जानिए दो कुंभ के बीच में क्यों रहता है बारह बरस का अंतराल
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अगले वर्ष अर्थात 2025 में उत्तर प्रदेश की धर्म नगरी प्रयागराज में महाकुंभ मेले का आयोजन होने जा रहा है। यह मेला 45 दिनों तक चलेगा। अब ऐसे में आप सभी के मानस पटल पर सवाल घुमड़ना स्वाभाविक ही है कि आखिर महाकुंभ हर बार प्रयागराज में ही क्यों लगता है।
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सबसे पहले जानिए कि कुंभ क्या है?
जानकार विद्वानों के अनुसार कुंभ का अर्थ होता है घड़ा। कुंभ एक मेला ही नहीं महा पर्व भी है। सनातन धर्म के समस्त पर्वों में कुंभ सर्वाेपरि माना गया है। धार्मिक सम्मेलनों की यह परंपरा भारत में वैदिक युग से ही चली आ रही है। कहा जाता है कि जब ऋषि और मुनि किसी नदी के किनारे जमा होकर धार्मिक, दार्शनिक और आध्यात्मिक रहस्यों पर विचार विमर्श किया करते थे। यह परंपरा आज भी कायम है।
अब जानिए कुंभ आयोजन क्यों किया जाता है?
कुंभ के अयोजन के मूलतः दो कारण बताए गए हैं, इसमें पहला कारण है, कुंभ मेले के आयोजन के पीछे बहुत बड़ा विज्ञान है। कहा जाता है कि जब जब इस मेले के आयोजन की शुरुआत होती है सूर्य पर हो रहे विस्फोट बढ़ जाते हैं और इसका असर धरती पर भयानक रूप में होता है। देखा गया है प्रत्येक ग्यारह से बारह वर्ष के बीच सूर्य पर परिवर्तन होते हैं। संभवतः प्राचीन काल में ऋषि मुनि इस बात को जानते थे तभी यह आयोजन करके इस बात के संकेत दिए गए होंगे।
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कुंभ के आयोजन के दूसरे कारण में कहा जाता है कि देवताओं और दैत्यों ने मिलकर जब समुद्र मंथन किया तो सबसे पहले कालकूट नामक विष निकला था, जिसे भगवान शंकर ने पीकर अपने कंठ में रोक लिया था, इसीलिए वे नीलकंठ कहलाए। समुद्र मंथन के अंत में निकला था अमृत भरा घड़ा, जिसके लिए समुद्र मंथन हुआ था। देवताओं और दैत्यों में अमृत पान करने के लिए होड़ लग गई।
देवताओं और दैत्यों के बीच अमृत बंटवारे को लेकर जब विवाद हो रहा था तथा देवराज इंद्र के संकेत पर उनका पुत्र जयंत जब अमृत कुंभ लेकर भागने की चेष्टा कर रहे थे, तब कुछ दैत्यों ने उनका पीछा किया। अमृत कुंभ के लिए स्वर्ग में 12 दिन तक संघर्ष चलता रहा और उस कुंभ से चार स्थानों पर अमृत की कुछ बूंदें गिर गईं। यह स्थान पृथ्वी पर हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नासिक थे। यहीं कारण है कि यहीं पर प्रत्येक 12 वर्ष में कुंभ का आयोजन होता है। कहते हैं कि इस दौरान कुंभ की नदियों का जल अमृत के समान हो जाता है। इसीलिए इसमें स्नान और आचमन करने का महत्व बढ़ जाता है।
कुंभ आयोजन कहां कहां और कब कब होता है यह जानिए?
