इस बार विवाह पंचमी पड़ रही है इस तारीख को . . ., विवाह पंचमी की पूजन विधि जानिए . . .
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भारत वर्ष में सनातन परंपराओं में सनातन धर्म के आराध्य देवी देवताओं से जुड़ी हुई प्रमुख घटनाओं आज भी त्योहारों के रूप में मनाया जाता है। ऐसा ही एक पर्व में मार्गशीर्ष माह की शुक्ल पंचमी को मनाया जाता है। जिसे विवाह पंचमी के नाम से जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन भगवान श्रीराम और माता सीता का विवाह हुआ था। इस उत्सव को नेपाल में बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है। इसका कारण यह है कि माता सीता मिथिला नरेश राजा जनक की पुत्री थी, और आज मिथिला नेपाल का हिस्सा है। इसीलिए यह उत्सव वहां पर परंपरागतनुसार मनाया जाता है।
अगर आप भगवान विष्णु जी, भगवान श्री राम एवं भगवान श्री कृष्ण जी की अराधना करते हैं और अगर आप विष्णु जी एवं भगवान कृष्ण जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय विष्णु देवा, जय श्री राम, जय श्री कृष्ण, हरिओम तत सत, ओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः लिखना न भूलिए।
मार्गशीर्ष माह भगवान श्रीकृष्ण और विष्णु जी की पूजा को समर्पित है। इस माह में शंख पूजा, नदी स्नान और दान के साथ ही साथ पूजन पाठ से जुड़े कार्य करने का विशेष महत्व है। इससे साधक के सुखों में वृद्धि होती हैं। सनातन धर्म में मार्गशीर्ष माह को प्रभु श्रीराम की पूजा के लिए भी बेहद शुभ माना जाता है। मान्यता है कि मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि पर भगवान राम और माता सीता का विवाह हुआ था। इसी उपलक्ष्य में हर साल इस तिथि पर विवाह पंचमी मनाई जाती है। इस दिन राम-सीता की जोड़ी की आराधना करने से वैवाहिक जीवन सुखमय रहता है।
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धार्मिक मान्यताओं के अनुसार विवाह पंचमी पर तुलसीदास जी के द्वारा रामचरितमानस का लेखन भी पूरा किया गया था, इसलिए इस दिन इसका पाठ करने से प्रभु श्रीराम की कृपा जीवन में बनी रहती है। विवाह पंचमी के विशेष अवसर पर देश भर के राम मंदिरों को भव्य तरीके से सजाया जाता है। इतना ही ध्यान, कीर्तन, यज्ञ और पूजा पाठ का आयोजन भी होता है।
आईए अब जानते हैं इस साल विवाह पंचमी की तिथि के बारे में,
विवाह पंचमी शुक्रवार, 6 दिसंबर 2024 को मनाई जाएगी। इस दिन पंचमी तिथि प्रारम्भ होने का समय है 5 दिसंबर को दोपहर 12 बजकर 49 मिनिट एवं पंचमी तिथि समाप्त होगी 6 दिसंबर को दोपहर 12 बजकर 7 मिनिट पर, उदया तिथि के अनुसार, विवाह पंचमी का पर्व 6 दिसंबर 2024 को मनाया जाना उचित बताया जा रहा है। इस दिन ध्रुव योग का निर्माण होगा, जो रात 10 बजकर 42 मिनट तक रहेगा। इस दौरान श्रवण नक्षत्र का संयोग भी रहेगा, जो शाम 5 बजकर 18 मिनट तक रहेगा।
अब जानिए विवाह पंचमी पूजा विधि,
विवाह पंचमी पर पूजा करने के लिए सबसे पहले एक चौकी लें। चौकी पर लाल रंग का साफ वस्त्र बिछाएं। फिर भगवान श्री राम और माता सीता की प्रतिमा स्थापित करें। इसके बाद श्री राम जी को पीले और माता सीता को लाल रंग के वस्त्र अर्पित करें। अब दीप प्रज्वलित करते हुए उनका ध्यान करें। इसके बाद राम जी और सीता माता को तिलक लगाएं, और उन्हें फल फूल नैवेद्य अर्पित करें। पूजा के दौरान बालकाण्ड में दिए गए विवाह प्रसंग का पाठ करें। फिर रामचरितमानस का भी पाठ करें। अंत में सुख-समृद्धि की कामना करते हुए आरती करें।
विवाह पंचमी पूजा मंत्र इस प्रकार हैं,
ओम जनकनंदिन्यै विद्महे, भुमिजायै धीमहि। तन्नो सीताः प्रचोदयात।
