मार्गशीर्ष माह का महत्व जानिए, जानिए क्यों खास है यह माह, इस माह के लाभ जानिए . . .

मार्गशीर्ष मास में गणेश चतुर्थी के व्रत की महिमा जानकर आप भी हो जाएंगे अचंभित . . .
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हिन्दू कैलेण्डर के अनुसार नौंवे माह को मार्गशीर्ष माह के नाम से जाना जाता है। वैसे सनातन धर्म या हिन्दु धर्म के पंचांग में बारह माहों को चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष, माघ, फाल्गुन के नाम से जाना जाता है। इसमें हिंदू धर्म में चैत्र महीने से साल की शुरुआत होती है। शास्त्रों के अनुसार मार्गशीर्ष महीने का संबंध मृगशिरा नक्षत्र से भी है। इसी नक्षत्र के कारण इस माह का नाम मार्गशीर्ष माह पड़ा। हिंदू कैलेंडर के अनुसार कार्तिक माह के बाद मार्गशीर्ष माह की शुरुआत होती है, जो नौवां महीना माना गया है। पुराणों में इस माह की महिमा का वर्णन मिलता है।
अगर आप भगवान विष्णु जी एवं भगवान श्री कृष्ण जी की अराधना करते हैं और अगर आप विष्णु जी एवं भगवान कृष्ण जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय विष्णु देवा, जय श्री कृष्ण, हरिओम तत सत, ओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः लिखना न भूलिए।
आईए आपको बताते हैं मार्गशीर्ष माह की कथा, प्राचीन काल में त्रेतायुग में दशरथ नामक एक प्रतापी राजा थे। वे राजा आखेट प्रिय थे। एक बार अनजाने में ही उन्होंने एक श्रवण कुमार नामक ब्राम्हण का आखेट में वध कर दिया। उस ब्राम्हण के अंधे मां बाप ने राजा को शाप दिया कि जिस प्रकार हम लोग पुत्र शोक में मर रहे हैं, उसी भांति तुम्हारा भी पुत्र शोक में मरण होगा। इससे राजा को बहुत चिंता हुई। उन्होंने पुत्रेष्टि यज्ञ कराया। फलस्वरूप जगदीश्वर ने राम रूप में अवतार लिया। वहीं, भगवती लक्ष्मी भी माता जानकी के रूप में अवतरित हुई।
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पिता की आज्ञा पाकर भगवान राम, सीता और लक्ष्मण सहित वन को गए जहां उन्होंने खर दूषण आदि अनेक राक्षस व राक्षसियों का वध किया। इससे क्रोधित होकर रावण ने सीताजी का अपहरण कर लिया। सीता जी की खोज में भगवान राम ने पंचवटी का त्याग कर दिया और ऋष्यमूक पर्वत पर पहुंचकर सुग्रीव के साथ मैत्री की। तत्पश्चात सीता जी की खोज में हनुमान जी आदि वानर तत्पर हुए। ढूंढते ढूंढते वानरों ने गिद्धराज संपाती को देखा। इन वानरों को देखकर संपाती ने पूछा कि कौन हो? इस वन में कैसे आये हो? तुम्हें किसने भेजा है? यहां पर तुम्हारा आना किस प्रकार हुआ है।
संपाती की बात सुनकर वानरों ने उत्तर दिया कि भगवान विष्णु के अवतार दशरथ नंदन भगवान श्री राम जी, माता सीता जी और लक्ष्मण जी के साथ दंडकवन में आए हैं। वहां पर भगवान श्री राम जी की पत्नी सीताजी का अपरहण कर लिया गया है। हे मित्र! इस बात को हम लोग नहीं जानते कि सीता कहां है?
