मार्गशीर्ष माह में कीर्तन करने तथा शास्त्रों का पाठ करने से मिलता है अमोघ फल . . .

मार्गशीर्ष माह में क्या करें, कैसे करें, क्या न करें, जानिए सब कुछ विस्तार से . . .
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शास्त्रों के अनुसार मार्गशीर्ष महीने का संबंध मृगशिरा नक्षत्र से भी है। इसी नक्षत्र के कारण इस माह का नाम मार्गशीर्ष माह पड़ा। हिंदू कैलेंडर के अनुसार कार्तिक माह के बाद मार्गशीर्ष माह की शुरुआत होती है, जो नौवां महीना माना गया है। पुराणों में इस माह की महिमा का वर्णन मिलता है। मार्गशीर्ष माह का अपना अलग ही महत्व शास्त्रों में वर्णित है। वैसे सनातन धर्म या हिन्दु धर्म के पंचांग में बारह माहों को चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष, माघ, फाल्गुन के नाम से जाना जाता है। इसमें हिंदू धर्म में चैत्र महीने से साल की शुरुआत होती है। शास्त्रों के अनुसार मार्गशीर्ष महीने का संबंध मृगशिरा नक्षत्र से भी है। इसी नक्षत्र के कारण इस माह का नाम मार्गशीर्ष माह पड़ा। मार्गशीर्ष माह में बुद्धि के दाता भगवान श्री गणेश जी के पूजन की विधि के बारे में आज आपको बताने जा रहे हैं,
अगर आप भगवान विष्णु जी एवं भगवान श्री कृष्ण जी की अराधना करते हैं और अगर आप विष्णु जी एवं भगवान कृष्ण जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय विष्णु देवा, जय श्री कृष्ण, हरिओम तत सत, ओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः लिखना न भूलिए।
इस महीने की महिमा स्वयं श्री कृष्ण भगवान ने गीता में बताई है। गीता के 10वें अध्याय के 35वें श्लोक में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है
बृहत्साम तथा साम्नां गायत्री छन्दसामहम।
मासानां मार्गशीर्ष ैहमृतूनां कुसुमाकरः।
अर्थात् गायन करने योग्य श्रुतियों में मैं बृहत्साम और छंदों में मैं गायत्री छंद हूं तथा महीनों में मार्गशीर्ष और ऋतुओं में बसंत मैं हूं।
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सतयुग में देवों ने वर्ष का आरंभ मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि से ही किया था। साथ ही ऋषि कश्यप ने भी इसी महीने के दौरान कश्मीर नामक जगह की स्थापना की थी। मार्गशीर्ष मास के दौरान यमुना नदी में स्नान दान का बड़ा ही महत्व है। मार्गशीर्ष महीने के दौरान यमुना नदी में स्नान करने से भगवान सहज ही प्राप्त होते हैं।
अतः जो लोग जीवन में भगवान का आशीर्वाद बनाए रखना चाहते हैं और हर संकट से छुटकारा पाना चाहते हैं, उन्हें मार्गशीर्ष के दौरान कम से कम एक बार यमुना नदी में स्नान करने अवश्य जाना चाहिए, लेकिन जिन लोगों के लिए ऐसा करना संभव नहीं है, वो लोग घर पर ही अपने स्नान के पानी में थोड़ा सा पवित्र जल मिलाकर स्नान कर लें।
इस महीने में सांवले सलौने भगवान श्री कृष्ण की उपासना करना और पवित्र नदियों, तट या सरोवर में स्नान करना विशेष शुभदायी होता है। अगर आप संतान की चाह रखते है तो श्री कृष्ण की आराधना करने मात्र से आपको संतान प्राप्ति का वरदान बहुत सरलता से प्राप्त हो सकता है।
मार्गशीर्ष माह में कीर्तन करने तथा शास्त्रों का पाठ करने से अमोघ फल मिलता है। इस महीने में किए गए हर तरह के मंगल कार्य विशेष फलदायी होते हैं। इस महीने पूरे मन से श्री कृष्ण की आराधना करने से चंद्रमा से अमृत तत्व की प्राप्ति भी होती है। इस महीने कृष्ण मंत्रों, आरती, चालीसा, श्लोक, स्तुति आदि का पाठ विशेष फलदायी होता है।
