीडियो सेक्शन में भी खबरों का प्रसारण किया जाता है. अगर आप समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को खबरें भेजना चाहते हैं तो व्हाट्सएप नंबर 9425011234 या ईमेल samacharagency@gmail.com पर खबरें भेज सकते हैं. खबरें अगर प्रसारण योग्य होंगी तो उन्हें स्थान अवश्य दिया जाएगा.