उनकी बात सुनकर संपाती ने कहा कि तुम सब रामचंद्र के सेवक होने के नाते हमारे मित्र हो। जानकी माता जी का जिसने हरण किया है और वह जिस स्थान पर है वह मुझे मालूम है। सीता जी के लिए मेरा छोटा भाई जटायु अपने प्राण गंवा चुका है। यहां से थोड़ी ही दूर पर समुद्र है और समुद्र के उस पार राक्षस नगरी है। वहां अशोक के पेड़ के नीचे माता सीता जी बैठी हुई है। रावण द्वारा अपहृत माता सीता जी अभी भी मुझे दिखाई दे रही हैं। मैं आपसे सत्य कह रहा हूं कि सभी वानरों में हनुमान जी अत्यंत पराक्रमशाली है। अतः उन्हें वहां जाना चाहिए। केवल हनुमान जी ही अपने पराक्रम से समुद्र लांघ सकते हैं। अन्य कोई भी इस कार्य में समर्थ नहीं है।
संपाती की बात सुनकर हनुमान जी ने पूछा कि हे संपाती! इस विशाल समुद्र को मैं किस प्रकार पार कर सकता हूं? जब हमारे सब वानर उस पार जाने में असमर्थ हैं तो मैं ही अकेला कैसे पार जा सकता हूं?
हनुमान जी की बात सुनकर संपाति ने उत्तर दिया कि हे मित्र, आप संकटनाशक गणेश चतुर्थी का व्रत कीजिए। उस व्रत के प्रभाव से आप समुद्र को क्षण भर में पार कर लेंगे। संपाती के आदेश से संकट चतुर्थी के उत्तम व्रत को हनुमान जी ने किया। हे देवी, इसके प्रभाव से हनुमान जी क्षण भर में समुद्र को लांघ गए। इस लोक में इसके सामान सुखदायक कोई दूसरा व्रत नहीं हैं।
वहीं, भगवान श्रीकृष्ण जी कहते हैं कि महाराज युधिष्ठर, आप भी इस व्रत को कीजिए। इस व्रत के प्रभाव से आप क्षणभर में अपने शत्रुओं को जीतकर सम्पूर्ण राज्य के अधिकारी बनेंगे। भगवान कृष्ण का वचन सुनकर युधिष्ठर ने गणेश चतुर्थी का व्रत किया। इस व्रत के प्रभाव से वे अपने शत्रुओं को जीतकर राज्य के अधिकारी बन गए।
मार्गशीर्ष मास गणेश चतुर्थी व्रत पूजन विधि जानिए,
प्रातः काल उठकर नित्य कर्म से निवृत हो, शुद्ध हो कर स्वच्छ वस्त्र धारण कर लें। श्री गणेश जी का पूजन पंचोपचार (धूप,दीप, नैवेद्य,अक्षत,फूल) विधि से करें। इसके बाद हाथ में जल तथा दूर्वा लेकर मन ही मन श्री गणेश का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प करें एवं मंत्र का जाप कीजिए,
मम सर्वकर्मसिद्धये सिद्धिविनायक पूजनमहं करिष्ये
अब कलश में जल भरकर उसमें थोड़ा गंगा जल मिलाएं। कलश में दूर्वा, चिल्हर पैसे या सिक्के, साबुत हल्दी रखें। उसके बाद लाल कपड़े से कलश का मुख बांध दें। कलश पर गणेश जी की प्रतिमा स्थापित करें। पूरे दिन श्री गणेशजी के मंत्र का स्तवन करें। संध्या को दुबारा स्नान कर शुद्ध हो जाएं। श्री गणेश जी के सामने सभी पूजन सामग्री के साथ बैठ जाएं। विधि विधान से गणेश जी का पूजन करें। वस्त्र अर्पित करें। नैवेद्य के रूप में 10 लड्डू अर्पित करें। चंद्रमा के उदय होने पर चंद्रमा की पूजा कर अर्घ्य अर्पण करें। उसके बाद गणेश चतुर्थी की कथा अवश्य सुनें अथवा सुनाएं। जौ, चावल, चीनी, तिल व घी से हवन करें। तत्पश्चात गणेश जी की आरती करें। 5 लड्डू प्रसाद के रूप में बांट दें और शेष 5 अगले दिन ब्राम्हण को दान में दें।
मार्गशीर्ष महीने का महत्व जानिए,