इस महीने गौ सेवा अवश्य करनी चाहिए। गायों की सेवा और उनकी उचित देखरेख करने से भी कृष्ण प्रसन्न होते है। इस महीने गाय के शुद्ध घी का दीया कृष्ण मंदिरों में अवश्य चलाना चाहिए। इसके अलावा श्री कृष्ण को अपना बनाने और उनकी कृपा पाने के लिए केवल प्रेम की साधना ही पर्याप्त है। इस महीने में अगर आप पूरे प्रेम भाव से भगवान श्री कृष्ण को पुकारेंगे तो निश्चित ही आपको इसका उचित फल देंगे।
स्कंद पुराण के अनुसार श्री कृष्ण और राधा की कृपा पाने वाले मनुष्य को मार्गशीर्ष माह में व्रत, उपवास व निरंतर भजन, कीर्तन आदि करते रहना चाहिए। इसके साथ ही शाम के समय यानी संध्या काल में श्री कृष्ण और राधा की आराधना के साथ साथ विष्णु जी और ब्रम्हाण्ड के राजा देवाधिदेव महादेव भगवान शिव जी के भजन कीर्तन भी अवश्य करना चाहिए।
इन दिनों प्रतिदिन गीता का पाठ अवश्य करना चाहिए। इस पूरे महीने भर में मनुष्य पूरे विधि विधान से श्री कृष्ण का ध्यान, जप तप, व्रत उपवास आदि करता है तो उसकी समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती है।
इसके साथ ही इस महीने तेल मालिश करना शुभ फल प्रदान करता है। इस महीने कुछ वस्तुओं का प्रयोग करने की शास्त्रों में मनाही है। इस माह में जीरा खाने की मनाही हैं, अतः महीने भर जीरा नहीं खाना चाहिए तथा वसायुक्त भोजन करना चाहिए।
मार्गशीर्ष मास की कथा जानिए, मार्गशीर्ष माह में भगवान श्री कृष्ण के बालरूप की कथा का श्रवण किया जाता है। इसमें माता यशोदा के जीवन को दर्शाया जाता है।
अनुसार प्राचीन समय में हैहयवंश में महिष्मति नगरी में कृत्यवीर्य नाम के राजा की शीलधना नाम की एक रानी थी। जिसने संतान प्राप्ति के लिए ब्रम्हावादिनी मैत्रयी से उपाय पूछा था। इस पर मैत्रेयी ने उसे अनंत व्रत की विधि बताई। जिसे विधिपूर्वक करने पर शीलधना को कार्तवीर्यार्जुन नाम का ओजस्वी पुत्र प्राप्त हुआ। जिसने भगवान विष्णु के अवतार श्री दत्तात्रेय की आराधना कर चक्रवर्ती सम्राट बनने का वर प्राप्त कर देवताओं की तरह पूजनीय स्थान प्राप्त किया था।
मार्गशीर्ष मास की संकष्टी चतुर्थी की व्रत कथा, जानिए, किस गणेश की पूजा किस रीति से करें यह जानिए,
माता पार्वती जी ने गणेश जी से पूछा कि अगहन कृष्ण चतुर्थी संकटा कहलाती है, उस दिन भगवान श्री गणेश की पूजा किस रीति से करनी चाहिए?
गणेश जी ने उत्तर दिया कि हे हिमालय नंदनी! अगहन में पूर्वाेक्त रीति से गजानन नामक गणेश की पूजा करनी चाहिए। पूजन के बाद अर्घ्य देना चाहिए। दिन भर व्रत रहकर पूजन के बाद ब्राम्हण को भोजन कराकर जौ, तिल, चावल, चीनी और घृत का शाकला बनाकर हवन कराएं तो वह अपने शत्रु को वशीभूत कर सकता हैं। इस संबंध में हम एक प्राचीन इतिहास सुनाते हैं।
भगवान श्री गणेश जी के पूजन के लिए आप प्रातः काल उठकर नित्य कर्म से निवृत हो, शुद्ध हो कर स्वच्छ वस्त्र धारण कर लें। श्री गणेश जी का पूजन पंचोपचार (धूप, दीप, नैवेद्य, अक्षत, फूल) विधि से करें। इसके बाद हाथ में जल तथा दूर्वा लेकर मन ही मन श्री गणेश का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प करें एवं इस मंत्र का जाप कीजिए . . .
मम सर्वकर्मसिद्धये सिद्धिविनायक पूजनमहं करिष्ये, इसके साथ ही विधि विधान से भगवान श्री गणेश जी का पूजन अर्चन, आरती करें व प्रसाद का वितरण करें। हरि ओम,
अगर आप भगवान विष्णु जी एवं भगवान श्री कृष्ण जी की अराधना करते हैं और अगर आप विष्णु जी एवं भगवान कृष्ण जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय विष्णु देवा, जय श्री कृष्ण, हरिओम तत सत, ओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः लिखना न भूलिए।
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