सबसे पहले जानिए हरिद्वार में कुम्भ के बारे में, जानकार विद्वान बताते हैं कि कुम्भ राशि में बृहस्पति का प्रवेश होने पर एवं मेष राशि में सूर्य का प्रवेश होने पर कुम्भ का पर्व हरिद्वार में आयोजित किया जाता है। हरिद्वार और प्रयाग में दो कुंभ पर्वों के बीच छह वर्ष के अंतराल में अर्धकुंभ का आयोजन होता है।
अब जानिए प्रयागराज में कुम्भ के बारे में, विद्वान बताते हैं कि मेष राशि के चक्र में बृहस्पति एवं सूर्य और चन्द्र के मकर राशि में प्रवेश करने पर अमावस्या के दिन कुम्भ का पर्व प्रयाग में आयोजित किया जाता है। एक अन्य गणना के अनुसार मकर राशि में सूर्य का एवं वृष राशि में बृहस्पति का प्रवेश होनें पर कुम्भ पर्व को प्रयाग में आयोजित किया जाता है।
जानिए नासिक में कुम्भ के संबंध में, जानकारों के अनुसार सिंह राशि में बृहस्पति के प्रवेश होने पर कुम्भ पर्व गोदावरी के तट पर नासिक में होता है। अमावस्या के दिन बृहस्पति, सूर्य एवं चन्द्र के कर्क राशि में प्रवेश होने पर भी कुम्भ पर्व गोदावरी तट पर आयोजित होता है। इस कुंभ को सिंहस्थ इसलिए कहते हैं क्योंकि इसमें सिंह राशि में बृहस्पति का प्रवेश होता है।
अब देश के हृदय प्रदेश के उज्जैन में आयोजित होने वाले कुम्भ के बारे में जानिए, जानकार विद्वानों के अनुसार सिंह राशि में बृहस्पति एवं मेष राशि में सूर्य का प्रवेश होने पर यह पर्व उज्जैन में होता है। इसके अलावा कार्तिक अमावस्या के दिन सूर्य और चन्द्र के साथ होने पर एवं बृहस्पति के तुला राशि में प्रवेश होने पर मोक्ष दायक कुम्भ उज्जैन में आयोजित होता है। इस कुंभ को सिंहस्थ इसलिए कहते हैं क्योंकि इसमें सिंह राशि में बृहस्पति का प्रवेश होता है।
जानकार विद्वानों के अनुसार पौराणिक ग्रंथों जैसे नारदीय पुराण, शिव पुराण, वाराह पुराण और ब्रम्हाा पुराण आदि में भी कुम्भ एवं अर्ध कुम्भ के आयोजन को लेकर ज्योतिषीय विश्लेषण उपलब्ध है। कुम्भ पर्व हर 3 साल के अंतराल पर हरिद्वार से शुरू होता है। हरिद्वार के बाद कुम्भ पर्व प्रयाग नासिक और उज्जैन में मनाया जाता है। प्रयाग और हरिद्वार में मनाए जानें वाले कुम्भ पर्व में एवं प्रयाग और नासिक में मनाए जाने वाले कुम्भ पर्व के बीच में 3 सालों का अंतर होता है।
मान्यता है कि अमृत कलश की प्राप्ति हेतु देवता और राक्षसों में बारह दिन तक निरंतर युद्ध चला था। हिंदू पंचांग के अनुसार देवताओं के बारह दिन अर्थात मनुष्यों के बारह वर्ष माने गए हैं इसीलिए कुंभ का आयोजन भी प्रत्येक बारह वर्ष में ही होता है। मान्यता यह भी है कि कुंभ भी बारह होते हैं जिनमें से चार का आयोजन धरती पर होता है शेष आठ का देवलोक में संपन्न होते हैं। इसी मान्यता अनुसार प्रत्येक 144 वर्ष बाद महाकुंभ का आयोजन होता है जिसका महत्व अन्य कुंभों की अपेक्षा और बढ़ जाता है।
महाकुंभ मेले में लाखों संख्या में साधु और संत शामिल होते हैं। ऐसा माना जाता है कि महाकुंभ मेले में शाही स्नान करने से व्यक्ति को सभी पापों से छुटकारा मिल जाता है और जीवन में सुख, समृद्धि, हर्ष, खुशियों का आगमन होता है। वैदिक पंचांग के हिसाब से हर 12 साल बाद पौष माह की पूर्णिमा तिथि के दिन प्रयागराज में महाकुंभ मेले का आयोजन किया जाता है। जो महाशिवरात्रि तक चलता है। वहीं इस साल महाकुंभ मेले का आरंभ अगले वर्ष 2025 में 13 जनवरी से होने वाला है और इसका समापन 26 फरवरी 2025 को होने वाला है।
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