मार्ग शीर्ष माह को हिन्दू शास्त्रों में सर्वाधिक पवित्र महीना माना जाता है। भगवान स्वयं भगवान गीता में कहते हैं कि महीनों में, मैं मार्गशीर्ष हूं। इसी महीने से सतयुग का आरम्भ माना जाता है। कश्यप ऋषि ने भी इसी महीने में कश्मीर की रचना की थी। यह महीना जप, तप और ध्यान के लिए सर्वाेत्तम माना गया है। इस महीने पवित्र नदियों में स्नान करना विशेष फलदायी होता है।
इस अवधि को पारंपरिक रूप से आध्यात्मिक नवीनीकरण और धार्मिक उत्साह के समय के रूप में देखा जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस महीने के दौरान, दैवीय ऊर्जाएँ विशेष रूप से सुलभ होती हैं, और देवता प्रार्थनाओं और अनुष्ठानों के प्रति अधिक ग्रहणशील होते हैं। यह ध्यान, उपवास और तीर्थयात्रा जैसी आध्यात्मिक प्रथाओं के लिए एक आदर्श समय है।
सांस्कृतिक रूप से, इस महीने में कई त्यौहार और धार्मिक समारोह मनाए जाते हैं, जिनमें से प्रत्येक इसका महत्व बढ़ाता है। यह नए उपक्रमों और परियोजनाओं को शुरू करने का भी समय है, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इस समय के दौरान कोई भी नई शुरुआत सफलता और समृद्धि के साथ होती है। यह महीना आत्म चिंतन, आंतरिक शांति और भक्ति को प्रोत्साहित करता है, जिससे यह न केवल धार्मिक गतिविधियों के लिए बल्कि व्यक्तिगत विकास और परिवर्तन के लिए भी एक समय बन जाता है।
जानिए क्यों खास है मार्गशीर्ष?
सतयुग में देवों ने मार्गशीर्ष की प्रथम तिथि को ही वर्ष प्रारंभ किया। मार्गशीर्ष मास में विष्णुसहस्त्र नाम, भगवत गीता और गजेन्द्रमोक्ष का पाठ जरूर करें। इस माह में शंख में पवित्र नदी का जल भरें और फिर इसे पूजा स्थान पर रखें। शंख को भगवान के ऊपर से मंत्र जाप करते हुए घुमाएं। इसके बाद शंख में भरा जल घर की दीवारों पर छिड़कें। इससे घर में शुद्धि बढ़ती है। शांति का वास होता है। मार्गशीर्ष की पूर्णिमा को चन्द्रमा की पूजा जरूर करनी चाहिए। मार्गशीर्ष की पूर्णिमा को ही दत्तात्रेय जयन्ती मनाई जाती है।
मार्गशीर्ष माह के लाभ जानिए
मार्गशीर्ष में मंगल कार्य विशेष फलदायी होते हैं। इस महीने में श्रीकृष्ण की उपासना और पवित्र नदियों में स्नान विशेष शुभ होता है। इस महीने में संतान से संबंधित वरदान बहुत सरलता से मिलता है। चन्द्रमा से अमृत तत्व की प्राप्ति भी होती है और कीर्तन करने का फल अमोघ होता है।
मार्गशीर्ष में कैसे चमकाएं किस्मत?
इस महीने में नित्य गीता का पाठ करें। भगवान कृष्ण की ज्यादा से ज्यादा उपासना करें। कान्हा को तुलसी के पत्तों का भोग लगाएं और उसे प्रसाद की तरह ग्रहण करें। पूरे महीने ओम नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जाप करें। अगर इस महीने किसी पवित्र नदी में स्नान का अवसर मिले तो जरूर करें।
अगर आप भगवान विष्णु जी एवं भगवान श्री कृष्ण जी की अराधना करते हैं और अगर आप विष्णु जी एवं भगवान कृष्ण जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय विष्णु देवा, जय श्री कृष्ण, हरिओम तत सत, ओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः लिखना न भूलिए।
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