ओम जानकी वल्लभाय नमः
ओम आपदामप हर्तारम दातारं सर्व सम्पदाम, लोकाभिरामं श्री रामं भूयो भूयो नामाम्यहम, श्री रामाय रामभद्राय रामचन्द्राय वेधसे रघुनाथाय नाथाय सीताया पतये नमः।
ओम दाशरथये विद्महे जानकी वल्लभाय धी महि। तन्नो रामः प्रचोदयात।
तौ भगवानु सकल उर बासी। करिहि मोहि रघुबर कै दासी। जेहि कें जेहि पर सत्य सनेहू। सो तेहि मिलइ न कछु संदेहू।
विवाह पंचमी का महत्व जानिए
पौराणिक धार्मिक ग्रथों में बताया गया है कि इसी दिन जनक नंदनी माता सीता और दशरथ नंदन प्रभु श्रीराम का विवाह संपन्न हुआ था। इस प्रसंग का विवरण श्रीराम चरित मानस में भी तुलसीदास जी ने किया है। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम और माता सीता के विवाह के कारण ही इस दिन को बहुत शुभ माना जाता है। भारतीय संस्कृति में प्रभु श्री राम और माता सीता को आदर्श दंपती माना जाता हैं। जिस तरह प्रभु श्रीराम ने हमेशा अपनी मर्यादा बनाए रखकर पुरुषोत्तम का पद पाया, ठीक उसी तरह माता सीता ने अपनी पवित्रता को साबित कर सारे संसार के लिए उदाहरण प्रस्तुत किया।
जानिए विवाह पंचमी के दिन क्या वरदान मिल सकते हैं?
अगर आपकी शादी में किसी भी तरह की बाधा उत्पन्न हो रही है, तो आप इस दिन भगवाम राम और सीता का विवाह संपन्न करवाएं। जिससे आपकी शादी में आने वाली सभी अड़चनें दूर हो जाएगा। साथ ही आपको मनचाहे विवाह का वरदान भी मिलेगा। विवाह पंचमी के शुभ अवसर पर भगवान श्रीराम और जनक नंदनी माता सीता की उपासना करनी चाहिए। इसके अलावा अगर आप बालकाण्ड में भगवान श्री राम एवं माता सीता के विवाह प्रसंग का पाठ करते हैं, तो आपके पारिवारिक जीवन में सुख मिलता है। साथ ही सभी समस्याएं दूर हो जाती है। वहीं कभी कभी कुंडली के दोष भी विवाह में विलंब का कारण बनते हैं। यदि आप भी विवाह नहीं होने या विवाह होने के बाद आपसी सामंजस्य की समस्या से परेशान हो रहे हैं, तो एक बार अपनी कुंडली विशेषज्ञ ज्योतिषियों को जरूर दिखाएं।
विवाह पंचमी की कथा जानिए,
राजा दशरथ के घर श्रीहरि विष्णु ने श्रीराम के रूप में अवतार लिया था, जबकि सीता के रूप में माता लक्ष्मी मिथला नरेश जनक जी को खेत में हल जोतने के दौरान मिली थी। ऐसा माना जाता है कि माता सीता ने एक बार भगवान शिव के धनुष को उठा लिया, जिसे उठाना भगवान परशुराम के अलावा किसी की बात नहीं थी। इसके बाद राजा निर्णय लिया कि, जो मनुष्य इस धनुष को उठाकर उसकी प्रत्यंचा चढ़ा देगा, वही मेरी पुत्री को योग्य वर होगा।
कुछ दिनों के उपरांत राजा जनक ने अपनी जनकपुरी में माता सीता का स्वयंवर रचने का ऐलान कर दिया। इस स्वयंवर में उस समय के कई महाबली आए, इसके अलावा स्वयंवर का हिस्सा बने महर्षि वशिष्ठ के साथ भगवान श्रीराम अपने भाई लक्ष्मण के साथ दर्शक के रूप में शामिल हुए थे। स्वयंवर में आए कई राजाओं ने अपना बल आजमाया और धनुष को उठाकर प्रत्यांचा चढ़ाने की कोशिश की, लेकिन प्रत्यांचा चढ़ाना तो दूर, कोई धनुष को हिला भी नहीं पाया। इस बात से राजा जनक काफी दुःखी हो गए, और उन्होंने सभा में कहा कि क्या कोई राजा इस धनुष की प्रत्यांचा चढ़ाने के योग्य नहीं है। तभी महर्षि वशिष्ठ ने श्री राम को प्रतियोगिता में हिस्सा लेने का आदेश दिया। अपने गुरुजी का आदेश पाकर प्रभु श्रीराम जब धनुष के पास पहुंचे, तो उन्होंने धनुष को उठाया और उसकी प्रत्यांचा चढ़ाने में वह धनुष टूट गया। इसके भगवान राम ने उस प्रतियोगिता को जीत लिया था, और माता सीता से विवाह कर लिया। तभी से मार्गशीर्ष पंचमी को विवाह पंचमी के रूप में मनाया जाता है।
जानिए कैसे मनाई जाती हैं विवाह पंचमी?
विवाह पंचमी के इस शुभ अवसर पर राम मंदिरों के अलावा सभी मंदिरों में उत्सव मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि मानव को जीवन का पाठ पढ़ाने और राक्षसों का वध करने के लिए ही श्रीहरि विष्णु ने भगवान राम के रूप में पृथ्वी पर जन्म लिया था। कई जगहों पर भगवान राम के उपासक माता सीता और भगवान श्रीराम का विवाह कराते हैं। साथ ही विवाह पंचमी के दिन अपने अपने तरीकों से सीता स्वयंवर की कथा को सुनते हैं। या फिर इसे नाट्य रूप में भी प्रस्तुत किया जाता है। इस दिन भगवान राम और माता सीता से विवाह में आ रही सभी बाधाओं को दूर करने का आशीर्वाद मांगना चाहिए।
क्या विवाह पंचमी पर विवाह करना शुभ है, यह जानिए?
विवाह पंचमी का दिन बेहद शुभ होता है और इस दिन कई शुभ मुहूर्त भी होते हैं। लेकिन फिर भी इस तिथि पर लोग अपनी कन्या की शादी नहीं कराते हैं। ऐसा कहा जाता है कि अगर इस दिन ग्रह नक्षत्रों की स्थिति ठीक हो और शुभ मुहूर्त भी हो तब भी विवाह नहीं करना चाहिए, क्योंकि शादी-विवाह के लिए विवाह पंचमी के दिन को अशुभ माना जाता है।
जानिए क्या विवाह पंचमी के दिन शादी क्यों नहीं करनी चाहिए?
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, अगहन शुक्ल पंचमी तिथि पर विवाह करने के बाद प्रभु राम और माता सीता माता को जीवन में कई प्रकार की परेशानियों का सामना करना पड़ा था, जिसमें उन्हें 14 वर्ष का वनवास सहना पड़ा। इसके अलावा, वनवास पूरा होने के बाद भी माता सीता को वन में रहना पड़ा। वनवास पूरा होने के आखिरी साल में माता सीता को रावण द्वारा हरण होने की पीड़ा से गुजरना पड़ा।
इसके बाद माता सीता को अग्नि परीक्षा देनी पड़ी। अयोध्या लौटने के कुछ समय बाद ही श्री राम ने माता सीता का परित्याग कर दिया था। इस तरह राजकुमारी सीता मां के महारानी का सुख प्राप्त नहीं हुआ था। इसी कारण इस तिथि पर लोग अपनी बेटियों का विवाह करना शुभ नहीं मानते हैं। हालांकि शास्त्रों में ऐसा कोई उल्लेख नहीं मिलता है। हरि ओम,
अगर आप भगवान विष्णु जी, भगवान श्री राम एवं भगवान श्री कृष्ण जी की अराधना करते हैं और अगर आप विष्णु जी एवं भगवान कृष्ण जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय विष्णु देवा, जय श्री राम, जय श्री कृष्ण, हरिओम तत सत, ओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः लिखना न भूलिए।
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